ग्वालियर .. बिन परिषद सब सून …. सड़कों का काम अटका, टैक्स में मनमानी विकास कार्यों की मॉनीटरिंग भी नहीं; जनसुनवाई से जनमित्र केंद्र तक काम के लिए भटक रहे लोग
- जानिए… बिना परिषद के लोगों को किस प्रकार की आ रही परेशानियां
- सवा दो साल से निगम परिषद न होने से रुक-सा गया शहर का विकास
पिछले सवा दो साल से नगर निगम परिषद न होने का खामियाजा पूरे शहर को उठाना पड़ रहा है। इस अवधि में शहर की खस्ताहाल सड़कों का निर्माण नहीं हो पाया। अमृत योजना के तहत कराए गए कामों में ठेकेदार के साथ अफसरों की मनमानी भी स्पष्ट दिखाई दे रही है। पिछले दो साल में गार्बेज शुल्क के रूप में नया शुल्क लगाने के साथ ही अन्य टैक्सों में भी बढ़ाेतरी हुई है। सबसे खास बात यह है कि परिषद के अभाव में नगर निगम में आम आदमी को काम कराना मुश्किल हो गया है।
नगरीय निकाय चुनाव को लेकर सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए आदेश से लोगों में एक बार फिर उम्मीद की किरण जागी है। आम आदमी का मानना है कि महापौर और पार्षदों के रहते कम से कम आम आदमी के काम तो आसानी से हो जाते हैं। अभी तो जनमित्र केंद्र से लेकर जनसुनवाई तक लोग अपने काम के लिए चक्कर लगा रहे हैं।
सड़कों का काम अटका
पिछले दो साल से शहर की प्रमुख सड़कों का काम अटका हुआ है। नगर निगम ने अलग-अलग प्रस्तावों के जरिए 37.54 किलोमीटर लंबी 22 सड़कों के लिए 37.67 करोड़। 35.27 किलाेमीटर लंबी 31 सड़कों के लिए 34.73 करोड़ की मांग विशेष अनुदान के तहत की थी। साथ ही मुख्यमंत्री अधोसंरचना के दूसरे चरण में 13.1 किलोमीटर लंबी 6 सड़कों के लिए 11.92 करोड़ का प्रस्ताव भेजा था। लेकिन बजट न मिल पाने के कारण सड़कें नहीं बन पाईं।
नए शुल्क के साथ टैक्स भी बढ़े
परिषद न होने का लाभ लेते हुए जहां एक और अधिकारियों ने सरकार के निर्देश का तेजी से पालन करते हुए गार्बेज शुल्क लगा दिया। इसके साथ ही निर्माण मंजूरी के साथ ही लगने वाला मलबा मसाला शुल्क में दो गुना वृद्धि कर दी। कलेक्टर गाइड लाइन के साथ जुड़ने के कारण संपत्ति कर भी तेजी से बढ़ा। अब पानी के बिल में भी बढ़ोतरी की तैयारी है। इसे लेकर लोगाें ने तो विरोध किया, लेकिन आमजन की बात सरकार तक पहुंचाने वाला कोई माध्यम नहीं था।
मॉनीटरिंग का अभाव
शहर में पेयजल और सीवेज की सुविधा के विस्तार के लिए 730 करोड़ रुपए की अमृत योजना के काम चल रहे हैं। ये काम निर्धारित समय बीतने के बाद भी पूरे नहीं हो पाए हैं। योजना को पूरा करने के लिए लगातार समय बढ़ाया जा रहा है। इसके साथ ही काम की गुणवत्ता को लेकर भी लगातार सवाल उठाए जा रहे हैं। परिषद के रहते पार्षद काम की गुणवत्ता के साथ काम की रफ्तार पर भी नजर रखते।
गली-मोहल्लों के कार्य अटके
परिषद के न होने का सबसे ज्यादा खामियाजा छोटी बस्तियों में रहने वालों को उठाना पड़ रहा है। उनकी सीसी रोड, सीवर लाइन, स्ट्रीट लाइट और पार्क आदि के विकास कार्यों पर अधिकारियों का ध्यान नहीं है। महापौर और पार्षदों के रहते उनके जरिए ये काम समय-समय पर कराए जाते हैं। साथ ही राशन कार्ड से लेकर पेंशन और अन्य सरकारी योजनाओं से संबंधित कार्ड बनवाने के लिए लोगों को चक्कर लगाना पड़ रहे हैं।
पार्षद अपने क्षेत्र के छोटे-छोटे काम कराते हैं
परिषद के रहते पार्षद अपने क्षेत्र के छोटे से छोटे काम को प्राथमिकता के आधार पर पूरा कराते हैं, लेकिन जब हम लोग काम करते हैं तो पूरे शहर को ध्यान में रखते हुए विकास कार्य करते हैं।
-किशोर कन्याल, निगमायुक्त
मॉनीटरिंग प्रभावित हुई है
परिषद के न रहने से विकास कार्यों की मॉनीटरिंग प्रभावित होती है। सरकार से अतिरिक्त बजट की व्यवस्था के लिए भी जनप्रतिनिधि सहयोग करते हैं। सबसे खास आम आदमी और छोटी गली-मोहल्लों के काम पार्षद ही कराते हैं।
-सतीश बौहरे, पूर्व पार्षद