गोल्ड से कम नहीं डेटा … सोशल मीडिया के विज्ञापन पर क्लिक करते ही फोन नंबर सहित डेटा लीक, 1 से 5 लाख में बेच देते हैं हैकर्स
सेबी से गाइडलाइन व जानकारी लेकर पुलिस ने फर्जी कंपनियों के खिलाफ अमानत में खयानत का केस दर्ज किए
- फर्जी एडवाइजरी कंपनियां कर रहीं इनका लोगों से धोखाधड़ी करने में इस्तेमाल
- पुलिस के गठजोड़ से पनपी फर्जी एडवाइजरी
फर्जी एडवाइजरी कंपनी की संचालिका पूजा थापा और उसके 16 साथियों से हुई पूछताछ के बाद पुलिस को पता चला है कि इस गिरोह की सबसे बड़ी ताकत लोगों का डेटा है, जो इन्हें सॉफ्टवेयर इंजीनियर एक से पांच लाख रुपए में उपलब्ध कराते हैं। पुलिस ने मामले में अमित बरवा नाम के एक साॅफ्टेवयर इंजीनियर को पकड़ा। इसने थापा गैंग के अलावा भी 18 से ज्यादा कंपनियों को डेटा बेचना कबूला।
अमित ने पुलिस को बताया कि वह गूगल पर 200 से एक हजार रुपए में पॉप-अप विज्ञापन फ्लैश करता था। उसमें शेयर में निवेश कर जल्द पैसा कमाने का लालच दिया जाता था। विज्ञापन के जरिए ही वह डेटा चुराता था। इसने कई कंपनियों को मुनाफे का 15 से 35 प्रतिशत कमीशन लेकर भी डेटा बेचना कबूला है। इसके अलावा गूगल, फेसबुक, डार्क नेट और डार्क वेब से लीगल तरीके से भी डेटा खरीदने की बात कही है।
हर कॉलर को 100 से 150 नंबर देकर कॉलिंग करने का टास्क
- एडवाइजरी कंपनी में काम कर चुके मीत भट्ट बताते हैं कि कंपनी के संचालक 21 से 28 वर्ष के उन युवाओं को नौकरी में प्राथमिकता देते हैं जो बीपीओ से आते हैं।
- हर एक कॉलर को 100 से 150 लोगों के नंबर देकर उन्हें कॉलिंग करने का टास्क दिया जाता है।
- इस दौरान निवेश के लिए रुचि दिखाने पर तत्काल इनके एडवाइजर, मैनेजर या ट्रेंड कर्मचारी कॉल अपने पास ट्रांसफर करा लेते हैं। शेयर में दुगना-तिगुना मुनाफा देकर धोखाधड़ी करते हैं। कई कंपनियों में कॉलर को अपना असली नाम नहीं बताने के लिए भी कहा जाता है।
- संचालक खुद के सरनेम भी ऐसे बताते हैं, जिससे आम व्यक्ति उन्हें बड़ा आदमी समझे। जैसे सिंघानिया, ओबेरॉय, राजपूत, रॉय, कपूर, बड़जात्या आिद। लोग भी इनके झांस में आ जाते हैं।
ऐसे उठाते हैं फायदा
- ऐसी वेबसाइट जिनकी साइबर सिक्युरिटी कमजोर है। उसका लाभ उठाकर यूजर्स का डेटा आसानी से उठा लेते हैं।
- कई हैकर्स ऐसी वेबसाइट डिजाइन करते हैं कि उसे ऑनलाइन विजिट करने वाले की पूरी जानकारी उनके पास इकट्ठा हो जाती है। यदि किसी ने डेबिट या क्रेडिट कार्ड नंबर डाला है तो वह भी उस तक पहुंच जाता है।
- कई एप ऐसे होते हैं, जिन्हें डाउनलोड करने पर नीचे बारीक अक्षरों में शर्तें पढ़े बिना ही हम परमिशन दे देते हैं और वे आसानी से आपकी जानकारी लेकर कहीं भी फायदा ले लेते हैं। कई बार कुछ विज्ञापन गलती से टच हो जाने पर पूरी जानकारी लेने के बाद ही बंद होते हैं।
- डेटा चोरी का सबसे बड़ा प्लेटफॉर्म डार्क नेट व ग्रे मार्केट में लीक्ड डंप डेटा है, जिसमें बड़ी संख्या में लोगों के ई-मेल अकाउंट, पासवर्ड, डेबिट कार्ड, क्रेडिट कार्ड का डेटा बेचा व खरीदा जाता है।
पुलिस के गठजोड़ से पनपी फर्जी एडवाइजरी
वर्ष 2019 में एडवाइजरी का धंधा शहर में पनपा था। विजय नगर में 195 से ज्यादा कंपनियां थीं। कुछ की शिकायतें जब थाने पहुंची तो कुछ के संचालकों को पकड़ा गया। ये लोग पुलिस से बचने के लिए लीगल एडवाइजर और लाइजनर रखने लगे। कई संचालकों ने पुलिस से सांठगांठ कर ली। वर्ष 2020 में विजय नगर, तुकोगंज, पलासिया, खजराना व लसूड़िया में 200 से ज्यादा एडवाइजरी कंपनियां खुल गईं। इनका टारगेट बाहरी राज्यों के लोग होते थे। तत्कालीन डीआईजी रुचिवर्धन मिश्र ने ऐसी 143 अनरजिस्टर्ड कंपनियों की लिस्ट बनवाई। सेबी से गाइडलाइन व जानकारी लेकर पुलिस ने फर्जी कंपनियों के खिलाफ अमानत में खयानत का केस दर्ज किए।
हवाला कारोबार भी- फर्जी एडवाइजरी कंपनियों के संचालक विवेक पेशवानी, मोहित मंगनानी, अतुल नेतनराव, नेहा गुप्ता, प्रद्युम्न अग्रवाल, सौरभ गुप्ता की कंपनियों पर केस दर्ज हुए तो इनसे हवाला का नेटवर्क भी सामने आया। विजय नगर पुलिस ने जिग्नेश भाई, इमरान, राहुल नाम के तीन हवाला कारोबारियों को भी पकड़ा।
पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन एक्ट बना रही सरकार
2017 में कॉल डिटेल्स बेचने वाले गिरोह को पकड़ा गया था। डेटा चोरी के मामलों में केंद्र सरकार कड़ी कार्रवाई करने के लिए पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन एक्ट (पीडीपीए) भी ला रही है।
– जितेंद्र सिंह, एसपी, राज्य साइबर सेल