आगरा में रस्सी बांधकर नाव से पार करते हैं नदी:जरा से काम के लिए तीन हजार की आबादी रोज दांव पर लगा रही जिंदगी
आगरा के रुनकता स्थित रेणुका धाम घाट पर पीढ़ियों से छोटी-छोटी जरूरतों के लिए लोग जान जोखिम में डालकर नदी पार करते हैं। नदी के दोनों छोरों पर रस्सी बांधकर नाव के सहारे आगरा और मथुरा के बीच आवागमन होता है। पिछले साल यहां यमुना नदी पर पुल बनवाने का काम शुरू हो गया है। मगर, धीमी गति से चल रहे काम के कारण लोगों को अभी कुछ और सालों तक खतरा उठाना पड़ सकता है। रोजाना तीन हजार से ज्यादा लोग रोजगार, पढ़ाई और अन्य कामों के लिए जोखिमभरा सफर करते हैं।
त्रेता युग से जुड़ा है यहां का इतिहास
इस जगह का इतिहास त्रेता युग से भी जुड़ा हुआ है। माना जाता है कि त्रेता युग में महर्षि जमदग्नि ने यहां पुत्रेष्टि यज्ञ करवाया था। देवराज इंद्र के वरदान से वैशाख माह की शुक्ल तृतीया के दिन उनकी पत्नी रेणुका को भगवान परशुराम के रूप में पुत्र प्राप्ति हुई थी। भगवान परशुराम को भगवान विष्णु का छठा अवतार माना जाता है। यहां जमदग्नि यज्ञ करते थे। एक बार पत्नी से यज्ञ के लिए पानी मंगवाने पर देरी हो जाने पर उन्होंने परशुराम जी से उनकी मां और भाइयों का वध करवा दिया था।
पिता की आज्ञा मानने पर खुश होकर जब जमदग्नि ने परशुराम से वरदान मांगने को कहा था, तो उन्होंने अपने भाइयों और माता को दोबारा जीवित होने का वरदान मांगकर उन्हें नया जीवन दिलवा दिया था। यहां भगवान शनिदेव का मंदिर स्थापित है और मंदिर में पूजा पर हर मनोकामना पूरी होने की मान्यता है। यहां से कुछ किमी दूर यमुना किनारे पर उन्होंने कैलाश मंदिर की स्थापना की थी और खंदारी मऊ रोड पर भी आंनदी भैरव मंदिर में शिवलिंग स्थापना की थी।
हर वक्त तैयार रहती है पीएसी और गोताखोर
यमुना में वर्तमान में जलस्तर कम है, लेकिन यहां हमेशा पीएसी तैनात रहती है। कभी भी हादसा होने पर पूरी मशीनरी के साथ राहत कार्य किया जाता है। मंदिर परिसर में एक गोताखोर भी पूरे दिन मौजूद रहता है। उसे मंदिर तनख्वाह देता है। गोताखोर महेंद्र अब तक 200 से ज्यादा लोगों की जान बचा चुके हैं और किसी भी हादसे के बाद शव निकालने का काम भी वही करते हैं। स्थानीय निवासी कृष्ण कुमार गौतम के अनुसार, अधिकतर यहां हादसे होते रहते हैं।
मथुरा तक के लोगों का है रास्ता
यमुना होते हुए आने से लोगों को 20 किमी से अधिक का रास्ता नहीं तय करना पड़ता है। मथुरा के दाऊ जी से लेकर आगरा एत्मादपुर तहसील के कई गांव इस हद में आते हैं। इनमें से नगला अकोस, अकोस, लालगढ़ी, गढ़ी महराम, कुला बुर्ज, नगला संजा, नगला दोधिया, नगला सेतु, नगला बबूल, नगला बेर, नगला बदना के लोगों को हर जरूरत पर नदी पार करनी पड़ती है। अनुमानतः तीन हजार लोग रोजाना इसी तरह नदी पार करते हैं। शनिवार को मंदिर दर्शन के लिए आने वाले लोगों से भीड़ और बढ़ जाती है।
नौकरी, छठी कक्षा से उच्च शिक्षा तक के लोग रोज सफर करते हैं। ग्रामीणों के अनुसार अभी तो 250 मीटर के लगभग का सफर है। बारिश के समय या मथुरा-गोकुल बैराज से पानी छोड़ने पर नदी की चौड़ाई 800 मीटर से ज्यादा हो जाती है। तब भी इसी तरह दोनों ओर बड़े लकड़ी के लट्ठे जमीन में लगाकर उनके बीच रस्सी बांधी जाती है। इससे चप्पू नहीं चलाना पड़ता है और बहाव को चीरते हुए नाव आसानी से निकल जाती है।
तीन पीढ़ी से नाव चला रहे मल्लाह
लोगों के आवागमन के लिए यहां पूरा दिन नाव चलती है। लोग बाइक, साइकिल और तमाम सामान साथ लेकर नाव से उस पार जाते हैं। कई बार गाड़ी चढ़ाने और उतारने के दौरान ही पानी में भी गिर जाते हैं। नाव चलाने वाले मल्लाह हरदम बताते हैं कि कई बार हादसे भी हुए हैं। अब योगी सरकार में जैसे तैसे सुध ली गई है। पुल बनने के बाद नाव का काम खत्म हो जाएगा, लेकिन उनकी जमीन की कीमत बढ़ जाएगी और उनकी फसल बेचने में आसानी हो जाएगी।
54 करोड़ रुपए की लागत से बन रहा पुल
पूर्व राज्यपाल और वर्तमान कैबिनेट मंत्री बेबी रानी मौर्या की विधानसभा आगरा ग्रामीण में यह क्षेत्र आता है। जिलाधिकारी प्रभु नारायण सिंह के अनुसार, 54 करोड़ रुपए की लागत से साढ़े सात मीटर ऊंचे पुल का यहां निर्माण हो रहा है। 27 मीटर गहरे कुल नौ कुएं बनाकर इस पुल को बनाया जा रहा है। सितंबर 2021 में इसका काम शुरू हुआ था। अभी 9 कुओं में से चार बन पाए हैं और वो भी अधूरे हैं। काम काफी धीमी गति से और रुक-रुक कर हो रहा है। दो साल बाद 2023 तक इसे बनकर तैयार होना था, पर यह 2024 से पहले बनने के हालात में नहीं है।