जुगाड़ के बाथरूम से इज्जत बचा रहीं बहन-बेटियां … बोरी, चारपाई और पेड़ों की आड़ में नहाती हैं महिलाएं; UP के 3 हजार गांवों से रिपोर्ट

‘नहाते वक्त हमेशा मेरा ध्यान आहटों पर होता है। चूड़ी या पायल की आवाज से समझ जाती हूं कि कोई महिला आ रही है। मर्द खांसते हुए निकलते हैं, तो जल्दी से शरीर पर कपड़ा डाल लेती हूं।’ अमरोहा की चंपा ये बात कहते हुए न खीझती हैं, न दुख जताती हैं। सिर्फ कह देती हैं।

अकेली चंपा की ही यह कहानी नहीं है। UP के उन 3 हजार गांव की महिलाओं-लड़कियों ने भी इसी तरह की बातें बताईं, जहां दैनिक भास्कर ऐप के 315 रिपोर्टर 25 अप्रैल से 10 मई के बीच पहुंचे। दरअसल, गांव में नहाने के लिए बाथरूम नहीं है ….

लेकिन जब महिलाएं नहाने जाती हैं तब क्या हालत होती है, आइए जानते हैं…

1. पश्चिमी उत्तर प्रदेशः यहां लड़कियां जल्दी नहा लेती हैं, ताकि कोई देख न ले

मथुरा, फिरोजाबाद, अमरोहा, बागपत, बदायूं, आगरा, मेरठ, बरेली, मुरादाबाद जिलों के करीब 800 गांवों में जाकर हमने देखा। किसी ने तिरपाल लगाया था तो किसी ने सिर्फ ईंटें रखकर एक छोटी सी दीवार खड़ी की थी। अमरोहा जिले के हसनपुर में तो महिलाएं चारपाई की आड़ में नहाती मिलीं।

सत्यवती बताती हैं, ‘बड़े बुजुर्गों का ध्यान रखना पड़ता है, कोई देख न ले इसलिए सुबह तड़के ही नहा लेते हैं। चारपाई में साड़ी डाल लेने से कोई देख नहीं पाता। यह हमारे लिए काम जैसा ही है, एक बाल्टी पानी से नहा लिया और काम खत्म।’

2. बुंदेलखंड: यहां लड़कियां-महिलाएं इंतजार करती हैं कि घरवाले चले जाएं तो नहाए

झांसी, जालौन, हमीरपुर, महोबा, ललितपुर और चित्रकूट के करीब 600 गांवों में भास्कर रिपोर्टर गए। ललितपुर में महिलाओं ने पेड़ों या बांस-बल्ली से साड़ी या चादर बांधकर बाथरूम बनाए थे।

मड़ावरा गांव की 22 साल की पूजा बताती हैं, ‘पापा-भैया जब चले जाते हैं तब नहा पाते हैं, तब तक दिन चढ़ जाता है। अगर उन्हें नहीं जाना होता है, तो हम जल्दी उठकर नहाते हैं। हमेशा यह लगता रहता है कि कहीं कोई आ न जाए।’

3. सेंट्रल उत्तर प्रदेशः हैंपपंप पर मां या चाची को लेकर जाती हैं, ताकि साड़ी से आड़ बना सकें

कानपुर नगर, कानपुर देहात, फतेहपुर, लखीमपुर खीरी, लखनऊ, बाराबंकी और हरदोई के 900 से ज्यादा गांवों में भास्कर रिपोर्टर ने जाकर देखा। उन्नाव में बोरियों को सिलकर तैयार किए गए बाथरूम मिले, तो कानपुर देहात में महिलाएं हैंडपंप पर नहाती दिखीं।

कानपुर देहात के डेरापुर की रहने वाली गुड्डी बताती हैं, ‘अगर जगह होती तो कुछ न कुछ आड़ लगाकर बाथरूम बना लेते। हैंडपंप पर जाकर नहाते हैं। अगल-बगल से लोग निकलते रहते हैं। मां या चाची के साथ जाते हैं। अकेले जाने में डर लगता है।’

4. पूर्वी उत्तर प्रदेशः यहां महिलाएं नहाते वक्त पूरे कपड़े पहने रहती हैं

जौनपुर, संतकबीर नगर, देवरिया, कुशीनगर, बलरामपुर, सोनभद्र, गोरखपुर और बलिया के 700 से ज्यादा गांवों में गए। कहीं, बिना बाउंड्रीवॉल और छत वाले बाथरूम दिखे तो कुछ गांवों में पेड़ों की आड़ में ही बाथरूम बने थे। देवरिया के बरहज की उर्मिला कहती हैं, ‘शादी के 7 साल हो गए हैं। ऐसे ही खुले में नहा रहे हैं। हम लोग अपने हिसाब से नहा भी नहीं सकते हैं। घर के बाहर से सड़क गई है। कोई न कोई निकलता रहता है। घर के लोग तो मुंह घुमा लेते हैं, लेकिन बाहरी लोग देखते हैं, इसलिए हमने साड़ी लगा ली है।’

यहां पर आज गांव की महिलाओं के नहाने की हालत की कहानी पूरी होती है।

लेकिन…

30 साल पहले तक ऐसा नहीं होता था, यहां तक कि मोहनजोदड़ो में भी महिलाओं के लिए अलग स्नानागार थे। आइए पूरी कहानी में ले चलते हैं…

सिंघु घाटी सभ्यता: मोहनजोदड़ो के महास्नानघर में भी दो घाट थे

ये तस्वीर मोहनजोदड़ो की खुदाई में निकले महास्नानघर की है।
ये तस्वीर मोहनजोदड़ो की खुदाई में निकले महास्नानघर की है।

यह 3000 ईसा पूर्व वाली सिंधु घाटी सभ्यता के मोहनजोदड़ो शहर की तस्वीर है। इसमें 11.88 मीटर लम्बा, 7.01 मीटर चौड़ा और 2.43 मीटर गहरा एक हौज दिखाई देता है। एडिन क्रेमिन की किताब ‘ऑर्कालॉजिका’ में इंटरनेशनल लेखकों ने लिखा कि इसमें पक्की ईंटों वाला आकार नहाने के लिए ही था। इसमें उत्तर और द‌क्ष‌िण की ओर सीढ़ियां दिखाई देती हैं। यानी उस वक्त भी नहाने के लिए दो घाटों का इस्तेमाल होता था।

मुगल काल: कुएं और तालाबों पर स्नानागार अलग से थे

ये तस्वीर मुगल काल के स्नानघर की है, जो चारों तरफ से ढ़का हुआ है।
ये तस्वीर मुगल काल के स्नानघर की है, जो चारों तरफ से ढ़का हुआ है।

1504 से 1526 तक मुगल शासक बाबर के समय भी कुएं और तालाबों के किनारों पर अलग स्नानागार दिखाई देते थे। उस दौर में आगरा, फतेहपुर सीकरी, बयाना, धौलपुर, ग्वालियर, अलीगढ़ इसके साक्ष्य मिलते हैं। बाद में पोते अकबर ने भी इस परंपरा को आगे बढ़ाया। उस दौर के दिल्ली और आगरा के महलों में नहाने वाली जगह पर आड़ दिखाई देती है।

आधुनिक कालः कुरुक्षेत्र में मिलती है नहाने की व्यवस्था की झलक
हरियाणा के कुरुक्षेत्र का ब्रह्मसरोवर इसका उदाहरण है कि आधुनिक काल में आबादी के बीच नहाने के लिए प्रॉपर व्यवस्था की गई थी। यहां सरोवर में महिला और पुरुष अलग-अलग समय पर नहाने जाते थे। वहीं 19वीं शताब्दी में नगरीकरण और नगर योजना पर बहुत ध्यान दिया गया। कस्बे से लेकर गांवों तक जहां भी कॉलोनियां काटी गईं, उनमें स्नानघर की व्यवस्था जरूर की गई।

21वीं सदी: कुएं-तालाब सूखे और हैंडपंप कल्चर ने स्नानागार खत्म कर दिए

तस्वीर लखीमपुर की है। यहां हैंडपंप के पास ही महिलाओं ने अपने नहाने की जगह बना ली है।
तस्वीर लखीमपुर की है। यहां हैंडपंप के पास ही महिलाओं ने अपने नहाने की जगह बना ली है।

तालाब-कुंओं के सूखने के बाद देश में हैंडपंप कल्चर आया। जगह-जगह हैंडपंच लगाए गए। गांव के घरों में महिलाओं के नहाने की कोई जगह नहीं थी, इसलिए जहां हैंडपंप लगाए गए, वहीं महिलाओं को नहाना पड़ता था। तभी आज भी महिलाएं खुले में नहा रही हैं तो कुछ ने बोरी, तिरपाल, चारपाई और साड़ी लगाकर जुगाड़ किया है।

यहां पर भारत में सिंधु घाटी सभ्यता से 21वीं सदी तक के बाथरूम की कहानी खत्म होती है। अब की बात विदेशों में नहाने की व्यवस्था पर…

जर्मनी: खुले में नहाने से असहज थीं महिलाएं इसलिए सार्वजनिक स्नानघर बनवाए गए
पहले: रोमन साम्राज्य की शुरुआत में गर्म, गुनगुने और ठंडे पानी के पूल बनाए गए। यहां दो हिस्से बनाए गए। एक पुरुषों के लिए दूसरा महिलाओं के लिए। इसके बाद समुद्र तट पर नहाने के लिए स्पा बनाए गए। यहां पुरुष स्नान कर सकते थे। उस वक्त महिलाओं के लिए पुरुषों के आस-पास नहाना असभ्य माना जाता था। इसलिए उनके लिए खासतौर पर स्नान-गाड़ियां बनीं। ये महिलाओं को समुद्र के पानी तक ले जाती थीं जहां महिलाएं नहाती थीं।

ये स्नानगाड़ी जर्मनी में महिलाओं को समुद्र तट तक ले जाती थी जहां वे स्नान करती थीं।
ये स्नानगाड़ी जर्मनी में महिलाओं को समुद्र तट तक ले जाती थी जहां वे स्नान करती थीं।

अब: आज घरों में स्नानघर भी हैं। इसके अलावा समुद्र के पास स्नानघर और समुद्र से दूर शहरों के लिए नदी के किनारे सार्वजनिक स्नानघर बनवाए गए हैं।

जापान: पहले मंदिरों में सौना थे, आज सभी घरों में स्नानघर बने हैं
पहले: 17 वीं शताब्दी से पहले जापान में बौद्ध संस्कृति अपनाने के बाद मंदिरों में सौना बनाए गए। सौना में कोई भी व्यक्ति मुफ्त में स्नान कर सकता था।
अब: 19वीं शताब्दी तक जापान में सार्वजनिक स्नानघर बढ़ने लगे। आज जगह-जगह महिलाओं और पुरुषों के नहाने के लिए स्नानघर बने हैं।

ब्रिटिश शासन: स्नान अधिनियम पास हुआ, आज हर घर नहाने की व्यवस्था
पहले: पहला सार्वजनिक स्नानघर 1829 में लिवरपूल में खोला गया था। 19 नवंबर 1844 को तय हुआ कि जनता के सभी वर्गों की स्वास्थ्य समस्याएं दूर करने के लिए सबको नहाने का अवसर मिलना चाहिए। 26 अगस्त 1846 को सार्वजनिक स्नान और वाश हाउस अधिनियम पास किया गया।
अब: महिलाओं के नहाने के लिए लिए हर जगह सार्वजनिक स्नानघर बने हैं।

इंडोनेशिया: पहले खुले में नहाती थीं महिलाएं, अब गांव में बांस के बाथरूम बनाए गए

इंडोनेशिया का सार्वजनिक स्नानघर।
इंडोनेशिया का सार्वजनिक स्नानघर।

पहले: इंडोनेशिया में सार्वजनिक स्नानघर की पुरानी परंपरा रही है। लेकिन वक्त बीतने के साथ लोग सबके साथ एक जगह पर स्नान करने से असहज होने लगे। इसके बाद स्नान के समय शरीर को चारों तरफ से ढकने के लिए बाटिक कपड़े या सारंग का इस्तेमाल करने लगे।
अब: कुछ जगहों पर स्नान के लिए बांस से बने बाथरूम का इस्तेमाल होने लगा। ये अभी भी इंडोनेशिया के गांवों में बहुत कॉमन है।

यहां विदेशों में नहाने की व्यवस्था की बात खत्म होती है। आगे बात भारत में बाथरूम बनवाने की व्यवस्था पर…

भारत के गांव में बाथरूम बनवाने की अब तक कोई योजना नहीं
वित्त वर्ष 2021-22 के बजट में केंद्र सरकार ने स्वच्छ भारत अभियान के तहत 12 हजार 300 करोड़ रुपए जारी किए। इतने ही पैसे 2020-21 में ही जारी किए गए थे। स्वच्छ भारत अभियान ग्रामीण के लिए 9 हजार 994 करोड़ और स्वच्छ भारत अभियान शहर के लिए 2 हजार 300 करोड़ रुपए जारी किए।

इन पैसों से शौचालय बनाए जाते हैं। सीवर या सेप्टिक टैंक की सफाई होती है। 2020-21 में सरकार ने 41 लाख 61 हजार शौचालय बनाए, लेकिन इस बजट में नहाने के लिए बाथरूम बनाने जैसी किसी योजना का जिक्र नहीं है। ना ही ऐसी कोई योजना प्रस्तावित है।

अब तक किसी भी सरकार ने इस विषय में सोचा ही नहीं कि टॉयलेट की तरह बाथरूम भी जरूरी विषय है। इसीलिए यहां न कोई प्लानिंग है न ही इस विषय में बात करने के लिए कोई मंत्री, अधिकारी या फिर डिपार्टमेंट हैं।

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