अपने बच्चों के लिए स्वस्थ और स्वच्छ धरती देने के लिए हमें साथ आना होगा

रोज सुबह बिना नागा किए हुए इंदौर में मनोज दीक्षित को प्लास्टिक की केन में पानी भरकर रिंग रोड पर लगे नीम, पीपल और ऐसे कई पेड़-पौधों को पानी देते हुए कोई भी देख सकता है, ये पेड़ शहर को बहुत ऑक्सीजन देते हैं। याद रखें ये ऑक्सीजन दीक्षित के घर में पाइपलाइन से नहीं जाती! बारिश छोड़कर वह करीबन छह सालों से हर दिन बिना किसी फायदे या सम्मान की आस के बिना ऐसा कर रहे हैं।

उनके कई दोस्त जैसे मनोज भट्ट, श्रीवास्तव, मंडलोई भी कई फलदार वृक्षों को बचाने के लिए काम कर रहे हैं, ताकि पक्षी खा सकेंं। उनका मकसद है कि सालों तक पक्षियों को बिना किसी इंसानी दखल के सीधा प्रकृति से भोजन मिलता रहे। याद रखें जहां भी इंसानों ने देने वाले(प्रकृति) और लेने वाले (पढ़ें बाकी प्रजातियां) के बीच दखलंदाजी की, कहीं न कहीं लालच ने प्राकृतिक सामंजस्य को बिगाड़ा।

एक और रहवासी राजेंद्र सिंह से मिलिए, रेलवे कर्मचारी राजेंद्र ऑर्गेनिक खेती करते हैं। वह पूरी तरह विकसित पेड़ों के आसपास लगी लोहे की हरेक जाली निकलवाने के लिए संघर्ष करते हैं। नगर निगम आमतौर पर पौधे रोपते समय उन्हें पशुओं से बचाने के लिए ट्री गार्ड लगाता है और बाद में निकालना भूल जाता है। दिलचस्प रूप से वह एक और लड़ाई लड़ रहे हैं।

नगर निगम वयस्क पेड़ की जड़ें और इसके बेस को पेवर ब्लॉक से ढंक देता है, ऐसे में वह कोर्ट ऑर्डर के साथ निगम पहुंच जाते हैं ताकि पेड़ के पास दो बाय दो फुट जगह छोड़ी जाए। मुझे एक रोचक केस याद है। इंदौर में यशवंत क्लब रोड नाम से प्रसिद्ध सड़क है, जहां शहर के अमीर व प्रसिद्ध लोग टहलते हैं, सड़क के साथ में जजों के घर भी हैं। इन सभी अमीर-प्रसिद्ध लोगों का फेवर करने के लिए नगर निगम ने विकसित पेड़ों को सांस लेने के लिए एक इंच जगह छोड़े बिना फुटपाथ को कंक्रीट से पक्का कर दिया।

राजेंद्र सिंह ने लंबी लड़ाई लड़ी और हर पेड़ के बेस से कंक्रीट हटवाई। आज अगर आप उस सड़क से जाएं, तो हरे-भरे पेड़ों को हवा में मदमस्त लहराते-मुस्कराते देखेंगे। ये दो वािकए मुझे इस गुरुवार को याद आए, जब मैंने देवी अहिल्या बाई यूनिवर्सिटी की एक खबर पड़ी। यहां के विद्यार्थियों ने सीड बॉल (बीजों की गेंद) बनाना शुरू कर दी हैं, तािक बारिश में इन्हें इंदौर में और आसपास रोप दें। उनका लक्ष्य है कि इस महीने बारिश शुरू होने से पहले एक लाख सीड बॉल बना ली जाएं।

ये वाकई बहुत अच्छा विचार है क्योंकि अगर उन सीड बॉल में से 10% भी अपना काम कर गईं, तो ये छात्र दस हजार पेड़ तैयार कर देंगे और जो न सिर्फ पक्षियों के लिए कुछ घर और फलों का इंतजाम होगा बल्कि स्थानीय आबादी के लिए अच्छी खासी मात्रा में ग्रीन कवर और ऑक्सीजन पैदा करेंगे। पर जिस बात ने मुझे दुखी किया, वो ये कि यूनिवर्सिटी ने ढेरों विकसित पेड़ों के आसपास लगे ट्री गार्ड के प्रति आंखें मूंदी हैं, इससे कई पेड़ों के फलने-फूलने में दिक्कत हो रही है और ट्री गार्ड से पेड़ क्षतिग्रस्त हो रहे हैं।

अगर मेरी बात पर भरोसा नहीं, तो इसके विशाल कैंपस में जाकर वॉक करिए, जैसा मैं अपनी इंदौर यात्रा में अक्सर करता हूं और जाकर रोड डिवाइडर्स पर फोकस करिए। आगे चलकर ये पेड़ अपनी असल उम्र से कम में ही दम तोड़ देंगे। फिर मुझे ट्री-वॉरियर राजेंद्र सिंह याद आए और उन्हें मदद के लिए फोन किया। उन्होंने तुरंत सीएम हेल्पलाइन में शिकायत दर्ज कराई और चंद घंटों में ही अधिकारियों की ओर से इस पर कार्रवाई का आश्वासन मिला।

फंडा यह है कि जलवायु परिवर्तन का गंभीर संकट हमारे दरवाजे पर दस्तक दे रहा है, ऐसे में अपने बच्चों के लिए स्वस्थ और स्वच्छ धरती देने के लिए हमें साथ आना होगा।

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