आदत बदलेगी तो पर्यावरण सुधरेगा, जानिए कैसे मुमकिन है
हमारी जीवनशैली की घटती हरियाली, बढ़ते प्रदूषण और दूषित जल स्थलों में अहम भूमिका है। जलवायु परिवर्तन में मानवीय कारक को कोई नकार नहीं सकता। इसे हानि पहुंचाने में हमारी आदतें ज़िम्मेदार हैं। इन्हें सुधार लेंगे तो शायद हम पर्यावरण के हित में काम करने का सुकून पा सकते हैं। सब मिलकर पहल करें, तो संभव है पूरी पृथ्वी की जलवायु पर इसका सकारात्मक असर पड़े।
पैदल चलें, सायकिल चलाएं, कार पूल करें…
- हमने पैदल चलना लगभग बंद कर दिया है। यदि पास में कहीं जाना हो तब भी हम दो या चार पहिया वाहन का ही उपयोग करते हैं।
- जितना हम गाड़ियों का इस्तेमाल करते हैं उतना ही वायु प्रदूषण तो बढ़ता ही है, कीमती ईंधन भी बर्बाद होता है। लिहाज़ा यदि पास की किसी दुकान या स्थान पर जाना है तो पैदल जाने की कोशिश करें। इससे पर्यावरण को फायदा मिलेगा, साथ ही सेहत के लिहाज़ से भी चलना लाभकारी रहेगा।
- इसके अलावा सायकिल का भी इस्तेमाल कर सकते हैं। इससे प्रदूषण में गिरावट आएगी जिससे सड़कों पर गाड़ियों की संख्या कम होगी, जाम कम लगेगा तो गाड़ियां कम रुकेंगी और ईंधन व्यर्थ नहीं होगा।
ज़रूरत के अनुसार भोजन
हर साल दुनिया में जितने अनाज का उत्पादन होता है उसका एक तिहाई बर्बाद हो जाता है। संयुक्त राष्ट्र की फूड वेस्ट इंडेक्स रिपोर्ट-2021 के मुताबिक़ भारत में एक व्यक्ति हर साल 50 किलो खाना बर्बाद करता है। इसमें 61 फीसदी खाना घरों में बर्बाद होता है, 13 फीसदी फुटकर विक्रेता और 26 फीसदी खाद्य सेवा में बर्बाद होता है। खाने की यह बर्बादी भी जलवायु परिवर्तन के लिए ज़िम्मेदार है।
- दरअसल बचा हुआ खाना कचरे में फेंक दिया जााता है। जब लैंडफिल साइट्स यानी कि वो स्थान जहां कचरा फेंका जाता है, वहां ये खाना सड़ता है जिससे मीथेन गैस पैदा होती है। ये गैस कार्बन डाइऑकसाइड से लगभग 28 गुना ज़्यादा तेज़ है, जो मनुष्यों और पशुओं के साथ-साथ पर्यावरण को भी नुकसान पहुंचाती है।
- ऐसे में खाना उतना ही बनाएं कि बचे नहीं और न ही व्यर्थ जाए। यदि परिवार में कुछ दस रोटी की आवश्यकता है तो बारह रोटियां बना सकते हैं ताकि बाकी बची दो रोटियां पशुओं को खिला सकें।
- इसी तरह यदि बाहर से भोजन ऑर्डर कर रहे हैं तो आवश्यकतानुसार ही करें ताकी भोजन बचे नहीं और उसे फेंकना न पड़े।
प्लास्टिक का कम करें इस्तेमाल
हम सबसे ज़्यादा प्लास्टिक का इस्तेमाल करते हैं। सब्ज़ियां लेते वक़्त पन्नी का इस्तेमाल, दाल या हल्दी का पैकेट अपने आप में मोटी पन्नी होती है और कई बार लंच बॉक्स भी प्लास्टिक का ही इस्तेमाल करते हैं।
- एक शोध के मुताबिक़ दुनियाभर में हर एक मिनट में 10 लाख के क़रीब प्लास्टिक की बोतल इस्तेमाल होती है, जिसमें सिर्फ़ 9 फीसदी ही रीसायकल हो पाती हैं।
- ये प्लास्टिक और पन्नियां हवा के साथ-साथ पानी को भी दूषित करती हैं। ये प्लास्टिक हमारी सेहत को नुकसान पहुंचा रही है, लेकिन इसके साथ-साथ पशुओं और पर्यावरण को भी हानि पहुंचा रही हैं।
- लिहाज़ा प्लास्टिक और पन्नी का कम से कम इस्तेमाल करने की कोशिश करें। सुपरमार्केट और बाज़ार में कपड़े की थैली ले जाएं। सब्ज़ी वाला अगर पन्नी में सब्ज़ियां रखता है तो पन्नी लेने से इंकार कर दें।
- जब सभी कपड़े का बैग इस्तेमाल करेंगे तो पन्नियों की खपत भी कम हो जाएगी। इसके अलावा हल्दी या नमक का पैकेट किनारे से काटें तो उसका छोटा भाग काटकर अलग न करें।
- इस तरह से काटें कि कटा हुआ हिस्सा पैकेट से जुड़ा रहे। छोटे-छोटे प्लास्टिक के टुकड़े रीसायकल नहीं होते। ये कचरे में मिलकर, मिट्टी के लिए घातक सिद्ध होते हैं।
वस्तुओं को करें रीसायकल
फैशन तेज़ी से बदलता है जिसके कारण कपड़ों के निर्माण में भी तेज़ी बनी रहती है। इन्हें कम क़ीमत पर बेचा जा रहा है इसलिए ख़राब गुणवत्ता वाली सामग्री भी कहीं-कहीं इस्तेमाल हो रही है। तेज़ रफ़्तार फैशन की वजह से इन्हें कम समय के लिए पहना जाता है।
- इसी तरह तेज़ी से नए-नए गैजेट्स, अप्लायंसेस और बर्तनों की मांग बढ़ी है। इन्हें बनाने में कैमिकल्स, बिजली, ईंधन आदि की खपत भी रफ्तार में बढ़ती जाती है। और इनके उत्पादन के बाद निकलते औद्योगिक कचरे के कारण नदियां, समुद्र प्रदूषित होते हैं। लिहाज़ा वस्तुओं के इस्तेमाल और इन्हें ख़रीदने की रफ्तार हमें धीमी करनी होगी।
- ऐसा कर सकते हैं कि यदि हमें एक कपड़ा या एक बर्तन ख़रीदना है तो हम चार कपड़े रीसायकल करने होंगें। किसी ज़रूरतमंद को दे सकते हैं। बर्तन के बदले बर्तन भी ख़रीदे जा सकते हैं। इन्हें सुधरवा सकते हैं।
- बार-बार, महज़ शौक के चलते गैजेट या अप्लायंसेस को न बदलें। ख़राब उपकरणों को बदलकर ही नया ख़रीदें ताकि रीसायक्लिंग को बढ़ावा मिले।