भ्रष्ट तंत्र के खिलाफ हथियार बना सूचना का अधिकार, खोले बंद फाइलों के घोटाले

व्यापम घोटाला सामने आने के बाद शासन को व्यापम का नाम बदलकर एमपी प्रोफेशनल एग्जामिनेशन बोर्ड रखना पड़ा …

Right to Information Day 2022: ग्वालियर, सूचना का अधिकार (आरटीआइ) अधिनियम 2005 किसी हथियार से कम नहीं है। इस अधिनियम की बदौलत ही प्रदेश का सबसे चर्चित व्यापम (व्यासायिक परीक्षा मंडल) घोटाला वर्ष 2011 में उजागर हुआ था। इससे पहले 2009 में भी चिकित्सा शिक्षक भर्ती घोटाले का पर्दाफाश हुआ था और सनसनी फैल गई थी। भ्रष्ट तंत्र के खिलाफ आमजन के हाथ यह एक सशक्त हथियार लगा था, जो उनके अधिकारों की लड़ाई में सहायक सिद्ध हुआ। चिकित्सा क्षेत्र के अलावा नगर निगम, न्यायालय में कर्मचारी भर्ती घोटाला सहित शहर के दर्जनों घोटालों का पर्दाफाश हुआ, जिनकी चर्चा प्रदेश भर में रही। गड़बड़ी करने वाले नेता व अफसरों को सलाखों के पीछे भी रहना पड़ा। इस अधिकार की बदौलत मैरोपेनम दवा घोटाला, ई-पासपोर्ट घोटाला, प्रदेश पात्रता परीक्षा घोटाला सहित कई बड़े मामलों का पर्दाफाश हुआ है। व्यापम घोटाला सामने आने के बाद शासन को व्यापम का नाम बदलकर एमपी प्रोफेशनल एग्जामिनेशन बोर्ड रखना पड़ा।

स्वच्छ सर्वेक्षण को दी चुनौती ब्लैक लिस्टेड कराई कंपनीः नगर निगम में कंप्यूटर आपरेटर रहते हुए संदीप शर्मा ने स्वच्छ सर्वेक्षण करने वाली एजेंसियों की पोल खोल दी। इसके लिए सूचना का अधिकार के तहत विभिन्न शहरों से जानकारी जुटाकर संदीप ने वर्ष 2019 में प्रधानमंत्री कार्यालय को शिकायत की थी। इसमें उन्होंने बताया कि स्वच्छ सर्वेक्षण में इंदौर, भोपाल, उज्जैन, जबलपुर, छिंदवाड़ा, नीमच, पीथमपुर, देवास, सिंगरौली और खरगोन की तुलना में ग्वालियर को कम अंक दिए गए। ग्वालियर ने 500 में से केवल 200 अंक प्राप्त किए, जबकि सिंगरौली ने समान दस्तावेजों के साथ 500 अंक प्राप्त किए। एक साल लंबी लड़ाई के बाद नवंबर 2020 में कार्वी कंपनी को ब्लैक लिस्टेड कर दिया गया।

वर्ष 2009 में ग्वालियर में दर्ज हुआ था पहला मामलाः ग्वालियर के आरटीआइ कार्यकर्ता आशीष चतुर्वेदी ने वर्ष 2009 में गजराराजा मेडिकल कालेज में चिकित्सा शिक्षा भर्ती घोटाले का पर्दाफाश किया था। इसके बाद वे निजी मेडिकल कालेजों में छात्रों को प्रवेश देने की धांधली सबके सामने लाए। घोटाले की व्यापकता वर्ष 2013 में तब समाने आई, जब इंदौर पुलिस ने 2009 की पीएमटी प्रवेश से जुड़े 20 नकली अभ्यर्थियों को पकड़ा। तब पता चला कि असली अभ्यर्थी परीक्षा देने ही नहीं आए, उनके स्थान पर दूसरों ने परीक्षा दी और पास करा दिया। फर्जी अभ्यर्थियों से पूछताछ में जगदीश सागर का नाम मुख्य आरोपित के रूप में सामने आया। इसकी गिरफ्तारी के बाद 26 अगस्त 2013 को एसटीएफ (स्पेशल टास्क फोर्स) की स्थापना की गई। एसटीएफ ने जांच व गिरफ्तारी की तो इसमें नेता, व्यापम के अधिकारी, बिचौलिए, उम्मीदवारों के माता-पिता के नाम भी घोटाले में 2011 में सबके सामने आए। 2015 तक प्रदेशभर में करीब दो हजार लोगों की गिरफ्तारी हो चुकी थी, इनमें कई जेल गए तो कई कुछ समय बाद सलाखों से बाहर आ गए। वर्ष 2015 में यह व्यापम की जांच सीबीआइ के पास चली गई।

मैरोपेनम घोटालाः यह भी चर्चित घोटाला था। वर्ष 2013-14 में मेरोपेनम इंजेक्शन की कीमत 211.90 रुपये थी, लेकिन टेंडर जारी कर 385 रुपये में इसकी खरीद की गई। इससे शासन को 1.15 करोड़ का नुकसान हुआ।

एडीजे का फर्जीवाड़ा उजागरः राकेश सिंह कुशवाह ने वर्ष 2014 में कटनी के एडीजे राधेश्याम मढ़िया के खिलाफ आरटीआइ का आवेदन किया था। इसमें एडीजे की जाति प्रमाण पत्र व मूल निवासी की जानकारी निकाली। इसमें पता चला था कि राधेश्याम मढ़िया ओबीसी वर्ग से आते हैं और डबरा के रहने वाले हैं। उन्होंने दतिया से फर्जी आदिवासी वर्ग का प्रमाण पत्र बनवाकर नौकरी हथिया ली थी। आरटीआइ की मदद से ही इसका पर्दाफाश हुआ। मई 2022 में एडीजे को सेवा से बर्खास्त कर आरोप पत्र जारी कर दिया।

आनलाइन व आफलाइन लगा सकते हैं आरटीआइः आनलाइन व आफलाइन दोनों माध्यम से आरटीआइ लगाई जा सकती है। इसके माध्यम से कोई भी व्यक्ति लोक प्राधिकरण से सूचना प्राप्त कर सकता है। आवेदन फार्म भारत विकास प्रवेशद्वार पोर्टल से भी डाउनलोड किया सकता है। आरटीआइ का जवाब देने हर विभाग में लोक सेवक की नियुक्ति की गई है। आवेदन को हिन्दी, अंग्रेजी या प्रादेशिक भाषा में तैयार किया जा सकता है। आवेदन जहां लगा रहे हैं, उस विभाग के लोक सूचना अधिकारी का नाम व पता, विषय, सूचना का ब्यौरे के साथ आवेदनकर्ता का नाम-पता, वर्ग, आवेदन शुल्क, मोबाइल नंबर, ईमेल, पत्राचार का पता, तारीख व आवेदक के हस्ताक्षर होना चाहिए। आवेदन जमा करने पर पावती प्राप्त करें,आवेदन करने के 30 दिवस के भीतर सूचना उपलब्ध नहीं कराई जाती है तो लोक सूचना आयुक्त पर अपील की जा सकती है। आरटीआइआनलाइन डाट जीओवी डाट इन पर जाकर आनलाइन आवेदन कर सकते हैं।

वर्जन-

सरकारी योजनाओं के क्रियान्वयन में होने वाले भ्रष्टाचार का पर्दाफाश करने सूचना का अधिकार लाया गया था, लेकिन कम लोग ही इसका उपयोग करते हैं। लोग व्यक्तिगत जानकारी सर्वाधिक मांगते हैं। यदि सरकारी योजना में हो रही गड़बड़ी का पता लगाने आरटीआइ अधिक लगाई जाने लगें तो भ्रष्टाचार को रोकने में यह अधिनियम मील का पत्थर साबित होगा। आइटीआइ के तहत मांगी गई जानकारी हर आवेदक को मिलना चाहिए, यदि नहीं मिलती है तो संबंधित अधिकारी पर जुर्माना लगता है।

जयकिशन शर्मा, पूर्व लोक सूचना आयुक्त

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *