भाजपा के अभेद्य गढ़ …?
भोपाल .. विधानसभा चुनाव की जीत के बाद कांग्रेस निकाय चुनाव को लेकर उम्मीदों से लबरेज है, पर निकाय चुनाव में प्रमुख शहरों के महापौर पद पर मिलती शिकस्त को जीत में बदलना उसके लिए चुनौतीपूर्ण है। दरअसल, सूबे के चारों प्रमुख शहरों के महापौर पद भाजपा के अभेद्य किले हैं। ग्वालियर में सबसे ज्यादा 58 साल से कांग्रेस महापौर पद से दूर है। इंदौर में 22 साल, जबलपुर में 16 साल और भोपाल में 13 साल से महापौर पद पर भाजपा का कब्जा है। भाजपा के लिए इन सीटों को बचाने की चुनौती है।
ग्वालियर में भगवा का ऐसा असर रहा कि 58 साल से कांग्रेस के लिए महापौर की कुर्सी सपना बनी हुई है। ग्वालियर में कांग्रेस के पिछले महापौर चिमन भाई मोदी 4 अप्रेल 1962 से 3 अप्रेल 1964 तक थे। इसके बाद से यहां भाजपा काबिज है। 58 साल में 17 महापौर हो गए। पिछले तीन महापौर की बात करें तो समीक्षा गुप्ता, विवेक शेजवलकर और पूरन सिंह पलैया रहे। अब भाजपा ने यहां सुमन शर्मा और कांग्रेस ने विधायक सतीश सिकरवार की पत्नी शोभा सिकरवार को उतारा है। कांग्रेस के लिए यह किला जटिल है। ग्वालियर में बड़ा फैक्टर केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया का है। यहां उनका दबदबा होने के बावजूद सिंधिया के कांग्रेस में रहते 58 साल से कांग्रेस महापौर नहीं बना पाई। अब सिंधिया भाजपा में हैं। कांग्रेस के लिए ऐसे में चुनौती और ज्यादा है। दिलचस्प पहलू यह है कि सिंधिया के कैंडीडेट की बजाए केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के खेमे से सुमन को भाजपा ने टिकट दिया है। इन समीकरणों में कांग्रेस के लिए उम्मीदें बन सकती हैं।
भाजपा: अब प्रचार शुरू किया है। पहले पार्टी क्षत्रपों के यहां पहुंची। तोमर खेमा साथ है। अन्य स्थानीय खेमे भी साथ दे रहे हैं। विकास की थीम पर प्रचार। संगठन की टीम साथ।
कांग्रेस: कोरोना काल की असफलता और सिंधिया के दल-बदल सहित अन्य मुद्दों पर फोकस। हफ्तेभर पूर्व से प्रचार शुरू किया। प्रत्याशी व उसकी टीम ही प्रचार में जुटी।