चीन केमिकल नशे की फैक्ट्री, मैक्सिको सेल्समैन; दोनों का निशाना भारत

इंटरनेशनल डे अगेंस्ट ड्रग अब्यूज आज …?

दुनिया में अवैध नशे का कारोबार 50 लाख करोड़ रुपए का है। सर्दी-जुकाम की दवाओं में इस्तेमाल होने वाले रसायनों से कोकीन और हेरोइन से भी खतरनाक लेकिन सस्ते ड्रग्स बनाए जा रहे हैं। इन्हें सिंथेटिक ड्रग कहते हैं। इन्हें छोटे-छोटे लैब में बना लिया जाता है। इन्हें बनाने के लिए खेती करने का झंझट भी नहीं। ये कहना है ब्रुकिंग्स इंस्टीट्यूशन की डायरेक्टर वांडा फेलबाब ब्राउन का। उनसे भास्कर के रितेश शुक्ल ने चर्चा की।

ड्रग कार्टेल सिंथेटिक ड्रग्स पर जोर क्यों दे रहे है?
सिंथेटिक ड्रग्स कोविड से पहले भी दशकों से चलन में थे। पंजाब, हिमाचल तक इनकी पहुंच रही है। लॉकडाउन के बाद खेत से कंज्यूमर तक नशे के उत्पाद पहुंचाने में माफिया को मुश्किलें पेश आईं। मसलन कोलंबिया में 1 किलो कोकीन बनाने में लगभग 80 रुपए प्रति किलो के हिसाब से 400 किलो कोको के पत्ते लगते हैं। इस 32,000 रुपए की लागत के कोकीन को 65 हजार रुपए में कार्टेल खरीदते हैं। लास वेगास में कंज्यूमर को यही 1 करोड़ रुपए किलो में मिलता है। रिस्क और खर्च कम है, इसलिए कार्टेल ने लोगों की छंटनी की और फ्रैंचाइजी नेटवर्क पर काम किया।

छोटे-छोटे लैब में दवा बनाने में काम आने वाले रसायनों से आसानी से और बहुत कम खर्चे में सिंथेटिक ड्रग्स बना लिया जाता है।
छोटे-छोटे लैब में दवा बनाने में काम आने वाले रसायनों से आसानी से और बहुत कम खर्चे में सिंथेटिक ड्रग्स बना लिया जाता है।

इसमें चीन का भी दखल है?
चीन दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी दवा बनाने की फैक्ट्री है। यहां 5000 बड़ी, करीब 4 लाख मझोली और छोटी फैक्ट्रियां हैं। कोविड से पहले फेंटानिल जैसे ड्रग सीधे अमेरिका भेजे जाते थे। जब मेथ की लत चीन में भी बढ़ी और अमेरिका का दबाव पड़ा तो चीनी सरकार ने कार्रवाई की। तब इन कंपनियों ने माल अमेरिका की बजाए मैक्सिको भेजना शुरू कर दिया। फैक्ट्रियां भारत में शिफ्ट करनी शुरू कर दीं।

सिनाओला और चीनी अंडरवर्ल्ड में क्या संबंध है?
चीनी अंडरवर्ल्ड दुनियाभर में नेता और ब्यूरोक्रेट्स को अपने पक्ष में करने में जुटा है। वह माफिया को भी पनाह देता है। सिनाओला मैक्सिको की सबसे ताकतवर कार्टेल है। ये लैटिन अमेरिका से जंगल और समुद्री सामग्री की तस्करी करके चीन भेजता है और चीन से सिंथेटिक ड्रग्स के रसायन आयात करता है।

यूक्रेन युद्ध का असर पड़ेगा?
साल 2021 में अप्रैल से दिसंबर तक भारत से यूक्रेन और रूस में हुए निर्यात का क्रमशः 30 और 15 प्रतिशत हिस्सा दवाइयों का था। युद्ध से इस निर्यात पर असर पड़ेगा, लिहाजा भारत की दवा कंपनियों को नए ग्राहक तलाशने होंगे। इन हालात का फायदा ड्रग कार्टेल को होगा।

रोक क्यों नहीं लग पा रही?
पारंपरिक ड्रग्स जैसे कोकीन, हेरोइन, चरस आदि कोको, अफीम, गांजे की खेती पर निर्भर हैं। इनकी खेती छुपाना मुश्किल होता है। सिंथेटिक ड्रग्स उन रसायनों से बनते हैं जिनका इस्तेमाल वैद्य दवा कंपनियों में होता है। इन पर लगाम लगे तो दवा कंपनियों पर असर पड़ता है।

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