भाजपा: विपक्ष की चुनौती अभी बरकरार !

भाजपा: विपक्ष की चुनौती अभी बरकरार

मिशन बनाकर यानि ‘ मिशन मोड ‘ में काम करने वाली सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी के लिए विपक्ष की और से चुनौती अभी पूरी तरह समाप्त नहीं हुई है । उलटे आगामी लोकसभा चुनाव के सबसे बड़े कुरुक्षेत्र उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के बीच हुए चुनावी गठबंधन ने भाजपा की मुसीबतें और बढ़ा दीं हैं। बिखरते गठबंधन में ये नया मोड़ भाजपा के मिशन ‘ 400 पार ‘ में ब्रेक लगा सकता है।
सत्तारूढ़ भाजा ने विपक्षी गठबंधन आईएनडीआईए यानि इंडिया को नेस्तनाबूद करने के लिए जितनी कोशिशें हो सकती थीं कर लीं है। बिहार की सत्ता हाथ से छीन ली । बंगाल को सन्देशखाली की वारदातों के बहाने उलझा लिया। झारखंड में सरकार की जड़ें हिला दी,लेकिन चंडीगढ़ महापौर के चुनाव में सर्वोच्च न्यायालय का फैसला आने के बाद भाजपा की इन तमाम कोशिशों पर पानी फिर गया। तेजी से बिखर रहा इंडिया गठबंधन अचानक एक होता दिखाई देने लगा । उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी और कांग्रेस में सीटों के बंटवारे की समस्या आनन-फानन में सुलझ गयी। चंडीगढ़ जीतने के बाद आम आदमी पार्टी के सुर भी गठबंधन को लेकर बदले है। मुमकिन है कि आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के बीच जहाँ सम्भव हो ,वहां सीटों के बंटवारे पर बात बन जाए और ये दोनों भी मिलकर चुनाव लड़ें।

भाजपा के मिशन ‘ 400 पार ‘ में एक नयी बाधा किसान आंदोलन से भी पैदा हुई है । किसान आंदोलन को लेकर सरकार के रुख में कोई ख़ास तबदीली नहीं आयी है । सरकार का रुख दो साल पुराने रुख जैसा ही है । किसानों और सरकार के बीच बातचीत के आधा दर्जन दौर नाकाम साबित हुए है। बात बनने के बजाय बिगड़ रही है। शम्भू सीमा पर किसानों और सुरक्षा बलों के साथ हुयी मुठभेड़ में एक किसान की मौत भी हो चुकी है ,दर्जनों किसान घायल हुए है। सरकार ने इस बीच गन्ना उत्पादक किसानों को आंदोलन से तोड़ने के लिए गन्ने के दामों में 8 फीसदी की बढ़ोत्तरी की घोषणा अवश्य की है।
आपको याद है कि भाजपा तीसरी बार सत्ता में तीन गुना ज्यादा संख्या बल के साथ वापस आना चाहती है । इसके लिए माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी संसद में और भाजपा के राष्ट्रिय अधिवेशन में ‘ मिशन 400 पार ‘ का लक्ष्य घोषित किया है। मौजूदा संसद में भाजपा के पास 303 सांसद हैं। भाजपा चाहती है की आने वाले लोकसभा चुनाव में ये संख्या कम से कम 370 तक पहुंचे। बाकी 30 सीटें भाजपा के गठबंधन के सहयोगी दल लेकर आएं। भाजपा को आने वाले 23 साल के लिए सत्ता में बने रहने के लिए ये लक्ष्य तय किया गया है।

मेरे हिसाब से ये लक्ष्य असम्भव तो नहीं है क्योंकि अतीत में कांग्रेस इस लक्ष्य को भेद चुकी है ,किन्तु तब परिस्थितियां भिन्न थीं। आज परिस्थितियां भिन्न हैं। तब मैदान में राजीव गांधी का चाकलेटी चेहरा जनता के सामने था । कांग्रेस ने ये लक्ष्य हासिल करने के लिए कोई मिशन नहीं बनाया था बल्कि देश की सर्वाधिक लोकप्रिय प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गाँधी का बलिदान दिया था। आज जनता के सामने सर्वाधिक लोकप्रिय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जरूर हैं लेकिन उनकी सरकार बलिदान दे नहीं रही बल्कि ले रही है । इस सरकार के सामने दो साल पहले 700 से ज्यादा किसान अपनी जान गँवा चुके हैं। सरकार जम्मू-कश्मीर जैसे राज्य का बलिदान ले चुकी है । सरकार ने पांच साल बाद भी जम्मू-कश्मीर को राज्य का दर्जा वापस नहीं लौटाया है। भाजपा के शासन में सीमावर्ती राज्य मणिपुर में जो आग लगी थी उसका धुंआ अभी तक उठ रहा है।

बहरहाल देश का परिदृश्य तेजी से बदल रहा है । एक के बाद एक हमले को सहन करते हुए कांग्रेस की भारत जोड़ो न्याय यात्रा अवाध गति से आगे बढ़ रही है। कांग्रेस के उत्साह को भाजपा की और से किये जा रहे प्रहार भंग नहीं कर पाए है। भाजपा ने कांग्रेस के तमाम सहयोगी दलों को तोड़ने की हद दर्जे की घटिया और अनैतिक कोशिशें की । भाजपा को इसमें कामयाबी भी मिली ,लेकिन ये तमाम कोशिशें कहीं आत्मघाती साबित न हो जाएँ। भाजपा जिन दलों के बूते 2019 के आम चुनाव में 303 के लक्ष्य तक पहुंची थी उनमें से अनेक अब उसके साथ नहीं हैं। उत्तर प्रदेश ,महाराष्ट्र और बिहार में राजनीतिक परिदृश्य बदला हुआ है। लेकिन भाजपा ने भी हार नहीं मानी है । भाजपा ने उत्तर प्रदेश में कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के गठबंधन के बाद न सिर्फ समाजवादी पार्टी को बल्कि बहुजन समाज पार्टी को भी तोड़ने का अभियान शुरू कर दिया है। समाजवादी पार्टी से स्वामी प्रसाद मौर्य अलग हो गए है। बसपा के 10 में से 4 सांसदों को तोड़कर भाजपा अपने साथ लेने की कोशिश कर रही है । लेकिन इससे भाजपा का रास्ता आसान होने वाला नहीं है।

इस लोकसभा चुनाव से पहले भाजपा ने सबसे बड़ा काम अयोध्या में राममंदिर बनाकर भाजपा और मुख्यमंत्री के रूप में गुजरात के 2002 के साम्प्रदायिक दंगों के लिए लांछित नरेंद्र मोदी को शापमुक्त करने का किया है। हिन्दू मतदाताओं का एक बड़ा वर्ग भूल चुका है की 2002 में मोदी जी की गुजरात के दंगों में भूमिका क्या और कैसी थी ? इस समय मोदी जी एक अवतार के रूप में जनता के सामने हैं। मदमत्त और निश्चिन्त । ‘परम् स्वतंत्र न सिर पर कोई ‘ वाली मुद्रा में। मोदी जी की ये मुद्रा आने वाले लोकसभा चुनाव में या तो भाजपा को पार लगा देगी या फिर डुबो देगी । सारा दारोमदार मोदी जी के मजबूत कन्धों पर है। मोदी जी के दस साल के कार्यकाल में भाजपा का संगठन आर्थिक रूप से मजबूत हुआ है किन्तु मानसिक रूप से कमजोर हुआ है । आरएसएस अब भाजपा का पिछलग्गू संगठन नजर आने लगा है। फिर भी दोनों में गजब का समंजस्य है। आने वाले दिनों में देश की सियासी तस्वीर और साफ़ हो जाएगी । प्रतीक्षा कीजिये।

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