सपा के लिए कितना जरूरी है अमर सिंह जैसा ‘ठाकुर’,

सपा के लिए कितना जरूरी है अमर सिंह जैसा ‘ठाकुर’, क्या पीडीए से आगे बढ़ेंगे अखिलेश, राजा भैया से करेंगे गठबंधन?
सपा पीडीए यानि पिछड़ा-दलित-अल्पसंख्यक फॉर्मूले को लेकर चल रही है और इसी समीकरण के जरिए 2024 के चुनाव में उतरने का प्लना बना रखा है. बीजेपी जिस मजबूत वोटबैंक के साथ यूपी में खड़ी हुई है, उसे महज पीडीए से मुकाबला नहीं किया जा सकता है. सपा को अमर सिंह और रेवती रमण जैसे ठाकुर नेता की भी दरकरार है. ऐसे में सवाल है कि अखिलेश क्या पीडीए से आगे बढ़ेंगे और राजा भैया जैसे कद्दावर ठाकुर नेता से फिर हाथ मिलाएंगे?

मुलायम सिंह यादव के दौर में समाजवादी पार्टी के सियासी एजेंडे में ठाकुर नेता अहम हुआ करते थे. मुलायम सिंह के राइट हैंड रेवती रमण सिंह, मोहन सिंह और ठाकुर अमर सिंह जैसे क्षत्रीय नेता हुआ करते थे. सपा का कोर वोटबैंक यादव और मुस्लिम के बाद ठाकुर बन गया था, लेकिन उत्तर प्रदेश के बदले सियासी समीकरण और सपा की कमान अखिलेश यादव के हाथों में आने के बाद ठाकुर नेता और वोटर दोनों ही दूर हो गए. अखिलेश ने ठाकुरों की जगह ओबीसी और दलित नेताओं को सियासी अहमियत देना शुरू किया, लेकिन सियासी बाजी अभी तक अपने नाम नहीं कर सके हैं.

सपा के प्रदेश अध्यक्ष ने की राजा भैया से मुलाकात

लोकसभा चुनाव की सियासी तपिश और राज्यसभा चुनाव मची उठापटक के बीच सपा के प्रदेश अध्यक्ष नरेश उत्तम पटेल ने मंगलवार शाम रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया से मुलाक़ात के बाद नए गठबंधन को सुगबुगाहट तेज हो गई है. इसकी वजह यह कि नरेश उत्तम ने राजा भैया की अखिलेश यादव से फोन पर बात भी कराई. विधानसभा चुनाव में अखिलेश के साथ तल्ख हुए रिश्ते के बाद अब राजा भैया के सुर सपा को लेकर नरम नजर आए. राजा भैया ने कहा, मैंने अपने 28 साल के राजनीतिक जीवन में से 20 साल सपा को दिए हैं. मेरे लिए सपा पहले आती है और मेरे लिए यह कोई राजनीतिक पार्टी नहीं है.

सपा के लिए कितना जरूरी है अमर सिंह जैसा 'ठाकुर', क्या पीडीए से आगे बढ़ेंगे अखिलेश, राजा भैया से करेंगे गठबंधन?

सपा के लिए कितना जरूरी है अमर सिंह जैसा ‘ठाकुर’
क्या अखिलेश राजा भैया से मिलाएंगे हाथ?

राजा भैया का बयान सियासी तौर पर अहम माना जा रहा है, लेकिन क्या फिर से वो सपा के साथ हाथ मिलाएंगे, क्योंकि राज्यसभा चुनाव में जितनी जरूरत सपा को रघुराज प्रताप सिंह की है तो उतनी ही जरूरत सपा की भी उन्हें है. उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ के सत्ता में आने के बाद ज्यादातर ठाकुर नेता बीजेपी के साथ खड़े हैं. सपा के ज्यादातर नेता भी पार्टी छोड़कर जा चुके हैं और जो हैं, उनकी अपनी सियासी हैसियत इतनी नहीं रह गई है कि प्रदेश स्तर पर ठाकुरों को जोड़ने का काम सपा के साथ कर सकें. ऐसे में बीजेपी से चुनावी मुकाबला करने के लिए सपा को फिर से अमर सिंह जैसे मंझे हुए सियासी नेता की जरूरत महसूस हो रही है.

UP की राजनीति में जमींदारों-रजवाड़ों का रहा है वर्चस्व

बता दें कि उत्तर प्रदेश की राजनीति में आजादी के बाद से ही जमींदारों और रजवाड़ों का वर्चस्व रहा है. यूपी के पहले ठाकुर मुख्यमंत्री वीपी सिंह इलाहाबाद के मांडा के राज परिवार से थे और बाद में पीएम भी बने. कुंडा से विधायक राजा भैया भदरी के राजपरिवार से आते हैं और देश के आठवें प्रधानमंत्री चंद्रशेखर भी बलिया के एक शक्तिशाली जमींदार परिवार से थे. कालाकंकर के राजा दिनेश विदेश कांग्रेस के दिग्गज नेता मंत्री थे. ठाकुर समुदाय से आने वाले राजनाथ सिंह देश के रक्षामंत्री है और सीएम योगी आदित्यनाथ उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री हैं.

आजादी के बाद ठाकुर समुदाय के लोग कांग्रेस का परंपरागत वोटर माने जाते थे. इसके पीछे वजह यह थी कि राजा-रजवाड़े ज्यादातर ठाकुर थे और कांग्रेस उनकी सियासी ठिकाना बनी, लेकिन ब्राह्मण समुदाय का दबदबा होने से ठाकुर सत्ता की लालसा में छिटकने लगे. वीपी सिंह से लेकर वीर बहादुर सिंह यूपी के सीएम बने, लेकिन नब्बे के दशक में मंडल पॉलिटिक्स आने के बाद देश के साथ-साथ यूपी की सियासत भी बदली.

मुलायम सिंह यादव ने ठाकुरों की ताकत को समझा

मुलायम सिंह यादव को पूर्व पीएम चंद्रशेखर का करीबी माना जाता था और सियासत में उनके साथ रहते हुए ठाकुरों की ताकत को समझा था. इसीलिए मुलायम सिंह यादव ने जब जनता दल से अलग होकर समाजवादी पार्टी बनाई तो मोहन सिंह, रेवती रमण सिंह जैसे दिग्गज ठाकुर नेताओं को साथ रखा. इसके अलावा उन्होंने अलग-अलग इलाकों में भी ठाकुर नेताओं को जोड़ा और उन्हें संगठन में अहमियत दी. मुलायम सिंह ने समाजवादी की राजनीति की, लेकिन बसपा की तरह ब्राह्मणवाद और सामंतवादी विरोधी राजनीति नहीं की. इसके चलते ही ठाकुरों का एक बड़ा तबका मुलायम सिंह यादव को पसंद करता रहा और ठाकुर अमर सिंह के साथ आने के बाद सपा की ठाकुर राजनीति में तेजी से विस्तार हुआ.

अमर सिंह सपा के ठाकुर चेहरा बनकर उभरे

उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह यादव मुख्यमंत्री थे तो अमर सिंह सपा के ठाकुर चेहरा बनकर उभरे और सपा सरकार में ठाकुरों का बोलबाला रहा. 2004 से 2007 तक सपा में अमर सिंह की तूती बोलती थी. 2002 में मायावती ने राजा भैया पर नकेल कसा और जेल में डाला तो मुलायम सिंह यादव ने उनकी लड़ाई को संसद से सड़क तक लड़ाई. मुलायम सिंह से लेकर अमर सिंह सहित सपा के तमाम ठाकुर नेता जेल में जाकर राजा भैया से मुलाकात किया. सूबे में सपा की सरकार बनने पर राजा भैया पर लगाए गए मुकादमे वापस लिए गए और मुलायम सिंह सरकार में मंत्री बने और ठाकुर नेता के तौर पर उनकी पहचान हुई.

2012 में सपा के टिकट पर 38 ठाकुर विधायक जीते थे

यूपी में जब-जब सपा विधानसभा चुनाव जीतती है, तब-तब ठाकुर विधानसभा में सबसे बड़े समूह के रूप में उभरते हैं . अखिलेश यादव के मंत्रिमंडल में भी ठाकुर जाति का प्रतिनिधित्व कम नहीं था. 2012 में 48 ठाकुर विधायक जीतकर आए थे, जिनमें 38 सपा के टिकट पर जीते थे. यही वजह थी कि अखिलेश सरकार में 11 ठाकुर मंत्री बने थे. इनमें से आधे से ज्यादा नेताओं ने सपा का दामन छोड़कर बीजेपी और दूसरे दल में शामिल हो गए हैं. अखिलेश सरकार में मंत्री रहे विनोद कुमार सिंह उर्फ पंडित सिंह का कोरोना से निधन हो चुका है. सपा सरकार में मंत्री रहे रघुराज प्रताप सिंह ने अब अपनी अलग पार्टी बना ली है. राजकिशोर सिंह सपा छोड़ बसपा में हैं. राजा महेंद्र अरिदमन सिंह भी पार्टी छोड़ भाजपा में शामिल हो चुके हैं. समाजवादी पार्टी से 2022 में टिकट ना मिलने पर मदन चौहान बसपा में शामिल हो गए हैं. राजा आनंद सिंह का बेटा भाजपा से सांसद है. इस तरह से सपा के अन्य ठाकुर नेताओं का सियासी ठिकाना बीजेपी बन गई.

ठाकुरों की जगह अखिलेश ने दलित-पिछड़े पर किया फोकस

अखिलेश यादव ठाकुरों की जगह दलित-पिछड़े समुदाय पर फोकस किया. इसी का नतीजा है कि अखिलेश यादव के मंच और सपा से ठाकुर चेहरे पूरी तरह गायब हो गए. अखिलेश के करीबी अरविंद सिंह गोप, योगेश प्रताप सिंह, राकेश प्रताप सिंह, ओम प्रकाश सिंह और उदयवीर सिंह जैसे नेता बचे हैं, लेकिन इनमें से कोई भी प्रदेश स्तर पर सियासी प्रभाव नहीं रखते. 2024 के चुनाव और सूबे के सियासी समीकरण के लिहाज से सपा पीडीए फॉर्मूले को लेकर चल रही है, लेकिन सिर्फ इसके दम पर बीजेपी को चुनौती नहीं दी सकती है. इसकी वजह यह है कि बीजेपी के साथ गैर-यादव ओबीसी और दलित समुदाय का बड़ा तबका उनके साथ है, जो फिलहाल टूटता नजर नहीं आ रहा है.

राज्यसभा चुनाव, विधान परिषद और जिला पंचायत अध्यक्ष का चुनाव सीधे जनता से होने के बजाय प्रतिनिधियों के द्वारा होता है. ऐसे में ठाकुर और दंबग नेताओं का रोल अहम हो जाता है. सपा को एमएलसी चुनाव में ठाकुर नेताओं के न होने का खामियाजा उठाना पड़ा है और राज्यसभा चुनाव में राजा भैया की दरकरार सपा को हो रही है. माना जा रहा है कि सपा उन्हें दोबारा से अपने साथ मिलाना चाहती है, जिसके लिए ही नरेश उत्तम मंगलवार को राजा भैया के घर पहुंचे थे. इस दौरान राज्यसभा चुनाव में समर्थन मांगे जाने के साथ-साथ 2024 के लोकसभा चुनाव में गठबंधन भी किए जाने की चर्चा है. राजा भैया के जरिए सपा ठाकुर वोटों को साधने का दांव चल सकती है.

सपा के पास कोई दमदार ठाकुर चेहरा नहीं

योगी आदित्यनाथ और राजनाथ सिंह के रूप में बीजेपी के पास ठाकुर नेता है, जिनके सामने सपा के पास कोई दमदार ठाकुर चेहरा नहीं रह गया है. इतिहास गवाह है आजादी के बाद से यूपी में सत्ता में कोई भी हो ठाकुर हमेशा से प्रभावी रहे हैं. यूपी की सियासत में भले ही ठाकुर छह फीसदी हो, लेकिन राजनीतिक रूप से काफी ताकतवर हैं. यही वजह है कि हमेंशा से ठाकुर अपनी आबादी की तुलना में दो गुना विधायक और सांसद चुने जाते रहे हैं.

उत्तर प्रदेश में करीब 6 फीसदी राजपूत समाज

उत्तर प्रदेश में करीब 6 फीसदी राजपूत समाज है. मौजूदा राजनीति में राजपूत समाज सूबे में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह के नेतृत्व में बीजेपी के साथ मजबूती से खड़ा है. 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव में 63 राजपूत विधायक जीतने में सफल रहे थे जबकि 2022 में 49 ठाकुर विधायक बने. सूबे में ठाकुर वोटों की सियासत को देखते हुए अखिलेश यादव क्या अमर सिंह की सियासी कमी की भरपाई करने के लिए रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया को अपने साथ लेंगे?

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