क्या है Inter-State अरेस्ट की गाइडलाइन पुलिस के नियम…!
इंटरस्टेट पुलिस के नियम…
पुलिस संविधान की सातवीं अनुसूची की दूसरी लिस्ट में आती है। यह राज्य के अधीन है। मतलब पुलिस की शक्तियां राज्य सरकार के आदेशों के हिसाब से काम करती हैं, लेकिन अगर उसे दूसरे राज्य में जाना है तो उसे दूसरे राज्य की पुलिस से अनुमति लेनी होगी।
पुलिस को एक प्रोसिजर फॉलो करना पड़ता है। BJP नेता तेजिंदर बग्गा वाले मामले में पंजाब पुलिस दिल्ली गिरफ्तार करने आई। पंजाब में आम आदमी और दिल्ली में भी आम आदमी की सरकार थी। दिल्ली में पुलिस केंद्र के अधीन थी।
पंजाब पुलिस हरियाणा के रास्ते से ही बग्गा को ले जा सकती थी, यहां BJP की सरकार है। दिल्ली में पंजाब पुलिस घुसी। बग्गा के घर तक पहुंची, लेकिन हरियाणा में कुरुक्षेत्र पुलिस ने पंजाब पुलिस को रोक दिया। नौबत पुलिस के ही गिरफ्तार होने तक पहुंच गई।
पत्रकार रोहित रंजन के मामले में भी सियासी बयानबाजी हुई। कथित गो-तस्कर जुनैद-नासिर की हत्या वाले ताजा मामले में भी राजस्थान की कांग्रेस सरकार और हरियाणा की BJP सरकार के नेताओं के लगातार बयान आते रहे। गाजियाबाद का मामला दो राज्यों की पुलिस का तो है, लेकिन दोनों ही राज्य में BJP की सरकार है। पुलिस एक दूसरे को बचाती ही नजर आ रही है।
अंतरराज्यीय गिरफ्तारी पर क्या कहता है कानून?
जहां तक वारंट के बिना गिरफ्तारी का संबंध है, किसी अन्य राज्य में किसी आरोपी को गिरफ्तार करने की पुलिस की शक्तियों को स्पष्ट रूप से परिभाषित नहीं किया गया है। हमारा एक कानून है कोड ऑफ क्रिमिनल प्रोसिजर (सीआरपीसी) उसमें सेक्शन 41 में अरेस्ट का प्रोवीजन दिया गया है। जहां सेक्शन 41 पुलिस को कुछ विशेष परिस्थितियों में बिना वारंट के भी गिरफ्तारी की शक्ति देता है। बिना वारंट के गिरफ्तार करने के लिए उस व्यक्ति का जुर्म बहुत ही संगीन होना चाहिए, किसी मामूली से या छोटे मामले में पुलिस किसी भी व्यक्ति को बिना वारंट के गिरफ्तार नहीं कर सकते हैं। इसी तरह कई ऐसे में मामले हैं जहां पर मजिस्ट्रेट की उपस्थिति में कोई अपराध होने पर भी वो अरेस्ट की ऑर्ड दे सकते हैं। सेक्शन 43 में आम आदमी को भी उनके सामने कोई गैर जमानती और असंज्ञेय अपराध हो रहा है व आसपास पुलिस नहीं है तो आम आदमी को ये शक्ति देती है कि वो उसे पकड़कर पुलिस के हवाले कर सकता है।
धारा 48 केवल यह कहती है, “एक पुलिस अधिकारी, बिना वारंट किसी भी व्यक्ति को गिरफ्तार करने के उद्देश्य से, जिसे वह गिरफ्तार करने के लिए अधिकृत है, भारत में किसी भी स्थान पर पीछा कर सकता है। इस बात पर बहस हुई है कि क्या इस खंड में “पीछा” शब्द का अर्थ किसी अन्य राज्य में पीछा करना है, या किसी ऐसे आरोपी पर लागू होता है जो दूसरे राज्य में रह रहा है और जांचकर्ताओं के साथ सहयोग नहीं कर रहा है। सीआरपीसी की धारा 79 सक्षम अदालतों द्वारा जारी वारंट के आधार पर अंतर-राज्यीय गिरफ्तारी से संबंधित है। यह धारा ऐसी गिरफ्तारियों के लिए विस्तृत प्रक्रिया निर्धारित करती है। हालांकि, यह बग्गा के मामले में लागू नहीं है, क्योंकि पंजाब पुलिस ने बिना वारंट के गिरफ्तारी की। वर्तमान मामले में, पंजाब पुलिस ने कहा है कि बग्गा को एक मामले की जांच में शामिल होने के लिए पांच समन दिए गए थे, जहां उन पर दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को जान से मारने की धमकी देने का आरोप लगाया गया था, लेकिन वह पूछताछ के लिए उपस्थित होने में विफल रहे। हालाँकि, पुलिस का दायित्व है कि वह गिरफ्तार व्यक्ति को 24 घंटे के भीतर मजिस्ट्रेट के सामने पेश करे। भारत के संविधान का अनुच्छेद 22(2) कहता है: “हर व्यक्ति जिसे गिरफ्तार किया गया है और हिरासत में रखा गया है, उसे गिरफ्तारी के चौबीस घंटे की अवधि के भीतर निकटतम मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया जाएगा, जिसमें जगह से यात्रा के लिए आवश्यक समय शामिल नहीं है। मजिस्ट्रेट की अदालत में गिरफ्तारी के लिए, और ऐसे किसी भी व्यक्ति को मजिस्ट्रेट के अधिकार के बिना उक्त अवधि से अधिक हिरासत में हिरासत में नहीं लिया जाएगा।
सुप्रीम कोर्ट की तल्ख टिप्पणी
अंतरराज्यीय गिरफ्तारी पर जनवरी 2020 में सुप्रीम कोर्ट ने तल्ख टिप्पणी करते हुए विस्तृत आदेश दिए थे। पुलिस अधिकारियों की ओर से होने वाले अनियमितताओं के मद्देनजर जस्टिस एस मुरलीधर और जस्टिस तलवंत सिंह की खंडपीठ ने कहा कि इस तरह की प्रथा स्पष्ट रूप से पुलिस नियमावली के विपरीत है। यदि इस तरह की कार्रवाई अनियंत्रित हो जाती है तो ये पुलिस बल द्वारा अराजकता को अनदेखा करने के जैसा होगा। कानून के शासन द्वारा शासित देश में ये अस्वीकार है। एक मामले की सुनवाई करते हुए दिल्ली उच्च न्यायालय ने ऐसे मामलों में न्यायालय द्वारा गठित प्रस्तावित सिफारिशों को लागू करने का आदेश दिया था। 2019 में ‘संदीप कुमार बनाम राज्य (दिल्ली सरकार की एनसीटी)’ मामले में, दिल्ली उच्च न्यायालय ने अंतर-राज्यीय गिरफ्तारी के लिए कुछ दिशानिर्देश जारी किए। इनमें कहा गया है कि एक पुलिस अधिकारी को किसी अपराधी को गिरफ्तार करने के लिए दूसरे राज्य का दौरा करने के लिए अपने वरिष्ठ अधिकारी से लिखित या फोन पर अनुमति लेनी होगी। उसे इस तरह के कदम के कारणों को लिखित रूप में दर्ज करना होगा, और पहले “आकस्मिक मामलों” को छोड़कर अदालत से गिरफ्तारी वारंट प्राप्त करने का प्रयास करना होगा। रिटायर्ड जस्टिस एसपी गर्ग और रिटायर्ड आईपीएस अधिकारी कमलजीत देओल की कमेटी बनाई थी। कमेटी ने कुछ दिशा निर्देश सुझाए थे जो सीआरपीसी की धारा 48, 77, 79 और 80 पर आधारित थे। उस पर अमल होता तो आज जो हुआ शायद उसकी नौबत न आती।
अंतरराज्यीय गिरफ्तारी पर दिशा निर्देश
पुलिस अधिकारी को मामला सौंपे जाने के बाद जांच करने के लिए राज्य क्षेत्र से बाहर जाने के लिए लिखित में या फोन पर उच्च अधिकारियों की अनुमति लेनी होगी।
ऐसे मामलों में जब पुलिस अधिकारी गिरफ्तारी करने का फैसला करता है, तो उसे तथ्यों को दर्ज करना होगा। लिखित रूप में कारणों को दर्ज करना होगा। इस संतुष्टि का खुलासा करना होगा कि गिरफ्तारी जांच के उद्देश्य के लिए जरूरी है।
पुलिस को सीआरपीसी की धारा 78 और 79 के तहत गिरफ्तारी, तलाशी वारंट की मांग करने के लिए क्षेत्राधिकार मजिस्ट्रेट से संपर्क करना होगा। सिवाय ऐसे मामलों को छोड़कर जब आरोपी के भाग जाने या सबूत के गायब होने की संभावना हो।
राज्य से बाहर जाने से पहले पुलिस अधिकारी को अपने पुलिस स्टेशन की दैनिक डायरी में एक विस्तृत डिपार्चर एंट्री बनानी होगी। इसमें उनके साथ आने वाले पुलिस अधिकारियों और निजी व्यक्तियों के नाम होने चाहिए। वाहन संख्या, आने का उद्देश्य, प्रस्थान का समय और तारीख सबकुछ डिटेल में दर्ज होनी चाहिए।
यदि संभावित गिरफ्तारी महिला की होनी है तो किसी एक महिला पुलिस अधिकारी को टीम का हिस्सा बनाया जाएगा।
पुलिस अधिकारी अपने साथ पहचान पत्र जरूर ले जाएंगे। टीम में सभी पुलिस अधिकारी वर्दी में होने चाहिए। वर्दी पर उनका नाम भी होना चाहिए।
दूसरे राज्य का दौरा करने से पहले पुलिस अधिकारी को उस स्थानीय पुलिस स्टेशन से संपर्क स्थापित करने का प्रयास करना चाहिए। जिसके अधिकार क्षेत्र में वे जांच या गिरफ्तारी करने जा रहे हैं। उसे अपने साथ एफआईआर और बाकी दस्तावेजों की प्रतियां राज्य की भाषा में ले जानी चाहिए।
दूसरे राज्य में गिरफ्तारी वाली जगह पर पहुंचने के बाद संबंधित पुलिस थाने से संपर्क करके उनसे सहायता मांगनी होगी। स्थानीय एसएचओ सभी कानूनी सहायता देंगे। ये काम फोन या मैसेज पर नहीं होगा बल्कि इसके लिए सशरीर उस थाने में जाना होगा।
गिरफ्तार किए गए व्यक्ति को दूसरे राज्य में ले जाने से पहले अपने वकील से परामर्श करने का अवसर मिलना चाहिए।
वापस लौटने समय पुलिस की टीम को स्थानीय पुलिस स्टेशन का दौरा करना होगा। राज्य से बाहर ले जाने से पहले आरोपी के नाम और पते को रोजनामचे में दर्ज करना होगा। पीड़ित का भी नाम बताना होगा।
वापस लौटने पर पुलिस अधिकारी को डेली डायरी में उसके द्वारा की गई जांच, गिरफ्तार व्यक्ति से बरामद वस्तु को इंगित करके अपने वरिष्ठ अधिकारियों, संबंधित एसएचओ को भी तुंरत इसकी सूचना दे दें।
गिरफ्तार आरोपी को नजदीकी मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश करने के बाद ट्रांजिट रिमांड लेने की कोशिश की जानी चाहिए अन्यथा सीआरपीसी की धारा 56, 57 का उल्लंघन किए बिना क्षेत्राधिकार वाले मसिस्ट्रेट के सामने 24 घंटों के भीतर पेश करना होगा।
अन्य प्रमुख अंतरराज्यीय गिरफ्तारियां
पर्यावरण कार्यकर्ता दिशा रवि का मामला इस संदर्भ में अक्सर चर्चा में रहा है। दिल्ली पुलिस ने 2021 में दिल्ली में किसानों के विरोध प्रदर्शन के दौरान “टूलकिट” के प्रचलन से संबंधित मामले में रवि को बेंगलुरु में गिरफ्तार किया था। रवि को हिरासत में लेने के बाद ही बेंगलुरु पुलिस को सूचित किया गया था। दिल्ली पुलिस की कार्रवाई के खिलाफ बेंगलुरु में विरोध प्रदर्शन हुए थे। उसी वर्ष, यूपी पुलिस ने चेन्नई में एक 60 वर्षीय व्यक्ति मनमोहन मिश्रा को सोशल मीडिया पर प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ कथित रूप से आपत्तिजनक टिप्पणी करने के लिए गिरफ्तार किया था। पिछले महीने गुजरात के विधायक जिग्नेश मेवाणी को उनके द्वारा किए गए एक सोशल मीडिया पोस्ट के सिलसिले में गुजरात में असम पुलिस ने गिरफ्तार किया था। गुजरात पुलिस ने कहा है कि उन्हें मेवाणी की गिरफ्तारी की कोई पूर्व सूचना नहीं थी। उसे बनासकांठा जिले के पालनपुर सर्किट हाउस से उठाया गया, फिर औपचारिक रूप से पुलिस स्टेशन में गिरफ्तार कर लिया गया। बनासकांठा के एसपी अक्षयराज मकवाना ने द इंडियन एक्सप्रेस को बताया: “असम पुलिस ने उसी रात हमें सूचित किया था कि मेवाणी को उसके खिलाफ असम में दर्ज एक प्राथमिकी पर आईटी अधिनियम की धाराओं के तहत गिरफ्तार किया जा रहा है। प्रक्रिया के अनुसार, उसे पालनपुर के संबंधित पुलिस थाने में लाया गया। इससे पहले 2013 में, दिल्ली पुलिस ने हिज्बुल मुजाहिदीन के पूर्व आतंकवादी लियाकत शाह को यूपी में भारत-नेपाल सीमा से हथियारों के जखीरे के साथ गिरफ्तार किया था, और दावा किया था कि वह दिल्ली में आतंकवादी हमला करने वाला था। राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) द्वारा बाद की जांच में पाया गया कि दावे मनगढ़ंत थे। एनआईए ने यह भी मुद्दा उठाया कि शाह को यूपी की एक अदालत में पेश क्यों नहीं किया गया, जहां उन्हें गिरफ्तार किया गया था।
बग्गा की गिरफ्तारी जैसे विवादों का नतीजा क्या हो सकता है?
पुलिस सूत्रों का कहना है कि बग्गा मामले में घटनाओं का मोड़ दुर्भाग्यपूर्ण था और भविष्य के पुलिस अभियानों पर भी इसका असर हो सकता है। हालांकि बग्गा के खिलाफ मामले के गुण-दोष पर बहस हो सकती है। पुलिस अधिकारियों का कहना है कि दिल्ली पुलिस की प्रक्रिया का पालन नहीं करने के लिए दूसरे राज्य की पुलिस के खिलाफ अपहरण का मामला दर्ज करने की कार्रवाई एक मिसाल कायम कर सकती है, जिसका पालन कई राज्य कर सकते हैं। एनआईए को छोड़कर, किसी भी एजेंसी या पुलिस के पास अखिल भारतीय अधिकार क्षेत्र नहीं है। क्या हो अगर सीबीआई या प्रवर्तन निदेशालय जैसी केंद्रीय एजेंसी एक जरूरी मामले में वारंट के बिना गिरफ्तारी करती है, और राज्य पुलिस द्वारा अपहरण के लिए मामला दर्ज किया जाता है?