पुलिस ही पुलिस के खिलाफ दर्ज कर रही FIR .!
पुलिस ही पुलिस के खिलाफ दर्ज कर रही FIR …
एक साल में 4 बार राज्यों की पुलिस आमने-सामने, कितना अपराध और कितनी पॉलिटिक्स
दो राज्यों की पुलिस आपस में एक-दूसरे पर केस कर दे तो क्या होगा? कौन किसे गिरफ्तार करेगा? ये सवाल बड़े हैं, लेकिन इससे भी बड़ा सवाल है कि देश में पिछले एक साल में 4 बार ऐसा हो चुका है और ये हो क्यों रहा है। राजस्थान vs हरियाणा, छत्तीसगढ़ vs यूपी, गुजरात vs यूपी और पंजाब vs हरियाणा/ दिल्ली पुलिस। इन मामलों में राज्यों की पुलिस आमने-सामने हैं। हालांकि, CBI जैसी केंद्रीय एजेंसी भी इस तरह की राजनीतिक लड़ाइयों से बची नहीं है।
सबसे ताजा मामला राजस्थान बनाम हरियाणा पुलिस का है। इसकी शुरुआत 16 फरवरी को भिवानी में दो जले हुए कंकाल मिलने के बाद मचे बवाल से हुई। इसमें गर्भवती से मारपीट करने की वजह से पेट में बच्चे की मौत के मामले ने तूल पकड़ा, तो पीड़ित परिवार ने राजस्थान पुलिस के खिलाफ हरियाणा पुलिस के पास FIR दर्ज करवा दी।
ऐसे ही एक मामले में 23 फरवरी 2023 को गाजियाबाद के विजय नगर थाने में गुजरात की सूरत साइबर क्राइम पुलिस के खिलाफ FIR दर्ज हुई है। यहां गुजरात पुलिस एक शख्स को उठा ले गई और उसके परिवार ने किडनैपिंग की FIR करा दी।
यूपी पुलिस के पूर्व DGP विक्रम सिंह ऐसे मामलों पर कहते हैं, ‘रेड के वक्त लोकल पुलिस के कुछ सिपाही, दूसरे राज्य की पुलिस के साथ होने ही चाहिए। महिला पुलिस को भी साथ लेना चाहिए। रेड से पहले कुछ गवाह तैयार करने चाहिए। गांव के सरपंच या दूसरे जिम्मेदार लोग, लाइसेंसी बंदूक वाले लोग, पड़ोसी वगैरह, ताकि कोई घटना घटती है तो उसकी जांच की जा सके। इन गवाहों को बुलाया जा सके।’
पहला मामला: राजस्थान पुलिस पर हरियाणा में FIR
नूंह के मरोड़ा गांव की दुलारी देवी ने 21 फरवरी को स्थानीय थाने नगीना में रिपोर्ट दर्ज कराई। इस रिपोर्ट में उन्होंने आरोप लगाया, ‘मेरी गर्भवती बहू कमलेश के साथ राजस्थान पुलिस के एक सिपाही ने मारपीट की। उसे लात मारी। दूसरे दिन मैं अपनी बहू को अस्पताल ले गई। वहां उसने मरे हुए बच्चे को जन्म दिया।’
FIR के मुताबिक, 16 फरवरी सुबह 3.30 पर 30-40 लोग उनके घर में घुसे। कुछ पुलिस की वर्दी में थे, कुछ नहीं। घर में घुसते ही उन्होंने उलट-पुलट शुरू कर दी। घर के लोगों के साथ धक्कामुक्की और मारपीट की। पुलिस बेटे श्रीकांत को खोज रही थी। उस पर कथित गो-तस्करों की हत्या का आरोप लगा है। श्रीकांत नहीं मिला तो पुलिसवालों को गुस्सा आ गया। इसी मारपीट के दौरान बहू को चोट लगी और अजन्मे बच्चे की मौत हो गई।
शुरुआत में हरियाणा पुलिस ने दुलारी देवी की FIR नहीं लिखी। हंगामा मचा तो नवजात को कब्र से निकालकर पोस्टमॉर्टम हुआ। उसके बाद FIR लिखी गई। मामले की जांच के लिए SIT बनाई गई। राजस्थान पुलिस को 10 मार्च को नोटिस भेजकर पूछताछ के लिए बुलाया गया। अब तक जांच में हिस्सा लेने न तो राजस्थान से कोई आया और न हरियाणा पुलिस की टीम वहां गई।
राजस्थान पुलिस सभी आरोपों को नकार रही है। भरतपुर रेंज के IG गौरव श्रीवास्तव ने साफ कहा, ‘हमने परमिशन लेकर रेड की। हमारे साथ हरियाणा पुलिस के लोग भी थे।’ हरियाणा पुलिस इस मामले में जांच रिपोर्ट आने का इंतजार करने की बात कह रही है।
बच्चे को जिस दिन कब्र से निकाला गया, उस दिन DIG सतीश कुमार सिंह ने कहा था, ‘हम अपना रजिस्टर देखेंगे, थाने से कुछ सिपाही जरूर रेड के वक्त मौजूद रहे होंगे।’ हालांकि इस घटना के 3 दिन बाद भी रजिस्टर चेक न होने के सवाल पर उन्होंने सीधा जवाब नहीं दिया था।
घटना को अब एक महीने से ज्यादा हो गया है, लेकिन अब तक इन सवालों के जवाब न तो SIT टीम में शामिल SHO दे पाए हैं और न हीं दूसरे सदस्य। रजिस्टर में क्या दर्ज है, इस सवाल के जवाब में सभी इन्वेस्टिगेशन रिपोर्ट आने का इंतजार करने के लिए कह रहे हैं।
37 दिन बाद इन्वेस्टिगेशन कहां पहुंची?
कमलेश जिस अस्पताल में भर्ती हुई थीं, वहां से अब तक मेडिकल डॉक्यूमेंट तक पुलिस कलेक्ट नहीं कर पाई। राजस्थान पुलिस से पूछताछ शुरू भी नहीं हुई। श्रीकांत अब तक फरार है। हालांकि, उसके बाद दोबारा राजस्थान पुलिस श्रीकांत के घर नहीं गई। जांच जहां से शुरू हुई थी, वहीं खड़ी है।
केस का पॉलिटिकल एंगल
राजस्थान के कथित गो-तस्करों के जली हुई बोलेरो गाड़ी में कंकाल मिलने के बाद पुलिस ने मानेसर के गो-रक्षक मोनू और नूंह के श्रीकांत के घर रेड मारी थी। राजस्थान में कांग्रेस की सरकार है, जबकि हरियाणा में BJP की सरकार।
एक तरफ कथित गो-तस्करों की हत्या तो दूसरी तरफ गो-रक्षकों पर हत्या का आरोप। इधर गो-रक्षकों को बचाने के लिए महापंचायत हुई, तो उधर दो मुस्लिम युवाओं की हत्या के आरोपियों को गिरफ्तार करने का दबाव बना। मामले में 9 लोगों का नाम FIR में है, लेकिन सिर्फ एक रिंकू सैनी गिरफ्तार हुआ है।
दूसरा केस: आरोपी को पकड़ने आई सूरत पुलिस, खुद बन गई आरोपी
26 दिसंबर, 2022 गाजियाबाद के विजयनगर, सेक्टर-9 में सूरत पुलिस के 9 सिपाही धड़धड़ाते हुए एक घर में घुस गए। साइबर क्राइम के मामले में आरोपी देवेंद्र गुप्ता को पुलिस पकड़कर ले गई। पत्नी मोनिका का आरोप है कि विजयनगर थाने में उसके पति के साथ मारपीट हुई। उन्होंने फौरन 112 नंबर पर कॉल की।
पुलिस आई, लेकिन कुछ नहीं किया, क्योंकि मामला थाने का था। पूरी रात मोनिका इधर-उधर भटकती रही। दूसरे दिन वह कमिश्नर के पास पहुंची। शिकायत की, लेकिन कुछ नहीं हुआ।
पुलिस देवेंद्र को सूरत ले गई। मोनिका ने अपने वकील भवनीश गोला से सलाह की। 3 जनवरी को वह गाजियाबाद CJM कोर्ट पहुंची और याचिका डाली। कोर्ट ने गाजियाबाद पुलिस को तलब किया। गाजियाबाद पुलिस ने जवाब दिया, ‘सूरत पुलिस बिना उन्हें बताए देवेंद्र को ले गई।’
15 अगस्त को कोर्ट ने गाजियाबाद पुलिस को आदेश दिया कि सूरत पुलिस के खिलाफ FIR दर्ज की जाए। हालांकि, FIR 8 दिन बाद 23 अगस्त को दर्ज हुई।
देवेंद्र गुप्ता के वकील भवनीश गोला ने बताया, ‘गाजियाबाद पुलिस ने कोर्ट में कहा था कि देवेंद्र के घर सूरत पुलिस के साथ उनके भी दो सिपाही थे। कोर्ट ने देवेंद्र के लापता होने की बात पूछी तो उन्होंने कहा, सूरत पुलिस बिना बताए देवेंद्र को ले गई।’
भवनीश कहते हैं, घर में रेड के वक्त गाजियाबाद पुलिस साथ थी और रवानगी के वक्त वे बिना पूछे ले गए। ये कैसे हो सकता है? विजयनगर थाने की SHO अनीता सिंह के खिलाफ कोर्ट के आदेश के बाद भी FIR दर्ज न करने पर कंटेप्ट ऑफ कोर्ट का मामला बना। कंटेप्ट ऑफ कोर्ट के जवाब में अनीता सिंह ने व्यस्तता का बहाना बनाया और उसी दिन FIR दर्ज हुई।
किस आधार पर हुई FIR
वकील भवनीश गोला ने बताया, पहला आधार- 112 नंबर पर मोनिका ने फोन किया था, यह रिकॉर्ड हमारे पास है। वह थाने पर गई। यह सबूत है कि पुलिस देवेंद्र को पहले थाने ले गई। फिर गाजियाबाद पुलिस ने झूठ क्यों बोला। दूसरा आधार- ट्रांजिट रिमांड के लिए 24 घंटे के भीतर करीबी मजिस्ट्रेट के सामने आरोपी को पेश करना होता है। उसमें भी मजिस्ट्रेट गिरफ्तारी की इजाजत दे, ये पक्का नहीं होता है। इस मामले में मजिस्ट्रेट के सामने देवेंद्र को पेश नहीं किया गया।
तीसरा आधार- हमने विजयनगर थाने के CCTV कैमरे की फुटेज मांगी, जिस दिन देवेंद्र को गिरफ्तार किया गया। जवाब मिला- दो कैमरे खराब हैं। कानून के मुताबिक, पीड़ित घटना के 6 महीने बाद तक का CCTV फुटेज ले सकता है। यह बड़ा सबूत होता है, पर विजयनगर पुलिस ने कैमरा खराब होने का हवाला दिया।’ इन तीन आधारों पर सूरत पुलिस पर मारपीट, किडनैपिंग की धाराओं के साथ 4 मार्च को FIR दर्ज की गई।
गाजियाबाद पुलिस पर भी FIR!
आरोपी देवेंद्र की पत्नी मोनिका अब सूरत पुलिस का साथ देने और सबूतों को दबाने के आरोप में गाजियाबाद पुलिस पर भी FIR दर्ज कराने वाली हैं।
केस का अपडेट
सूरत पुलिस की साइबर क्राइम शाखा में फोन करने पर पता चला कि FIR की जानकारी तो है, लेकिन उन्हें अब तक जांच में शामिल होने के लिए कोई नोटिस नहीं मिला है। हालांकि, वहां मौजूद साइबर क्राइम के पुलिसकर्मी ने बताया, ‘हम जांच में सहयोग के लिए तैयार हैं। अगर पूछताछ होगी तो हम जवाब देंगे।’
ये भी सवाल उठता है कि पहले FIR दर्ज करने में देरी और अब सूरत पुलिस को नोटिस न भेजने के लिए गाजियाबाद पुलिस पर क्या कार्रवाई होगी।
तीसरा केस: BJP नेता की गिरफ्तारी में पुलिस बनी पॉलिटिकल टूल
BJP नेता तेजिंदर बग्गा के घर 6 मई 2022 को सुबह 8-9 बजे पंजाब पुलिस ने रेड मारी। बग्गा को गिरफ्तार कर ले गई। उधर, BJP के कार्यकर्ताओं और नेताओं ने ट्विटर पर इसकी जानकारी दी। BJP नेता कपिल मिश्रा ने लिखा, पंजाब पुलिस के 50 जवान तेजिंदर को जबरन अपने साथ ले गए।
जनकपुरी थाने में कपिल मिश्रा, तेजिंदर बग्गा के पिता और BJP के कार्यकर्ताओं ने धावा बोल दिया। खबर फैली तो हरियाणा की कुरुक्षेत्र पुलिस ने रास्ते में ही पंजाब पुलिस को रोक लिया। उधर, दिल्ली पुलिस ने कार्रवाई करते हुए पंजाब पुलिस के खिलाफ किडनैपिंग का केस दर्ज कर लिया। पंजाब पुलिस तेजिंदर को नहीं ले जा पाई, हरियाणा पुलिस ने उन्हें दिल्ली पुलिस को सौंप दिया।
बग्गा पर पंजाब पुलिस ने दर्ज की थी FIR
तेजिंदर पाल सिंह बग्गा के खिलाफ 153-ए (धर्म, जाति, स्थान आदि के आधार पर विभिन्न समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देना), 505 (बयान, अफवाह या रिपोर्ट प्रकाशित या प्रसारित करना) और 506 (आपराधिक धमकी) जैसी धाराओं के तहत पंजाब पुलिस ने मामला दर्ज किया गया था।
क्या है पॉलिटिकल एंगल
पंजाब में आम आदमी पार्टी की सरकार है, जबकि हरियाणा में BJP की। दिल्ली में भी आम आदमी पार्टी की सरकार है, लेकिन यूनियन टेरिटरी होने की वजह से यहां पुलिस राज्य के नहीं, केंद्र के अधीन है।
BJP कार्यकर्ताओं ने आरोप लगाया कि आम आदमी पार्टी की सरकार होने की वजह से पंजाब पुलिस लाव-लश्कर लेकर बग्गा को गिरफ्तार करने आई। बग्गा ने ‘द कश्मीर फाइल्स’ फिल्म देखकर अरविंद केजरीवाल की आलोचना की थी, तब से ही तेजिंदर बग्गा आम आदमी पार्टी के निशाने पर थे।
केस का अपडेट…
तेजिंदर पाल सिंह बग्गा ने बताया- दिल्ली हाईकोर्ट ने ये केस डिसमिस कर दिया है। उन पर लगे सभी आरोप बेबुनियाद पाए गए हैं।
चौथा केस: पत्रकार को गिरफ्तार करने आई छत्तीसगढ़ पुलिस, UP पुलिस ने रोका
ये मामला 5 जुलाई, 2022 का है। छत्तीसगढ़ पुलिस सुबह 5-6 बजे पत्रकार रोहित रंजन के नोएडा स्थित घर पर उन्हें गिरफ्तार करने पहुंची। रोहित ने 6.16 बजे ट्वीट कर दिया। कुछ ही देर में गाजियाबाद पुलिस वहां पहुंच गई। छत्तीसगढ़ पुलिस और गाजियाबाद पुलिस के बीच बहस हुई। इसी बीच सोसाइटी के गार्ड ने नोएडा पुलिस को फोन कर दिया। नोएडा पुलिस भी वहां पहुंच गई।
छत्तीसगढ़ पुलिस रोहित को गिरफ्तार कर पाती, उससे पहले ही नोएडा पुलिस ने एक FIR का हवाला देकर रोहित को गिरफ्तार कर लिया। हालांकि, उन्हें कुछ ही घंटे में छोड़ दिया गया। छत्तीसगढ़ पुलिस और नोएडा पुलिस में भी खूब बहस हुई। मामला यहां तक पहुंचा कि लगा कि छत्तीसगढ़ पुलिस को गाजियाबाद पुलिस हिरासत में ले सकती है, लेकिन शाम तक मामला शांत हो गया।
क्या है पॉलिटिकल एंगल
छत्तीसगढ़ के CM भूपेश बघेल ने बयान दिया, ‘UP पुलिस अपराधियों को बचाने का काम कर रही है। उन्हें अपराधियों को पकड़ने में सहयोग करना चाहिए। कोर्ट के किसी भी आदेश को BJP नहीं मानती। यह घटना इसका एक बेहतरीन उदाहरण है।’
दूसरी तरफ BJP प्रवक्ता संजय श्रीवास्तव ने कहा, भूपेश बघेल जी को संविधान की जानकारी नहीं है। उन्हें नहीं पता कि जब एक राज्य की पुलिस दूसरे राज्य में किसी आरोपी को गिरफ्तार करने जाती है, तो क्या नियम होते हैं। उन्हें संविधान पढ़ना चाहिए।’
कुल मिलाकर यह मामला दो राज्यों की पुलिस से शुरू होकर दो राज्यों की दो अलग-अलग पार्टियों की सरकारों के बीच बयानबाजी पर टिक गया।
क्या है अपडेट…
केस ठंडे बस्ते में। पत्रकार के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज, लेकिन 6 मई के बाद कोई कार्रवाई नहीं हुई। न इधर से न उधर से।
एक राज्य की पुलिस के दूसरे राज्य में घुसने का एक मामला उत्तराखंड का है, जिसमें गोली लगने से एक महिला की मौत हो गई…
इंटरस्टेट पुलिस के नियम…
पुलिस संविधान की सातवीं अनुसूची की दूसरी लिस्ट में आती है। यह राज्य के अधीन है। मतलब पुलिस की शक्तियां राज्य सरकार के आदेशों के हिसाब से काम करती हैं, लेकिन अगर उसे दूसरे राज्य में जाना है तो उसे दूसरे राज्य की पुलिस से अनुमति लेनी होगी।
पुलिस को एक प्रोसिजर फॉलो करना पड़ता है। BJP नेता तेजिंदर बग्गा वाले मामले में पंजाब पुलिस दिल्ली गिरफ्तार करने आई। पंजाब में आम आदमी और दिल्ली में भी आम आदमी की सरकार थी। दिल्ली में पुलिस केंद्र के अधीन थी।
पंजाब पुलिस हरियाणा के रास्ते से ही बग्गा को ले जा सकती थी, यहां BJP की सरकार है। दिल्ली में पंजाब पुलिस घुसी। बग्गा के घर तक पहुंची, लेकिन हरियाणा में कुरुक्षेत्र पुलिस ने पंजाब पुलिस को रोक दिया। नौबत पुलिस के ही गिरफ्तार होने तक पहुंच गई।
पत्रकार रोहित रंजन के मामले में भी सियासी बयानबाजी हुई। कथित गो-तस्कर जुनैद-नासिर की हत्या वाले ताजा मामले में भी राजस्थान की कांग्रेस सरकार और हरियाणा की BJP सरकार के नेताओं के लगातार बयान आते रहे। गाजियाबाद का मामला दो राज्यों की पुलिस का तो है, लेकिन दोनों ही राज्य में BJP की सरकार है। पुलिस एक दूसरे को बचाती ही नजर आ रही है।
इन्वेस्टिगेशन में पॉलिटिकल दखल को लेकर गंभीर टिप्पणियां
सुप्रीम कोर्ट ने सुशांत मर्डर केस में रिया चक्रवर्ती बनाम स्टेट ऑफ बिहार एंड अदर्स केस में एक टिप्पणी की, जो दो राज्यों के बीच फंसे मामलों के इन्वेस्टिगेशन को लेकर थी।
इस मामले में बिहार और महाराष्ट्र सरकारों के बीच लगातार बयानबाजी हो रही थी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ‘दोनों राज्यों के सियासी दल एक दूसरे पर संगीन आरोप लगा रहे हैं। दोनों राज्यों में जांच की वैधता संदेह के घेरे में है। इसलिए यह सुनिश्चित करना चाहिए कि सत्य की तलाश या मामले की तह तक पहुंचने के लिए कोई स्वतंत्र इन्वेस्टिगेशन एजेंसी होनी चाहिए, न कि किसी राज्य द्वारा नियंत्रित होने वाली एजेंसी।’
हालांकि यह बात सुप्रीम कोर्ट ने CBI के मामले में कही थी, लेकिन दो राज्यों के बीच पुलिस विवाद की स्थिति में भी टिप्पणी बेहद मायने रखती है। कोर्ट ने यह भी माना कि राजनीतिक दखल जांच में रुकावट पैदा करती है।
सेकेंड एडमिनिस्ट्रेटिव रिफॉर्म्स कमीशन-2007 में भी कहा गया था कि हर मामले में लगातार बढ़ रहा राजनीतिक दखल जवाबदेही और उत्तरदायित्व को प्रभावित करता है। राजनीतिक दल पुलिस को व्यक्तिगत या राजनीतिक फायदे के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं। यह न्याय में सबसे बड़ी बाधा है।
एक्सपर्ट्स इन टकरावों के बारे में क्या कहते हैं
UP पुलिस के पूर्व DGP विक्रम सिंह ने राजस्थान और हरियाणा पुलिस के बीच पैदा हुई स्थिति पर सख्त टिप्पणी करते हुए कहा, ‘वो दिन कभी नहीं आएगा, जब किसी थाने में कोई अपराध विवेचना (जांच) के लिए न हो। यह सब लचर-पचर बातें होती हैं। आंदोलन होंगे, धरने होंगे। कुछ न कुछ तो हर थाने के इलाके में होता ही रहेगा।’
‘IG साहब को चाहिए कि अपनी फोर्स को गाइड करें, न कि बहाने बनाएं। दो मुस्लिम युवकों की हत्या के मामले के इन्वेस्टिगेशन में व्यस्त होने की बात कहकर एक अजन्मे बच्चे की हत्या के आरोप की जांच को हल्का नहीं बताया जा सकता।’
भरतपुर रेंज के IG गौरव श्रीवास्तव ने कहा था, ‘हम हरियाणा पुलिस के नोटिस का जवाब दें, वहां जाकर उनकी जांच में सहयोग करें या दो मुस्लिम युवाओं की हत्या की जांच यहां करें। जिन पुलिस वालों को वह बुलाना चाहते हैं, वे सब जांच में व्यस्त हैं।’
विक्रम सिंह कहते हैं- ‘कई बार पहले भी ऐसी स्थितियां बनीं। अगर ऐसा कुछ होता था तो जिले के SP को तलब कर लिया जाता था। उसकी जिम्मेदारी होती थी कि उनके यहां से गई टीम कुछ भी गैरकानूनी न करे। अगर किया तो जवाब उसे देना पड़ता था। अब ये सब जो हो रहा है, इसमें राजनीति भी शामिल है।’