मोह जब छूटेगा, संतोष का लड्डू फूटेगा …?

उसका स्वाद लग गया, तो जीवन भी बदल गया….?

क्या आप अपनी अलमारी के सामने खड़े होकर सोचती हैं कि आज क्या पहनूं? और कुछ समझ नहीं आता। 21 कुर्ते, 25 टॉप्स, 15 लैगिंग्स और जाने और क्या-क्या कपड़े भरे पड़े हैं। आखिर हाथ गया उसी नीली कुर्ती पर जो 100 बार पहन चुकी हैं, जो दिल को भाता है। बाकी गया भाड़ में, कुछ पर तो दुकान का टैग भी अब तक लगा हुआ है।

आज हर मध्यमवर्गीय परिवार में अलमारियां खचाखच भरी हुई हैं, खासकर लेडीज़ की। अच्छा लगा खरीद लिया, सेल में खरीद लिया, ऑनलाइन खरीद लिया। बस यूं ही बोर हो रहे थे, खरीद लिया। शॉपिंग अब एक जरूरत नहीं, मनोरंजन का साधन हो गई है। नतीजा ये कि परचेसिंग का पहाड़ सिर पर भारी हो गया है। अच्छा बाबा ठीक है, मैं हूं जमाखोर।

कॉलेज की जींस से शादी के लहंगे तक, मैंने आज तक सब संभालकर रखा है। मुझे पता है वो कपड़े मुझे कभी फिट नहीं आएंगे। ना ही मेरी बेटी पुराने फैशन पहनेगी। कुछ-कुछ होता है, मैं नहीं फेंक पाती। आप ही बताइए क्या करूं! चलिए बताती हूं आपको एक तरीका, जो ईजाद हुआ जापान में। एक लड़की थी, जिसको अजीब-सा शौक था।

हर चीज सही जगह पर हो, घर साफ और सुंदर हो, ये उसका सपना था। मगर घर के बाकी मेंबर्स साथ नहीं देते थे। आखिर एक दिन दुखी मन से उसने अपने कमरे का निरीक्षण किया और अंदर से आवाज आई- ‘सब कुछ उठाकर फेंक दो।’ लड़की को चक्कर आया, वो बेहोश हो गई। दो घंटे बाद जब आंख खुली तब उसका मन शांत था।

क्या करना है, अब उसे पता था। कुछ आलसी दोस्तों के अव्यवस्थित कमरों को उसने नया रूप दिया। कॉलेज में न्यूज़ फैल गई, अजनबियों ने अनुरोध किया, ‘कैन यू हेल्प मी?’ और इस तरह मेरी कोंडो को जीवन में एक लक्ष्य मिल गया। 2014 में प्रकाशित इनकी किताब ‘द आर्ट ऑफ टाइडिंग अप’ ने इनकी सोच दुनिया तक पहुंचाई। ‘कोनमरी’ (konmari) मैथड एकदम सरल है।

आप किसी एक कैटेगरी का आइटम ले लें, जैसे कि कपड़े या जूते। फिर एक-एक चीज को उठाकर अपने आप से पूछिए, ‘क्या इस चीज से मुझे खुशी मिलती है?’ अगर मिलती है तो जरूर आपको अंदर से फीलिंग आएगी। इस आइटम को रख लें। अगला आइटम उठाते ही आपको पता है, इससे मन उतर गया है। लेकिन फिर भी दिमाग कहता है, शायद एक दिन काम में आएगी।

आप जानते हो कि 99% वो दिन कभी आएगा नहीं। इसलिए कोनमरी मैथड इस्तेमाल कीजिए। उस चीज को प्यार से उठाइए और तहे दिल से कहिए ‘थैंक यू।’ शायद आपको ये अजीब लगेगा, पर इसके पीछे एक वजह है। शिंतो धर्म के तहत हर वस्तु में आत्मिक ऊर्जा होती है, जो हम उसे प्रदान करते हैं। अगर आप वस्तु को उदासी या अफसोस के साथ देखेंगे तो निगेटिव ऊर्जा उत्पन्न होती है।

वही चीज आप प्यार और आदर से करेंगे तो हल्का महसूस होगा। लाखों लोग ये मैथड अपना चुके हैं, आप भी करके देख सकते हैं। कोनमरी मैथड अपनाने के बाद शॉपिंग के प्रति मेरा एटीट्यूड ही बदल गया। अब मैं सेल में चीजें बिल्कुल नहीं खरीदती हूं, घूमने जाती हूं तो याद के तौर पर सिर्फ फ्रिज मैग्नेट लेती हूं। हां, किताबों से जुदा होना इतना आसान नहीं। फिर भी दिल कड़ा करके मैंने 80% बांट दीं।

सोचती हूं, किसी और को उस ज्ञान का फायदा मिलेगा। मेरी सलाह है कि कोनमरी मैथड अपनी एक अलमारी पर आजमाइए, और मुझे ईमेल से बताइए कि कैसा महसूस हुआ। कुछ संस्थाएं आपके सामान को जरूरतमंद लोगों तक पहुंचाने का उम्दा काम कर रही हैं। उनमें से एक है ‘गूंज’, जिनके देश भर में कलेक्शन सेंटर्स हैं। अपने देखा होगा, साधु-संत सिर्फ एक ही रंग के, एक ही ढंग के कपड़े पहनते हैं।

स्टीव जॉब्स भी रोज काला टर्टलनेक और ब्लू जींस पहनते थे। साधु से तो हम सादगी की अपेक्षा रखते हैं पर जब एक अरबपति ऐसा भेष अपनाता है, तो वो उसकी पहचान बन जाती है। शायद हम इस हद तक तो नहीं जा पाएं पर अपने जीवन में थोड़ा संयम जरूर ले सकते हैं। मोह जब छूटेगा, संतोष का लड्डू फूटेगा। उसका स्वाद लग गया, तो जीवन भी बदल गया।

शिंतो धर्म के तहत हर वस्तु में आत्मिक ऊर्जा होती है, जो हम उसे प्रदान करते हैं। अगर आप वस्तु को उदासी के साथ देखेंगे तो निगेटिव ऊर्जा उत्पन्न होती है। प्यार-आदर से देखेंगे तो हल्का महसूस होगा।

(ये लेखिका के अपने विचार हैं)

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