मूल अशोक स्तंभ की नए से तुलना … ?
नई प्रतिमा में दांत, जबड़े के साथ हाथी-घोड़े भी अलग, पर भाव समझने के लिए सही एंगल जरूरी….
सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट के तहत 11 जुलाई को संसद भवन की छत पर अशोक स्तंभ की कांस्य प्रतिमा का अनावरण किया गया। उसके बाद से ही इस बात की चर्चा है कि नया स्तंभ सारनाथ वाले मूल स्तंभ से अलग है। इसको लेकर भास्कर ने दोनों स्तंभों की अलग-अलग मापदंडों पर पड़ताल की और यह जानना चाहा कि विपक्ष के दावे में कितनी सच्चाई है।
हमारी टीम वाराणसी से करीब 10 किलोमीटर दूर सारनाथ के उस म्यूजियम में पहुंची, जहां मूल अशोक स्तंभ है। हालांकि हमें अंदर वीडियो-फोटो शूट करने की मंजूरी नहीं मिली। वहां हमने जो कुछ देखा, ऑब्जर्व किया और उसको लेकर एक्सपर्ट से जो बात की। पूरी रिपोर्ट…
सम्राट अशोक ने करीब 250 ईसा पूर्व में सारनाथ में मूल अशोक स्तंभ बनवाया था। यह चुनार के बलुआ पत्थर को काटकर बनाया गया है। यह एकाश्म यानी एक ही पत्थर से तराशकर बनाया गया है। शेरों की मूर्ति जिस प्लेटफॉर्म पर लगी है, उस पर एक हाथी, चौकड़ी भरता हुआ एक घोड़ा, एक सांड और एक शेर की उभरी हुई कलाकृति (आर्टवर्क) है।
काशी हिंदू विश्वविद्यालय BHU के प्रोफेसर और इतिहासकार महेश प्रसाद अहिरवार ने दोनों स्तंभों की बनावट को लेकर बारीकी से स्टडी की है। उनका कहना है कि नए और मूल स्तंभ में आर्ट, ब्यूटी और स्ट्रक्चर के हिसाब से कई अंतर हैं। इसकी अलग-अलग व्याख्या हो सकती है, लेकिन यह भी सच है कि आम आदमी भी इनके बीच का फर्क आसानी से देख सकता है।
महेश प्रसाद कहते हैं कि संसद में लगे शेर का जबड़ा पिचका हुआ और मुंह ज्यादा खुला हुआ है। किनारे से भी देखें तो उसके दांत ज्यादा निकले हुए हैं, जबकि मूल स्तम्भ के जबड़े चौड़े हैं, उस पर की गई पॉलिश उसे बेहद शानदार बना देती है। नए स्तंभ को देखें तो लगता है इसे बनाने वाला कलाकार अशोक के ‘धम्म’ की अवधारणा से परिचित नहीं है।
उनके मुताबिक मूल स्तंभ में जो शेर हैं, उनमें गंभीरता है। उनके चेहरे की बनावट, उनकी आंखों में शांति नजर आ रही है, जबकि संसद में लगे शेर आक्रामक भाव में नजर आते हैं। इन्हें देखकर लोगों में डर का भाव आ सकता है।
दोनों स्तंभों की सेम एंगल से तस्वीर लेने पर ही हो सकती है बनावट में तुलना
एसोसिएटेड प्रेस (AP) के सीनियर फोटो जर्नलिस्ट राजेश कुमार सिंह कहते हैं, तस्वीर खींचने के एंगल से मूल स्वरूप में बदलाव आ सकता है। नए स्तंभ के जिस तस्वीर को लेकर विवाद है, वह काफी नीचे खड़े होकर खींची गई है। असली रूप तभी नजर आएगा, जब इसे स्तंभ में बने शेर की ऊंचाई के बीच भाग की हाइट पर खड़े होकर खींचा जाए। सारनाथ के स्तंभ से इसकी तुलना करते समय भी दोनों स्तंभों को समान ऊंचाई से देखना चाहिए।
एक तर्क यह भी- 300 ईसा पूर्व की कलाकृति 2022 में बनेगी तो अंतर तो होगा ही
BHU के विजुअल-आर्ट डिपार्टमेंट के प्रोफेसर डॉ. शांति स्वरूप सिन्हा कहते हैं कि अगर हम इसे भगवान बुद्ध के प्रतीक की जगह राजसत्ता के प्रतीक के रूप में देखेंगे तो निश्चित रूप से कई सारी चीजें हमें अलग नजर आएंगी।
सारनाथ के शेर के मुंह भी खुले हैं और उनके दांत भी नजर आ रहे हैं, लेकिन जब हम इस पूरी प्रतिमा को देखते हैं तो यह सहज नजर आती है। 300 ईसा पूर्व की कलाकृति अगर 2022 में बनती है, तो उसमें अंतर होना स्वाभाविक है। जो नए स्तंभ में दिख भी रहा है।
बनाने वाले बोले- ड्रोन से ली गई तस्वीरों में शांत नजर आ रहे हैं शेर
बदलाव के इन आरोपों पर हमने इसे बनाने वाले दोनों कलाकारों यानी औरंगाबाद के स्कल्पचर आर्टिस्ट सुनील देवड़े और जयपुर के लक्ष्मण व्यास से बात की। 30 साल से ज्यादा समय से कलाकृतियों का निर्माण कर रहे सुनील कहते हैं, ’यह प्रतिमा मूल प्रतिमा की रेप्लिका ही है। उसमें भी शेरों के मुंह खुले हुए हैं और उनके दांत नजर आ रहे हैं। हमने स्टडी के बाद सारनाथ के स्तंभ की यह रेप्लिका औरंगाबाद में बनाई और फिर उसे इनलार्ज करके जयपुर में कास्ट किया।
वे कहते हैं कि सारनाथ में लगा स्तंभ 6 फीट का है और नया वाला स्तंभ तकरीबन 21 फीट का है। जो तस्वीर वायरल हो रही है वह ‘लो’ यानी नीचे के एंगल से खींची गई है। इसके चलते इसका एक्सप्रेशन बदल गया है। ड्रोन के जरिए ऊपर से ली गई तस्वीर में शेर शांत नजर आ रहे हैं। इसे देखने वाले अपने नजरिए से इसे डिफाइन कर रहे हैं। हम किसी की सोच नहीं बदल सकते।
वे कहते हैं कि मैंने अपनी मर्जी से यह प्रतिमा नहीं बनाई है। सैकड़ों लोगों और दर्जनों डिपार्टमेंट के अप्रूवल के बाद इस कलाकृति को संसद भवन में स्थापित किया गया है।
हर दिन आ रहे सैकड़ों कॉल, लोग धमकी भी दे रहे हैं
लक्ष्मण व्यास कहते हैं कि हर दिन 600 से ज्यादा फोन आ रहे हैं। सोशल मीडिया पर लोग ट्रोल कर रहे हैं। इन चीजों से परेशानी हो रही है। कंट्रोवर्सी से मन दुखी हुआ है। चैनल की डिबेट में लोग धमकी भरे लहजे में बात कर रहे हैं।
हालांकि अच्छी बात है कि बुराई के साथ ही लोग हमारे काम की तारीफ भी कर रहे हैंं। प्रधानमंत्री मोदी ने भी हमारे काम को सराहा है। हम कलाकार हैं और आगे भी ऐसे चैलेंज स्वीकार करने को तैयार हैं। इस काम को करने के लिए पूरे देश से मुझे चुना गया। इससे बड़े सम्मान की बात क्या हो सकती है।
3D तकनीक का इस्तेमाल करके हूबहू बनाया जा सकता था स्तंभ
मेटल कास्टिंग के एक्सपर्ट और मुंबई स्थित जेजे स्कूल ऑफ आर्ट्स से जुड़े भूषण वैद्य ने बताया कि किसी भी प्रतिमा की रेप्लिका बनाने का एक स्पेसिफिक तरीका होता है। पत्थर की प्रतिमा को मेटल रेप्लिका में हम करीब 99% तक हूबहू कॉपी कर सकते हैं। नए अशोक स्तंभ को अपने हिसाब से इम्प्रोवाइज्ड करने का प्रयास किया गया है। इसमें आर्टिस्ट ने ऑब्जेक्ट का प्लेसमेंट सही जगह किया है, लेकिन उसे बनाया अपने ढंग से है।
यह सारनाथ की प्रतिमा का 20% कॉपी भी नहीं है। मौजूदा समय में 3D तकनीक का इस्तेमाल कर इसे पूरी तरह से कॉपी किया जा सकता था, लेकिन इसमें उसका भी इस्तेमाल नहीं हुआ है।
खबर में आगे बढ़ने से पहले इस पोल से होकर भी गुजर जाइए…
कैसे बनती है कोई प्रतिमा, एक्सपर्ट से जानिए प्रोसेस
मेटल कास्टिंग के एक्सपर्ट भूषण बताते हैं कि, ‘सबसे पहले हम क्ले वर्क करते हैं। इसके बाद मॉनिटरिंग टीम के एक्सपर्ट उसका अप्रूवल देते हैं। इसके बाद उसके ऊपर प्लास्टर का मोल्ड पड़ता है और उसकी फाइबर कॉपी निकलती है। बड़ी प्रतिमा के लिए फाइबर के छोटे-छोटे पीस बनते हैं। फाइबर के पीस पर फिर से मोल्ड पड़ता है। इसके बाद वैक्स की एक कॉपी बनती है। फिर गाभा का इस्तेमाल कर एक बड़ा मोल्ड बनाया जाता है।
इसके बाद हम उसे गर्म करते हैं और उसमें से वैक्स निकल जाता है और खाली हिस्सा नजर आता है। उसमें मेटल को लिक्विड फॉर्म में डालते हैं और प्रतिमा कास्ट करते हैं। इसके बाद हम छोटे पीस को जोड़ कर एक बड़ी प्रतिमा बनाते हैं।
केंद्र सरकार चाहे तो राष्ट्रीय प्रतीकों के डिजाइन में बदलाव कर सकती है
इस विवाद के बीच हमने यह भी जानने का प्रयास किया कि राष्ट्रीय चिन्ह को लेकर संविधान या कानून क्या कहता है। क्या इसके बदले हुए रूप को कहीं लगाया जा सकता है।
संविधान विशेषज्ञ और महाराष्ट्र विधानमंडल के पूर्व प्रधान सचिव अनंत कलसे कहते हैं, ‘इस विवाद का जवाब भारतीय राष्ट्रीय चिन्ह (दुरुपयोग की रोकथाम) एक्ट 2005 में मिलता है। इस कानून को साल 2007 में अपडेट किया गया था। इसमें साफ कहा गया है कि भारत का राष्ट्रीय प्रतीक सारनाथ के Lion Capital of Asoka से प्रेरणा लेता है।
उनका कहना है कि इस एक्ट के सेक्शन 6(2)(f) में इस बात का भी जिक्र किया गया है कि सरकार राष्ट्रीय प्रतीकों के डिजाइन में बदलाव कर सकती है। कानून में संशोधन और फिर दोनों सदनों से उसे पारित करवाकर राष्ट्रीय प्रतीक में बदलाव लाया जा सकता है। हालांकि, मौजूदा हालात में ऐसा कुछ नहीं हुआ है।
अब अशोक स्तंभ में लगे 4 शेरों के इस्तेमाल की कहानी भी जान लीजिए
अशोक स्तंभ में शेरों को शामिल करने के पीछे की कहानी रोचक है। दरअसल भगवान बुद्ध के सौ नामों में से शाक्य सिंह, नर सिंह नाम का उल्लेख मिलता है। इसके अलावा सारनाथ में दिए भगवान बुद्ध के धर्म उपदेश को सिंह गर्जना भी कहते हैं, इसलिए बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए शेरों की आकृति की अहमियत दी गई है। (पूरी खबर पढ़िए)
कौन कर सकता है अशोक स्तंभ का इस्तेमाल
राष्ट्रीय चिन्ह अशोक स्तंभ का इस्तेमाल संवैधानिक पदों पर बैठे व्यक्ति ही कर सकते हैं। जैसे- देश के राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, केंद्रीय मंत्री, राज्यपाल, न्यायपालिका और सरकारी संस्थानों के अधिकारी। संवैधानिक पद को छोड़ने यानी रिटायर होने के बाद व्यक्ति राष्ट्रीय चिन्ह का इस्तेमाल नहीं कर सकता।
भारतीय राष्ट्रीय चिन्ह एक्ट के मुताबिक, अगर कोई आम नागरिक अपनी मर्जी से अशोक स्तंभ का इस्तेमाल करता है, तो उसके लिए सजा का प्रावधान है। उसे 2 वर्ष की कैद हो सकती है। इसके अलावा 5000 रुपए तक का जुर्माना भी लगाया जा सकता है।
चलते-चलते सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट के बारे में भी जान लीजिए