चित्रकूट में बच्चों के हाथों में RDX थमाने का इन्वेस्टिगेशन
चित्रकूट में बच्चों के हाथों में RDX थमाने का इन्वेस्टिगेशन:500 रुपए की दिहाड़ी में पहाड़ों पर प्लांट कर रहे बम; ठेकेदार दे रहे ट्रेनिंग….
दरअसल, बुंदेलखंड में 16 साल से कम उम्र के बच्चों को जल्दी काम नहीं मिलता। मिलता भी है तो 200 रुपए प्रतिदिन का, लेकिन पहाड़ों पर खनन कराने वाले ऐसे ही बच्चों को ढूंढते हैं। वो 15 से 18 साल के बच्चों को रोजाना 500 रुपए मजदूरी देकर ग्रेनाइट की खदानों में विस्फोटक लगवा रहे हैं।
आइए आपको उसी खदान पर लेकर चलते हैं और पूरी बात बताते हैं कि आखिर क्यों ये काम बच्चों से कराया जा रहा है…–
भरतकूप के पहाड़ों की तलहटी पर गोंडा, भंवरा, नया पुरवा, बजनी और कोरारी गांव हैं। खदानों पर काम करने वाले ज्यादातर मजदूर इन्हीं गांवों के हैं। गोंडा गांव के रहने वाले 16 साल के रिंकू ने माइनिंग का काम पिछले साल शुरू किया। रिंकू ने बताया, “बापू (पिता) खदान में बारूद भरने का काम करते थे। पिछले साल मार्च में सांस की बीमारी से उनकी मौत हो गई। इसके बाद पड़ोस के धर्मपाल चाचा ने हमें यहां काम दिलवा दिया।”
रिंकू कहता है, “मजदूरी करता तो 200 रुपए मिलते, यहां 8 घंटे के 500 रुपए मिलते हैं। पूरे भरतकूप में मेरे जैसे 50 से ज्यादा लड़के यहां पर चालू 8 खदानों में रोज काम पर आते हैं।” रिंकू पहाड़ी पर ब्लास्टिंग से पहले सेल यानी विस्फोटक लगाने का काम करता है।
बच्चों से लगवाए जा रहे अमोनियम नाइट्रेट और जिलेट जैसे विस्फोटक
रिंकू ने बताया, “भरतकूप की पहाड़ियों पर रोजाना 300 से ज्यादा मजदूर खुदाई, बम प्लांटिंग और पत्थरों को स्टोन क्रशिंग प्लांट तक पहुंचाते हैं। सुबह 6 से दोपहर 1 बजे तक पत्थर तोड़ने का काम होता है।”
बच्चे जिस विस्फोटक को हाथ में लेकर काम करते हैं, उसके बारे में हमने माइनिंग सुपरवाइजर से भी बात की। उन्होंने ऑफ-द-कैमरा बताया, “पत्थरों को तोड़ने के लिए यहां BEL-MX ब्रांड का विस्फोटक यूज होता है। छोटे पत्थरों के लिए 25MM और बड़ी चट्टानों के लिए 200MM विस्फोटक की रॉड लगती है। इसमें अमोनियम नाइट्रेट और जिलेट जैसे एक्सप्लोसिव होते हैं। इन्हें यहां के लोग सेल, रॉड, RDX और डायनामाइट कहते हैं।”
बच्चों को तार बिछाने से लेकर विस्फोटक फिट करने की मिलती है ट्रेनिंग
भरतकूप में बजनी रेंज की खदान पर काम करने वाले 18 साल के मजदूर संतोष ने बताया, “हम 3 साल से खदान में तार बिछाने का काम कर रहे हैं। विस्फोट से पहले कैसे सेल लगाना है? किस जगह पर सेल डालने से बड़ा विस्फोट होगा? एक तार से दूसरा तार कैसे जोड़ना है? ये सब हमें ठेकेदार के लोगों ने सिखाया है।”
बगल में खड़े दूसरे मजदूर केसू ने हां में सिर हिला दिया। ठेकेदारों का नाम पूछने पर दबी आवाज में संतोष ने अच्छू, बल्लू, मनी का नाम लिया। उसने बताया कि यही लोग ठेके पर यहां काम करवाते हैं।
कच्ची उम्र की फुर्ती बना रही बच्चों को माइनिंग लेबर
IIT कानपुर के सीनियर रिसर्चर रहे डॉ. भारतेंदु प्रकाश 1974 से बुंदेलखंड पर लगातार काम कर रहे हैं। भारतेंदु कहते हैं, “बच्चों को माइनिंग जैसे कामों में लगाना खुदाई खान अधिनियम 1952 का खुला उल्लंघन है। बड़ों की तुलना में बच्चे कम पैसों पर काम करने के लिए तैयार हो जाते हैं। खदानों में उतरना, तेजी से विस्फोटक फिट करना जैसे काम कम समय में किए जाते हैं। इसलिए चोरी-छिपे बच्चों से काम लिया जाता है।”
बच्चों से ऐसे खतरनाक काम क्यों करवाए जा रहे हैं? इसे जानने के लिए हम 3 स्टोन क्रशिंग प्लांट्स पर पहुंचे। लेकिन तीनों जगह ठेकेदारों ने हमें प्लांट के अंदर आने की परमिशन नहीं दी।
अब…
यहां तक आपने खदानों में काम करने वाले नाबालिग मजदूरों की बातें जानी। अब आइए पहाड़ों पर बम लगाने के पूरे प्रोसेस को समझते हैं…
बिजनेसमैन और नेताओं के नाम पर अलॉट की गईं पहाड़ियां, इसलिए जांच नहीं होती
चित्रकूट के वरिष्ठ पत्रकार रजनीश तिवारी कहते हैं, “चित्रकूट, महोबा और बांदा में जहां-जहां माइनिंग होती है। वो पहाड़ किसी न किसी बड़े बिजनेसमैन या नेता के नाम पर बुक है। पहाड़ों पर खनन का पट्टा किस वाइट कॉलर वाले को दिया जाना है, ये सब पहले से तय होता है।”
बच्चों से काम कराने वालों पर कार्रवाई क्यों नहीं हो रही?
इस सवाल पर रजनीश कहते हैं, “खदान मालिकों का जिलों में बैठे खनिज अधिकारियों के साथ बैठना-उठना होता है। इसलिए जांच अधिकारी भी माइनिंग एरिया में कम जाते हैं। इससे खदानों पर मजदूरी कौन कर रहा है। ये पता नहीं चल पाता।”
1 साल में 50 से ज्यादा स्टोन क्रशिंग प्लांट्स किए गए बंद
नाबालिगों से माइनिंग में काम लिए जाने पर चित्रकूट के DM शुभ्रांत कुमार शुक्ल ने दैनिक भास्कर को बताया, “भरतकूप की पहाड़ियों पर NGT के नियमों के खिलाफ चलाए जा रहे 50 से ज्यादा स्टोन क्रशिंग प्लांट्स बीते एक साल में बंद किए गए हैं। खदानों में बाल मजदूरी करवाना नियमों के खिलाफ है। इस पर संबंधित विभागों के अधिकारियों के साथ बैठक कर जल्द एक्शन लिया जाएगा।”
चित्रकूट और महोबा में 500 से ज्यादा खदानों में हुई माइनिंग
राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के मुताबिक, बुंदेलखंड में चित्रकूट के भरतकूप और महोबा के कबरई में पत्थर का खनन सबसे ज्यादा होता है। चित्रकूट धाम मंडल यानी कि महोबा, बांदा और चित्रकूट में कुल 358 स्टोन क्रशर हैं। अकेले महोबा में कुल 330 खदाने हैं, जो 2500 हेक्टेयर तक फैली हैं। चित्रकूट में अब तक 250 से ज्यादा खदानों पर पत्थर तोड़ने का काम किया जा चुका है, जिसमें लगभग 2200 हेक्टेयर जमीन खनन क्षेत्र में है।
पहाड़ों पर खनन से तेजी से घट रहे बुंदेलखंड के ग्रीन स्पॉट
डॉ. भारतेंदु कहते हैं, “साल 1970 से पहले महोबा और चित्रकूट के पहाड़ हरे-भरे हुआ करते थे। इन पहाड़ियों पर 400 से ज्यादा किस्म की जड़ी-बूटियां पाईं जाती थीं। लेकिन 1980 के बाद से जब भरतकूप की पहाड़ियों पर पहला स्टोन क्रशर चला तब से ये वन सम्पदा लगातार घटती चली गई।”
पहाड़ों पर माइनिंग के नियम
- प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की गाइडलाइन के मुताबिक, खदान और क्रशर पर काम करने वाले मजदूरों को काम के निश्चित घंटे, फेस मास्क, चिकित्सा सुविधा और सामाजिक सुरक्षा दी जानी जरूरी है।
- माइनिंग के किसी भी तरह के काम में नाबालिग को शामिल करना अपराध है। पकड़े जाने पर प्लांट को बंद किए जाने की बात कही गई है।
- किसी पुरातत्व स्थल के 100 मी. तक खनन वर्जित है। 200 मी. तक खनन व निर्माण कार्य के लिए पुरातत्व विभाग से NOC लेना जरूरी है।
- रेलवे ट्रैक से 500 मीटर की दूरी पर क्रशर जैसी गतिविधि मान्य है। स्टोन क्रशर से धूल न उड़े इसके लिए लगातार पत्थरों पर पानी का फव्वारा चलना चाहिए।
- स्टोन क्रशर के क्षेत्रफल के अनुपात में आसपास पेड़-पौधे लगाए जाने चाहिए। क्रशर पर काम नेशनल हाइवे से 500 मी. की दूरी पर होना चाहिए।