जम्मू-कश्मीर को विशेष अधिकार देने वाले 35ए हटाने की अटकलें तेज, जानें इसके बारे में पूरी जानकारी

नई दिल्ली: जम्मू कश्मीर को विशेष प्रावधान प्रदान करने वाले अनुच्छेद 35ए को हटाने की अटकलें तेज हो गई हैं. राज्य में कानून-व्यवस्था बनाए रखने के लिए गृह मंत्रालय ने केंद्रीय सशस्त्र बलों की अतिरिक्त 100 कंपनियों की तैनाती का आदेश जारी किया. इन केंद्रीय बलों में सीआरपीएफ, बीएसएफ, एसएसबी और आईटीबीपी शामिल हैं.  केंद्र के इस फैसले के बाद से राज्य की तमाम क्षेत्रीय पार्टियां विरोध में आ गई हैं. सुप्रीम कोर्ट में अनुच्छेद 35ए को चुनौती देने वाली याचिकाएं लंबित हैं.
क्या है आर्टिकल 35A और इससे जम्मू कश्मीर को कैसे विशेष अधिकार मिलते हैं

 

    1. अक्टूबर 1947 में जम्मू कश्मीर के महाराजा हरि सिंह ने इन्स्ट्रमेंट ऑफ एक्सेशन साइन करके जम्मू कश्मीर को भारत में मिलाया.

 

    1. साल 1952 में शेख अब्दुल्लाह और प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के बीच हुए एक समझौते के तहत राष्ट्रपति के ऑर्डर से कश्मीर के लिए 1954 में अनेक प्रोविजन किए गए. इसी के बाद आर्टिकल 35ए अस्तित्व में आया.

 

    1. साल 1956 में जम्मू कश्मीर का संविधान बनाया गया. इसके तहत जम्मू कश्मीर के स्थायी नागरिक कौन होंगे इसके लिए महाराजा हरि सिंह ने नागरिकता फॉर्मूले को बरकरार रखा गया.

 

    1. आर्टिकल 35ए जम्मू कश्मीर को सबसे बड़ा यह अधिकार देता है कि स्टेट के परमानेंट नागरिक कौन होंगे.

 

    1. कश्मीर का परमानेंट रेसिडेंट लॉ ऐसे लोग जो यहां के स्थायी नागरिक नहीं है, उन्हें कश्मीर में स्थायी तौर पर रहने, अचल संपत्ति खरीदने, सरकारी नौकरी पाने इत्यादि से रोकता है.

 

    1. यह आर्टिकल जम्मू कश्मीर राज्य को अधिकार देता है कि कोई महिला अगर किसी दूसरे स्टेट के स्थायी नागरिक से शादी करती हैं तो उसकी कश्मीरी नागरिकता छीन ली जाए. हालांकि, साल 2002 में जम्मू कश्मीर हाईकोर्ट के एक आदेश के मुताबिक शादी करने वाली महिला की नागरिकता खत्म नहीं की जाएगी, लेकिन उनके होने वाले बच्चों को यह अधिकार नहीं मिलेगा.

 

    1. साल 2014 में एक एनजीओ ‘वी दी सिटीजन’ ने इस आर्टिकल को सुप्रीम कोर्ट में चैलेंज किया था. इसमें एनजीओ ने तर्क पेश किया था कि इसे आर्टिकल 368 के तहत संविधान संशोधन करके नहीं लाया गया है और न ही इसे कभी संसद के समक्ष पेश किया गया है.

 

    1. पिछले साल दो कश्मीरी महिलाओं ने सुप्रीम कोर्ट में केस दायर कर कहा था कि इस आर्टिकल के कारण हमारे बच्चों को उनके नागरिकता अधिकार से वंचित रहना पड़ता है.

 

    1. इस याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने केन्द्र और राज्य सरकारों को नोटिस जारी किया था. इस मसले पर सुप्रीम कोर्ट में केन्द्र सरकार की तरफ से जवाब देते हुए एडवोकेट जनरल केके वेणुगोपाल ने तत्कालीन चीफ जस्टिस की बेंच को कहा था कि आर्टिकल 35ए का मुद्दा संवेदनशील है और इसपर बड़ी डिबेट की आवश्यकता है.

14 मई, 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई टाली. सुनवाई के दौरान केन्द्र सरकार ने कहा कि इस मामले से जुड़े लोग समाधान चाहते हैं, इसलिए कोर्ट इस मामले में कोई अंतरिम आदेश पास न करे.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *