विधायक-सांसद के कद से भी बड़ी है ‘गांव की सरकार’ …?
सड़क, स्कूल, पानी का बजट इसके पास, गांवों में वर्चस्व का सिम्बल भी …
दो हफ्तों की राजनीतिक खींचतान के बाद आखिरकार आज ये तिलिस्म भी बाहर आ गया कि किस जिले में किस पार्टी की गांव सरकार बनी? लेकिन आपके मन में ये सवाल जरूर कौंध रहा होगा कि जिला पंचायत अध्यक्ष के लिए इतनी सिर फुटव्वल क्यों मची? इस कुर्सी पर कब्जे की सबसे बड़ी वजह है इसका बजट। लाखों गांवों की सड़क, स्कूल, पानी का बजट इसी ‘कुर्सी’ से होकर जाता है। गांवों में वर्चस्व का सिम्बल भी यही है।
जिला पंचायत सदस्यों को भी विधायकों की तरह गुजरात और छत्तीसगढ़ क्यों भेजा गया? बाड़ेबंदी की जरूरत क्यों पड़ी? हमारे मन में भी ये सवाल कौंधे। हमने तमाम जिला पंचायतों के बजट खंगाले तो जवाब तो मिल ही गया। ये पूरी जद्दोजहद पैसों की है। विधायक और सांसदों से ज्यादा बजट तो जिला पंचायतों का है। किस गांव में सड़कें बनना है, कहां पंचायत भवन बनना है, कहां आंगनवाड़ी और कहां तालाब.. ये सब गांव की सरकार के मुखिया यानी जिला पंचायत से ही तय होता है। बजट होता है तो रुतबा भी होता है। फिर राजनीतिक मंच पर नुमाया होने का शौक भी पूरा होता रहता है। आए दिन भूमिपूजन, लोकार्पण में मालाएं पहनने और भाषण देने का शगल भी पूरा होता है।
अहम काम जो जिला पंचायत से तय होते हैं-
- गांव की सीमेंट कांक्रीट की सड़कें
- आंगनवाड़ी भवन
- पंचायत भवन
- तालाब
- मनरेगा के तहत होने वाले अन्य कार्यों की स्वीकृति
- नलजल योजना का क्रियान्वयन
श्रेय में भी हिस्सेदारी और सुविधा में भी
यदि किसी गांव में कोई काम करवाना हो तो इसके लिए ग्राम सभा से प्रस्ताव पारित करके जिला पंचायत को भेजा जाता है। यहां जिला पंचायत की बैठक में उसे स्वीकृत करने या न करने का निर्णय होता है। यदि किसी पंचायत में 1 करोड़ रुपए के कार्य होने हैं तो उसका निर्णय जिला पंचायत में होता है। जाहिर है, इसमें पंचायत के सदस्यों व अध्यक्ष का प्रभाव भी होता है और निजी स्वार्थ भी। जिला पंचायत अध्यक्ष अपनी सुविधा के हिसाब से कार्यों को मंजूरी दिलाते हैं। अपने हिस्से का श्रेय भी लेते हैं और सुविधा भी।
सांसद को 5 करोड़ साल और विधायक को 1.85 करोड़ साल मिलते हैं
क्षेत्र के विकास के लिए सांसद को हर साल 5 करोड़ रुपए और विधायक को 1.85 करोड़ रुपए दिए जाते हैं। इस हिसाब से देखें तो सांसद को 5 साल में 25 करोड़ रुपए ही मिलते हैं। जबकि जिला पंचायत में इससे 3 गुनी ज्यादा राशि मिलती है। सीधे तौर पर कहें तो जिले में गांव सरकार का बजट विधायक और सांसदों से ज्यादा होता है।
जानिए किस जिला पंचायत ने कितने रुपए खर्च किए
जिला पंचायत | खर्च राशि |
मुरैना | 86.87 करोड़ |
जबलपुर | 79.70 करोड़ |
दतिया | 37.90 करोड़ |
विदिशा | 45.66 करोड़ |
भोपाल | 14.55 करोड़ |
भिंड | 28.49 करोड़ |
छतरपुर | 14.05 करोड़ |
छिंदवाड़ा | 20.32 करोड़ |
अलीराजपुर | 15 करोड़ |
अशोक नगर | 11.07 करोड़ |
नर्मदापुरम | 25.74 करोड़ |
देवास | 25.48 करोड़ |
खरगोन जिला पंचायत के अकाउंट में 44 करोड़ का बैलेंस
दंगों वाले खरगोन में 20.27 करोड़ रुपए के विकास कार्य करवाए गए। यहां सबसे ज्यादा पैसे सीसी रोड और आंगनवाड़ियों के निर्माण पर खर्च हुए हैं। सबसे ज्यादा 44 करोड़ रुपए का बैंक बैलेंस भी खरगोन जिला पंचायत के अकाउंट में है। ग्वालियर जिला पंचायत के अकाउंट में 5.13 करोड़ रुपए रखे हुए हैं।