शिवराज का कद घटा, दलित नेता जटिया का बढ़ा ….?

भाजपा संसदीय बोर्ड में MP से चेहरा बदला, विश्लेषक बोले- यह मोदी की चुनावी रणनीति का हिस्सा….

भाजपा ने अपने संसदीय बोर्ड के सदस्यों के नाम का ऐलान किया है। संसदीय बोर्ड में कुछ नए चेहरों को जगह दी गई है। इसमें 9 साल बाद मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को बाहर कर दिया गया है। उनकी जगह प्रदेश के दलित नेता सत्यनारायण जटिया को जगह मिली है। शिवराज भाजपा के सबसे सीनियर मुख्यमंत्री हैं। इस कारण वे पिछले 9 साल से संसदीय बोर्ड के सदस्य थे। इस बार संघ के करीबी माने जाने वाले और 7 बार उज्जैन से सांसद रहे जटिया को उनकी जगह शामिल किया गया है। जानकार मान रहे है कि मप्र में अगले साल होने वाले चुनाव की तैयारी में भाजपा अपना चेहरा बदलना चाहती है।

मुख्यमंत्री बनने के पहले कार्यकाल में शिवराज करीब आठ महीने पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष भी रहे। एक बार वे संसदीय बोर्ड में सदस्य भी रह चुके हैं। बीजेपी के सबसे लंबे समय तक मुख्यमंत्री बनने का रिकॉर्ड बनाने वाले शिवराज के राजनीतिक कद को देखते हुए संसदीय बोर्ड से बाहर होने पर विश्लेषक हैरान हैं। यह बदलाव ऐसे समय किया गया है जब अगले साल मप्र में विधानसभा चुनाव होना है।

तब पीएम पद के लिए शिवराज का भी था नाम
वरिष्ठ पत्रकार व राजनीतिक विश्लेषक अरुण दीक्षित कहते हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 15 अगस्त को लाल किले की प्राचीर से भाई-भतीजावाद और परिवारवाद को लेकर जो संदेश दिया, उसके पीछे पार्टी के बड़े नेताओं के लिए संकेत हैं। चुनावी राजनीति के नजरिए से देखें तो शिवराज सिंह चौहान भले ही नरेंद्र मोदी के बाद मुख्यमंत्री बने हों, लेकिन सांसद उनसे (नरेंद्र मोदी) पहले बने थे। विदिशा से अटल बिहारी वाजपेयी की सीट खाली होने के बाद शिवराज सांसद बने थे। दीक्षित कहते हैं कि 2014 में लालकृष्ण आडवाणी ने प्रधानमंत्री पद के लिए जो नाम सुझाए थे, उनमें शिवराज सिंह चौहान का भी नाम था। ऐसा पहली बार हुआ है, जब संसदीय बोर्ड में अनुभवी नेताओं को जगह नहीं दी गई है। केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी को संसदीय बोर्ड से बाहर करना तो यही दर्शाता है।

यह पीएम की किसी चुनावी रणनीति का हिस्सा
बीजेपी के एक सीनियर लीडर ने नाम जाहिर नहीं करने की शर्त पर कहा- बीजेपी अब नए पैटर्न पर काम कर रही है। खासकर प्रधानमंत्री के फैसलों पर कोई सवाल उठाया ही नहीं जा सकता। ऐसा पहली बार हुआ है, जब किसी भी मुख्यमंत्री को बोर्ड में शामिल नहीं किया गया हो। यह उनकी (नरेंद्र मोदी) की किसी चुनावी रणनीति का हिस्सा भी हो सकता है।

2014 में संसदीय बोर्ड के सदस्य बने थे शिवराज
शिवराज सिंह चौहान पहली बार 2014 में संसदीय बोर्ड के सदस्य बने थे। तब से अब तक वे लगातार बोर्ड में रहे। इस दौरान वे बोर्ड के सचिव भी बने। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने बीजेपी अध्यक्ष के अपने कार्यकाल के दौरान शिवराज सिंह चौहान को संसदीय बोर्ड में शामिल किया था। एक सच ये भी है कि बीजेपी की इस सर्वोच्च नीति निर्धारक बॉडी में बीजेपी शासित राज्यों का कोई भी सीएम शामिल नहीं है। कारण जो भी हो, लेकिन इतना तय है कि पार्टी में चौहान का कद घटा है।

2023 में है बदलाव की आहट
एमपी में विधानसभा चुनाव में बस एक साल ही बचा है। सरकार और संगठन दोनों चुनावी मोड में है। उससे पहले शिवराज सिंह चौहान की छुट्टी को लेकर कई कयास लगाए जा रहे हैं। इसके साथ ही कई सवाल भी उठ रहे हैं। क्या बीजेपी इस बार एमपी में चेहरा बदलना चाहती है या फिर शिवराज सिंह चौहान के सहारे ही पार्टी आगे बढ़ेगी। इस बार पार्टी महापौर चुनाव में 16 में से 7 सीटों पर चुनाव हार गई है।

जामवाल की एमपी-छग में एंट्री भी संकेत
मध्यप्रदेश-छत्तीसगढ़ में अगले साल चुनाव है। इसके मद्देनजर बीजेपी ने क्षेत्रीय संगठन मंत्री अजय जामवाल को दोनों राज्यों की जिम्मेदारी सौंपी है। बीजेपी सूत्रों का कहना है कि जामवाल जब पहली बार रायपुर गए, उसके चार दिन बाद ही बीजेपी अध्यक्ष विष्णु देव साय की छुट्‌टी कर दी गई। उनके स्थान पर सांसद अरुण साव को छत्तीसगढ़ का प्रदेश अध्यक्ष बना दिया गया। ऐसे ही कुछ बदलाव मध्यप्रदेश में देखने को मिल सकते हैं। शिवराज का संसदीय बोर्ड से बाहर होना तो यही दर्शाता है।

जटिया बनेंगे दलित चेहरा
एमपी से शिवराज सिंह चौहान की जगह पूर्व मंत्री सत्यनारायण जटिया को मौका मिला है। जटिया संघ के करीबी हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भी जटिया के मधुर संबंध हैं। दो साल पहले उन्होंने पूरे परिवार के साथ संसद भवन में पीएम से मुलाकात की थी। सत्यनारायण जटिया उज्जैन से सात बार सांसद रहे हैं। इसके साथ ही वह एक बार राज्यसभा के सदस्य भी रहे हैं। पार्टी ने उन्हें इस बार राज्यसभा नहीं भेजा था, अब उन्हें केंद्रीय चुनाव समिति में शामिल किया है। जटिया दलित वर्ग से आते हैं। इससे पहले थावरचंद गहलोत संसदीय बोर्ड में थे, लेकिन कर्नाटक का राज्यपाल बनाए जाने के बाद वे पार्टी के किसी भी पद पर नहीं हैं। गहलोत की भरपाई जटिया करेंगे, वैसे भी बीजेपी को मध्यप्रदेश में एक दलित चेहरे की तलाश थी।

शिवराज ने दी बधाई

बीजेपी संसदीय बोर्ड में बदलाव के बाद राजनीति तेज हो गई है। शिवराज सिंह चौहान विरोधियों के निशाने पर हैं। सीएम ने नई टीम को बधाई दी है। शिवराज सिंह चौहान ने ट्वीट कर कहा है कि बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा द्वारा गठित केंद्रीय संसदीय बोर्ड और केंद्रीय चुनाव समिति में सम्मिलित सभी गणमान्य सदस्यों को आत्मीय बधाई और शुभकामनाएं।

अटल बिहारी के इस्तीफे के बाद सांसद बने थे शिवराज
विदिशा लोकसभा सीट से साल 1991 में तत्कालीन सांसद अटल बिहारी वाजपेयी ने अपनी सीट से त्यागपत्र दे दिया था। इसके बाद शिवराज सिंह चौहान ने यहां से लोकसभा का उपचुनाव लड़ा और जीत दर्ज कर संसद पहुंचे थे। उन्होंने 1996 में हुए 11वीं लोकसभा के चुनाव के दौरान फिर विदिशा से चुनाव लड़ा और जीत दर्ज की। इसके बाद 1998 में तीसरी बार विदिशा से ही सांसद चुने गए। इसके एक साल बाद 1999 में हुए 13वीं लोकसभा के चुनाव के दौरान शिवराज चौथी बार सांसद बने। इस चुनाव के बाद केंद्र में भाजपा समर्थित एनडीए की सरकार सत्ता में आई। इस दौरान शिवराज सिंह चौहान केंद्र सरकार की ओर से गठित की गई विभिन्न समितियों के सदस्य भी रहे।

2004 में हुए 14वें लोकसभा चुनाव के दौरान शिवराज पांचवीं बार सांसद चुने गए। साल 2005 में शिवराज सिंह चौहान को प्रदेश भाजपा का अध्यक्ष बनाया गया। 29 नवंबर 2005 को जब बाबूलाल गौर ने अपने पद से इस्तीफा दिया तो शिवराज पहली बार मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री बने। इसके अगले ही साल उन्होंने बुधनी विधानसभा क्षेत्र से उपचुनाव लड़ा और जीत दर्ज की।

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