कौन अधिकारी इतना साहसी होगा, जो बड़े आर्थिक सुधारों की फाइल पर दस्तखत करेगा?

क्या एच.सी. गुप्ता का नाम सुनकर आपको कुछ याद आता है? वे मेरे कोई रिश्तेदार नहीं हैं, लेकिन ये कोई साधारण एच.सी. गुप्ता नहीं हैं। ये 1971 बैच के आईएएस हैं, जो केंद्र के कोयला सचिव पद तक पहुंचे और कोयला खदानों के आवंटन के तथाकथित घोटाले में दायर 12 में से 11 मामलों में दोषी ठहराए जाने पर जेल भेजे गए। यहां चार बातों को रेखांकित करना जरूरी है।

पहली, जिन 11 मामलों में उन्हें सजा दी गई उनमें से एक में भी उन्हें अपने लिए कोई लाभ अर्जित करने का दोषी नहीं पाया गया। दूसरी बात, उन 11 में से किसी मामले में अंतिम फैसला करने वाले अधिकारी वे नहीं थे। फैसला जांच समिति ने किया था। तीसरी बात, उनके पास से आय से ज्यादा कमाई गई कोई संपत्ति नहीं बरामद की गई।

एक बार उन्होंने अदालत में यहां तक कहा कि उनके पास वकीलों को देने के लिए भी पैसे नहीं हैं। और चौथी बात यह कि भ्रष्टाचार के लिए सजा पाए व्यक्ति को आम तौर पर उनके साथी भुला देते हैं, लेकिन गुप्ता के मामले में लोगों ने न केवल उनके पक्ष में आवाज उठाई बल्कि उनके कानूनी बचाव के लिए पैसे जमा किए। रिटायर हो चुके गुप्ता 74 साल के हो चुके हैं। 2010-13 के घोटाला मौसम का साया आज भी भारतीय राजनीति और अर्थव्यवस्था पर अभिशाप की तरह छाया हुआ है।

यह कितना गंभीर है यह इस महीने के शुरू में स्पष्ट हो गया, जब 5-जी स्पेक्ट्रम के आवंटन के लिए बोलियां और भुगतान की प्रक्रिया खत्म हुई। नीलामी से 1.5 लाख करोड़ रु. आए। विपक्ष ने भाजपा को याद दिलाया कि 2007 में जब 2-जी स्पेक्ट्रम की बोली लगाई गई थी तब तो बहुचर्चित कैग रिपोर्ट में उसका कुल मूल्य 1.76 लाख करोड़ आंका गया था, इस लिहाज से 5-जी में तो घाटा ही हुआ।

यानी अगर 2-जी के ‘इतने-से’ का मूल्य 1.76 लाख करोड़ था तो 5-जी के ‘इतने बड़े’ से कम आमदनी कैसे हुई, जबकि इस बीच अर्थव्यवस्था और टेलीकॉम सेक्टर में भारी विकास हुआ और डॉलर भी दोगुना महंगा हो गया है? जरूर कोई घोटाला हुआ है। मैं तो यही कहूंगा कि अब तक जो सबूत सामने आए हैं, उनके हिसाब से तो यह नीलामी साफ-सुथरी थी। लेकिन मुद्दा यह है कि अगर आज एक स्वच्छ नीलामी से जो कीमत मिली है, उसमें घोटाला नहीं है तो क्या इसके एक हिस्से की नीलामी का 2007 में जो मूल्य आंका गया वह कोई घपला नहीं था?

इस काल्पनिक गणित को मनमाने ढंगे से प्रचारित करने की क्या कीमत टेलीकॉम सेक्टर और अर्थव्यवस्था को चुकानी पड़ी? वह काल्पनिक नहीं था तो पैसा कहां है? तब तो इस ताजा नीलामी से 10 लाख करोड़ हासिल होने चाहिए थे। 2012 में जब कैग को अपनी रिपोर्ट को संसद में रखना चाहिए था, तब उसने प्रेस कॉन्फ्रेंस करके बड़ी शान से घोषणा की थी कि उसने 2-जी से भी कई गुना बड़े घोटाले को पकड़ा है।

‘कोलगेट’ नाम से कुख्यात उस कोयला घोटाले का शुरुआती मूल्य 10.7 लाख करोड़ आंका गया था। इसलिए 5-जी की बिक्री से मैंने अगर ‘अनुमानित’ 10 लाख करोड़ की आमदनी का अंदाजा लगाया तो इसे अनुचित नहीं कहा जा सकता। कुछ ‘शून्य’ अगर दोस्तों में बांट दिए गए तो क्या हुआ? इसके लिए आपको सिर्फ साहसिक जोड़-घटाव करने की जरूरत है।

सुप्रीम कोर्ट ने 1993 के बाद से किए गए खदानों के सभी आवंटन को रद्द कर दिया और सीबीआई जांच का आदेश देते हुए घोषणा की कि आगे कभी नए सिरे से आवंटन किए जाएंगे। इस बवंडर में कुछ लोग फंसे, पर नेता और कॉर्पोरेट बच गए। कैग के स्वर्णकाल में, जैसा कि तमाम दूसरे ‘घोटालों’ के मामले में हुआ, कोई पैसा बरामद नहीं किया गया। 2-जी मामले में हर कोई बरी हो गया। 2010 के राष्ट्रमंडल खेलों में कथित 75,000 करोड़ के घोटाले में किसी को सजा नहीं दी गई।

एंट्रिक्स-देवास कांड के नाम से कुख्यात कथित घोटाला 9 लाख करोड़ का था। लेकिन उसमें आज तक शून्य बरामदगी हुई है और भारत को अंतरराष्ट्रीय पंचाट के तहत 1.2 अरब डॉलर का हर्जाना भरने के लिए कहा गया था। इस सौदे में गड़बड़ियों का आरोप इसरो के जिस चीफ पर लगा था, उन्हें 2018 में भाजपा ने अपना सदस्य बना लिया।

केवल ‘कोलगेट’ में ही कुछ ऐसे लोगों को सजा हुई, जो निर्णय करने वालों में निचले स्तर पर थे। एच.सी. गुप्ता उनमें प्रमुख हैं। उनकी बदकिस्मती को देखते हुए अब कौन अधिकारी इतना साहसी होगा, जो बड़े आर्थिक सुधारों की फाइल पर दस्तखत करेगा?

समस्या पुराना भ्रष्टाचार निरोधक कानून है, जिसे यूपीए सहित विभिन्न सरकारों ने ज्यादा से ज्यादा क्रूर बना दिया। इसकी एक धारा के अनुसार आपको बिना कोई अपराध किए भी अपराधी माना जा सकता है।

(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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