ट्विन टावर करप्शन 11 मंजिल के बाद 32 तक बनाने के लिए अनुमति ही नहीं ली; अफसरों ने 3 बार बदल डाले नियम
ट्विन टावर करप्शन के स्पेशल-26:11 मंजिल के बाद 32 तक बनाने के लिए अनुमति ही नहीं ली; अफसरों ने 3 बार बदल डाले निय
सुप्रीम कोर्ट ने कहा था- प्राधिकरण और सुपरटेक की मिलीभगत से बने टावर
पहले जानिए कि सुप्रीम कोर्ट ने इन टावर को लेकर क्या टिप्पणी की थी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था, “ये नोएडा प्राधिकरण और सुपरटेक के बीच मिलीभगत का नतीजा था। कंपनी नोएडा प्राधिकरण और केंद्रीय भवन अनुसंधान संस्थान जैसे विशेषज्ञ निकाय की देख-रेख में अपने खर्च पर टावर को गिराएगी।”
योगी सरकार की जांच में 26 जिम्मेदार
नोएडा ट्विन टावर की जांच यूपी सीएम योगी आदित्यनाथ ने करवाई थी। इसमें प्राधिकरण के अधिकारी, कर्मचारी, बिल्डर और ऑर्किटेक्ट समेत 26 लोगों पर कार्रवाई की गई। ये कहानी 2004 में सुपरटेक को हाउसिंग सोसाइटी बनाने के लिए प्लाट आवंटित करने से शुरू होती है।
नोएडा अथॉरिटी बोर्ड बैठक में मैप संशोधन पास करती रही
- ये कहानी 23 नवंबर, 2004 से शुरू होती है। राज्य में बसपा सरकार थी। नोएडा अथॉरिटी ने सेक्टर 19-ए में प्लाट नंबर 4 को एमराल्ड कोल्ड के लिए आवंटित किया था। आवंटन के साथ ही ग्राउंड फ्लोर समेत 9 मंजिल के 14 टावर बनाने की पहली अनुमति मिली थी।
- आवंटन के 2 साल बाद 29 दिसंबर 2006 को पहला संशोधन किया गया। नोएडा अथॉरिटी के CEO मोहिंदर सिंह के नेतृत्व में एक बोर्ड कमेटी की बैठक हुई। इसमें ये फैसला लिया गया कि सुपरटेक को 9 की जगह 11 मंजिल तक फ्लैट बनाने की अनुमति दी जाए। इसके बाद 15 टावर बनाने की अनुमति हुई।
- दूसरा संशोधन 3 साल के बाद 2009 में होता है। 26 नवंबर 2009 को नोएडा अथॉरिटी की बैठक होती है। इसके सीईओ एसके द्विवेदी होते हैं। 17 टावर बनाने का नक्शा पास कर दिया जाता है। इसके बाद यह अनुमति लगातार बढ़ती जाती है।
- तीसरी बार 2 मार्च 2012 को टावर नंबर 16 और 17 के लिए फिर से संशोधन किया जाता है। इन दोनों टावरों को 40 मंजिल तक करने की अनुमति दी जाती है। इसकी ऊंचाई 121 फीट तय कर दी गई थी। दोनों के बीच की दूरी भी 9 मीटर रखी गई। जबकि या मानक के अनुरूप 16 मीटर से कम नहीं होनी चाहिए थी।
अब आपको गड़बड़ियों के बारे में बताते हैं…
2009 से शुरू हुई नियमों की अनदेखी, ये अफसर रहे तैनात
सुपरटेक के नक्शे में दिसंबर 2006 में पहली बार बदलाव को मंजूरी दी गई थी। उस समय संजीव शरण सीईओ थे। दूसरी बार मैप में बदलाव नवंबर 2009 में किया गया। तब मोहिंदर सिंह सीईओ थे। नोएडा अथॉरिटी के सीईओ मोहिंदर सिंह के समय रहे पहले सपा सरकार में नियमों की अनदेखी शुरू हुई।
सुपरटेक को साढ़े 13 एकड़ जमीन आवंटित की गई थी। परियोजना का 90% यानी करीब 12 एकड़ हिस्से पर 2009 में ही निर्माण पूरा कर लिया गया था। 10% हिस्से को ग्रीन जोन दिखाया गया। 2011 आते-आते दो नए टावरों के बनने की खबरें आने लगी।
12 एकड़ में जितना निर्माण किया गया। उतना एफआरए का खेल कर दो गगनचुंबी इमारतों के जरिए 1.6 एकड़ में ही करने का काम तेजी से जारी रखा गया। अंदाजा लगाया जा सकता है कि 12 एकड़ में 900 परिवार रह रहे हैं। इतने ही परिवार एक 1.6 एकड़ में बसाने की तैयारी थी। अंतिम बार जब मार्च 2012 में मानचित्रों के बदलाव को मंजूरी दी गई तो कैप्टन एसके द्विवेदी सीईओ थे।
जब शिकायतों की शुरुआत हुई तो रमा रमण नोएडा के सीईओ बन चुके थे। खास बात ये है कि ये चारों IAS अफसर अब रिटायर हो चुके हैं। इनके कार्यकाल के दौरान ही प्राधिकरण की तमाम बड़ी पॉलिसी बदली गई हैं।
खबर में आगे बढ़ने से पहले आपको ट्विन टावर में हुए करप्शन के जिम्मेदार 26 को जानिए….
अधिकारी | तत्कालीन जिम्मेदारी | वर्तमान |
मोहिंदर सिंह | CEO नोएडा प्राधिकरण | रिटायर्ड |
एस.के. द्विवेदी | CEO नोएडा प्राधिकरण | रिटायर्ड |
आर.पी.अरोड़ा | अपर CEO नोएडा प्राधिकरण | रिटायर्ड |
यशपाल सिंह | विशेष कार्याधिकारी, प्राधिकरण | रिटायर्ड |
स्व. मैराजुद्दीन | प्लानिंग असिस्टेंट, प्राधिकरण | रिटायर्ड |
ऋतुराज व्यास | सहयुक्त नगर नियोजक, प्राधिकरण | प्रभारी महाप्रबंधक,यमुना प्राधिकरण |
एस.के. मिश्रा | नगर नियोजक, प्राधिकरण | रिटायर्ड |
राजपाल कौशिक | नगर नियोजक, प्राधिकरण | रिटायर्ड |
त्रिभुवन सिंह | मुख्य वास्तुविद नियोजक, प्राधिकरण | रिटायर्ड |
बाबूराम | परियोजना अभियंता, प्राधिकरण | रिटायर्ड |
शैलेंद्र कैरे | उप महाप्रबंधक ग्रुप हाउसिंग | रिटायर्ड |
टी.एन. पटेल | प्लानिंग असिस्टेंट, प्राधिकरण | रिटायर्ड |
वी.ए. देव पुजारी | मुख्य वास्तुविद नियोजक, प्राधिकरण | रिटायर्ड |
अनीता | प्लानिंग असिस्टेंट, प्राधिकरण | उ.प्र.राज्य औद्योगिक विकास प्राधिकरण |
एन.के. कपूर | एसोसिएट आर्किटेक्ट, प्राधिकरण | — |
स्व. डी.पी. भारद्वाज | प्लानिंग असिस्टेंट, प्राधिकरण | रिटायर्ड |
राजेश कुमार | विधि सलाहकार, प्राधिकरण | रिटायर्ड |
ज्ञानचंद | विधि अधिकारी, प्राधिकरण | रिटायर्ड |
मुकेश गोयल | नियोजन सहायक, प्राधिकरण | प्रबंधक नियोजक, गीडा |
प्रवीण श्रीवास्तव | सहायक वास्तुविद, प्राधिकरण | रिटायर्ड |
विमला सिंह | सहयुक्त नगर नियोजक, प्राधिकरण | — |
विपिन गौड़ | महाप्रबंधक | रिटायर्ड |
एम.सी. त्यागी | परियोजना अभियंता, प्राधिकरण | रिटायर्ड |
के.के. पांडेय | मुख्य परियोजना अभियंता, प्राधिकरण | — |
पी.एन. बाथम | अपर मुख्य कार्यपालक अधिकारी, प्राधिकरण | — |
ए.सी सिंह | वित्त नियंत्रक, प्राधिकरण | रिटायर्ड |
करप्शन में शामिल माने गए 20 अधिकारी रिटायर हो चुके हैं। इनमें 2 की मौत हो गई है। आइए इनके बारे में आपको बताते हैं…
3 CEO ने सुपरटेक को फायदा पहुंचाया, 23 अधिकारियों ने नियम तोड़े
करीब 15 साल से चले आ रहे सुपरटेक ट्विन टावर के मामले में जब सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया तब योगी आदित्यनाथ ने पूरे मामले में एक SIT जांच बैठाई। सीएम के निर्देश पर बैठाई गई जांच का नेतृत्व औद्योगिक विकास आयुक्त रहे संजीव मित्तल के समय 4 सदस्यों की समिति ने किया था।
नाम न छापने की शर्त पर समिति में शामिल एक अधिकारी ने बताया कि 2009 के बाद से ट्विन टावर बनाने को लेकर बड़ी गड़बड़ी सामने आई। अधिकारियों ने बोर्ड कमेटी में नियमों के खिलाफ सुपरटेक ट्विन टावर बनाने की अनुमति दी थी। तीन तत्कालीन सीईओ की भूमिका सुपरटेक को लाभ पहुंचाने में पाई गई थी। इसके अलावा अन्य 23 अधिकारियों की भूमिका इस प्रोजेक्ट को पास करने में नियमों के विपरीत पास किया।
जिसमें प्लानिंग से लेकर मानचित्र पास करने तक विधि सलाहकार तक ने अपनी सहमति दी थी।
जांच में सामने आए अधिकारी में कोई भी जेल नहीं भेजा गया
SIT ने नोएडा अथॉरिटी के 26 पूर्व और मौजूदा अधिकारियों को दोषी ठहराया है। उनमें से 20 अधिकारी रिटायर हो चुके हैं, जबकि दो की मौत हो गई है। चार मौजूदा अधिकारियों की मामले में मिलीभगत मिली है। जिसके बाद उन्हें निलंबित कर दिया गया। इसमें से एक अधिकारी पहले से ही निलंबित चल रहे थे। वहीं, सुपरटेक के 4 निवेशकों और दो आर्किटेक्ट भी दोषी पाए गए हैं। इनके खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करवाई गई है। इस मामले में संलिप्त ऐसे 4 अधिकारी हैं, जो मौजूदा समय में अलग-अलग अथॉरिटी में अपनी सेवाएं दे रहे थे। उन्हें निलंबित करके कार्रवाई की गई। इस आरोप में जेल में कोई भी अधिकारी नहीं है।