राजनीति बुरी हो तो जीवन का हर पहलू बुरा होने लगता है
कहा जा सकता है कि राजनीति, पूरे जीवन का थर्मामीटर है। अगर अच्छे लोगों के हाथों में सत्ता या राजनीति आ जाए तो अभूतपूर्व और शुभ परिवर्तन होने लगते हैं। लेकिन इसका उल्टा हो जाए तो क्या होगा? इसे कुछ इस तरह समझना होगा। बुरा आदमी बुरा सिर्फ इसलिए है क्योंकि वह अपने स्वार्थ के अतिरिक्त कुछ नहीं देखता। कुछ नहीं सोचता।
इसी तरह अच्छा आदमी इसलिए अच्छा है क्योंकि वह अपने स्वार्थ के बजाय दूसरों के हित को प्राथमिकता देता है। फिलहाल राजनीति में केवल अपना स्वार्थ देखा जा रहा है। वह व्यक्तियों, नेताओं का निहित स्वार्थ बनकर रह गई है। अब देखते हैं कि राजनीति जीवन का थर्मामीटर कैसे है? बुरा आदमी सत्ता में जाने के लिए तमाम बुरे साधनों का उपयोग करता है… और सत्ता में जाने के लिए एक बार अगर बुरे साधनों का इस्तेमाल होने लगे तो जीवन की सभी दिशाओं में बुरे साधन प्रयुक्त होने लगते हैं।
फिर जब एक राजनेता बुरे साधनों का प्रयोग करके मंत्री बन जाए, तो एक गरीब आदमी बुरे साधनों का प्रयोग करके अमीर क्यों नहीं हो सकता? तर्क यह हो जाता है। जब एक नेता बुरे साधनों का प्रयोग करके चुनाव जीत सकता है तो एक शिक्षक के ऐसे ही रास्ते पर चलकर वाइस चांसलर होने में क्या बुराई है? एक दुकानदार का बुरे साधनों के जरिए करोड़पति या उद्योगपति बनना क्या बुरा है? ऐसे में तर्क बुरे को अच्छा साबित कर देते हैं। कर भी रहे हैं।
तुलनाएं बेशक जीवन को ऊर्जा देती होंगी लेकिन अधिक बुरा और कम बुरा कुछ नहीं होता। बुरा आखिर बुरा ही होता है। कुल मिलाकर राजनीति में अगर बुरा व्यक्ति है तो वो जीवन के सभी क्षेत्रों में बुरा होने लगता है। ऐसे में बुरा आदमी सफल होने लगता है और अच्छा व्यक्ति असफल होता जाता है। किसी देश, समाज, शहर, कस्बे या गांव के लिए सबसे बुरी बात यही होती है कि वहां का अच्छा व्यक्ति असफल होने लग जाए।
आज राजनीति की हालत यह है कि बुरा आदमी सफल हो या न हो, लेकिन भला होना असफलता की पक्की गारंटी है। यही स्थिति बदलनी है। बदलनी ही होगी। क्योंकि राजनीति जितनी स्वस्थ होगी, जीवन के सारे पहलू उतने ही स्वस्थ और शुभ होंगे। क्योंकि राजनीति सबसे ताकतवर होती है। ताकत अगर अशुभ हो जाए तो फिर कमजोरों को अशुभ होने से रोका नहीं जा सकता।
जैसे अंग्रेज अगर हम पर राज नहीं करते, उनकी जगह चीनी हम पर राज करते तो हम अंग्रेजों के बजाय चीनियों की नकल करने लगते। सत्ता में जो होता है उसकी सब नकल करने लगते हैं। अंग्रेज हमारे यहां सत्ता में थे इसलिए हमने उनके जैसे कपड़े पहनने शुरू कर दिए। यह सत्ता की नकल थी। सत्ता जैसी होती है, लोग वैसे होने लगते हैं। किसी अनुयायी को एक बार पता लग जाए कि उसका मार्गदर्शक या नेता बेईमान है तो अनुयायी खुद को कब तक ईमानदार रख सकता है?
कुल मिलाकर, राजनीति का शुभ और ईमानदार होना अत्यावश्यक है… और इसे हम सब मिलकर संभव बना सकते हैं। क्योंकि वोट हमारे हाथ में है। हम ही व्यक्ति को नेता, नेता को मंत्री बनाते हैं। अपनी ताकत को पहचानना ही बुद्धिमानी है। इसके बिना आप शुद्धता नहीं ला सकते। न राजनीति में, न ही सार्वजनिक जीवन में। तरह-तरह के लोग लगे हुए हैं राजनीति का सिरमौर बनने में। वे चाहे खुद को भावी किंगमेकर समझें या किंग, लेकिन तय हमें ही करना है कि कौन क्या बनेगा और क्यों बनेगा!
तरह-तरह के लोग लगे हैं राजनीति का सिरमौर बनने में। वे चाहे खुद को भावी किंगमेकर समझें या किंग, लेकिन तय हमें ही करना है कि कौन क्या बनेगा और क्यों बनेगा! अपनी ताकत को पहचानना ही बुद्धिमानी है।