अनजान लोगों से ऑनलाइन पेमेंट लेते हैं,तो हो जाएं अलर्ट!

खाते में रुपए तो आ जाएंगे, पर किसी काम के नहीं; संदिग्ध अलग बन जाएंगे …

अगर आप किसी अनजान शख्स से अपने खाते में ऑनलाइन पेमेंट ट्रांसफर कराते रहे हैं, तो अलर्ट हो जाएं, क्योंकि ऐसे में आप धोखेबाजों के जाल में फंस सकते हैं। चौंकिए नहीं, यह बिल्कुल सच है। आज हम आपको ऐसे ही एक नए तरीके के फ्रॉड से सावधान करने जा रहे हैं, जो आपके साथ कभी भी हो सकता है। ऐसे मामलों में जिसके साथ फ्रॉड हुआ, वह मुल्जिम समझा जा रहा है। और तो और.. फरियादी जिसे ठग बता रहा है, वह पूरी तल्खी के साथ कहता है कि ‘फ्रॉड तो मेरे साथ हुआ है। मेरी गृहमंत्री और DGP से बात हो गई है। जल्द ही सब रिकवर करा लूंगा।’ वहीं पुलिस भी असमंजस में है कि किसे पकड़े, किसे छोड़ें? है ना ये अनूठा मामला।

आइए, आपको सिलसिलेवार तरीके से बताते हैं कि आखिर क्या हुआ, कैसे हुआ, और क्या है पुलिस की उलझन

नागदा जंक्शन में एक दुकानदार हैं रवींद्र तंवर। वे साइबर सेल में एक शिकायत लेकर पहुंचे कि मेरी फास्ट फूड की दुकान है। 27 अगस्त की रात में दो लड़के मेरे पास आए। बोले- पास के अस्पताल में मेरी मां भर्ती है। 25 हजार रुपए की जरूरत है। अस्पताल का ऑनलाइन सर्वर काम नहीं कर रहा और पेटीएम स्कैनर भी खराब है। हमारे पास एटीएम कार्ड नहीं है। हमें कैश दे दीजिए, इसके बदले हम आपको ऑनलाइन पेमेंट कर देते हैं। रविंद्र के पास इतना कैश नहीं था। वे दोनों को टी-शॉप चलाने वाले अमित पोरवाल के पास लेकर पहुंचे। उन्होंने बताया कि मेरे पास 10 हजार रु. ही हैं। इतने में काम चलाना पड़ेगा।

इस पर दोनों लड़कों ने हामी भर दी। लड़कों ने ऑनलाइन ट्रांजेक्शन कर 10 हजार रुपए पहले रवींद्र के खाते में ट्रांसफर किए। ट्रांजेक्शन ओके होते ही रवींद्र ने 10 हजार रु. कैश उन लड़कों को दे दिया। कुछ देर बाद रवींद्र ने भी कैश देने वाले अपने दोस्त अमित के खाते में यह रकम ट्रांसफर कर दी। यह सब उसी रात हो गया। लड़के चले गए, दोनों व्यापारी दोस्त अपने-अपने घर आ गए। लेकिन किस्सा यहां खत्म नहीं हुआ, दरअसल असली किस्सा तो यहां से शुरू होता है…

28 को संडे था, रवींद्र बेफिक्र थे
रवींद्र इस बात से खुश थे कि उन्होंने किसी जरूरतमंद की मदद कर दी है। अगले दिन रविवार था, उन्हें रुपए की जरूरत नहीं पड़ी। न उन्हें इस बात का आभास था कि उनके साथ कुछ गड़बड़ हो गई है। तीसरे दिन सोमवार को उन्हें 25,500 रुपए किसी को देने थे। खाते में 35000 रुपए दिख भी रहे थे। लेकिन, गूगल पे से ट्रांजेक्शन फेल हो गया। मैसेज आया- आपके अकाउंट में सफिशिएंट बैलेंस नहीं है। यह देखकर वे सोच में पड़ गए कि कुछ गड़बड़ होगी। बार-बार कोशिश करने पर भी ट्रांजेक्शन सक्सेसफुल नहीं हुआ तो उनका माथा ठनका।

ऐसे सामने आई फ्रॉड की कहानी…
…….सीधे अपने बैंक पहुंचे। यहां उन्हें पता चला कि आपके खाते में जमा हुए 10 हजार रुपए साइबर सेल की तरफ से होल्ड करा दिए गए हैं। यह सुनकर वे हैरान हो गए, ऐसा क्यों। उन्हें बताया गया कि जिस खाते से आपके खाते में 27 अगस्त को राशि जमा हुई थी, उसके खाताधारक ने शिकायत की है कि यह राशि मेरी है, फ्रॉड करके इस खाते में जमा हुई है, इसे वापस दिलाया जाए।

………रह गए। इसके बाद उन्होंने थाने पहुंचकर शिकायत की। उन्होंने बैंक का स्टेटमेंट भी निकलवा लिया था। जिस नंबर से लड़कों ने 10 हजार रुपए ट्रांसफर किए थे, उस नंबर पर कॉल किया। कॉल रिसीव करने वाले ने खुद को दिल्ली का बताया। नाम प्रबेश बताया और पूरे कॉन्फिडेंस के साथ बात की। बोला- वह उज्जैन महाकाल के दर्शन करने आया था और 27 अगस्त की सुबह 6 बजे विक्रमगढ़ में ट्रेन से उसका मोबाइल चोरी हो गया। इसकी शिकायत उसने नागदा रेलवे थाने में भी की है। वापस दिल्ली आकर अपने नंबर की दूसरी सिम निकलवाई और साइबर सेल में शिकायत कर मोबाइल से हुए ट्रांजेक्शन को रुकवाया है। उसने यह भी बताया कि वह वकील राम जेठमलानी का पीए रह चुका है। मंत्री से भी बात हो गई है, सब जल्दी रिकवर करा लूंगा। ठग युवकों ने मेरे मोबाइल से 27 और जगह रुपए ट्रांजेक्शन किए हैं।

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ये भी जान लीजिए
अब आपके मन में ये सवाल जरूर आ रहा होगा कि युवकों ने मोबाइल चुराया, तो उसे खोला कैसे और खोल लिया तो ऑनलाइन पेमेंट एप का पासवर्ड कहां से मिला। लोग मोबाइल स्क्रीनलॉक के लिए अमूमन Z, C या N या 1 2 3 4 जैसे आसान से पासवर्ड रखते हैं। इसकी वजह बार-बार मोबाइल ओपन करने की आदत सी बन गई है। यदि मोबाइल वाकई चोरी हुआ है तो यही होगा। दिल्ली में जिस व्यक्ति ने नागदा में मोबाइल चोरी हो जाने की बात कही है। वह यही कह रहा है कि मैंने आसान पास वर्ड 1, 2, 3, 4 रखा था। इसीलिए खुल गया होगा।

फोन अनलॉक होने के बाद बदमाशों ने ऑनलाइन पेमेंट एप खोला। इसमें भी यही पैटर्न डाला क्योंकि पैटर्न और स्क्रीन लॉक एक ही होता है। अब रही बात एप ट्रांजेक्शन के पासवर्ड की तो मोबाइल में मौजूद सिम एप से लिंक होती है। उसकी मदद से पासवर्ड भूल गया.. वाली एप्लीकेश को अप्लाई कर दिया। चूंकि सिम लिंक है इसलिए उसी मोबाइल पर ओटीपी आ गय। इसके जरिए नया पासवर्ड जनरेट कर लिया गया।

दूसरी स्थिति यह है कि यदि दिल्ली का शिकायतकर्ता ही फ्रॉड करने वाला व्यक्ति है तो और उलझन है। क्योंकि उसे इतनी झंझट की जरूरत नहीं है। वह तो पैसा ट्रांजेक्शन करने के बाद आसानी से बैंक जाकर उसे मोबाइल गुम बताकर राशि फ्रीज करा सकता है।

अब समस्या क्या है

  • फरियादी के खाते में जो रकम फ्रीज हुई है, वह वापस करना होगी। यह तभी वापस लेनदेन में आएगी जब तक सही ठगों से यह राशि रिकवर न हो जाए। इसके चांसेज कम हैं क्योंकि ऑफलाइन राशि दी है। इसे कानूनी रूप से साबित करना ही सबसे बड़ी चुनौती होगी।
  • नागदा के फरियादी को यह भी पता नहीं है कि जिसने राशि फ्रीज कराई है, वह सही व्यक्ति है या उसी ने फ्रॉड किया है।
  • साइबर सेल और बैंक ने मिलकर 24 घंटे में शिकायत दर्ज करके राशि फ्रीज करने का जो तरीका निकाला, उससे एक फरियादी की राशि तो बच गई, लेकिन अनजान पर भरोसा करने वाले दूसरे को डबल चपत लग गई। यदि दिल्ली और नागदा वाले दोनों सही हैं तो। नागदा वाले के पास से कैश चला भी गया और जो आया था वह फ्रीज हो गया।

एक्सपर्ट व्यू: अनजान की मदद करें, तो फोटो आईडी की कॉपी जरूर लें

अब जानिए किस तरह साइबर क्रिमिनल लोगों को अपने जाल में फंसा चुके हैं…

फर्जी कॉल सेंटर बनाकर बेरोजगारों से ठगी
29 दिसंबर 2021 को भोपाल के बृज मोहन ताम्रकार ने साइबर क्राइम ब्रांच में शिकायत की थी। युवक ने बताया था कि उसको नौकरी डॉट कॉम नाम की कंपनी से एक महिला का फोन आया। महिला ने युवक को नेशनल कंपनी में नौकरी दिलाने की बात कही। साथ ही अपने सीनियर राहुल से भी बात करवाई। इसके बाद रजिस्ट्रेशन चार्ज समेत ट्रेनिंग चार्ज और प्रोसेसिंग चार्ज के नाम पर करीब 89 हजार रुपए ले लिए। क्राइम ब्रांच ने सबूत जुटाते हुए मई 2022 में नोएडा से तीन आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया। गिरोह ज्यादातर उन युवाओं को शिकार बनाता था, जो बेरोजगार होते हैं। ठगी के लिए पहले एक महिला फोन पर बात करती है। उसके बाद आगे की प्रक्रियाओं को बढ़ाने के लिए पैसे की मांग करती है। यही नहीं, बल्कि ठगी करने वाला गिरोह फेक मेल आईडी से फर्जी ऑफर लेटर भी भेजता था।

ग्वालियर में डॉक्टर को बनाया शिकार
मार्च 2022 में ग्वालियर के एक होम्योपैथिक डॉक्टर का डेबिट कार्ड गुम गया था। उन्होंने गूगल से कस्टमर केयर का नंबर निकाला। इस नंबर पर जिससे बात हुई उसने खुद को बैंककर्मी बताया। उसने कार्ड ब्लॉक कराने के लिए अकाउंट से जुड़ी डिटेल्स मांगी। OTP (वन टाइम पासवर्ड) पूछा। डॉक्टर के मोबाइल पर एनिडेस्क एप (इस एप के जरिए आप अपने मोबाइल से किसी दूसरे के मोबाइल पर काम कर सकते हैं।) डाउनलोड कराकर उनका मोबाइल खुद ऑपरेट करने लगा। इससे 3.46 लाख रुपए उनके अकाउंट से निकाल लिए। डॉक्टर ने समय रहते भांप लिया कि जिसका नंबर उन्होंने इंटरनेट से निकाला, वो बैंक के कस्टमर केयर का नहीं, ठग का था। डॉक्टर ने एक घंटे के अंदर स्टेट साइबर सेल में शिकायत की। साइबर सेल ने बैंक से बात कर 3.21 लाख रुपए फ्रीज करा दिए।

7 लोगों के गिरोह को पुलिस ने गिरफ्तार किया दो साल पहले भोपाल में एग्रीकल्चर कॉलेज में असिस्टेंट डायरेक्टर भावना पांडेय को साइबर ठगों ने निशाना बनाया। क्रेडिट कार्ड की लिमिट बढ़ाने के नाम पर उनके खाते से 80 हजार रुपए निकाल लिए। आरोपियों ने वॉट्सऐप पर फ्रॉड KYC, फ्रॉड मनी, फ्रॉड एयरटेल मनी के नाम से ग्रुप बना रखे थे। इन ग्रुप्स के माध्यम से आरोपी अन्य राज्यों के जालसाजों के संपर्क में लंबे समय से बने थे। उन्हें फर्जी आईडी या KYC सिम वॉलेट की आवश्यकता होती थी तो वह इस गिरोह से संपर्क करते थे। आरोपी फेक आईडी मेकर एप्लिकेशन की मदद से अपना ही फोटो लगाकर फर्जी आधार कार्ड, वोटर आईडी कार्ड तैयार कर लेते थे।क्रेडिट कार्ड की लिमिट बढ़ाने के नाम पर करते थे जालसाजी

 

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