यूपी का IAS/IPS वाला गांव ..!

यूपी का IAS/IPS वाला गांव, 60 घर में 47 अफसर:खेती के लिए जमीन नहीं थी इसलिए अफसर बनने लगे, त्योहारों पर नीली बत्ती से रोशन होता है गांव ..

जौनपुर का एक गांव है…माधोपट्टी। जिला मुख्यालय से महज 6 किलोमीटर दूर। गांव में कुल 60 घर हैं। वोटर लिस्ट में 830 लोगों का नाम दर्ज है। जो पहली बार सुनते हैं कि इस गांव से अब तक 47 IAS/IPS अधिकारी चुने गए हैं, तो उन्हें यकीन ही नहीं होता। मगर सच यही है।

खेती के लिए जमीन नहीं थी इसलिए शिक्षा पर ध्यान दिया
माधोपट्टी के 60 में से 55 घर राजपूत वर्ग के हैं। बिहार या फिर यूपी के अलग-अलग हिस्सों में आजादी से पहले बहुत जमीन होती थी। माधोपट्टी में ऐसा नहीं था। यहां के लोगों के पास जमीनें तो थीं, लेकिन इतनी नहीं कि उसी के सहारे जीवन आगे बढ़ाया जा सके। इसलिए लोगों ने शिक्षा की तरफ ज्यादा ध्यान दिया।

कार्तिक सिंह गांव के ही स्कूल में टीचर हैं। वह बताते हैं कि गांव में 8 लोग अभी UPSC की तैयारी कर रहे हैं।

1993 में UPSC के इंटरव्यू तक पहुंचे गांव के ही सरकारी टीचर कार्तिक सिंह बताते हैं, “ब्रिटिश काल में ही यहां के लोगों का ध्यान शिक्षा हासिल करने पर था। सबका उद्देश्य बड़ा अधिकारी बनना होता था। पढ़ाई के लिए पहले कोई गांव से बाहर नहीं गया। सब यहीं यूपी बोर्ड से ही पढ़े थे।”

IAS उद्देश्य था, पर PCS पर आकर अटक गए
कार्तिक बताते हैं, “1980 के बाद लोग तैयारी करने के लिए इलाहाबाद (अब प्रयागराज) में रहने लगे थे। मैंने भी 1991,1992 और 1993 में परीक्षा दी। उस वक्त गांव के 18 लोग परीक्षा में बैठे थे। सभी का लक्ष्य IAS बनना था, लेकिन कुछ लोग PCS पर आकर अटक गए।”

सबसे पहले और एकमात्र मुस्लिम अफसर बने थे मुस्तफा हुसैन
1914 में पहली बार इस गांव से मुस्तफा हुसैन अफसर बने थे। उसके बाद अफसर बनने का क्रम शुरू हो गया। हालांकि, गांव में मुस्तफा के बाद कौन अफसर बना, उसके बारे में कोई सही-सही नहीं बता सका। मगर, गांव के लोगों ने बताया कि मुस्तफा के बाद कोई मुस्लिम अफसर नहीं बना।

एक ही परिवार के चार भाई बन गए अधिकारी
आजादी के बाद 1952 में पहले अटेम्प्ट में इंदु प्रकाश सिंह IFS यानी इंडियन फॉरेन सर्विस के लिए सिलेक्ट हुए। कई देशों में राजदूत रहे। 1958 में उनके भाई विनय सिंह IAS बने। 1964 में उनके दो भाई क्षत्रपाल और अजय सिंह भी एक साथ IAS बन गए। यह निर्णायक साल था। इसके बाद गांव के हर युवा का एकमात्र लक्ष्य सिविल सेवा पास करने का हो गया।

7 साल पहले हुआ था आखिरी सिलेक्शन
2015 में माधोपट्टी में बहू बनकर आईं शिवानी सिंह ने UPPCS में पूरे यूपी में तीसरी रैंक हासिल की थी। हम उनके घर पहुंचे तो पता चला कि वह मंडी समिति, लखनऊ हेडक्वार्टर में नियुक्त हैं। उनके चाचा ध्यानचंद सिंह ने हमसे बात की। ध्यानचंद ने कहा, “परिवार में देवेंद्र नाथ सिंह पहले से IAS थे। प्रेम IPS थे। डॉ. राजेंद्र नाथ सिंह भाभा इंस्टीट्यूट में साइंटिस्ट थे। इसलिए सबको अच्छा गाइडेंस मिला।”

हमने उनसे पूछा, ”आप कैसे चूक गए?” ध्यानचंद ने बताया, “तैयारी में कुछ कमी रह गई, इसलिए आज ठेकेदार बन गए। बच्चों की शिक्षा पर ध्यान दिया। एक बेटा अक्षय सोलंकी स्टेट बैंक बेल्जियम में PO है और दूसरा लड़का गुजरात में यूनियन बैंक में PO है।” ध्यानचंद कहते हैं कि गांव में जब कोई प्रोग्राम होता है तब सभी अधिकारी इकट्ठा होते हैं।

  • इसी गांव में एक 12वीं तक स्कूल है। यहां करीब 2000 स्टूडेंट पढ़ते हैं। 30% ऐसे हैं जो अधिकारी बनना चाहते हैं।

“जब वो कर सकते हैं तो हम क्यों नहीं”
11वीं में पढ़ रही मुस्कान गुप्ता कहती है, “मुझे IAS अफसर बनना है। मैं हमेशा यह सोचती हूं कि जब वो कर सकते हैं तो मैं क्यों नहीं।” 10वीं की आंशी गुप्ता IPS इसलिए बनना चाहती है क्योंकि उन्हें लगता है कि अफसर बनकर समाज को अपनी तरफ से कुछ बेहतर दे पाएगी। 5वीं क्लास में पढ़ने वाले मुदस्सिर अंसारी को भी IPS बनना है।

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  • यहां तक आपने अफसरों के गांव माधोपट्टी की कहानी पड़ी। तो स्वाभाविक है कि आपके दिमाग में यह आया होगा कि कैसे बनें? सिलेबस क्या होता है? पढ़ना क्या होता है? परीक्षा का पैटर्न क्या है?

इन तीन ग्राफिक्स में आपके सारे सवालों के जवाब हैं।

 

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