क्या 5G से विमानों को खतरा …!

5G से जुड़े 5 डर और उनकी सच्चाई ..

1.सवाल: क्या 5G से कैंसर होता है?

जवाब: अभी तक हुई रिसर्च के अनुसार, 5G से कैंसर होने का खतरा काफी कम है। हालांकि अभी इसे लेकर कम स्टडी हुई है। लिहाजा इसे पूरी तरह खारिज भी नहीं किया जा सकता है।

वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन यानी WHO 5G के सेहत से जुड़े खतरों का आकलन कर रहा है, जिसकी रिपोर्ट इस साल के अंत तक आ सकती है। WHO के अनुसार अभी तक मोबाइल टेक्नोलॉजी का इंसान की सेहत से जुड़ा कोई नुकसानदायक प्रभाव सामने नहीं आया है।

कुछ साल पहले आई WHO की एक रिपोर्ट के अनुसार, मोबाइल फोन के इस्तेमाल के बजाय शराब पीने या प्रोसेस्ड मीट खाने से कैंसर होने का खतरा ज्यादा रहता है।

5G से कैंसर होता है या नहीं, इसे समझने के लिए पहले 5G की वर्किंग को समझना जरूरी है…

  • एक्सपर्ट्स के मुताबिक, ज्यादा एनर्जी और ज्यादा फ्रीक्वेंसी वाले रेडिएशन से कैंसर होने का खतरा रहता है। ऐसे रेडिएशन को आयोनाइजिंग रेडिएशन कहते हैं। एक्स-रे, गामा-रे और अल्ट्रावायलेट किरणें इसकी उदाहरण हैं।
  • मोबाइल फोन और माइक्रेवेव ओवन जैसी आम इलेक्ट्रॉनिक डिवाइसेज में कम एनर्जी और कम फ्रीक्वेंसी वाले रेडिएशन का इस्तेमाल होता है। ये नॉन-आयोनाइजिंग रेडिएशन की कैटिगरी में आते हैं। इसलिए मोबाइल फोन से कैंसर का खतरा काफी कम रहता है।
  • इसे अब नेटवर्क के मामले में देखें तो 4G के मुकाबले भले ही 5G नेटवर्क की फ्रीक्वेंसी ज्यादा है, लेकिन ये इतनी भी ज्यादा नहीं है कि हमारे शरीर के टिशूज को नुकसान पहुंचाए। 5G नेटवर्क वाली ये बात मोबाइल फोन और टावर दोनों पर लागू होती है।
  • एक्सपर्ट्स के मुताबिक, मोबाइल नेटवर्क टेक्नोलॉजी केवल तभी नुकसानदायक हो सकती है, जब ये शरीर के टिशूज को गर्म करने लगे। दरअसल, बहुत ज्यादा एनर्जी या हाई रेडिएशन से पैदा होने वाली गर्मी से न केवल हमारा इम्यून सिस्टम बल्कि DNA तक डैमेज हो सकता है। यानी हाई फ्रीक्वेंसी वाला रेडिएशन हमारी सेहत पर असर डाल सकता है, लेकिन 5G टावर से निकलने वाले रेडिएशन के कम फ्रीक्वेंसी की वजह से हमारी सेहत पर असर नहीं पड़ता है।
  • अमेरिका की फेडरल कम्युनिकेशंस कमिशन यानी FCC की मौजूदा गाइडलाइन के मुताबिक, लोगों को 300 किलोहर्ट्ज से लेकर 100 गीगाहर्ट्ज तक के रेडिएशन से खतरा नहीं होता है। दुनिया के ज्यादातर देशों में अभी 5G फ्रीक्वेंसी की रेंज 25-40 गीगाहर्ट्ज के आसपास है और 100 गीगाहर्ट्ज से कम है। भारत में 5G के लिए 600 मेगाहर्ट्ज से 24-47 गीगीहर्ट्ज फ्रीक्वेंसी का इस्तेमाल होगा।
 

5G से कैंसर के खतरे को पूरी तरह नकारा नहीं जा सकता…

  • 2021 में पैनल ऑफ फ्यूचर ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी ऑफ यूरोपियन पार्लियामेंट्री रिसर्च सर्विस ने इंसानों की सेहत पर 5G के असर को लेकर स्टडी की। इसमें बताया गया कि 450 से 6000 मेगाहर्ट्ज फ्रीक्वेंसी वाले रेडिएशन से इंसानों में कैंसर होने का खतरा रहता है।
  • इससे खासतौर पर गिल्योमा और एकॉस्टिक न्यूरोमा जैसे कैंसर होने का खतरा रहता है। गिल्योमा-दिमाग और रीढ़ की हड्डी में होने वाला कैंसर हैं। एकॉस्टिक न्यूरोमा भी दिमाग में होने वाला एक कैंसर है, जिससे सुनने की क्षमता खत्म होने लगती है।
  • 2011 में इंटरनेशनल एजेंसी फॉर रिसर्च ऑन कैंसर यानी IARC ने कहा था कि मोबाइल का रेडिएशन इंसानों में कैंसर की वजह बन सकता है। इस रिसर्च को 14 देशों के 30 वैज्ञानिकों ने मान्यता दी थी।
  • तब से अब तक कई रिसर्च में मोबाइल के रेडिएशन और मस्तिष्क कैंसर के बीच संभावित लिंक की जांच की गई है, लेकिन यह साबित नहीं हो पाया है।
  • 2017 में बायोमेड रिसर्च इंटरनेशनल के रिसर्च रिव्यू में पाया गया कि मोबाइल फोन का रेडिएशन ग्लियोमा (कैंसर) की वजह बन सकता है, लेकिन 2018 में INTEROCC के रिसर्च में हाई फ्रिक्वेंसी वाले रेडिएशन और ब्रेन ट्यूमर के बीच साफ संबंध नहीं पाया गया।
  • भारत में 5G तैयारियों के लिए 2020 में कांग्रेस सांसद शशि थरूर की अगुआई में बनी पार्लियामेंट्री स्टैंडिंग कमेटी ने मार्च 2022 में अपनी 21वीं रिपोर्ट में कहा कि देश में अभी 5G टेक्नोलॉजी शुरुआती स्टेज में है, ऐसे में इसके रेडिएशन का सेहत पर पड़ने वाला असर तभी साफ होगा, जब इसका बड़े पैमाने पर इस्तेमाल होगा।

2.क्या 5G हवाई जहाजों के लिए खतरनाक है?

जवाब: इसका थोड़ा असर पड़ता है, लेकिन इसे लेकर स्थिति पूरी तरह साफ नहीं है।

हाल ही में अमेरिका के फेडरल एविएशन एडमिनिस्ट्रेशन यानी FAA ने चेतावानी दी है कि 5G कुछ विमानों की ऊंचाई की रीडिंग करने की क्षमता को प्रभावित कर सकता है। 5G से विमान के आल्टीमीटर्स भी प्रभावित हो सकते हैं, जो ये बताते हैं कि विमान जमीन से कितनी ऊंचाई पर उड़ा रहा है।

2020 में नॉनप्रॉफिट रेडियो टेक्निकल कमिशन फॉर एयरोनॉटिक्स ने इस बारे में विस्तार से एक रिसर्च पब्लिश की थी कि कैसे 5G विमानों के लिए खतरनाक खराबी का कारण बन सकती है।

अमेरिकी फेडरल एविएशन एडमिनिस्ट्रेशन यानी FAA ने एहतियात के तौर पर कई अमेरिकी एयरपोर्ट के आसपास 5G एक्टिविटी पर लिमिट लगाने के लिए बफर जोन बना दिए हैं। (प्रतीकात्मक तस्वीर)
अमेरिकी फेडरल एविएशन एडमिनिस्ट्रेशन यानी FAA ने एहतियात के तौर पर कई अमेरिकी एयरपोर्ट के आसपास 5G एक्टिविटी पर लिमिट लगाने के लिए बफर जोन बना दिए हैं। (प्रतीकात्मक तस्वीर)

यूरोप के 27 देशों में विमानों की उड़ान में 5G की वजह से कोई शिकायत नहीं मिली है। यूरोपीय एविएशन एजेंसी ने कहा है कि ये समस्या केवल अमेरिका में ही है। दरअसल, यूरोपियन यूनियन के 27 देश अमेरिका की तुलना में कम फ्रीक्वेंसी (3.4-3.8 GHz) वाले 5G नेटवर्क का इस्तेमाल कर रहे हैं।

फ्रांस जैसे कुछ देशों ने ऐसी किसी समस्या से बचने के लिए एयरपोर्ट के आसपास ‘बफर जोन’ बना दिया है, जहां 5G सिग्नल प्रतिबंधित हैं। साथ ही यहां एंटीना को थोड़ा नीचे की ओर झुका दिया जाता है, जिससे विमान के सिग्नल को कोई बाधा न पहुंचे। साउथ कोरिया में अप्रैल 2019 से ही 5G सेवाओं का यूज हो रहा है, लेकिन वहां 5G की वजह से विमान सेवाओं के रेडियो सिग्नल में किसी तरह की दिक्कत नहीं आई है।

3.सवाल: क्या 5G टेस्टिंग से होती है पक्षियों की मौत?

जवाब: नहीं 5G टेस्टिंग से नहीं, लेकिन मोबाइल टावर से पक्षियों को खतरा जरूर होता है।

22 अप्रैल 2020 को एक पोस्ट में दावा किया गया था कि नीदरलैंड के हेग में 5G नेटवर्क की टेस्टिंग से वहां सैकड़ों पक्षियों की मौत हो गई थी, लेकिन ये सच नहीं है। दरअसल, हेग में 8 अक्टूबर 2018 से 3 नवंबर 2018 के बीच सैकड़ों गौरैया और दूसरी पक्षियों की मौत हुई थी। इसका कारण 5जी नहीं था, क्योंकि उस दौरान वहां 5G की कोई टेस्टिंग ही नहीं हुई थी।

हेल्थ काउंसिल ऑफ द नीदरलैंड्स के मेंबर और ICNIRP के प्रेसिडेंट डॉक्टर एरिक वान रोंगन कहते हैं कि पक्षियों की मौत 5G टेक्नोलॉजी से तभी हो सकती है, जब इससे निकलने वाला रेडिएशन इतना शक्तिशाली हो कि उससे नुकसान पहुंचाने वाली गर्मी पैदा हो।

ICNIRP के अनुसार, मोबाइल टेलिकॉम का एंटीना इतना शक्तिशाली नहीं होता है। पूरी दुनिया में ऐसे लाखों एंटीना हैं, लेकिन ऐसे मामले कहीं से भी सामने नहीं आए हैं। 5G के रेडिएशन का इतना असर होना नामुमकिन है कि इससे पक्षी की मौत हो जाए।

मोबाइल टावरों से टकराकर पक्षियों की मौत जरूर होती है। खासकर प्रवासी पक्षियों की। टावर पर लगी रेड लाइट्स भी पक्षियों को कई बार भ्रमित करती हैं और वो रास्ता भटक जाते हैं।
मोबाइल टावरों से टकराकर पक्षियों की मौत जरूर होती है। खासकर प्रवासी पक्षियों की। टावर पर लगी रेड लाइट्स भी पक्षियों को कई बार भ्रमित करती हैं और वो रास्ता भटक जाते हैं।

4.क्या 5G फ्रीक्वेंसी या रेडिएशन जानवरों के लिए खतरनाक है?

जवाब: हां, थोड़ा असर पड़ता है, लेकिन अभी कम रिसर्च हुई है।

5G जानवरों को कैसे प्रभावित करता है, इससे जुड़ी ज्यादातर रिसर्च चूहों पर हुई हैं।

2019 में एनवायरनमेंटल एंड मॉलिकुलर म्यूटोजेनेसिस की एनिमल स्टडी में पाया गया कि मोबाइल फोन से निकलने वाले रेडिएशन से चूहों का DNA डैमेज हो जाता है। 2016 में नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन की एनिमल स्टडी में पाया गया कि किसी भी फ्रीक्वेंसी की रेडिएशन नर्वस सिस्टम को नुकसान पहुंचा सकती है।

2020 में नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन के रिसर्च रिव्यू में यह भी जांचा गया कि रेडिएशन कैसे घोंघे और मेंढक जैसे जीवों को प्रभावित करता है। रिसर्चर्स ने पाया कि यह साफ नहीं है कि मोबाइल नेटवर्क से निकलने वाला रेडिएशन का जानवरों पर निगेटिव असर पड़ता है या नहीं।

5G के जानवरों पर खतरे को लेकर अभी तक केवल चूहों पर ही रिसर्च हुई है। (प्रतीकात्मक तस्वीर)
5G के जानवरों पर खतरे को लेकर अभी तक केवल चूहों पर ही रिसर्च हुई है। (प्रतीकात्मक तस्वीर)

5.सवाल: क्या 5G से कोरोना फैलता है?

जवाब: नहीं, इससे जुड़े सभी दावे भ्रामक हैं।

कोरोना महामारी शुरू होने के बाद से 5G को कोरोना से जोड़कर कई भ्रामक दावे किए गए, जैसे- 5G नेटवर्क कोरोना महामारी के फैलने के लिए जिम्मेदार है या दुनिया के कुछ ताकतवर लोगों का ग्रुप कोरोना फैलाने के लिए 5G का इस्तेमाल कर रहा है।

एक और ऐसी ही कॉन्स्पिरेसी थ्योरी के अनुसार, 5G नेटवर्क से निकलने वाले रेडिएशन से इंसान का इम्यून सिस्टम कमजोर होता है और उन्हें कोरोना होने का ज्यादा खतरा रहता है। कोरोना और 5G को लेकर एक भ्रामक दावा ये भी है कि 5G और कोरोना दोनों 2019 में चीन से ही शुरू हुए थे।

कोरोना को लेकर 5G से जुड़े ये सारे दावें गलत हैं…

कोरोना 2019 में चीन से फैला लेकिन 5G सेवा 2018 में साउथ कोरिया से शुरू हुई थी।

इंटरनेशनल कमिशन ऑन नॉन-आयोनाइजिंग रेडिएशन प्रोटेक्शन यानी ICNIRP का कहना है कि 5G और कोरोनावायरस के बीच कोई संबंध नहीं है।

ICNIPR इंडिपेंडेंट साइंटिस्ट और एक्सपर्ट्स से बना ऐसा ग्रुप है, जो इस बात की स्टडी करता है कि मोबाइल फोन और अन्य इलेक्ट्रॉनिक डिवाइसेज से निकलने वाला रेडिएशन कैसे इंसान की सेहत को प्रभावित करता है। हालांकि कुछ संस्थाओं का कहना है कि इसे लेकर अभी और रिसर्च की जरूरत है।

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