लालची लोगों से सावधान रहें, बैकअप प्लान रखें और लड़ाई पूरी लड़ें
प्लासी के युद्ध से प्रोफेशनल्स के लिए 5 सबक:लालची लोगों से सावधान रहें, बैकअप प्लान रखें और लड़ाई पूरी लड़ें
बल है तो बल के बल पे तू कुछ अपने बल के चल’
एक युद्ध जिसने बदल दी इंडिया की तकदीर
23 जून 1757 को बंगाल में मुर्शिदाबाद के दक्षिण में 22 मील दूर भागीरथी नदी के किनारे पलाशी (प्लासी) नामक स्थान पर बंगाल के नवाब सिराज़ुद्दौला और रॉबर्ट क्लाइव के नेतृत्व में अंग्रेज सेना के बीच हुई लड़ाई में ‘मीर जाफर’ (जो नवाब सिराज़ुद्दौला का सेनापति था) अंग्रेजों की मदद से बंगाल का नवाब तो बना लेकिन केवल ‘नाममात्र’ का। अब बंगाल में वास्तविक ब्रिटिश शासन आ चुका था।
इस युद्ध ने भारत में अंग्रेजों के पैर पहली बार एक राजा के रूप में जमा दिए, जब पूरा बंगाल उनके हाथ आ गया (आज के बांग्लादेश समेत)।
प्लासी के युद्ध से 5 बड़े प्रोफेशनल सबक
इस युद्ध से हमें आधुनिक जीवन में भी बहुत सीखने को मिलता है। आप प्रोफेशनल हों, उद्यमी (आंत्रप्रेन्योर) हों या स्टूडेंट, पढ़ें और समझें।
1) नैतिकता का तकाजा नहीं हो तो हर कदम जायज लगता है: नवाब सिराज़ुद्दौला के कई दुश्मन थे, और उनमें मुर्शिदाबाद के धनी लोग जैसे राय दुर्लभ, अमीरचंद जैसे जगतसेठ थे। ये लोग भी अपने छोटे-छोटे स्वार्थों के कारण अंग्रेजो से मिले हुए थे। उनकी बड़ी वित्तीय मदद से ही क्लाइव भारत के इतिहास को बदलने वाले युद्धों में से एक ‘बैटल ऑफ प्लासी’ को जीत पाया। उनसे मिले पैसे से क्लाइव ने मीर जाफर को खरीद लिया था (और वो लड़ा ही नहीं)। तो कुछ के निजी लालच ने देश की किस्मत को बदल दिया और भारत को तकरीबन 200 वर्षों के अमानवीय शासन में धकेल दिया। सबक – लालची और क्रूर लोगों के प्रति अपनी निगाह सतर्क रखें, और बड़ा धोखा न खाएं।
2) छोटी सेना अपने से 5 गुना बड़ी सेना को हरा सकती है: प्लासी की लड़ाई इस बात का सबूत है कि यदि कुशलता, काबिलियत और ‘साम, दाम, दंड, भेद’ के बल पर लड़ाई लड़ी जाए तो एक छोटी सेना भी बड़ी सेना को हरा सकती है। प्लासी की लड़ाई में नवाब की लगभग पचास हजार लोगों की सेना के सामने ब्रिटिश कमांडर क्लाइव के पास केवल 8000 की सेना थी (और वो घबराया हुआ भी था)। क्लाइव ने सबसे पहले तो अपनी क्षमता में कम होने की स्थिति का जायजा लेते हुए, नवाब के सेनापति ‘मीर जाफर’ को लालच दे कर अपने साथ मिला लिया। फिर लड़ाई के दिन (जून 23, 1757) तक मानसून की शुरुआत हो गई। दोपहर की तेज बारिश में नवाब का सारा गोला-बारूद गीला हो गया। लेकिन अंग्रेजों ने अपना बारूद तिरपालों से ढक कर रखा था। उनकी फायर-पावर में कोई कमी नहीं आई, और बाजी पलट गई। सबक: बड़ी लड़ाइयों में इमरजेंसी प्लान नहीं होना फेल होने की प्लानिंग जैसा ही है।
3) शत्रुओं पर नजर: आप कितने भी शक्तिशाली हों शत्रुओं पर नजर रखें और उन्हें कमजोर तो बिल्कुल न समझें। ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कम्पनी के लिए बंगाल की, इसके व्यापारिक महत्व के कारण, भारत में सबसे खास जगह थी। बंगाल के संस्थापक मुर्शिदकुली खान के समय से कम्पनी को बंगाल में व्यापार करने के विशेषाधिकार प्राप्त थे। जब जनता की शिकायतों पर बाद के शासकों अलीवर्दी खान और सिराज़ुद्दौला ने ये विशेषाधिकार छीन लिए तो कम्पनी नवाब सिराज के खिलाफ हो गई। सिराजुद्दौला के खिलाफ जो लोग साजिश किया करते थे, कभी-कभी उनके खजाने लेकर भाग जाते थे, उनमें से कई लोगों को फोर्ट विलियम में शरण दी जाने लगी, तो नवाब ने 1756 में कलकत्ता पर हमला कर दिया। ब्रिटिशर्स को फोर्ट विलियम छोड़ भागना पड़ा और उन्होंने मद्रास पैगाम भेज दिया कि ‘उन्हें कलकत्ता से खदेड़ दिया गया और जल्दी से मद्रास से फौज भेजो।’
सिराजुद्दौला उस वक्त चाहते तो भागे हुए अंग्रेजों को मारकर एक बढ़त हासिल कर सकते थे लेकिन फोर्ट विलियम पर जीत के बाद वे ये बात नहीं समझ सके कि अंग्रेजों की पहुंच कितनी दूर तक है! वे बहुत बड़ी नौसेना से पूरी दुनिया में कहीं से भी साधन और सैनिक ला सकते थे, किसी भी पोर्ट को ब्लॉक कर सकते थे। कलकत्ता के फोर्ट विलियम से अंग्रेजों को भगाकर नवाब सिराजुद्दौला अपनी राजधानी लौट गया, जबकि कर्नल रॉबर्ट क्लाइव के नेतृत्व में कंपनी के पैदल सैनिक तब के मद्रास के जमीनी रास्ते से कलकत्ता की ओर चले। सबक: लड़ाई पूरी लड़िए, आधी-अधूरी नहीं।
4) धन का नियंत्रण रणनीतिक होता है: 1761 से पहले कम्पनी भारत से सिल्क, कॉटन, मसालों, नील आदि का व्यापार करने के लिए अपने साथ ब्रिटेन से लाए सोना और चांदी का उपयोग करती थी। लेकिन मीर जाफर के बंगाल के नवाब की गद्दी पर बैठने के बाद अंग्रेजों के पास बंगाल से ‘लैंड रेवेन्यू’ इकठ्ठा करने के अधिकार आ गए, अब कम्पनी इसी पैसे से भारत में खरीद फरोख्त करती। अर्थात देश का पैसा देश में ही घुमाया जाता था और माल एक तरह से फ्री में देश से बाहर यानी इंग्लैंड भेज दिया जाता था। सबक: जिसके हाथों में पैसे की कमान, उसका हर वाकया एक फरमान।
5) जो भी करें अपने बलबूते करें: नया नवाब, मीर जाफर और उसके बाद मीर कासिम चाहते हुए भी अंग्रेजों की मनमर्जी का विरोध नहीं कर पाते थे क्योंकि उनके पास वास्तव में ताकत नहीं थी और वे अंग्रेजों की सेना के बलबूते गद्दी पर बैठे थे। तो अंतिम मुगल सम्राट बहादुर शाह जफर के शब्दों को दोहराया जा सकता है: ‘औरों के बल पे बल न कर इतना न चल निकल, बल है तो बल के बल पे तू कुछ अपने बल के चल’