उत्तराखंड में राजस्व पुलिस प्रणाली…!

सामयिक: अंग्रेजों के राज में शुरू हुई थी यह व्यवस्थाअब भी क्यों जारी है
उत्तराखंड में राजस्व पुलिस प्रणाली
अंकिता भंडारी हत्या प्रकरण को लेकर उत्तराखंड राज्य के हिली पट्टी क्षेत्रों में अंग्रेजों के समय से चली आ रही राजस्व पुलिस प्रणाली फिलहाल फिर सुर्खियों में है। चर्चा है कि विगत 18 सितंबर को यदि पटवारी चौकी में दर्ज कराई गई रिपोर्ट पर तत्काल कार्रवाई होती, तो शायद यह घटना नहीं होती। परंतु, पटवारी चौकी में मात्र गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज कर इतिश्री कर दी गई। करीब 4 दिन बाद जिला दंडाधिकारी द्वारा प्रकरण नियमित पुलिस को स्थानांतरित किया गया, तब तक शायद काफी विलंब हो चुका था। यही नहीं, वह रिसोर्ट जो संभवत: घटनास्थल भी था, उसमें तोड़फोड़ कर साक्ष्य मिटाने के आरोप मीडिया में चर्चा में रहे। पुलिस ने प्रकरण हाथ में लेते ही आरोपियों की गिरफ्तारी कर अंकिता का शव बरामद किया। हालांकि, उम्मीद है कि नियमित पुलिस सभी आवश्यक साक्ष्य इकट्ठे कर दोषियों को सजा दिलाने में सफल होगी। महत्त्वपूर्ण यह है कि स्वतंत्रता के 75 वर्ष बाद भी ऐसी व्यवस्था जो अपराधियों से निपटने में सक्षम नहीं है, उत्तराखंड प्रदेश में आज लागू क्यों है? उत्तराखंड पुलिस की वेबसाइट के अनुसार राज्य का करीब 61 प्रतिशत इलाका राजस्व पुलिस सिस्टम के अंतर्गत है। इन इलाकों में पटवारी को गिरफ्तारी एवं अनुसंधान की शक्तियां प्राप्त हैं। उत्तराखंड राज्य का केवल 39 प्रतिशत इलाका नियमित पुलिस के अंतर्गत आता है।

उत्तराखंड विधानसभा स्पीकर रितु खंडूरी भूषण द्वारा राजस्व पुलिस सिस्टम की ओर ध्यान आकर्षित करते हुए उत्तराखंड के मुख्यमंत्री को पत्र लिखते हुए इसे शीघ्र बंद करने का निवेदन किया है। स्पीकर ने लिखा कि ‘हैरानी की बात है कि आज जहां एक प्रदेश से दूसरे प्रदेश के किसी भी थाने में जीरो एफआइआर लिखाई जा सकती है, वहां ऋषिकेश से मात्र 15 किलोमीटर की दूरी पर ऐसी राजस्व पुलिस काम कर रही है, जो न तो प्रशिक्षण प्राप्त है और न ही उसके पास आधुनिक हथियार हैं।’

यदि रिसोर्ट स्थित क्षेत्र में नियमित पुलिस होती, तो आज अंकिता हमारे बीच होती। हालांकि यह पहला अवसर नहीं है कि राजस्व पुलिस के खिलाफ कोई आवाज उठाई गई हो। उत्तराखंड उच्च न्यायालय द्वारा 2018 जनवरी में ‘सुंदरलाल बनाम राज्य’ प्रकरण में राज्य सरकार को 6 महीने के अंदर राजस्व पुलिस समाप्त कर नियमित पुलिस सिस्टम लागू करने के लिए निर्देश दिए गए थे, परंतु राज्य सरकार ने नियमित पुलिस प्रणाली लागू करने की बजाय सर्वोच्च न्यायालय में गुहार लगाने का निर्णय किया।

उच्च न्यायालय द्वारा स्पष्ट रूप से कहा कि पटवारी पुलिस अपराधों की विवेचना के लिए सक्षम नहीं हैं। राजस्व पुलिस को न तो अनुसंधान संबंधी कोई प्रशिक्षण दिया जाता है और न ही उन्हें वैज्ञानिक साक्ष्य इकट्ठा करने के तरीके मालूम हैं। पटवारी पुलिस द्वारा अनुसंधान करने के कारण कानून-व्यवस्था की स्थिति प्रभावित होती है। न्यायालय ने यह भी कहा कि पुलिसिंग के लिहाज से प्रदेश को बिना युक्तियुक्त कारणों के दो हिस्सों में नहीं बांटा जा सकता। यह संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत मनमाना होकर असंवैधानिक है। उच्च न्यायालय द्वारा उच्चतम न्यायालय के ‘नवीन चंद्र बनाम उत्तराखंड राज्य’ प्रकरण का हवाला भी दिया जिसमें यह स्पष्ट कहा गया था कि पटवारियों द्वारा किए गए अनुसंधान का स्तर बेहद निम्न स्तर का है। 21वीं सदी का हवाला देते हुए कोर्ट ने उम्मीद जताई कि राज्य सरकार हिली पट्टी एरिया के लिए भी दंड प्रक्रिया संहिता के तहत शीघ्र नियमित पुलिस का प्रावधान करेगी।

उल्लेखनीय है देश के समस्त थाने आज ‘क्राइम क्रिमिनल ट्रैकिंग नेटवर्क एंड सिस्टम’ (सीसीटीएनएस) से जुड़े हुए हैं। इस वजह से जानकारी का आदान-प्रदान आसानी से किया जा सकता है। नए प्रकार के अपराधों जैसे साइबर क्राइम, चिटफंड अपराध आदि से निपटने के लिए पुलिस को अलग-अलग तरह का प्रशिक्षण दिया जा रहा है। पुलिस थानों को बेहतर संसाधनों से सुसज्जित किया जा रहा है और सीसीटीवी स्थापित किए जा रहे हैं, ताकि मानव अधिकारों का उल्लंघन रोका जा सके। ऐसी अवस्था में बिना उचित प्रशिक्षण, बिना उचित पर्यवेक्षण, बिना उचित संसाधनों के बिना वर्दी वाले राजस्व विभाग को एक अतिरिक्त कार्य के रूप में गंभीर अपराधों के अनुसंधान की जिम्मेदारी देना आपराधिक न्याय प्रणाली के साथ खिलवाड़ से कम नहीं है। एक और जहां पुलिस को आधुनिक कर उसमें सुधारों के लिए प्रयास जारी हैं, वहीं एक सदी पहले से लागू ऐसी व्यवस्था जो अंग्रेजों को केवल अपना राज बनाए रखने के लिए तत्समय समुचित समझी गई, उसे समुचित एवं नियमित पुलिस व्यवस्था से बदलने में और विलंब करना उचित नहीं होगा।

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