स्वास्थ्य सुरक्षा का उद्देश्य पूरा नहीं करती स्टार रेटिंग
ड्राफ्ट रेगुलेशन के तहत माना गया है कि अगर 100 ग्राम ठोस खाद्य पदार्थ की कैलोरी वैल्यू 400 से ज्यादा, चीनी 21 ग्राम, नमक 450 मिलीग्राम और संतृप्त वसा 5 ग्राम से ज्यादा है तो वह हानिकारक है। इसी तरह डिब्बाबंद पेय पदार्थों की कैलोरी वैल्यू 30 से ज्यादा, चीनी 6 ग्राम, संतृप्त वसा 3 ग्राम और नमक की मात्रा 100 मिलीग्राम से ज्यादा है तो उसे अस्वास्थकर पेय की श्रेणी में रखा गया है। हालांकि, यह मानक विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के तय मानक से लगभग दोगुना है। फिर भी यह एक महत्त्वपूर्ण बेंचमार्क है। चीनी, नमक, वसा की ज्यादा मात्राओं वाले ऐसे डिब्बाबंद उत्पादों से सेहत को खतरा बढ़ जाता है।
हालांकि, एफएसएसएआई ने ड्राफ्ट पॉलिसी में एक ऐसा प्रावधान किया है जिससे फूड इंडस्ट्री को लोगों की सेहत से खिलवाड़ करने की छूट मिलने की आशंका है। ऐसे उत्पादों पर फ्रंट ऑफ पैक लेबल (एफओपीएल) चेतावनी वाले लेबल की मांग की जा रही थी। इसकी बजाय स्टार रेटिंग प्रणाली अपनाने की बात कही गई है। यह प्रणाली ऑस्ट्रेलिया में लागू की गई थी जो न सिर्फ विफल रही बल्कि उपभोक्ताओं को असमंजस में भी डालती है क्योंकि वे समझ नहीं पाते कि कौन-सा उत्पाद स्वास्थ्यकर है, कौन-सा अस्वास्थ्यकर। मसौदे के अनुसार स्टार रेटिंग को अनिवार्य बनाने के लिए फूड इंडस्ट्री को 4 साल का लंबा समय भी दिया जाएगा।
तमाम अध्ययनों से यह बात सामने आ चुकी है कि इनके ज्यादा सेवन से गैर-संचारी रोगों (एनसीडी) को बढ़ावा मिलता है। इनमें मोटापा, डायबिटीज, कैंसर और हृदय रोग शामिल हैं। ऐसे में यह जरूरी था कि डिब्बाबंद उत्पादों पर ऐसी चेतावनी का लेबल लगाया जाए जो यह बताए कि इसमें चीनी या नमक की मात्रा ज्यादा है और ये सेहत के लिए हानिकारक है। मगर स्टार रेटिंग के जरिए इसे उलझन वाला बना दिया गया है। एफएसएसएआइ ने कहा है कि स्टार रेटिंग में पॉजिटिव फैक्टर का भी ध्यान रखा जाएगा और इसके लिए एक फार्मूला तैयार किया जा रहा है। यहां पॉजिटिव फैक्टर का मतलब फल, सब्जी, मेवे, फाइबर और ज्यादा प्रोटीन वाले खाद्य पदार्थों से है। जिन डिब्बाबंद उत्पादों में इनका इस्तेमाल होगा उनमें देखा जाएगा कि इनकी मात्रा कितनी है। उसी आधार पर उन्हें स्टार रेटिंग दी जाएगी। यह काफी जटिल तरीका है। यदि पॉजिटिव फैक्टर की मात्रा न्यूनतम 10 फीसदी रहेगी तो माना जाएगा कि यह फूड रिस्क फैक्टर को कम करता है। पर ऐसा कोई वैज्ञानिक साक्ष्य नहीं है कि ज्यादा चीनी या ज्यादा नमक का रिस्क फैक्टर इससे कम हो जाएगा। मान लीजिए कि आपके खाद्य पदार्थ में 40 ग्राम चीनी है और उसमें 10 फीसदी पॉजिटिव फैक्टर डाला गया है, तो चीनी से पहुंचने वाला नुकसान कम नहीं हो जाता।
एफएसएसएआई के मुताबिक, अगर किसी उत्पाद को आधा स्टार मिला है तो वह सबसे कम स्वास्थ्यकर है। अगर उसे 5 स्टार मिले हैं तो वह सबसे ज्यादा स्वास्थ्यकर है। इसका मतलब यह भी हुआ कि अगर आधा स्टार वाले उत्पाद में 10 फीसदी पॉजिटिव फैक्टर मिला दिया जाएगा तो उसकी स्टार रेटिंग बढ़ जाएगी। ऐसा फार्मूला अस्वास्थ्यकर आहार को स्वास्थ्यकर बताने के लिए बनाया गया मालूम होता है। स्पष्ट है कि फूड रिस्क फैक्टर की पहचान के बाद स्टार रेटिंग वाले फार्मूले को अपनाने की जरूरत ही नहीं है। लोगों को सीधे तौर पर बताया जाना चाहिए कि इस आहर में जोखिम है जैसा कि सिगरेट और अन्य तंबाकू उत्पादों के मामले में किया जाता है। सारे अल्ट्रा-प्रोसेस्ड पैकेज्ड फूड स्वाभाविक रूप से अस्वास्थकर हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि प्रोसेसिंग के दौरान इनमें कई ऐसे इनग्रिडिएंट डाले जाते हैं जो डिब्बाबंद खाद्य सुरक्षा नियम के तहत नहीं आते हैं। बल्कि खाद्य सुरक्षा के दूसरे कई नियम ऐसे में लागू हो जाते हैं। यदि आपने अपने खाने में अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड 10% बढ़ा लिया तो डायबिटीज का खतरा 15% बढ़ जाता है। एफएसएसएआइ का यह दायित्व है कि वह ऐसी पॉलिसी बनाए जो इस पर अंकुश लगाए, तभी तो लोगों की सेहत बची रहेगी।
एफएसएसएआइ को मेरा सुझाव है कि वह वैज्ञानिक तथ्यों को खारिज न करे। साथ ही लोगों से अपील है कि वे इस ड्राफ्ट पर एफएसएसएआइ को अपनी प्रतिक्रिया दें कि आप चेतावनी वाले लेबल चाहते हैं या स्टार रेटिंग। मसौदे में लोगों की सेहत की बजाय फूड इंडस्ट्री की सुरक्षा पर ही ज्यादा ध्यान दिया गया है। जाहिर है कि एफएसएसएआइ को लेबलिंग के विनियमन मसौदे में बदलाव करना चाहिए।