मोरबी, गुजरात : घड़ी वाले को ब्रिज का काम देने का नतीजा-135 मौतें ..?

लकड़ी की जगह एल्यूमीनियम लगाया, भार बढ़ा… केबल बदला नहीं, इसीलिए टूटा मोरबी पुल

मोरबी में 30 अक्टूबर की शाम को सस्पेंशन ब्रिज टूटने के मामले में पुलिस ने 9 लोगों को गिरफ्तार किया था। इन्हें मंगलवार को मोरबी के मजिस्ट्रियल कोर्ट में पेश किया गया। सभी आरोपियों की रिमांड मांगने के लिए पुलिस ने अदालत में जो हलफनामा पेश किया, उसमें ब्रिज के वजन को ही उसके गिरने की वजह बताया गया है। इस घटना में अब तक 135 मौतों की पुष्टि हो चुकी है।

पुल हादसे में दीपक पारेख, दिनेश दवे, मनसुख टोपिया, मादेव सोलंकी, प्रकाश परमार, देवांग, अल्पेश गोहिल, दिलीप गोहिल, मुकेश चौहान को अरेस्ट किया गया था।

रिमांड अर्जी में लिखा- कंपनी ने केवल फ्लोर बदला
गुजरात पुलिस ने मंगलवार को मजिस्ट्रियल कोर्ट में पुल हादसे की फोरेंसिक रिपोर्ट दाखिल की। यह रिपोर्ट सीलबंद लिफाफे में सौंपी गई है। सरकारी वकील पंचाल ने सुनवाई के बाद बताया कि पुलिस की तरफ से पेश रिमांड अर्जी में साफ लिखा है कि मरम्मत के दौरान ब्रिज के स्ट्रक्चर की मजबूती पर काम नहीं किया गया। केवल पुल की फ्लोरिंग से लकड़ी को हटाकर एल्युमिनियम की चादरें लगा दी गई थीं।

वजन बढ़ा तो केबलें टूटीं और लोग नदी में जा गिरे
सरकारी वकील पंचाल ने बताया कि फोरेंसिक साइंस लैब की जांच में पता चला है कि जिन चार केबलों पर ब्रिज टिका था, छह महीने की मरम्मत के दौरान उन्हें नहीं बदला गया था। फोरेसिंक एक्सपर्ट के मुताबिक बेहद पुरानी हो चुकी केबलें नई फ्लोरिंग समेत लोगों का भार नहीं सह सकीं और ज्यादा वजन से केबलें टूट गईं।

जिन ठेकेदारों से मरम्मत कराई, वे इसके लायक नहीं
पुलिस ने अदालत को यह भी बताया कि जिन ठेकेदारों को पुल रिपेयर का काम दिया गया था, वे इसे करने के लिए योग्य नहीं थे। वे सस्पेंशन ब्रिज की तकनीक और स्ट्रक्चर की मजबूती के बारे में जरूरी जानकारी नहीं रखते थे। लिहाजा उन्होंने पुल की ऊपरी सजावट पर ही फोकस किया। इसीलिए पुल देखने में तो चुस्त-दुरुस्त नजर आ रहा था, लेकिन अंदर से वह कमजोर हो चुका था।

जिन पर केबल कसी थी, उन एंकर पिन को देखा ही नहीं
मोरबी के ऐतिहासिक पुल को सात महीने में दो करोड़ रुपए के खर्च से रेनोवेट करने का दावा किया गया था, लेकिन खुलने के पांच दिन बाद ही यह भरभराकर गिर गया। पुल पर लोगों की भीड़ के अचानक आ जाने से ओवरलोड होकर पुल गिर गया।

स्ट्रक्चरल इंजीनियरों ने त्रासदी की जांच की तो पता चला कि मरम्मत के दौरान केबल को संभालने वाली एंकर पिन की मजबूती पर ध्यान ही नहीं दिया गया। यही वजह रही कि लोड पड़ने से पुल के दरबारगढ़ सिरे पर लगी एंकर पिन उखड़ गई और एक तरफ से झुककर पुल नदी में जा गिरा।

एंकर पिन जमीन में फिट रहती हैं और सस्पेंशन ब्रिज को दोनों ओर से थामे रहती हैं।
एंकर पिन जमीन में फिट रहती हैं और सस्पेंशन ब्रिज को दोनों ओर से थामे रहती हैं।

एंकर पिन क्या होती है, इसका क्या काम है?
किसी भी सस्पेंशन ब्रिज को थामने वाली केबल को दोनों किनारों पर बांधा जाता है। इसके लिए पुल के दोनों किनारों पर पक्के फाउंडेशन बनाकर उनमें लोहे के मजबूत हुक लगाए जाते हैं। ब्रिज की केबल इन्हीं हुक्स में कसी जाती है और जरूरत के मुताबिक इन्हें कसा या ढीला किया जा सकता है। यही हुक्स एंकर पिन या लंगर पिन कहलाते हैं।

पुल के रखरखाव में कहां लापरवाही हुई?
सस्पेंशन ब्रिज के रेनोवेशन का काम देवप्रकाश सॉल्यूशंस को दिया गया था। उसके जिम्मे पुल के स्ट्रक्चर को मजबूत रखने की जिम्मेदारी थी। उसने पुल की नींव यानी एंकर पिन को अनदेखा कर दिया। 143 साल पुराने ब्रिज के दोनों तरफ लगी चारों एंकर पिन कितनी मजबूत हैं और क्या उन्हें बदले जाने की जरूरत है, इस पर काम करने के बजाय पूरा पैसा ब्रिज की सजावट पर खर्च कर दिया गया।

पुल की एंकर पिन कितनी मजबूत थीं?
मोरबी पुल में लगी एंकर पिन की क्षमता 125 लोगों की थी, लेकिन रविवार को 350 से ज्यादा लोगों को एक साथ पुल पर जाने दिया गया। ठेकेदार और अफसरों को यह ध्यान ही नहीं था कि पुल 143 साल पुराना है। उसकी एंकर पिन इतना बोझ संभालने में सक्षम नहीं थीं। नतीजा यह हुआ कि लोगों का बोझ पड़ने से ऐसी ही एक पिन टूट गई और लोग नीचे जा गिरे।

गुजरात के शासक वाघजी ने बनवाया था पुल, इंग्लैंड से मंगवाया था सामान
मोरबी का यह पुल गुजरात के राजकोट से 64 किलोमीटर दूरी पर बना हुआ है। विक्टोरियन लंदन स्टाइल में बने इस पुल को मोरबी के पूर्व शासक सर वाघजी ने बनवाया था। इसके लिए मटेरियल इंग्लैंड से मंगवाया गया था। तब इसे यूरोप में उपलब्ध सबसे बेहतरीन तकनीक के जरिए बनाया गया था।

गुजरात में पुल टूटने के ये गुनहगार: बल्ब बनाने वाली कंपनी के जिम्मे छोड़ा ब्रिज, ज्यादा टिकट बेचने के लालच ने ली 134 जानें

गुजरात के मोरबी में पैदल यात्रियों के लिए बना सस्पेंशन ब्रिज रविवार रात को टूट गया। कुछ दिन पहले ही इसकी मरम्मत हुई थी। आम लोगों के लिए खोले जाने के महज 5 दिन बाद ही यह ब्रिज टूट गया। यह पुल मोरबी के लखधीरजी इंजीनियरिंग कॉलेज को दरबारगढ़ महल से जोड़ता था। हादसे के बाद कई सवाल उठे, जो दिखाते हैं कि जिम्मेदारों की अनदेखी ने एक साथ सैकड़ों लोगों की जान ले ली।

मोरबी के गुनहगारों को बचाया: सिर्फ क्लर्क, गार्ड-मजदूर गिरफ्तार… FIR में ओरेवा, उसके MD और अफसरों का नाम नहीं

मोरबी में केबल ब्रिज गिरने की घटना के जिम्मेदारों को बचाने का खेल भी शुरू हो गया है। पुलिस ने इस केस में जिन 9 लोगों को गिरफ्तार किया, उनमें ओरेवा के दो मैनेजर, दो मजदूर, तीन सिक्योरिटी गार्ड और दो टिकट क्लर्क शामिल हैं। पुलिस की FIR में न तो पुल को ऑपरेट करके पैसे कमाने वाली ओरेवा कंपनी का जिक्र है, न रेनोवेशन का काम करने वाली देवप्रकाश सॉल्युशन का। पुल की निगरानी के लिए जिम्मेदार मोरबी नगर पालिका के इंजीनियरों का भी नाम इसमें नहीं है।

मोरबी ब्रिज हादसे का नया VIDEO: रस्सी के सहारे लटके मदद मांग रहे लोग, नदी के बीच मची चीख-पुकार

गुजरात के मोरबी में रविवार शाम हुए ब्रिज हादसे का एक और वीडियो सामने आया है। इसमें कई लोग पुल के टूटे हिस्से में बंधी रस्सियों के सहारे लटके हैं। कुछ लोग नदी के पानी में डूबने वाले हैं। चारों तरफ मदद के लिए चीख-पुकार मची हुई है। 30 अक्टूबर की शाम हुए पुल हादसे में बुधवार तक 135 शव बरामद हो चुके थे। 125 लोगों की टीम और 12 नावों के साथ गोताखोरों को तलाशी अभियान में लगाया गया है।

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