किसी भी कानून के तहत आपराधिक या दंडनीय मानी जाने वाली छोटी-छोटी चीजों को हलके में न लें

29 सितम्बर, 2018 को रमानी बाई (36) और सुजाता (31) एक ऑटो में बैठे थे, जिसे राजू (36) चला रहा था। रमानी और सुजाता के हाथों में गर्मागर्म साम्भर से भरे दो बर्तन थे, जिसे वे चेन्नई में अम्मा उन्नवगम् में ले जा रही थीं। यह रियायती फूड कैंटीन तमिलनाडु सरकार द्वारा संचालित किया जाता है।

वे यह तब से कर रही हैं, जब से दिवंगत मुख्यमंत्री जयललिता ने इस कैंटीन की शुरुआत की थी। अगर आप सोच रहे हैं कि इसमें गलत क्या है, तो मैं कहूंगा सब ठीक है, सिवाय इसके कि भोजन-सामग्री को कैंटीन तक ले जाने वाले ऑटो चालक कानून की नजर में गलत थे, क्योंकि उनके पास अपने वाहन में व्यापारिक भोजन-सामग्रियों को ले जाने का परमिट नहीं था। वाहन में केवल यात्रियों और उनके निजी सामान को ले जाने की अनुमति थी। यहां निजी सामान शब्द को याद रखें। उपरोक्त मामले में निजी सामान का मतलब गर्मागर्म साम्भर से भरे दो बड़े-बड़े बर्तन थे।

मैं जानता हूं कि आप कहेंगे, तो क्या हुआ? इससे किसको हानि है? पुलिस कब से साम्भर ले जा रहे लोगों को पकड़ने लगी? क्या कोई लीगल बिजनेस करना गुनाह है? क्या वे कोई ड्रग्स बेच रहे हैं? इससे पहले कि मैं इन प्रश्नों का जवाब दूं, पहले हम जान लें कि उस दिन हुआ क्या था।

जब फूड को ले जाया जा रहा था, तब एक अन्य ऑटो रिक्शा चालक शेखर (51)- जो अनियंत्रित गाड़ी चलाने के लिए बदनाम था- ने राजू के ऑटो रिक्शा को टक्कर मार दी। इससे रिक्शा को तो कोई खास नुकसान नहीं हुआ, लेकिन गर्मागर्म साम्भर से भरा पूरा ड्रम उलट गया और उसे ले जा रही दोनों महिलाएं उससे झुलस गईं। जहां सुजाता को मामूली नुकसान हुआ, वहीं रमानी बाई बुरी तरह से झुलस गईं और बाद में अस्पताल में उन्होंने दम तोड़ दिया।

इसी महीने चेन्नई मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट पी. चंद्रशेखर ने ऑटो ड्राइवर राजू को दो साल की सजा सुनाई। राजू पर अनियंत्रित गति से गाड़ी चलाने और पैसेंजर वाहन में बिना किसी परमिट के भोजन-सामग्री ले जाने का आरोप था। दूसरे ऑटो के ड्राइवर शेखर को अनियंत्रित वाहन-चालन के लिए छह माह सश्रम कारावास की सजा सुनाई गई।

मजिस्ट्रेट ने कहा हादसे की वजह ड्राइवरों की लापरवाही थी। राजू एक यात्री-वाहन में गर्म भोजन ले जा रहा था, जिसे व्यापारिक वस्तु माना जाता है। ये और बात है कि राजू के पास न तो ड्राइविंग लाइसेंस था और न ही उसके वाहन का इंश्योरेंस या फिटनेस सर्टिफिकेशन हुआ था। अलबत्ता यह भारत में कोई चौंकाने वाली बात नहीं है। लेकिन राजू को कभी नहीं लगा कि यह गलती है।

ऐसी छोटी-छोटी गलतियों का एक और उदाहरण देखें। मेरी पीढ़ी के पैरेंट्स के लिए आज के समय की एक चिंता है किसी रेस्तरां में दोस्तों के साथ देर रात तक हैंगआउट करने या पब जाने वाले बच्चे। जब भी हम बच्चों को लेट-नाइट आउटिंग के लिए ना कहते हैं तो वो कह देते हैं कि कुछ नहीं होगा या यह पुरानी सोच है।

मैं इस पीढ़ी से कहना चाहता हूं कि हम पुरानी सोच वाले नहीं हैं, हम उन लोगों के कारण चिंतित हैं, जो कानून की परवाह नहीं करते और साधारण यात्रियों को मुश्किल में डाल देते हैं। अगर आपकी किस्मत खराब रही तो उनकी गलती का खामियाजा आपको भुगतना पड़ सकता है। 83% दुर्घटनाएं रात नौ से सुबह पांच के दरमियान ही होती हैं।

फंडा यह है कि किसी भी कानून के तहत आपराधिक या दंडनीय मानी जाने वाली छोटी-छोटी चीजों को हलके में न लें। क्योंकि उनसे आपको अपने भविष्य को सुरक्षित करने वाले फायदे नहीं मिलने वाले।

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