कनेरा परियोजना को पर्यावरण मंत्रालय की हरी झंडी …!

42 साल बाद फिर जिंदा हुई कनेरा सिंचाई परिवहन योजना … कनेरा परियोजना को पर्यावरण मंत्रालय की हरी झंडी

अटेरवासियों के लिए अच्छी खबर है। 12 साल के लंबे इंतजार के बाद कनेरा सिंचाई परियोजना को पर्यावरण मंत्रालय से सशर्त अनुमति मिल गई है। हालांकि वन विभाग मुरैना से सिंचाई विभाग भिंड को पत्र मिलने की औपचारिकता अभी रह गई है। वहीं पर्यावरण मंत्रालय से सशर्त मिली इस अनुमति के बाद एक बार फिर से इस परियोजना का कार्य प्रारंभ हो सकता है। सिंचाई विभाग के अफसरों ने इसकी तैयारी शुरू कर दी है। बता दें कि अटेर क्षेत्र को सिंचित करने के लिए वर्ष 1980 में कनेरा उदवहन सिंचाई परियोजना की आधार शिला रखी गई थी।

इस परियोजना के तहत अटेर क्षेत्र के 96 गांव की 15 हजार 500 हैक्टेयर जमीन सिंचित होना थी। लेकिन शुरुआती दौर से ही इस परियोजना कोई न कोई ग्रहण लगता रहा, जिससे यह परियोजना अधर में लटकती रही। वहीं जब घड़ियाल सेंचुरी क्षेत्र में उक्त सिंचाई परियोजना के तहत इंटकवेल और जेक बेल बनाने के लिए वन विभाग ने जमीन नहीं दी तो वर्ष 2010 से कार्य पूरी तरह से बंद हो गया। हालांकि अक्टूबर महीने में पर्यावरण मंत्रालय की राष्ट्रीय वन्य जीव बोर्ड की स्थाई समिति की 70वीं बैठक में इस परियोजना को हरी झंडी मिल गई है। साथ ही उक्त परियोजना के लिए घड़ियाल सेंचुरी क्षेत्र में 0.95 हैक्टेयर जमीन मिल गई है।

तीन बार हो चुका है शिलान्यास
अटेर के किसानों के लिए वरदान साबित होने वाली कनेरा सिंचाई परियोजना का पिछले 42 सालों में तीन बार शिलान्यास हुआ। वर्ष 1980 में तत्कालीन विधायक शिवशंकर समाधिया इस योजना को लेकर आए। प्रथम शिलान्यास संसदीय सचिव जाहर सिंह शर्मा ने किया। इसके बाद आवंटन न मिलने से कार्य रुक गया। इसके बाद प्रदेश में कांग्रेस की सरकार आई। तब अटेर के तत्कालीन विधायक सत्यदेव कटारे के प्रयास से वर्ष 1986 से माधवराव सिंधिया ने दूसरी बार इस योजना का शिलान्यास किया। इसके बाद निर्माण शुरु हुआ। लेकिन कुछ समय बाद फिर रुक गया। वर्ष 2008 में अटेर विधायक अरविंद सिंह भदौरिया के प्रयास से फूप में आयोजित अंत्योदय मेला में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने तीसरी बार इस योजना परियोजना का शिलान्यास किया। लेकिन दो साल बाद फिर से निर्माण रुक गया। हालांकि अटेर विधायक और प्रदेश सरकार में सहकारिता मंत्री अरविंद सिंह भदौरिया के प्रयासों से एक बार फिर यह परियोजना के जीवित हो गई है।

चंबल की बजाय क्वारी पर इंटकवेल बनाने की बनाई थी योजना
वन विभाग की आपत्ति के बाद भले ही धरातल पर कनेरा सिंचाई परियोजना का कार्य बंद हो गया था। लेकिन विभागीय स्तर पर कागजों पर लगातार काम चल रहा था। बताया जा रहा है कि सिंचाई विभाग के अफसरों ने वर्ष 2019 में शुक्लपुरा, मोधना के पास से गुजरी क्वारी नदी पर इंटकवेल और जेब बेल बनाने की योजना बनाई थी। इसके लिए सिंचाई विभाग के अफसरों ने शासन से डीपीआर (डिटेल प्रोजेक्ट रिपोर्ट) बनाने की अनुमति मांगी थी। हालांकि वह अनुमति नहीं मिल पाई थी।

वर्ष 2008 में वनविभाग ने उठाई थी आपत्ति, 2010 से काम हो गया बंद
कनेरा सिंचाई परियोजना के निर्माण कार्य की शुरुआत वर्ष 1980 से हुई। वर्ष 1995 तक सिंचाई विभाग ने उक्त परियोजना को पूर्ण करने के लिए निर्माण कार्य किया। तब तक वन विभाग ने इस संबंध में कोई आपत्ति नहीं ली। न ही सिंचाई विभाग ने वन विभाग से कोई पत्र व्यवहार किया। वर्ष 2008 में पहली बार वन मंडलाधिकारी मुरैना ने सिंचाई विभाग को पत्र जारी कर घड़ियाल सेंचुरी क्षेत्र में निर्माण कार्य करने के लिए अनुमति लेने के लिए कहा। इसके बाद वर्ष 2010 से उक्त परियोजना का कार्य पूर्ण रूप से बंद हो गया।

इन शर्तों को मानना होगा

  • डॉल्फ़िन और घड़ियाल के संरक्षण के लिए चंबल नदी में मंत्रालय द्वारा गठित की जाने वाली समिति द्वारा सुझाए गए न्यूनतम प्रवाह स्तर को बनाए रखा जाएगा।
  • प्रस्तावक को यह सुनिश्चित करना होगा कि वन, वन्य जीवन और उसके आवासों को कोई नुकसान न हो।
  • रात में कोई काम नहीं होगा।
  • जब नदी का जल स्तर कम होगा और जलीय जीवों के लिए पानी पर्याप्त नहीं होगा है तो सिंचाई के लिए पानी का उठाव बंद कर दिया जाएगा।
  • नदी के जल स्तर एवं प्रवाह की नियमित निगरानी वन अधिकारी एवं पर्यावरणविदों की समिति द्वारा की जायेगी।
  • निर्धारित शर्तों का वार्षिक अनुपालन प्रमाण पत्र राज्य मुख्य वन्य प्राणी को प्रस्तुत किया जायेगा। साथ ही राज्य प्रमुख वन्य प्राणी द्वारा वार्षिक अनुपालन प्रमाण पत्र भारत सरकार को दिया जाएगा।

(जैसा कि पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के 4 नवंबर 2022 के पत्र में बताया गया है।)

वर्ष 1980 में जब परियोजना की आधार शिला रखी गई थी तब इसकी लागत 3.97 करोड़ रुपए थी। वर्ष 2008 तक इसकी लागत बढ़ते बढ़ते 90 करोड़ रुपए पहुंच गई। वहीं फिर पिछले 12 साल से निर्माण कार्य बंद पड़ा हुआ है। ऐसे में इसकी लागत एक बार फिर से बढ़ जाएगी। खास बात तो यह है कि वर्ष 2006 तक इस परियोजना पर 3 करोड़ 61 लाख रुपए खर्च हो चुके हैं।

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