सीखना आगे बढ़ने का इकलौता रास्ता है

घर पर एक दृश्य की कल्पना करें, जहां मुख्य हॉल में पिता बैठकर अखबार पढ़ रहे हैं। प्राइमरी स्कूल में पढ़ रहे उनके बेटे के हाथ में कुछ कागज है और वह संजीदा होकर पिता की ओर बढ़ता है। अमूमन पिता को अखबार पढ़ने के दौरान टोकना पसंद नहीं। पर बच्चा अधिकारपूर्ण टोन में कहता है, ‘डैड, आपके एक पोल (जनमत) में मेरे पास बुरी खबर है’। पिता सिर घुमाते हैं, भौंहे चढ़ाकर आश्चर्य जताते हैं कि उसने कब पोलिंग की।

बच्चा कहना जारी रखता है, ‘आज आप दो पायदान खिसक गए। आपके भविष्य के ऑफिस के लिए चीजें गंभीर दिख रही हैं।’ अब पिता अखबार से आंखें हटाए बिना कहते हैं ‘ ऐसा है? कोई सलाह कि मैं पोल में बेहतर होऊंं।’ बच्चा सलाह वाले मोड में आकर कहता है, ‘स्थिति सुधर सकती है अगर आप क्रिसमस-न्यू ईयर पर मुझे 10 दिनों की छुट्टी में बर्फ वाली जगह पर ले जाएं।’

पिता स्मार्ट बच्चे की चाल समझ गए और शांति से बोले, ‘ओके, मैं दिमाग में रखूंगा, अभी तुम तैयार होकर स्कूल जाओ, छुट्टियां शुरू होने में वक्त है और फिलहाल देश में कहीं भी बर्फ नहीं है।’ बच्चा खुश हो जाता है, आगे सलाह देता है, ‘मुझे उम्मीद है आप अखबार का ‘मदद उपलब्ध’ वाला हिस्सा भी पढ़ रहे होंगे’ और भाग जाता है। ज्यों ही बच्चा कमरे से ओझल हो जाता है, पिता खाली दरवाजे की ओर देखते हैं, उनके चेहरे पर दो परस्पर उलट भाव उभरते हैं।

चढ़ी भौंहें कहती हैं- ‘क्या? तुम मुझे घर पर पालतू और बगीचे की देखभाल के लिए कुछ मदद (हाउस हेल्प) लेने की सलाह दे रहो हो?’ और होंठ बड़ी सी मुस्कान के साथ गर्व से बोले- ‘कितना स्मार्ट बच्चा है।’ क्या इस दृश्य से आपके चेहरे पर बड़ी-सी मुस्कान नहीं आई? क्या आपने कल्पना की कि इतना ही स्मार्ट आपका बच्चा भी कुछ एेसी डिमांड कर सकता है? क्या आप कल्पना कर रहे हैं कि अगर आपका बच्चा ऐसी बात करे तो वह कैसा लगेगा? अगर ऐसा है तो निश्चित तौर पर आप स्वीकारेंगे कि वह स्मार्ट है।

ऊपर मैंने जिस बच्चे का जिक्र किया, वह जानता है कि पोल क्या होता है और किसी भी पोल में नीचे आना किसी को पसंद नहीं और यही मानवीय कमजोरी है। सबसे पहले उसने पिता को इस तथाकथित बुरी खबर से डराया और घर के मुखिया वाले पिता के मनोविज्ञान के साथ खेला और उन्हें मजबूर किया कि वह समाधान पूछें और चुपचाप छुट्टियों की मांग रख दी।

उससे भी ऊपर वह जानता है कि अखबार के क्लासिफाइड में क्या होता है और उस हिसाब से सलाह दी कि जब वे छुट्टियों पर जाएं तो घर की देखभाल के लिए अस्थायी मदद रख लें। ऐसा असाधारण बच्चा कौन नहीं चाहेगा हालांकि ये कहानी ‘केल्विन एंड हॉब्स’ कार्टून से ली गई है। इस मंगलवार की सुबह जब मुझे पता चला कि महाराष्ट्र सरकार राज्य में 14,985 स्कूल बंद करने जा रही है, क्योंकि वहां 20 से कम बच्चे हैं, तब मुझे ये कहानी याद आई।

हर तरफ से आलोचना झेलने के बाद सरकार ने रिटायर शिक्षकों की नियुक्ति से निर्णय को पलटने की कोशिश की, पर पहले ही चुपचाप कई स्कूल बंद कर दिए, क्योंकि वहां लोगों ने विरोध नहीं किया। देश में कई जिला परिषदों में सिर्फ एक स्कूल है। कल्पना करें वहां क्या होगा, जब सरकार बच्चों को दाखिला लेने के लिए प्रोत्साहित करने के बजाय कम दाखिले का हवाला देकर वो एक स्कूल भी चुपचाप बंद कर दे। राष्ट्र निर्माण के लिए सीखना ही इकलौता रास्ता है। और यह स्कूलों में होता है, कम से कम अभी ऐसा है।

फंडा यह है कि शिक्षा, प्रशिक्षण, अभ्यास, अपनी पसंद का कोई भी शब्द चुनें, अगर इंसान को बीते कल की तुलना में आज स्मार्ट बनना है, तो रोज सीखना इकलौता जरिया है। सीखने से न चूकें।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *