गूंगी गुड़िया से लेकर कुत्ते के मरने तक की राजनीति
समाज हो, समूह हो या राजनीति, जब आप किसी की कड़ी निंदा करते हैं तो सामने वाले को इससे ताकत मिलती है। वह और ताकतवर होकर उभरता है। इतिहास गवाह है श्रीमती इंदिरा गांधी को कभी लोहिया जी ने गूंगी गुड़िया और मोरारजी भाई देसाई ने लिटिल गर्ल कहा था। कालांतर में वही इंदिरा ‘आयरन लेडी’ कहलाईं और ‘इंदिरा इज इंडिया, इंडिया इज इंदिरा’ के नारे भी गूंजे।
भारतीय जनता पार्टी ने जब कांग्रेस को सवा सौ साल की बुढ़िया कहा तो मनमोहन सिंह दोबारा सत्ता में आ गए। ऐसा ही कुछ कांग्रेस के वर्तमान अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे आजकल बोल रहे हैं। गुजरात के चुनाव प्रचार में उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तुलना रावण से कर डाली। हश्र क्या हुआ? गुजरात में इस बार कांग्रेस को इतनी कम सीटें मिली हैं कि उसे विपक्ष का नेता पद मिलना भी मुश्किल हो गया है।
इन्हीं खड़गे जी ने सोमवार को बयान दिया है कि हमारे कई नेता आजादी की लड़ाई लड़ते हुए शहीद हुए। भाजपा नेताओं के घर का कोई कुत्ता भी मारा गया हो तो बताइए! अब सवाल यह उठता है कि तब भाजपा थी ही नहीं तो उनके नेता शहीद कैसे होते? खैर जो भी हो, संघ के रूप में भी माना जाए कि तब वह वजूद में थी तो क्या हुआ! आजादी की लड़ाई में शहीद हुए या नहीं, यह तो पता नहीं लेकिन कुत्ता? ये क्या भाषा हुई?
ठीक है, खड़गे जी को हिंदी ठीक से नहीं आती है। भाषा और उसकी जोड़नी का बड़ा महत्व होता है, लेकिन कोई भाषा सार्वजनिक तौर पर इस तरह अपमानित करने वाले शब्द नहीं सिखाती। राजनीतिक तौर पर आपका गुस्सा जायज हो सकता है। आपका तैश में आना भी समय की जरूरत हो सकती है, लेकिन अपशब्दों का इस्तेमाल किसी भी सूरत में वाजिब नहीं हो सकता।
सही है, तालियों की गूंज और जयकारों के बीच हमारे नेता जोश में आ जाते हैं, लेकिन इस जोश में होश तो रहना ही चाहिए। जिस तरह रावण वाले भाषण को मोदी ने गुजरात में कांग्रेस के खिलाफ इस्तेमाल किया था, अब वे खड़गे जी के कुत्ते वाले बयान का भी इस्तेमाल जरूर करेंगे। कांग्रेस की ओर से उसका जवाब कौन देगा, यह अभी तक तो तय नहीं है। भारत जोड़ो यात्रा के दौरान राहुल गांधी जिस तरह का संयम दिखा रहे हैं, वह अतुलनीय है।
वे एक-एक शब्द तौलकर बोल रहे हैं लेकिन उनके मंच पर समय-समय पर आते-जाते नेताओं ने शायद गंभीरता को उतनी तवज्जो नहीं दी। कभी उन्होंने दूसरी पार्टियों या नेताओं के बारे में हल्की बयानबाजी की तो कभी अपनी ही पार्टी के अंदरूनी मामलों को तूल दिया। निश्चित तौर पर ऐसे बयानों से पार्टी और भारत जोड़ो यात्रा की गंभीरता पर असर पड़ता है। राहुल गांधी इस तरह की अगंभीरता को कभी स्वीकार नहीं करेंगे।
जयकारों के बीच नेता जोश में आ जाते हैं, लेकिन होश तो रहना ही चाहिए। जिस तरह रावण वाले भाषण को मोदी ने गुजरात में कांग्रेस के खिलाफ इस्तेमाल किया था, खड़गे के बयान का भी इस्तेमाल करेंगे।