क्या राजा भैया की बादशाहत अब खतरे में है?
रघुराज प्रताप सिंह (Raghuraj Pratap Singh) को राजा भैया (Raja Bhaiya) बनाने में बीजेपी और समाजवादी पार्टी दोनों का पूरा सहयोग रहा है. हालांकि राजा भैया ने कभी इन दोनों राजनीतिक पार्टियों के टिकट पर चुनाव नहीं लड़ा. लेकिन पर्दे के पीछे से दोनों ही राजनीतिक पार्टियों का समय-समय पर इनको समर्थन जरूर मिलता रहा है.
उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) की सियासत में भदरी नरेश, कुंडा के राजा रघुराज प्रताप सिंह (Raghuraj Pratap Singh) उर्फ राजा भैया (Raja Bhaiya) आजकल सुर्खियों में हैं. राजा भैया भारतीय राजनीति की वह शख्सियत हैं जिनसे बॉलीवुड के फिल्मकार इंस्पायर्ड हो सकते हैं. राजघराना, दबंगई, मगरमच्छ की कहांनियां, फोटोजेनिक पर्सनॉलिटी, घुड़सवारी, युवा छवि और हर सरकार में पहुंच के बलबूते समर्थकों की भारी संख्या उन्हें अपनी जाति ही नहीं दूसरी जातियों के भी युवाओं के बीच हीरो जैसी छवि प्रदान करती है. मगर इन दिनों उनकी यही छवि उन पर भारी पड़ती नजर आ रही है. अपराधिक मुकदमों के चलते उनकी गिनती प्रदेश के माफिया लिस्ट में होती रही है. इसके चलते ही भारतीय जनता पार्टी (BJP) और समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) दोनों उनसे दूरी तो बना रही हैं. हालांकि दूरी बनाने के कई दूसरे कारण भी हैं पर जनता के बीच यही संदेश दिया जाता है कि उनकी माफिया छवि के चलते उन्हें पार्टी में नहीं लाना है.
इसी छवि ने कभी उन्हें एक ताकतवर नेता के रूप में पूर्वी उत्तर प्रदेश में स्थापित किया तो यही छवि आज उनके राजनीतिक अस्तित्व के लिए ग्रहण बनती नजर आ रही है. आने वाले कुछ महीनों में उत्तर प्रदेश विधानसभा के चुनाव (UP Assembly Elections) होने हैं. सियासी पार्टियां जोड़-तोड़ में लग गई हैं. राजा भैया भी चाहते हैं कि उनकी पार्टी जनसत्ता दल ‘लोकतांत्रिक’ समाजवादी पार्टी या भारतीय जनता पार्टी में से किसी के साथ गठबंधन करके यूपी की सियासत पर अपने राजनीतिक वर्चस्व को बचाए रखे. लेकिन किसी भी दल में उनकी दाल गलती नजर नहीं आ रही है.
राजा भैया के लिए हुई मुश्किल
एक तरफ जहां अखिलेश यादव, राजा भैया का नाम तक सुनना नहीं चाहते हैं. वहीं दूसरी ओर भारतीय जनता पार्टी भी अब योगी आदित्यनाथ के सामने किसी और राजपूत नेता की जरूरत नहीं रह गई है. दूसरी बात सीएम योगी आदित्यनाथ ने यूपी में माफिया को खत्म करने सेहरा अपने सर बांध रखा है, इसलिए अगर राजा भैया पार्टी में आते हैं या उनसे गठबंधन होता है तो बड़ी मुश्किल से बनाई सीएम की इस छवि पर बट्टा लगना तय है. दूसरी ओर पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने तो राजा भैया को लेकर रविवार को कुछ ऐसा बोल दिया, जिससे न सिर्फ राजा भैया के आत्मसम्मान को चोट पहुंचाई बल्कि ठाकुर समाज भी अखिलेश के इस बात से नाराज है.
दरअसल जब एक पत्रकार ने अखिलेश यादव से सवाल किया कि आप राजा भैया से इतनी नाराजगी क्यों रखते हैं? तो इस पर अखिलेश यादव ने पत्रकार से कहा कि ‘यह कौन है? किन का नाम ले रहे हैं आप’. अखिलेश यादव कि इन बातों से साफ नजर आता है कि समाजवादी पार्टी और जनसत्ता दल लोकतांत्रिक का गठबंधन आगामी विधानसभा चुनाव में शायद ही हो. आपकी जानकारी के लिए बता दें कि राजा भैया ने अभी कुछ दिन पहले ही मुलायम सिंह यादव से ही मुलाकात की थी. मुलायम सिंह यादव से राजा भैया के संबंध बहुत पुराने और प्रगाढ़ हैं.
आपको याद होगा साल 2002 में जब उत्तर प्रदेश की तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती ने राजा भैया पर ‘पोटा’ लगवा कर उन्हें जेल भेज दिया था, तो वह मुलायम सिंह यादव ही थे जिन्होंने महज एक साल बाद साल 2003 में सत्ता संभालते ही राजा भैया पर लगे सभी आरोपों को खारिज किया था और कड़ी मशक्कत के बाद उन्हें जेल से बाहर निकलवाया था.
राजा भैया को बनाने में एसपी और बीजेपी दोनों का हाथ रहा
रघुराज प्रताप सिंह को राजा भैया बनाने में भारतीय जनता पार्टी और समाजवादी पार्टी दोनों का पूरा सहयोग रहा है. हालांकि राजा भैया ने कभी इन दोनों राजनीतिक पार्टियों के टिकट पर चुनाव नहीं लड़ा. लेकिन पर्दे के पीछे से दोनों ही राजनीतिक पार्टियों का समय-समय पर इनको समर्थन जरूर मिलता रहा है. साल 1993 में राजा भैया पहली बार निर्दलीय विधायक चुने गए और आज तक चुने जाते रहे हैं. प्रदेश में जब समाजवादी पार्टी की सरकार रहती तो वह उसमें मंत्री बनते और जब भारतीय जनता पार्टी की सरकार रहती तो उसमें मंत्री बनते. उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ के पहले कल्याण सिंह, राम प्रकाश गुप्ता और राजनाथ सिंह मुख्यमंत्री रह चुके हैं. राजा भैया इन तीनों ही सरकारों में मंत्री रहे थे. इसके बाद जब मुलायम सिंह यादव और अखिलेश यादव मुख्यमंत्री बने तब भी राजा भैया मंत्री रहे. हालांकि 2017 में जब योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री बन कर आए तो राजा भैया इस सरकार का हिस्सा नहीं रहे.
अपनी पार्टी बनाने की मजबूरी या कुछ और
राजा भैया अखिलेश यादव और मुलायम सिंह यादव दोनों की ही सरकारों में मंत्री रहे हैं. लेकिन साल 2018 में हुए राज्यसभा चुनाव के दौरान अखिलेश यादव और राजा भैया के बीच के रिश्ते बिगड़ गए. जिसके बाद राजा भैया ने अपनी खुद की पार्टी जनसत्ता दल लोकतांत्रिक बना ली. कहा जाता है कि राजा भैया ने अपनी नई पार्टी बीजेपी के आशीर्वाद से बनाई थी.
दरअसल बीजेपी चाहती थी कि राजा भैया उत्तर प्रदेश में एक राजपूत नेता की छवि रखते हुए यूपी की कुछ विधानसभा सीटों पर अपनी पार्टी से जीत दर्ज करें, जहां राजपूतों की आबादी ज्यादा है. और चुनाव के बाद जब भारतीय जनता पार्टी को कुछ सीटों की जरूरत हो तो राजा भैया अपने विधायकों के साथ बीजेपी को समर्थन दे दें. क्योंकि राजा भैया के रिश्ते भारतीय जनता पार्टी और उसके कोर लीडरशिप के साथ भी अच्छे हैं.
अखिलेश की बेरुखी का कारण
अखिलेश यादव और राजा भैया के बीच मतभेद तब सामने आए जब 2019 कि लोकसभा चुनाव में अखिलेश यादव ने ऐलान किया कि उनकी पार्टी मायावती की पार्टी बहुजन समाज पार्टी के साथ गठबंधन करेगी. राजा भैया को यह बिल्कुल मंजूर नहीं था और इसी के बाद से अखिलेश यादव और राजा भैया के बीच कड़वाहट बढ़ने लगी. चुनाव के दौरान यह कड़वाहट और मजबूत हुई. उसके बाद जब राज्यसभा के चुनाव हुए, तब अखिलेश यादव चाहते थे कि राजा भैया बहुजन समाज पार्टी के प्रत्याशी को अपना वोट दें. लेकिन उन्होंने उनके खिलाफ जाकर अपना वोट बीजेपी के प्रत्याशी को दे दिया. इसके बाद राजा भैया ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के खिलाफ भी अपना प्रत्याशी देने से मना कर दिया. इन घटनाओं ने अखिलेश यादव और राजा भैया के बीच तनातनी और बढ़ा दी.
इन सबके बीच कुछ तात्कालिक कारण भी दोनों के बीच दूरियां बढ़ाने में कारण बनें. कहा जा रहा है कि प्रतापगढ़ के जिलाध्यक्ष छविनाथ यादव को परेशान किया गया . उन्हें कई बार जेल भेजा गया. समाजवादी पार्टी के दलित नेता इंद्रजीत सरोज को भी परेशान किया गया. अखिलेश यादव को लगता है कि इन सबके पीछे कहीं न कहीं रघुराज प्रताप सिंह ही हैं.
रत्ना सिंह के कारण बीजेपी से बढ़ी दूरी
दरअसल पिछले पांच सालों में राजा भैया की बीजेपी से दूरी बनी रही. हालांकि बीजेपी सरकार बनने के बाद प्रतापगढ़ में राजा भैया के खिलाफ बीजेपी ने ऐसा कोई कदम नहीं उठाया, जिससे लगे कि दोनों के बीच संबंध ठीक नहीं है. राजा भैया के बीजेपी के बड़े नेताओं से, खासतौर से ठाकुर नेताओं से अच्छे ताल्लुकात हैं. लेकिन प्रतापगढ़ की सियासत में राजा भैया की धुर विरोधी राजकुमार रत्ना सिंह की बीजेपी में एंट्री के बाद अघोषित तौर पर राजा भैया बीजेपी से नाराज हो गए.
जबकि राजा भैया ने राज्यसभा चुनाव में अखिलेश को नाराज कर बीजेपी को समर्थन दिया था. प्रतापगढ़ की सियासत में तीन दिग्गज माने जाते हैं. इसमें से एक राजा भैया, जो कुंडा के रहने वाले हैं. दूसरा कलाकांकर कुंडा के पड़ोस में एक और रियासत की राजकुमारी रत्ना सिंह, जो दिग्गज कांग्रेसी दिनेश सिंह की बेटी हैं. और प्रतापगढ़ से तीन बार सांसद रह चुकी हैं. तीसरे प्रमोद तिवारी, जिन्हें रत्ना सिंह का समर्थक माना जाता है.
यादव मतदाता नाराज हुए तो राजा भैया को हो जाएगी मुश्किल
हालांकि राजा भैया को पता है कि अगर अखिलेश यादव की नाराजगी दूर नहीं हुई तो उनके विधानसभा क्षेत्र में जो यादव वोट बैंक उनके साथ खड़ा होता है, वह इस बार के विधानसभा चुनाव में उनसे छिटक जाएगा. यादव वोटों के साथ मुस्लिम वोट से भी उन्हें हाथ धोना पड़ जाएगा. अगर ऐसा हुआ तो उनका चुनाव जीत पाना बेहद मुश्किल हो जाएगा. यही वजह है कि राजा भैया चाहते हैं कि उनकी पार्टी जनसत्ता दल लोकतांत्रिक का गठबंधन समाजवादी पार्टी के साथ आगामी विधानसभा चुनाव के लिए हो जाए. हालांकि अखिलेश के तेवर देखकर लग रहा है कि जैसे इस बार का विधानसभा चुनाव राजा भैया को अपने बूते पर अकेले लड़ना होगा.