किसी का शोषण न करें , सबकी सुनें और बोलने का मौका दें …?

न्यू ईयर पर नेहरू के जीवन से 7 सबक लें:किसी का शोषण न करें , सबकी सुनें और बोलने का मौका दें

पूरे वर्ष के लिए आज हम आपको ‘हिन्द के जवाहर’ अर्थात देश के पहले प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू के जीवन से 7 बड़े सबक बताएंगे, जिन्हें हम सब अपने जीवन में उतार सकते हैं। तैयार हैं मोटिवेशनल डोज के लिए?

आइये लें न्यू ईयर रेजोल्यूशन, ‘हिन्द के जवाहर’ के साथ

1) लोकतंत्र का मूल्य: नेहरू लोकतंत्र के चैंपियन थे और उन्होंने भारत में एक मजबूत और जीवंत लोकतंत्र की स्थापना के लिए काम किया। जब देश ने कभी इलेक्शन नहीं देखे थे, नेहरू ने भारत के हर वयस्क की पहली बार वोटिंग लिस्ट में लिस्टिंग करवाई। पूरी ईमानदारी से 1951-52 में आम चुनाव करवाए गए। देश की जनता ने पूरी मेजोरिटी से उन्हें सरकार बनाने का मौका दिया।

हमारे लिए लेसन: अपने जीवन में विभिन्न मतों के लिए सम्मान रखें, और अपनी एप्रोच लोकतान्त्रिक रखें।

2) शिक्षा की शक्ति: नेहरू एक उत्साही पाठक थे और मानते थे कि शिक्षा प्रगति और विकास की कुंजी है। उन्होंने भारत में पहला IIT स्थापित किया और शिक्षा और अनुसंधान में भारी निवेश किया। वे खुद उच्च कोटि के विद्वान थे, लेखक थे, और उनकी ‘डिस्कवरी ऑफ इंडिया’ एक क्लासिक मानी जाती है।

हमारे लिए लेसन: अपने देश की तरक्की के लिए अन्धविश्वास त्याग कर, शिक्षा और विज्ञान से आगे अपने जीवन को डिफाइन करें।

3) मानवाधिकारों का मूल्य: नेहरू मानवाधिकारों के प्रबल समर्थक थे और उन्होंने सभी लोगों के लिए समानता, न्याय और सम्मान को बढ़ावा देने के लिए काम किया। नेताजी बोस के साथ नेहरू ने 1935 में ही जमींदारी समाप्त करने का संकल्प ले लिया था। वो 1950 के दशक में हो भी गया। दुनिया ने तब के एक गरीब देश भारत में इस तरह के जज्बे को खूब सराहा।

लेसन: अपने जीवन में, किसी भी प्रकार का शोषण नहीं करेंगे।

संविधान सभा की अंतिम बैठक 24 नवम्बर 1949 को हुई। इस दिन 284 लोगों ने संविधान पर हस्ताक्षर किए। हस्ताक्षर करने वाले देश के पहले व्यक्ति जवाहरलाल नेहरू थे।
संविधान सभा की अंतिम बैठक 24 नवम्बर 1949 को हुई। इस दिन 284 लोगों ने संविधान पर हस्ताक्षर किए। हस्ताक्षर करने वाले देश के पहले व्यक्ति जवाहरलाल नेहरू थे।

4) नेतृत्व की भूमिका: नेहरू एक मजबूत नेता थे जिन्होंने चुनौतीपूर्ण समय में भारत के लोगों को प्रेरित और निर्देशित किया। जब संसाधन नहीं के बराबर थे, तब उन्होनें दिन भर रोते रहने, और भूतकाल को कोसने का काम नहीं किया। वो तुरंत एक नए अर्थतंत्र के निर्माण में लग गए। बेहद कठिन हालातों में, उन्होनें जहां जरूरत थी, कठोरता से कानून-व्यवस्था लागू करवाई, और देश का ध्यान असली मुद्दों पर लगाया। कभी भी अपनी जिम्मेदारियों ने भागे नहीं, और कमजोरियों को छुपाने का प्रयास नहीं किया। इसीलिए जनता ने उन्हें अगले दोनों आम चुनावों में भी पूर्ण बहुमत से चुन लिया।

लेसन: जहां जरूरी हो, वहां कड़े निर्णय लें।

5) विविधता का मूल्य: अपने लम्बे संघर्ष के दौरान, नेहरू ने भारत की आत्मा – उसकी विविधता – को पहचान लिया था। सत्ता में आने पर, भारत में विविधता में एकता को बढ़ावा देने के लिए काम किया। अपने कैबिनेट में ऐसे भी लोगों को रखा, जो उनसे मतान्तर रखते थे। नेहरू एक कॉन्फिडेंट आदमी थे, जो इन बातों से डरते नहीं थे। बड़े मुद्दों पर सबकी राय ली जाती थी, और ऐसा करने पर अनेक बार विदेशी राजनयिक चकित भी होते थे।

लेसन: सबकी सुनें, सबको बोलने का मौका दें।

6) अंतर्राष्ट्रीय सहयोग का महत्व: नेहरू का मानना था कि राष्ट्रों को वैश्विक चुनौतियों का समाधान करने और शांति और समृद्धि को बढ़ावा देने के लिए मिलकर काम करना चाहिए। अमेरिका और सोवियत संघ से डरे बिना, नेहरू ने अन्य विश्व नेताओं के साथ, गुट निरपेक्ष आंदोलन की स्थापना की। भारत के लिए इससे बेहतर रणनीति नहीं हो सकती थी। अब, दोनों बड़ी ताकतें, भारत को अपनी तरफ करने की होड़ में आ गयीं। नेहरू ने स्पष्ट कर दिया था कि इंडिया की चुनौतियां केवल विशिष्ट ढंग से ही सुलझाई जा सकती थी। पिछलग्गू बनना स्वीकार्य नहीं था।

लेसन: अपनी राह खुद तय करें।

7) धर्मनिरपेक्षता का महत्व: नेहरू अपने सीनियर नेताओं पटेल और गांधीजी की ही तरह धर्मनिरपेक्षता में दृढ़ विश्वास रखते थे और उन्होंने एक ऐसे देश के निर्माण के लिए काम किया जहां सभी धर्मों के लोग सद्भाव से रह सकें। उन्हें अच्छे से पता था कि एक बार धर्म के नाम पर लोगों को बांट दिया गया, तो देश की तरक्की में बहुत बड़ा स्पीड ब्रेकर लग जायेगा। इस विजन की प्रशंसा आज भी विदेशों में सब करते हैं, और भारत को ‘गांधी नेहरू के देश’ के रूप में जाना जाता है।

लेसन: हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, आपस में सब भाई-भाई।

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