भोपाल । शिक्षा का अधिकार कानून (आरटीई) में पात्रता परीक्षा उत्तीर्ण युवाओं को निजी स्कूलों में शिक्षक नियुक्त करने का प्रविधान है। इसे प्रभावी तरीके से लागू करने का जिम्मा सरकार को सौंपा गया है, पर कानून को लागू हुए 13 साल बीत गए, मगर प्रदेश के निजी स्कूलों में यह पात्रता रखने वाले शिक्षकों की भर्ती नहीं कराई जा सकी है।

यहां पात्रता परीक्षा उत्तीर्ण कर चुके युवाओं की संख्या आठ लाख से ज्यादा है, इनमें से करीब तीन लाख अब भी सरकारी नौकरी का इंतजार कर रहे हैं। हालात यह हैं कि निजी स्कूलों में बैचलर इन एजुकेशन (बीएड) और डिप्लोमा इन एलिमेंट्री एजुकेशन (डीएलएड) योग्यताधारी पढ़ा रहे हैं। इन्होंने कोई पात्रता परीक्षा उत्तीर्ण नहीं की है।

आरटीई कानून कहता है कि पात्रता परीक्षा ही निजी स्कूलों में शिक्षकों की नियुक्ति का आधार होनी चाहिए, जैसे कि सरकारी स्कूलों में नियुक्ति के लिए कराई जाती है। वर्ष 2009 में लागू इस कानून के इस प्रविधान पर स्कूल शिक्षा विभाग ने कभी ध्यान नहीं दिया। सरकार ने सिर्फ डीएलएड एवं बीएड की अनिवार्यता रखी।

स्कूलों ने भी दो साल के पत्राचार पाठ्यक्रम के माध्यम से शिक्षकों की योग्यता पूरी करा ली और विभाग को बता दिया। गड़बड़ी इस स्तर पर भी है कि एक ही शिक्षक दो-तीन स्कूलों में पढ़ा रहे हैं, जबकि निजी स्कूलों में मैनेजमेंट संभाल रहे ज्यादातर कर्मचारी हाईस्कूल और हायर सेकंडरी उत्तीर्ण भी नहीं हैं।

निजी स्कूलों में एक करोड़ 81 लाख शिक्षक

प्रदेश में एक करोड़ 54 लाख 27 हजार 286 स्कूल हैं। इनमें से 61 लाख 83 हजार 82 निजी स्कूल हैं, जिनमें पहली से 12वीं तक की पढ़ाई कराई जाती है। इन स्कूलों में एक करोड़ 81 लाख 42 हजार 109 शिक्षक सेवाएं दे रहे हैं। उल्लेखनीय है कि वर्ष 2011 की पात्रता परीक्षा में करीब छह लाख अभ्यर्थी उत्तीर्ण हुए थे। इसमें से डेढ़ लाख को ही सरकारी नौकरी मिली और वर्ष 2018 की पात्रता परीक्षा में भी ऐसा ही हुआ।

सरकार को करानी थी परीक्षा

जैसे सरकारी स्कूलों में शिक्षकों की भर्ती के लिए स्कूल शिक्षा विभाग कर्मचारी चयन आयोग के माध्यम से पात्रता परीक्षा आयोजित करता है, ठीक वैसे ही निजी स्कूलों में शिक्षकों के पदों को भरने के लिए परीक्षा कराने का जिम्मा विभाग का है। इसके बाद भी विभाग ने नए सिरे से परीक्षा करानी तो दूर, पुरानी परीक्षा में उत्तीर्ण युवाओं को नौकरी दिलाने की कोशिश भी नहीं की।