अंग निकालकर बेचे:बॉडी पार्ट्स की सबसे ज्यादा कीमत ब्लैक मार्केट में, हार्ट-लिवर 16 करोड़, तो हड्डी 40 हजार की

अंगदान महादान कहा जाता है। मगर इस दान से लोग कतराते हैं। वहीं, हडि्डयों के दान में तो लोग और भी पीछे हट जाते हैं। क्योंकि लोग सामाजिक-धार्मिक वजहों से यह मानते हैं कि इससे मरने वाले व्यक्ति का शरीर खराब हो जाता है। भारत में अंग न मिलने से हर साल करीब 5 लाख लोग दम तोड़ रहे हैं। यही स्थिति पूरी दुनिया में है।

अंगों की इसी कमी के चलते देश और दुनिया के ब्लैक मार्केट में ऊंचे दामों पर बॉडी ऑर्गन बेचे जा रहे हैं, जो गैरकानूनी तरीके से हासिल किए जाते हैं। तीन केस स्टडी से समझते हैं कि ऑर्गन डोनेशन की कमी कितनी है और इसकी जरूरत क्यों है और किस तरह से इसकी तस्करी की जा रही है।

केस-1: 20 साल में बस 30 लोगों ने हड्डी डोनेट की

एम्स, दिल्ली को 2020 के बाद से पहली बार बोन डोनेशन 17 दिसंबर, 2022 को मिला। यह बोन डोनेशन एक सैनिक की 28 साल की पत्नी का था, जो आर-आर हॉस्पिटल में ब्रेन डेड स्थिति में थी।

ब्रेन डेड महिला की जांघों की हड्डियां फीमर, टिबिया फिबुला और पटेला निकाली गईं। इन्हें एम्स भेजा गया। बता दें कि 1999 में एम्स में बोन बैंक स्थापित होने के बाद से मार्च, 2020 तक 30 लोगों की हडि्डयां डोनेट हुईं।

केस-2: स्पेनिश महिला के अंगदान से 5 की बची जान

ब्रेन डेड स्पेनिश महिला के अंगदान से चार भारतीयों और एक लेबनानी नागरिक की जान बचाई गई।

असल में, टेरेसा मारिया फर्नांडीज भारत घूमने के लिए आई थीं। ब्रेन स्ट्रोक के बाद मारिया को 5 जनवरी को मुंबई के जसलोक अस्पताल में एडमिट कराया गया। जहां न्यूरोलॉजिस्ट डॉ. आजाद ईरानी और न्यूरोसर्जन डॉ. सुधीर अंबेकर ने उनका ऑपरेशन किया।

मारिया की हालत में सुधार नहीं हुआ और उन्हें ब्रेन डेड घोषित कर दिया गया। खबर सुनकर मुंबई पहुंचे उनके बेटे और बेटी की सहमति पर मारिया के लंग्स, लिवर और दोनों किडनी भारतीय मरीजों की दी गईं, जबकि उनका हार्ट लेबनानी नागरिक को ट्रांसप्लांट किया गया। मारिया की बोन्स भी डोनेट की गईं।

इन खबरों का निचोड़ है कि लोग बोन या ऑर्गन डोनेशन के लिए मुश्किल से आगे आ रहे हैं। जबकि एक इंसान के अंगदान कई लोगों की जान बचा सकते हैं।

जरूरत के मुताबिक ऑर्गन्स न मिलने से मानव अंगों की तस्करी से जुड़े क्राइम से भी लोग नहीं हिचक रहे। जैसा कि तीसरी कहानी कहती है-

केस-3: गर्लफ्रेंड का दिल चुराने वाले ने ही निकाल लिया हार्ट

मेक्सिको की एक लड़की को गेमिंग ऐप पर पेरू के एक लड़के से इश्क हुआ। दोनों में प्यार ऐसा परवान चढ़ा कि लड़की करीब 5000 किलाेमीटर का सफर करके अपने बॉयफ्रेंड से मिलने पेरु पहुंच गई। वह तो यही समझती रही कि उसे अपना प्यार मिल चुका है, मगर हकीकत कुछ और ही थी।

कुछ दिन सब ठीकठाक रहा, फिर कुछ वक्त बाद लड़के ने लड़की की हत्या कर दी और उसके हार्ट समेत लाइफ सेविंग ऑर्गन्स निकाल लिए। बाकी बॉडी के टुकड़े कर उन्हें समुद्र में फेंक दिया। पुलिस को जब लड़की की लाश मिली तो उसकी बॉडी में कई ऑर्गन्स नहीं थे।

यह कहानी है मैक्सिकन लड़की ब्लांका ऑरेलैनो की, जिसने अपने बॉयफ्रेंड जुआन पॉब्लो के प्यार की खातिर पिछले साल 7 जुलाई को मेक्सिको सिटी से पेरू की राजधानी लीमा के लिए उड़ान भरी थी।

भारत सरकार के स्वास्थ्य सेवा महानिदेशालय के मुताबिक हर साल अंग न मिलने की वजह से भारत में करीब 5 लाख लोग दम तोड़ देते हैं।

ग्राफिक में देखा जा सकता है कि भारत में हर साल कितने अंगों की जरूरत पड़ती है और उसके न मिलने से कितने लोग जान गवां रहे हैं।

ऑर्गन ट्रांसप्लांट की सूची लंबी होती है। इसलिए दुनियाभर में रसूखदार लोग ऑर्गन हासिल करने के लिए ब्लैक मार्केट का रुख करते हैं, जहां धोखे से लोगों के अंग निकालकर बेचे जा रहे हैं।

हर साल 13 हजार करोड़ से ज्यादा की कमाई कर रहे मानव तस्कर

बड़ी डिमांड होने के चलते मानव अंगों का ब्लैक मार्केट भी डेवलप हो चुका है। ब्रिटेन की नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन पर मई, 2020 में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक, दुनिया भर में हर साल गैरकानूनी तरीके से 12 हजार ऑर्गन ट्रांसप्लांट होते हैं, जिससे मानव तस्कर करीब 13 हजार करोड़ रुपए की कमाई करते हैं। डार्क वेब पर अलग-अलग अंगों का बाजार चल रहा है।

तस्करी के अंगों से हो रहा दुनिया में 10% ऑर्गन ट्रांसप्लांट

संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक पूरी दुनिया में मानव अंगों की अवैध तस्करी की जा रही है।

खासकर गरीब देशों में ये बड़ी समस्या है, जहां कानूनी तौर पर बहुत कम ऑर्गन उपलब्ध हो पाते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक, दुनियाभर में जितने ऑर्गन ट्रांसप्लांट होते हैं, उनमें से करीब 10 फीसदी आपराधिक तरीकों से हासिल किए जाते हैं।

कई मामलों में ऑर्गन तस्कर डॉक्टर बनकर पीड़ित को ऑपरेशन के लिए बहला-फुसलाकर या डरा-धमकाकर मना लेते हैं। कई तस्कर पीड़ित का अपहरण तक कर लेते हैं।

हार्ट और लिवर की कीमत सबसे ज्यादा-16 करोड़

विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक हर साल 10 हजार के करीब अवैध ऑर्गन ट्रांसप्लांट होते हैं। पेमेंट्स डॉट कॉम के मुताबिक जो अंग जितना महत्वपूर्ण होता है, ब्लैक मार्केट में उसकी कीमत भी उसी हिसाब से तय होती है।

डार्क वेब पर हार्ट या लिवर की कीमत 16.31 करोड़ रुपए के करीब है। एक आंख करीब 95 हजार से 1 लाख रुपए के बीच मिल रही है। हाथ-पैर की हड्डियां 40 हजार रुपए पीस यानी फीमर (जांघों और कुहनी) के हिसाब से बिक रही हैं।

भारत में भी गरीब लोग ह्यूमन ट्रैफकिंग के शिकार हो रहे हैं। लेकिन कई मामलों में यह भी देखा जा सकता है कि लोग मजबूरी में अंग बेच रहे हैं।

मानव शरीर के 6 अंग होते हैं जीवनदायी

मृत व्यक्ति के छह अंग जीवन देने वाले माने जाते हैं। इनमें किडनी, लिवर, हार्ट, लंग्स, पैंक्रियाज और इंटेस्टाइन शामिल हैं। यूट्रस भी ट्रांसप्लांट किया जाता है, लेकिन इसे जीवन रक्षक अंग नहीं माना जाता है।

स्वाभाविक मृत्यु के बाद व्यक्ति का कॉर्निया, बोन, स्किन, ब्लड वेसेल्स, डोनेट किए जा सकते हैं। ब्रेनस्टेम डेथ के बाद करीब 37 ऑर्गन और टिशूज को डोनेट किया जा सकता है। जिसमें छह जीवन रक्षक अंग भी शामिल हैं।

अंगदान ही नहीं, हडि्डयों के डोनेशन से भी लोग कतराते हैं

लोग सिर्फ अंगदान से ही नहीं बल्कि हड्डियों को डोनेट करने से हिचकते हैं। अंगदान में सबसे ज्यादा दिक्कत बोन डोनेशन की होती है।

दिल्ली एम्स में बोन बैंक स्थापित करने वाले डॉ. राजेश मल्होत्रा बताते हैं कि जानकारी के आभाव, गलत धारणाएं और धार्मिक भावनाओं के चलते लोग हड्डी का डोनेशन कम ही करते हैं।

हड्‌डियां निकाल लेने से बॉडी का ढांचा खराब नहीं होता

दरअसल, लोग यह मानते हैं कि हड्‌डियां निकाल लेने से शव का ढांचा खराब हो जाएगा। शव लचीला हो जाएगा। लोग यह भी सोचते हैं कि बोन डोनेशन से मृत व्यक्ति को जलाने के बाद उसकी राख कम हो जाएगी, लेकिन ऐसा नहीं है।

कैसे होता है बोन डोनेशन

डॉ. राजेश मल्होत्रा ने बताया कि शवों से हर हड्‌डी को डोनेशन के लिए नहीं निकाला जाता है। इसमें ज्यादातर शरीर के निचले हिस्से की हड्डियां इस्तेमाल की जाती हैं। जैसे दोनों पैरों की हडि्डयां, घुटनों की कैप और घुटनों के लिगामेंट्स व कार्टिलेज, जांघों की हडि्डयां और शिन का हिस्सा निकाला जाता है।

जब हड्डियां निकाल ली जाती हैं तो बॉडी का क्या होता है?

हडि्डयां निकल जाने के बाद बॉडी को फिर पुराने शेप में लाया जाता है। एम्स ट्रॉमा सेंटर के प्रमुख डॉ. मल्होत्रा बताते हैं कि हडि्डयां निकलेने के बाद बॉडी में लकड़ियों और कॉटन के जरिए शरीर को वापस पुराना शेप दिया जाता है, ताकि बॉडी का लुक न बिगड़े और डोनर की गरिमा भी कायम रहे। कॉटन बॉडी के भीतर के ब्लड और दूसरे फ्लूइड को सोख लेता है।

अब हड्डियों के दान से जुड़ी इस पौराणिक कथा से भी रूबरू हो लेते हैं-

भारत में हडि्डयों के महादान का पहला जिक्र, जिससे इंद्र को फिर मिला देवलोक

भारतीय परंपरा में हड्डियों के दान का जिक्र मिलता है। भागवत पुराण की एक कथा के मुताबिक, वृत्रासुर नाम के एक राक्षस ने देवलोक पर आक्रमण कर दिया। देवराज इंद्र समेत सभी देवताओं को अपने प्राण बचाकर भागना पड़ा। वह त्रिदेवों ब्रह्मा, विष्णु एवं शिव के पास मदद मांगने पहुंचे।

मगर, तीनों देवताओं ने कहा कि अभी संसार में ऐसा कोई अस्त्र-शस्त्र नहीं है जिससे वृत्रासुर को मारा जा सके। दरअसल, वृत्रासुर को यह वरदान था कि उसकी हत्या किसी भी ज्ञात हथियार से नहीं की जा सकेगी, जिसके कारण वह अजेय बन गया था।

इंद्र को उदास देखकर भगवान शिव ने कहा कि धरती पर एक महामानव हैं दधीचि, जिन्होंने घोर तपस्या से अपनी हड्डियों को बेहद कठोर बना लिया है। अगर वह संसार के कल्याण के लिए अपनी हड्डियां दान कर दें तो ही वृत्रासुर पर विजय पाई जा सकती है।

तब इंद्र ने दधीचि के पास पहुंचकर उनसे प्रार्थना की और उनकी हडि्डयां मांगीं। इस पर महर्षि दधिचि ने संसार के हित में अपने प्राण स्वेच्छा से त्यागकर हड्डियां दान कीं।

इसके बाद देवताओं के शिल्पी विश्वकर्मा ने दधीचि की हडि्डयों से इंद्र के लिए वज्र नामक हथियार बनाया और इससे दूसरे देवताओं के लिए भी अस्त्र-शस्त्र बनाए।

फिर जब असुरों से युद्ध हुआ तो इंद्र ने वृत्रासुर पर दधीचि की हडि्डयों से बने वज्र का प्रहार किया। जिससे वृत्रासुर का अंत हो गया और देवताओं को दोबारा देवलोक मिल गया।

अभी तक हमने मानव अंगों की कमी से होने वाली मौतों और अंगों के अवैध कारोबार के बार में पढ़ा। अब हम आगे भारत में अंगदान को लेकर कानून, उसकी प्रक्रिया, लोग ऑर्गन डोनेशन से क्यों हिचक रहे हैं, उसकी पड़ताल करेंगे।

अंगदान पर क्या कहता है कानून

मानव अंगों का प्रत्यारोपण अधिनियम (THOA) 1994 के मुताबिक अंगदाता जीवित या मृत व्यक्ति दोनों हो सकते हैं।

जीवित व्यक्ति अपनी एक किडनी, पैंक्रियाज और लिवर के कुछ पार्ट्स डोनेट कर सकता है। शर्त यह होती है कि अंगदाता की उम्र डोनेशन के समय 18 वर्ष से अधिक हो और वह अपने ब्लड रिलेटिव को ही ऑर्गन डोनेट कर सकता है।

कुछ विशेष मामलों में खून के रिश्तों के अलावा भी अंगदान हो सकता है। हालांकि कानून इतना सख्त है कि बहुत मुश्किल से ही लोग खून के रिश्तों से इतर अंगदान कर पाते हैं।

क्या होता है वेंटिलेटर पर होना या ब्रेनडेड होना?

कानूनी तौर पर मृत घोषित व्यक्ति के ऑर्गन और टिश्यू को परिवार की रजामंदी से डोनेट किया जा सकता है। कई अन्य देशों की तरह ब्रेनस्टेम डेथ को भारत में भी मृत्यु माना जाता है।

वेंटिलेटर पर रखे किसी व्यक्ति का मस्तिष्क काम करना बंद कर देता है। और वह स्थायी रूप से चेतना और सांस लेने की क्षमता खो देता है। लेकिन उसकी हार्टबीट और उसके ब्लड सर्कुलेशन में ऑक्सीजन का संचार हो रहा है तो उसे ब्रेन स्टेम डेथ कहा जाता है।

हर अंग को ट्रांसप्लांट करने की समय सीमा अलग

वेंटिलेटर पर होने की वजह से ब्रेन डेड व्यक्ति के ऑर्गन काम करते रहते हैं। ऐसे व्यक्ति के अधिकतर ऑर्गन और टिशूज डोनेट किए जा सकते हैं। ब्रेन डेड व्यक्ति के शरीर से निकालने के बाद किडनी 72 घंटे, लिवर 24 घंटे, कॉर्निया 14 दिन, दिल और फेफड़े 4 से 6 घंटे के भीतर ट्रांसप्लांट किए जा सकते हैं।

भारत में अंगदान या देहदान से हिचकते हैं लोग

ट्रांसप्लांट के लिए डोनेट किए जाने वाले ऑर्गन को अंगदान कहा जाता है, जबकि मेडिकल रिसर्च के लिए बॉडी डोनेशन को देहदान कहा जाता है। अंगदान या देहदान में लोगों के हिचकने के दो मुख्य कारण हैं, पहला है धार्मिक और रूढ़िवादी विचार। लोग कहते हैं कि मिट्‌टी खराब न करो, शरीर का अंतिम संस्कार उसके पूरे रूप में हो। यह भी एक कारण है कि लोग असमय मौत होने पर पोस्टमार्टम करवाने से कतराते हैं।

दधीचि देहदान समिति, दिल्ली की वाइस प्रेसिडेंट डॉ. मंजू प्रभा 2022 के सी-वोटर के एक सर्वे का हवाला देती हैं। सर्वे में 85% लोगों ने माना कि उन्हें नहीं पता कि मृत व्यक्ति के अंगों से लोगों की जिंदगी बचाई जा सकती है। या किसी की अपंगता दूर की जा सकती है।

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