बैंकिंग का जन्म …!
ह्यूमन सोसाइटी और ब्याज
मानव समाज में कम से कम 5 हजार सालों से चीजों को ‘ब्याज पर देने’ का रिवाज रहा है। जब ‘फिएट मनी’ अर्थात सरकारी मुद्रित मुद्रा या राजसी मुद्रा का अविष्कार भी नहीं हुआ था, तबसे इतिहास में अनेक सभ्यताओं में ब्याज की प्रथा आ चुकी थी।
ब्याज वाले ऋणों के सबसे पुराने ज्ञात रिकॉर्ड प्राचीन मेसोपोटामिया और मिस्र के हैं, जहां अनाज और अन्य चीजों के ऋण पर ब्याज लगाया जाता था। प्राचीन यूनानियों और रोमनों ने भी कर्ज पर ब्याज लगाया, और यह प्रथा पूरे इतिहास में विभिन्न रूपों में जारी रही है। ब्याज का ओरिजिन उधार देने वाले पैसे से जुड़े समय और जोखिम के लिए कर्जदाताओं के रिस्क कवर करने के लिए हुआ था।
बैंकिंग का जन्म
बैंकिंग की उत्पत्ति मेसोपोटामिया और मिस्र जैसी प्राचीन सभ्यताओं में देखी जा सकती है, जहां लोगों ने अपनी संपत्ति को सुरक्षित रखने के लिए मंदिरों और महलों में जमा किया। ये संस्थाएं ऋण भी प्रदान करती थीं और रसीदें भी जारी करती थीं जिनका उपयोग धन के रूप में किया जा सकता था।
प्राचीन यूनान और रोम में, साहूकारों और व्यापारियों ने समान कार्य करना शुरू किया, और बैंकिंग की अवधारणा आकार लेने लगी। मध्य युग में, इटली के सिटी-स्टेट्स के व्यापारियों ने बैंकिंग प्रथाओं को विकसित किया जैसे कि डिपॉजिट स्वीकार करना और ऋण देना, और अंतरराष्ट्रीय व्यापार के लिए एक्सचेंज बिलों का इस्तेमाल करना।
पहले सच्चे बैंक पुनर्जागरण युग में स्थापित किए गए थे, जैसे जेनोआ में बैंक ऑफ सैन जियोर्जियो (1407) और वेनिस में बैंक ऑफ सेंट जॉर्ज (1402)। इन बैंकों ने डिपॉजिट स्वीकार करने, कर्ज देने और बैंक नोट जारी करने सहित आधुनिक बैंकों की तरह कई काम किए।
आधुनिक बैंकिंग की उत्पत्ति 17वीं सदी के अंत और 18वीं सदी की शुरुआत में यूरोप में केंद्रीय बैंकों के उदय के साथ देखी जा सकती है, जैसे कि बैंक ऑफ स्वीडन (1668) और बैंक ऑफ इंग्लैंड (1694)। इन संस्थानों को राष्ट्रीय मुद्राओं को स्थिर करने में मदद करने और सरकारों के लिए वित्त पोषण का स्रोत प्रदान करने के लिए बनाया गया था।
बैंकिंग सिस्टम क्यों बना
कुल मिलाकर, बैंकिंग की उत्पत्ति धन को सुरक्षित रखने की आवश्यकता और वस्तुओं और सेवाओं के आदान-प्रदान के लिए एक विश्वसनीय प्रणाली के रूप में हुई। अब ये दुनिया की एक बड़ी व्यवस्था है, जिसके बिना आधुनिक वर्ल्ड इकॉनमी को इमेजिन नहीं किया जा सकता।
आधुनिक भारत और बैंकिंग
भारत में भी बैंकिंग का एक लम्बा इतिहास रहा है, लेकिन आधुनिक आजाद भारत में इसमें बड़ा मोड़ 1969 में आया।
1969 में तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने 14 बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया।
भारत में 1970 के दशक से ही बैंकिंग में करिअर अच्छी लाइफ-स्टाइल का पासपोर्ट रहा है। और फिर 1991 में खुली अर्थव्यवस्था के आने से पहले तक भारत के युवाओं के पास ऑर्गनाइज्ड क्षेत्र में रोजगार पाने के बहुत सीमित अवसर थे, जिनमें से एक बैंक में करिअर था। आज पब्लिक सेक्टर के बैंक 7 लाख से अधिक लोगों को रोजगार देते हैं।
1978 में पब्लिक सेक्टर के बैंकों में रिक्रूटमेंट के लिए ‘बैंकिंग सर्विसेज रिक्रूटमेंट बोर्ड (BSRB)’ की स्थापना की गई थी। तब से लेकर वर्ष 2002 तक जब इसे हटाया गया BSRB राज्यवार, बैंकिंग रिक्रूटमेंट के लिए जिम्मेदार संस्था थी।
लाखों युवा उज्जवल जीवन के सपने लिए या तो 12वीं के बाद विभिन्न BSRB, जैसे BSRB-भोपाल, BSRB-अहमदाबाद, BSRB-पटना के बैंक क्लेरिकल एग्जाम्स देते या फिर ग्रेजुएशन के बाद निकलने वाली बैंक PO एग्जाम्स की तैयारी करते।
बैंकिंग में अच्छा करिअर बनाने के 4 रास्ते
आज के युवाओं के लिए बैंकिंग में करिअर बनाने के 4 रास्ते हैं।
पहला, ‘इंस्टिट्यूट ऑफ बैंकिंग पर्सोनेल सिलेक्शन बोर्ड (IBPS)’ के जरिये; दूसरा, ‘स्टेट बैंक ऑफ इंडिया’; तीसरा, प्राइवेट बैंक्स में करिअर और चौथा भारतीय रिजर्व बैंक (RBI), नाबार्ड, नेशनल हाउसिंग बैंक आदि जैसे संगठनों में शामिल होकर।
1) इंस्टिट्यूट ऑफ बैंकिंग पर्सोनेल सिलेक्शन बोर्ड (IBPS)
2002 में बीएसआरबी को हटाए जाने का उद्देश्य बैंक में रिक्रूटमेंट के लिए इंडिविजुअल बैंक के मैनेजमेंट को प्रभावशाली बनाना था। किन्तु बैंकों में विभिन्न स्तर के कर्मचारियों की भर्ती के लिए पुनः एक केंद्रीय संगठन की जरूरत महसूस की गई जिसके लिए 2012 में वित्त मंत्रायलय के अंतर्गत ‘इंस्टिट्यूट ऑफ बैंकिंग पर्सोनेल सिलेक्शन बोर्ड (आईबीपीएस)’ की स्थापना की गई।
आज आईबीपीएस भारत के 12 नेशनलाइज्ड बैंकों के लिए 4 पदों प्रोबेशनरी ऑफिसर/मैनेजमेंट ट्रेनी, रीजनल रूरल बैंक्स के लिए स्केल I, II, III ऑफिसर्स तथा ऑफिस अस्सिस्टेंट, स्पेशलिस्ट ऑफिसर तथा क्लर्क की भर्ती की प्रक्रिया करता हैं।
2) स्टेट बैंक ऑफ इंडिया
स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया अपने क्लर्क, प्रोबेशनरी ऑफिसर तथा स्पेशलिस्ट ऑफिसर पदों के लिए अलग से जरूरत के हिसाब से समय-समय पर वेकेंसी निकालता है।
3) प्राइवेट बैंक्स
तीसरा, रास्ता प्राइवेट बैंक्स में करिअर का है जिसके लिए अधिकतर भारत के विभिन्न मैनेजमेंट कॉलेजेस से डायरेक्ट रिक्रूटमेंट किया जाता है। तो उसके लिए पहले आप को मैनेजमेंट एंट्रेंस टेस्ट्स की तैयारी कर मैनेजमेंट में कोई डिग्री या डिप्लोमा हासिल करना होगा।
4) आरबीआई, नाबार्ड, नेशनल हाउसिंग बैंक आदि जैसे संगठन
या तो ये संगठन समय-समय पर विभिन्न पदों के लिए वेकेंसी निकालते हैं या फिर आईबीपीएस इन संगठनों के लिए रिक्रूटमेंट करता है।
योग्यता व सलेक्शन प्रोसेस
योग्यता
आवेदन करने के लिए न्यूनतम आयु 20 वर्ष है। उम्मीदवार को किसी मान्यता प्राप्त विश्वविद्यालय से स्नातक होना चाहिए। कुछ बैंक केवल 60% अंकों के फर्स्ट डिवीजन के साथ स्नातक लेते हैं।
सलेक्शन प्रोसेस
आईबीपीएस या एसबीआई किसी भी माध्यम से बैंक में करिअर बनाने के इच्छुक व्यक्ति को लिखित परीक्षाओं में बैठना होता है जिसके दो चरण होते हैं – प्रारंभिक और मुख्य परीक्षा। इन परीक्षाओं में विभिन्न विषयों जैसे क्वांटिटेटिव एप्टीट्यूड, रीजनिंग, इंग्लिश लैंग्वेज जनरल अवेयरनेस, करंट अफेयर्स तथा कंप्यूटर नॉलेज का टेस्ट किया जाता है। पिछले लगभग 8 या 10 वर्षों से इन परीक्षाओं के टेस्ट कंप्यूटर पर आयोजित किए जाते हैं।
क्लर्क और ऑफिस असिस्टेंट पदों के लिए इंटरव्यू नहीं लिए जाते जबकि ऑफिसर्स पदों के लिए इंटरव्यू भी देना होता है। एसबीआई पीओ पदों पर चयन की प्रक्रिया में ग्रुप डिस्कशन और इंटरव्यू को कम्बाइंड फॉर्म में साइकोमेट्रिक टेस्ट कहा जाता है। एसबीआई क्लर्क पदों पर भर्ती के किसी एक चुनी हुई लोकल भाषा का टेस्ट भी देना होता है।
वेतन तथा रिटायरमेंट एज
बैंक में क्लर्क पदों के वेतन बीस-बाइस हजार रुपये प्रतिमाह से शुरू होकर 45 हजार प्रति माह तक जाते हैं, वहीं ऑफिसर पदों के वेतन लगभग 65,000 रुपये प्रतिमाह से शुरू होते हैं। रिटायरमेंट एज विभिन्न पदानुसार 58 से लेकर 65 वर्ष तक हैं।
मॉडर्न ऐज के प्रॉब्लम
पहले आजीवन नौकरी की सुरक्षा गारंटी होती थी, अब वैसा नहीं है। अन्य प्राइवेट सेक्टर की ही तरह काम का प्रेशर और नौकरी से निकाले जाने का डर बना रहता है, खासकर प्राइवेट बैंक्स में।
उम्मीद करता हूं मेरे द्वारा दी गई जानकारी आपके लिए उपयोगी साबित होगी।