शरीर को मजबूत और आकर्षक बनाने के लिए उसे जख्मी कर बैठना समझदारी नहीं है
जब भी टाइगर श्रॉफ किसी रियल्टी शो पर जाते हैं तो एंकर उनसे कभी-कभी कमीज उतारकर सिक्स-पैक्स दिखाने का अनुरोध करता है। और जब वे वैसा करते हैं तो हमें उनके तराशे हुए शरीर की सराहना में स्त्रियों का शोर सुनाई देता है। आज देश के हर कोने में युवा लड़के टाइगर श्रॉफ जैसा बनना चाहते हैं, वहीं मिडिल एज के युवा एग्जीक्यूटिव जॉन अब्राहम जैसा दिखना चाहते हैं।
हाल ही में एक कम्पनी के एचआर डिपार्टमेंट में काम से गैरमौजूद रहने वाले कर्मचारियों की एक रिपोर्ट देखते समय मुझे इन अभिनेताओं और वर्तमान में चल रहे ट्रेंड की याद हो आई। दो से अधिक मिडिल एज वाले कर्मचारियों ने अपने लीव कार्ड में एक ही कारण बताया था- बेटे ने खुद को बुरी तरह से चोट लगा ली है। मेरी जिज्ञासा जागी।
मैंने उन्हें कॉल करके उनके बच्चों की सेहत के बारे में जानकारी ली। पता चला कि उनके बच्चे उपरोक्त वर्णित अभिनेताओं जैसे दिखने के लिए पागल हैं। थोड़ी और पूछताछ करने पर पता चला कि कोविड से पहले बच्चे खेलकूद में भी दिलचस्पी लेते थे, लेकिन अब केवल जिमिंग के दीवाने हैं। ऐसे में आश्चर्य नहीं कि ऐसी जगहों के जनरल फिजिशियनों के पास भी इस तरह के मामले आ रहे हैं, जिसमें युवा अत्यधिक वर्कआउट के बाद मेडिकल सहायता की खोज कर रहे हैं।
यह सब 2020 के मध्य में शुरू हुआ, जब कोरोना के कारण सब घर पर बैठे थे। जहां पूरी दुनिया में फिटनेस एप्स की डाउनलोडिंग 46 प्रतिशत बढ़ गई, वहीं भारत में तो 157 प्रतिशत डाउनलोड हुए और वह हेल्थ एप्स के 5.8 करोड़ यूजर्स के साथ दुनिया में पहले स्थान पर आ गया। इससे देश में फिटनेस इक्विपमेंट्स की बिक्री भी बढ़ी।
दूसरी तरफ जीवनशैली सम्बंधित बीमारियों के कारण उद्यमियों ने जिम और फिटनेस हब्स खोले। ट्रेनरों को अचानक ज्यादा काम मिलने लगा। वे धीरे-धीरे अपना शुल्क बढ़ाने लगे, जिससे छोटे पैमाने पर चलने वाली जिम उन्हें अपने पास नहीं रख सकीं। नियमित जिम जाने वालों को पीठ के निचले हिस्से में दर्द की शिकायत आम है।
जर्क, स्क्वैट्स, डेडलिफ्ट्स आदि करते समय उन्हें चोटें लग जाती हैं। कुछ एक्सरसाइज ऐसी हैं, जिन्हें करने के लिए ऊंचे दर्जे की तकनीक और निगरानी की जरूरत होती है। अफसोस कि जिम जाने वालों को यह नहीं पता होता कि अगर उन्होंने उन्हें ठीक से नहीं किया तो इससे उनकी लम्बर मसल्स और डिस्क्स को खतरा हो सकता है।
स्पाइनियोलॉजी क्लिनिकों में मरीजों से डॉक्टरों द्वारा की गई बातचीत से पता चलता है कि वॉर्म-अप और कूल-डाउन के अभाव में और मांसपेशियों की मजबूती पर ध्यान दिए बिना वेटलिफ्टिंग करने से समस्याएं आती हैं। घुटनों की चोट और स्लिप्ड-डिस्क के बढ़ते मामले जरूरत से ज्यादा कसरत से जुड़े हैं। ऑर्थोपेडिक क्लिनिकों में कोहनी की चोटों, मांसपेशियों में खिंचाव, टेंडम रप्चर्स आदि के मामले आ रहे हैं।
युवाओं को समझना होगा कि बॉडी व मसल बनाने में समय लगता है और यह रातोंरात नहीं हो सकता। जिस तरह से स्कूलों में टीचर्स की दरकार होती है, उसी तरह से जिम में भी पेशेवर ट्रेनर्स जरूरी हैं। हर उम्र के लिए अलग-अलग एक्सरसाइज होती हैं। उन्हीं जिम का चयन कीजिए, जिनका मासिक शुल्क भले ज्यादा हो, लेकिन जिनके पास आप और आपके बच्चों के लिए पेशेवर ट्रेनर्स और डायटिशियंस हों।
फंडा यह है कि शरीर को मजबूत और आकर्षक बनाने के लिए उसे जख्मी कर बैठना समझदारी नहीं है। हम सबको याद रखना चाहिए कि शरीर में डैमेज होने पर कोई स्पेयर पार्ट्स शॉप मदद के लिए मौजूद नहीं रहती हैं।