मुख्यमंत्री सचिवालय मोहन सरकार का !

सबसे पावरफुल मुख्यमंत्री सचिवालय मोहन सरकार का
नौ IAS वाले CMO को लीड करेंगे ACS राजौरा, पुराने अफसरों का कद घटा

लोकसभा चुनाव के बाद मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव एक्टिंग मोड में हैं। उन्होंने मुख्यमंत्री कार्यालय (CMO) को मजबूत बनाने के लिए अपर मुख्य सचिव की पदस्थापना के साथ ही 9 आईएएस अफसरों की टीम तैनात की है। एक्सपर्ट का कहना है कि मोहन सरकार में ये पहली बार है, जब सीएमओ में अपर मुख्य सचिव की नियुक्ति की गई है। इस वजह से इसे अब तक का सबसे पावरफुल सीएमओ माना जा रहा है।

मुख्यमंत्री सचिवालय की व्यवस्था अविभाजित मध्यप्रदेश में शुरू हुई थी। साल 1965 में मुख्यमंत्री डीपी मिश्रा ने अपने कार्यकाल के दौरान इसकी शुरुआत की थी। तब राजनीतिक कारणों के चलते एक उपसचिव की नियुक्ति की गई थी। इसके बाद से ये व्यवस्था लगातार जारी है।

 ……ने एक्सपर्ट से समझा कि किस मुख्यमंत्री के कार्यकाल में सीएमओ का कैसा स्ट्रक्चर रहा है और कब ये ज्यादा पावरफुल रहा है? साथ ही वर्तमान सीएमओ में पदस्थ अफसरों को क्या जिम्मेदारियां दी गई हैं?

  

पहले जानिए, मोहन सरकार के सीएमओ के बारे में…

शिवराज के कार्यकाल में पदस्थ अफसरों को कम जिम्मेदारी

सीएम डॉ. मोहन यादव ने कुल 26 अफसरों की नियुक्ति की है। उनकी टीम में पूर्व सीएम शिवराज सिंह चौहान के कार्यकाल के दौरान पदस्थ रहे अफसर भी शामिल हैं। मगर, नए पदस्थ अफसरों के मुकाबले इन्हें कम जिम्मेदारी दी गई है। पहली बार अपर मुख्य सचिव की पोस्टिंग करने के साथ ही सीएम यादव ने अपनी टीम में एक IPS, एक रिटायर्ड IAS और 8 राज्य प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों को रखा है। सीएम यादव ने लोकसभा चुनाव के बाद जिन अफसरों को अपनी टीम का हिस्सा बनाया, उन्हें अहम विभाग सौंपे गए हैं। अपर मुख्य सचिव पूरे सीएम सचिवालय को लीड करेंगे। दो प्रमुख सचिव में से एक संजय कुमार शुक्ल यहां पहले से पदस्थ राघवेंद्र कुमार सिंह से ज्यादा पावरफुल बनाए गए हैं। इसके अलावा ये व्यवस्था भी की गई है कि संजय शुक्ल और राघवेंद्र सिंह जिन अतिरिक्त विभागों के भी पीएस हैं, वे उन विभागों की मॉनिटरिंग नहीं करेंगे। पीएस संजय शुक्ल के महिला बाल विकास विभाग की मॉनिटरिंग राघवेंद्र सिंह और पीएस राघवेंद्र सिंह के उद्योग विभाग की मॉनिटरिंग संजय शुक्ल करेंगे।

पहली बार एसीएस की नियुक्ति के पीछे दो वजह बताई जा रही है- पहली, मौजूदा मुख्य सचिव वीरा राणा का एक्सटेंशन खत्म होने के बाद नए मुख्य सचिव के तौर पर राजौरा को जिम्मेदारी दी जा सकती, इसलिए बेहतर तालमेल के लिए उन्हें लाया गया। दूसरी वजह- मॉनिटरिंग में कसावट।

अब जानिए, किसकी क्या जिम्मेदारी…

डॉ. राजेश राजौरा, अपर मुख्य सचिव: CMO की पूरी जिम्मेदारी
डॉ. राजेश राजौरा को सीएमओ की पूरी जिम्मेदारी दी गई है। उनके हिस्से में सीएम की घोषणाएं, सीएमओ के मॉनिटरिंग सेल के ए प्लस काम, उसकी मॉनिटरिंग और फॉलोअप का जिम्मा है।
इसके अलावा संकल्प पत्र 2023 और मंत्रिपरिषद से संबंधित काम समेत नीतिगत विषय वे देख रहे हैं। मुख्यमंत्री कार्यालय स्थापना और आंतरिक व्यवस्था, प्रशासनिक सुधार, नवाचार से संबंधित मामले भी उनके जिम्मे हैं। मुख्यमंत्री कार्यालय को समन्वय में भेजे जाने वाले स्थानांतरण, पदस्थापना संबंधी काम और जो काम किसी अधिकारी को नहीं सौंपे गए हैं, वे सब राजौरा ही देख रहे हैं।

संजय कुमार शुक्ल, प्रमुख सचिव: 18 विभागों की जिम्मेदारी
मुख्यमंत्री के प्रमुख सचिव संजय कुमार शुक्ल को सामान्य प्रशासन विभाग (GAD), गृह विभाग (सामान्य), वित्त विभाग, नगरीय प्रशासन और आवास विभाग, पंचायत और ग्रामीण विकास, परिवहन, जल संसाधन, नर्मदा घाटी विकास, लोक स्वास्थ्य और चिकित्सा शिक्षा का जिम्मा दिया गया है।
वन, ऊर्जा, औद्योगिक नीति और निवेश प्रोत्साहन समेत 19 विभाग, सीएम डैशबोर्ड, एमएलए डैशबोर्ड, मुख्यमंत्री कार्यालय वेबसाइट, मुख्यमंत्री कार्यालय पोर्टल के सभी काम उन्हें सौंपे गए हैं।
आत्मनिर्भर मध्यप्रदेश, आत्म निर्भर डैशबोर्ड और मुख्यमंत्री परिषद की बैठक, विधानसभा, सीएम हेल्पलाइन, समाधान हेल्पलाइन से संबंधित काम भी उनके ही जिम्मे हैं।

राघवेंद्र कुमार सिंह, प्रमुख सचिव: 22 विभागों की जिम्मेदारी
मुख्यमंत्री के प्रमुख सचिव राघवेंद्र कुमार सिंह को स्कूल शिक्षा, उच्च शिक्षा, पर्यावरण, पर्यटन, विज्ञान और प्रौद्योगिकी, तकनीकी शिक्षा और कौशल विकास व रोजगार, सामाजिक न्याय और दिव्यांगजन, अनुसूचित जाति कल्याण, जनजातीय कार्य, श्रम, भोपाल गैस त्रासदी राहत और पुनर्वास का जिम्मा मिला है।
आनंद, लोक परिसंपत्ति विभाग, प्रवासी भारतीय, धार्मिक न्यास और धर्मस्व, संस्कृति और महिला और बाल विकास विभाग के संबंध में सीएम की घोषणाएं, ए प्लस और ए मॉनिट के संदर्भ में पालन और मॉनिटरिंग व फॉलोअप की जिम्मेदारी भी उनको सौंपी गई है।
इसके अलावा संबंधित विभागों के लंबित मामलों से समय-समय पर मुख्यमंत्री को अवगत कराना, विधायकों, सांसदों के कार्यों से संबंधित प्रकरण में समन्वय का काम भी उनकी जिम्मेदारियों में शामिल है।

भरत यादव, सचिव मुख्यमंत्री

सीएम सचिवालय में दो पीएस के साथ एक सचिव भरत यादव की नियुक्ति की गई है, जो मुख्यमंत्री को सीधे, अपर मुख्य सचिव और दोनों प्रमुख सचिवों को अलग-अलग रिपोर्ट करते हैं। इनके पास जनसंपर्क, लोक निर्माण, पीएचई, राजस्व, कमर्शियल टैक्स, खनिज साधन, विमानन, खाद्य नागरिक आपूर्ति और उपभोक्ता संरक्षण का जिम्मा है। किसान कल्याण और कृषि विकास, उद्यानिकी और खाद्य प्रसंस्करण, सहकारिता की जिम्मेदारी भी यादव को मिली है। साथ ही सिंहस्थ 2028 की पूरी जवाबदारी भी है। यादव के पास मुख्यमंत्री की घोषणाएं, ए प्लस, ए मॉनिट के प्रकरणों का पालन, मॉनिटरिंग और फॉलोअप, विभागों के लंबित मामलों को समय समय पर मुख्यमंत्री को अवगत कराना भी उनका काम है। कार्यक्रम शाखा के अंतर्गत मुख्यमंत्री के दौरों की पूर्व तैयारी, समन्वय और सीएम से मुलाकात का को-ऑर्डिनेशन और मानिटरिंग भी उनका काम है।

CMO में 6 उप सचिव: सभी के पास अलग-अलग जिम्मेदारी…

अदिति गर्ग, उप सचिव मुख्यमंत्री: PS राघवेंद्र सिंह को सौंपे गए कार्यों में सहयोग
अदिति गर्ग के पास प्रमुख सचिव राघवेंद्र सिंह का सहयोग करने के साथ उन्हें आवंटित विभागों के ए प्लस, ए मॉनिट के पालन, मॉनिटरिंग और फॉलोअप के काम तथा ग्वालियर, चंबल, सागर संभाग के प्रशासनिक विषयों पर समन्वय का जिम्मा है।
अंशुल गुप्ता, उप सचिव मुख्यमंत्री: PS संजय शुक्ला के काम में सहयोग
अंशुल गुप्ता के जिम्मे सामान्य प्रशासन, गृह सामान्य, वित्त विभाग को छोड़कर शेष विभागों की फाइलें प्रमुख सचिव को प्रस्तुत करना है। साथ ही सीएम हेल्पलाइन, समाधान ऑनलाइन से संबंधित काम, सीएम डैशबोर्ड, एमएलए डैशबोर्ड, मुख्यमंत्री कार्यालय की वेबसाइट और मुख्यमंत्री पोर्टल को अपडेट करने और मुख्यमंत्री दफ्तर में सूचना प्रौद्योगिकी से संबंधित काम भी इनके पास हैं।
ह्रदयेश श्रीवास्तव, उप सचिव मुख्यमंत्री: सचिव भरत यादव के काम में सहयोग
विभागों के ए प्लस, ए मॉनिट के प्रकरणों के मॉनिटरिंग, सांसद, विधायकों के विकास कार्यों से संबंधित पत्रों को लेना और जवाब भेजना इनके जिम्मे है।
लक्ष्मण सिंह मरकाम, उप सचिव मुख्यमंत्री: स्टडी और एनालिसिस करना
तकनीकी शिक्षा और कौशल विकास, रोजगार और पर्यटन, विज्ञान और प्रौद्योगिकी, ग्रामीण विकास, जनजातीय कल्याण, औद्योगिक विकास, उद्योग प्रोत्साहन समेत अन्य विशिष्ट मसलों पर रणनीतिक दृष्टिकोण से स्टडी और एनालिसिस कर जानकारी तैयार करना इनकी जिम्मेदारी है।
मनीष पांडे, उप सचिव मुख्यमंत्री: विभागों के साथ को-ऑर्डिनेशन करना
लोकहित की योजनाओं के क्रियान्वयन के लिए विभागों के साथ को-ऑर्डिनेशन का काम तथा वीआईपी, गणमान्य नागरिकों और जनप्रतिनिधियों से समन्वय बनाकर सीएम से मुलाकात की जिम्मेदारी मनीष पांडे के पास रहेगी।

6 अवर सचिव, पीएस और अपर सचिव के कामों में करेंगे सहयोग…

आदित्य कुमार शर्मा, अवर सचिव, मुख्यमंत्री: अपर सचिव अविनाश लवानिया को सौंपे गए कामों में सहयोग करना।
संदीप अष्ठाना, अवर सचिव, मुख्यमंत्री: अपर सचिव चंद्रशेखर वालिम्बे को सौंपे गए काम में सहयोग, जनसाधारण से मिलने वाले पत्रों के रिकॉर्ड तैयार करना, मुख्यमंत्री के प्रस्तावित कार्यक्रमों के लिए संबंधित विभागों और जिलों से जानकारी हासिल करने की जिम्मेदारी सौंपी गई है।
आशीष कुमार पांडेय, अवर सचिव, मुख्यमंत्री: प्रमुख सचिव संजय कुमार शुक्ल को सौंपे गए सीएम स्वेच्छानुदान और मुख्यमंत्री सहायता कोष के प्रभारी के रूप में काम करेंगे।
श्रीलेखा श्रोत्रिय, अवर सचिव मुख्यमंत्री: अवर सचिव संदीप अष्ठाना के काम में सहयोग करना, सीएम के अधिकारियों के ई-मेल आईडी को प्रतिदिन देखने, प्रिंट निकालने और नोट शीट, पत्र आदि भेजने और ई अभिस्वीकृति लेने का काम, सभी विभागों को बी, सी और डी मॉनिट संबंधित पत्र भेजना और मॉनिटरिंग करना इनके जिम्मे है।
केवलराम धुर्वे, अवर सचिव, मुख्यमंत्री: मुख्यमंत्री स्वेच्छानुदान सहायता कोष से संबंधित आवेदन पत्रों का परीक्षण, ओएसडी राजेश हिंगणकर के काम में सहयोग और मुख्यमंत्री की घोषणाओं से संबंधित काम धुर्वे देखेंगे।

8 ओएसडी बनाए, इनमें से एक आईपीएस और एक रिटायर्ड आईएएस…

लोकेश शर्मा, ओएसडी, मुख्यमंत्री: भारत सरकार के विभागों, नीति आयोग में एमपी से संबंधित मसलों में को-ऑर्डिनेशन। प्रशासनिक सुधार और नवाचार संबंधी प्रस्ताव तैयार करना। राज्य के मेगा प्रोजेक्ट की मॉनिटरिंग व्यवस्था का काम। एमपी की वर्तमान योजनाओं को और अधिक जनोन्मुखी बनाने के लिए सुझाव प्रस्तुत करना।

आशीष कुमार खरे, ओएसडी, मुख्यमंत्री: मुख्यमंत्री के दौरों को छोड़कर अपर सचिव चंद्रशेखर वालिम्बे को सौंपे गए अन्य कामों में सहयोग।

आलोक सोनी, ओएसडी, मुख्यमंत्री: उपसचिव हृदयेश श्रीवास्तव के कामों में सहयोग। सूचना का अधिकार अधिनियम से संबंधित काम।

मनीष श्रीवास्तव, ओएसडी, मुख्यमंत्री: उपसचिव ऋषि पवार को सीएम निवास से संबंधित कामों में सहयोग। मुख्यमंत्री से मुलाकात संबंधित काम। मुख्यमंत्री निवास के प्रशासकीय कार्य।

योगेंद्र सिंह मौर्य, ओएसडी, मुख्यमंत्री: उपसचिव ऋषि पवार को मुख्यमंत्री निवास कार्यालय संबंधित कार्यों में सहयोग देना। निवास कार्यालय समत्व भवन में बैठकों और कार्यक्रम का को-ऑर्डिनेशन।

एसके तिवारी, ओएसडी, मुख्यमंत्री: उप सचिव ऋषि पवार को सौंपे गए काम में सहयोग। सीएम निवास कार्यालय में आम जनता के आवेदन पत्र लेना। ऊर्जा विभाग से संबंधित शिकायतों समस्याओं के निराकरण के लिए को-ऑर्डिनेशन।

1965 से हुई सीएम के उप सचिव और दफ्तर की शुरुआत
मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्य सचिव शरद चंद्र बेहार बताते हैं कि अविभाजित मध्यप्रदेश में सीएमओ की शुरुआत हुई थी। 1965 में पहली बार मुख्यमंत्री सचिवालय में उपसचिव स्तर के अफसर की नियुक्ति की गई थी। उस समय अविभाजित मप्र के मुख्यमंत्री द्वारका प्रसाद मिश्र थे। उन्होंने एमएस सिंहदेव को अपना उपसचिव बनाया था।
वे कहते हैं, ‘शुरुआत में ये समझ नहीं आया था कि मुख्यमंत्री सचिवालय की जरूरत क्यों पड़ी? मैं उस समय सिंहदेव का अवर सचिव था। बाद में समझ आया कि ये नियुक्ति राजनीतिक कारणों से की गई थी। दरअसल, अविभाजित मप्र में सरगुजा से उस वक्त कई सारे विधायक चुनकर आए थे। उन विधायकों के साथ बाकी विधायकों से समन्वय बनाने के लिए एमएस सिंहदेव को जिम्मेदारी सौंपी गई थी।

एक्सपर्ट बोले- पावर शेयरिंग को लेकर होती है दिक्कत
पूर्व मुख्य सचिव बेहार बताते हैं कि बदलते दौर में मुख्यमंत्री कार्यालय में पदस्थ अफसरों को पावर शेयरिंग की दिक्कतें भी आती हैं। कई बार मुख्य सचिव के अधिकारों को बायपास कर मुख्यमंत्री सचिवालय के अफसर काम कराते हैं, लेकिन अब तक ऐसा नहीं हुआ कि मुख्यमंत्री और मुख्य सचिव के कार्यालय में अधिक टकराव या विरोध की स्थिति बनी हो।
आम तौर पर जो अधिकारी मुख्यमंत्री सचिवालय में नियुक्त होते हैं, वे खुद को मुख्यमंत्री के हिसाब से ढाल लेते हैं। कई बार ऐसा भी हुआ कि इसके लिए वित्त विभाग की अनिवार्यता भी लागू की गई।

अब जानिए, किस मुख्यमंत्री के कार्यकाल में कैसी थी सीएमओ की व्यवस्था…

दिग्विजय ने स्थापित व्यवस्था को बदलने की कोशिश नहीं की
पूर्व सीएस बेहार के अनुसार, पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के दौर में वे पहले मुख्य सचिव और फिर उनके सलाहकार रहे। उनके मुताबिक, दिग्विजय सिंह ने कभी स्थापित व्यवस्था को बदलने की कोशिश नहीं की। मुख्यमंत्री सचिवालय अपना काम करता था और मंत्रालय का काम अपनी तरह से होता था।
जहां विरोधाभासी स्थिति होती थी, वहां दोनों विभागों के अफसरों को बैठाकर समझा दिया जाता था। हालांकि, कब-कौन सा विभाग पावरफुल होगा, ये तय नहीं होता। वे कहते हैं कि पीएमओ और कैबिनेट सेक्रेटरी में भी यही स्थिति होती है कि कब पीएमओ महत्वपूर्ण हो जाएगा और कब कैबिनेट सेक्रेटरी पावरफुल हो जाएंगे, कहा नहीं जा सकता।

​​​​​शिवराज के कार्यकाल में 6 आईएएस टीम में
मुख्यमंत्री सचिवालय की व्यवस्था बदलते वक्त के साथ पावरफुल होती रही है। इसका सबसे अधिक असर 17 साल से अधिक समय तक मुख्यमंत्री रहे शिवराज सिंह चौहान के कार्यकाल में देखने को मिला। उनके कार्यकाल में मुख्यमंत्री दफ्तर में 6 आईएएस अफसरों की टीम थी। अपर मुख्य सचिव स्तर के अधिकारी की कभी नियुक्ति नहीं हुई।

इकबाल सिंह बैंस ऐसे अफसर हैं, जो लंबे समय तक मुख्यमंत्री कार्यालय में काम करने वाले अधिकारियों में शामिल हैं। वे साढ़े तीन साल तक प्रदेश के मुख्य सचिव भी रहे हैं।

कमलनाथ खुद की टीम पर करते थे भरोसा
2018 में कांग्रेस की सरकार बनने के बाद मुख्यमंत्री बने कमलनाथ ने सवा साल में दो मुख्य सचिव बदले और एक प्रमुख सचिव रखा। इस अंतराल में ऐसा देखने में आया कि वे सीएमओ के अफसरों को एक सीमा तक ही दखल रखने का अधिकार देते थे। उनकी अपनी टीम की रिपोर्ट के आधार पर वे ज्यादा काम करते थे।

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