ग्वालियर  भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण भारत सरकार ने ग्वालियर किला स्थित मानसिंह पैलेस की खोदाई की इजाजत दे दी है। इस खुदाई में पैलेस का इतिहास पता किया जाएगा कि सबसे पहले बसाहट कब हुई थी और कौन इस पैसेल की जगह पर रुका था। ताकि मानसिंह पैलेस के इतिहास को क्रमबद्ध किया जा सके। एएसआइ के विशेषज्ञों ने पुरानी सभ्यता के अवशेष दबे होने की संभावना जताई है, जिसके चलते खोदाई की जा रही है। सितंबर 2023 तक इस प्रोजेक्ट को पूरा किया जाएगा। एएसआइ ने मानसिंह पैलेस का सर्वे किया था। मशीनों से किए गए सर्वे में संकेत मिले थे कि पैलेस के नीचे पुराना इतिहास मिल सकता है।

ग्वालियर की पुरानी संस्कृति क्या थी। इसी संभावना को देखते हुए पिछले साल खोदाई की इजाजत के लिए भारतीय पुरात्तव सर्वेक्षण भारत सरकार को क्षेत्रीय कार्यालय भोपाल से प्रस्ताव भेजा गया था। इस प्रस्ताव को हरी झंडी मिल गई है। खोदाई तब तक की जाएगी, तब तक जमीन की मूल मिट्टी या पत्थर नहीं आता है। अधीक्षण पुरातत्वविद मनोज कुमार कुर्मी के अनुसार खोदाई के बाद स्थिति स्पष्ट होगी।

बटेश्वरा का निर्माण कैसे हुआ, आसपास की प्राचीन सभ्यता, संस्कृति का पता लगाने हो रही खोदाई

मुरैना के प्रसिद्ध ऐतिहासिक स्थल बटेश्वरा का पूरा इतिहास क्या है,यहां बटेश्वरा से पहले की सभ्यता-संस्कृति कौन सी थी? इसका पता जल्द ही भारतीय पुरातत्व विभाग सामने लाएगा। भारत सरकार ने क्षेत्रीय कार्यालय भोपाल को यहां सितंबर तक के लिए अनुमति दे दी है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग दिल्ली ने देशभर में ऐसे 31 ऐतिहासिक स्थल चुने हैं, जो सदियों पुराने हैं। इनमें मुरैना जिले का बटेश्वरा भी शामिल है। इसके तहत बटेश्वरा मंदिर समूह के पास और पड़ावली की गढ़ी के पास कुल दो स्थानों पर खुदाई के लिए भारत सरकार ने अनुमति दी है। भारतीय पुरातत्व विभाग के क्षेत्रीय अधिकारी डा. मनोज कुमार कुर्मी ने बताया, कि खुदाई का काम पूरा कर रिपोर्ट भारत सरकार को दे दी जाएगी। खुदाई का उद्देश्य यह पता लगाना है, कि बटेश्वरा मंदिर से पहले यहां आबादी थी या नहीं? आबादी थी तो उनका रहन-सहन कैसा था। 8 से 10वीं शताब्दी के बीच बना है बटेश्वरा मंदिर समूह: बटेश्वरा मंदिर समूह का निर्माण 8 से 10वीं शताब्दी के बीच में गुर्जर-प्रतिहार राजवंश के शासनकाल में हुआ है। यहां 200 मंदिरों के एक समूह बनाया गया था। हर मंदिर में शिवलिंग था।