28 सरकारी नर्सिंग कॉलेजों में फैकल्टी के 70% पद खाली, 16 में प्राचार्य तक नहीं

न भर्ती की, न इंफ्रास्ट्रक्चर पर ध्यान दिया …
कैसे सुधरे सेहत …. !

जबलपुर हाई कोर्ट में याचिका के बाद इन्हीं कमियों का हवाला देकर 100 से ज्यादा कॉलेजों की मान्यता रद्द की गई थी। इस वर्ष 173 आवेदन करने वाले निजी नर्सिंग कॉलेजों में से 51 को मान्यता नहीं दी गई है। जिन्हें मिली है उनमें से ज्यादातर में मापदंडों के हिसाब से बेड, स्टाफ, होस्टल और बिल्डिंग सिर्फ कागजों पर हैं। पहले भी भास्कर ने अपनी पड़ताल में पाया था कि कहीं एक व्यक्ति कागजों पर 9 कॉलेजों में प्रिंसिपल है तो कहीं कोई 5-7 कॉलेजों में पढ़ा रहा है।

50% टीचिंग स्टाफ भी नहीं
जिला जरूरत उपलब्ध प्रतिशत
इंदौर 120 46 38%
ग्वालियर 84 19 23%
झाबुआ 42 7 29%
दतिया 24 7 29%
विदिशा 24 7 29%

झाबुआ, मंडला जैसे आदिवासी बाहुल्य जिले हाशिए पर

इंदौर ,भोपाल, ग्वालियर, जबलपुर में मेडिकल कॉलेज से जुड़े कॉलेजों में फैकल्टी की उपलब्धता 50% के आसपास है। भोपाल में यह जरूर 80 प्रतिशत है। स्वास्थ्य विभाग द्वारा संचालित कॉलेजों से जुड़े 13 कॉलेज तो ऐसे हैं जहां जरूरत के लिहाज से तिहाई फैकल्टी भी नहीं है। झाबुआ, सीधी, मंडला, बालाघाट जैसे आदिवासी बाहुल्य जिले सबसे ज्यादा हाशिए पर हैं। इस सूची में मुख्यमंत्री और पूर्व स्वास्थ्य मंत्री नरोत्तम मिश्रा का गृह जिला भी शामिल है। चिकित्सा शिक्षा विभाग के डॉक्टर योगेश शर्मा कहते हैं कि विभागीय स्तर पर भर्ती प्रक्रिया शुरू कर दी गई है।

होस्टल क्षमता 25% भी नहीं

इंदौर में नर्सिंग कोर्सेस में 300 से ज्यादा छात्र पढ़ रहे हैं जबकि होस्टल की क्षमता सिर्फ 50 की है। भोपाल, ग्वालियर, जबलपुर आदि में तो हालात इससे भी बदतर हैं। अमानवीय ढंग से एक रूम में 3 से 4 छात्रों को रखा जा रहा है, जबकि मान्यता नियमों में होस्टल अनिवार्य शर्त है।

साइट पर जानकारी ही नहीं

इंडियन नर्सिंग काउंसिल के अनुसार कॉलेजों की सूची, उनसे जुड़े अस्पतालों, इंफ्रास्ट्रक्चर, लोकेशन की जानकारी मध्य प्रदेश नर्सिंग काउंसिल की वेबसाइट पर देना अनिवार्य है। इससे अनियमितता को आसानी से पकड़ा जा सकता है, लेकिन कई की जानकारी इस पर नहीं है।

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