अगर सरकार बाज नहीं आई तो विशेष सैन्य बल काम पर जाने से इनकार कर सकते हैं

आज इजरायल की स्थिति उस प्रेशर कुकर जैसी हो गई है, जिसमें कभी भी विस्फोट हो सकता है। एक तरफ इजरायली बस्तियों का दायरा बढ़ाया जा रहा है और फलस्तीनी गांवों को आग के हवाले किया जा रहा हैं, वहीं इसके प्रतिकार में फलस्तीनी नौजवान इजरायल के खिलाफ आक्रामक हो गए हैं।

खुद इजरायल में प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतान्याहू के द्वारा न्यायिक प्रणाली पर काबिज होने की कोशिशों के विरोध में आंदोलन-प्रदर्शन हो रहे हैं। इस सबको मिलाकर इजरायल में प्रशासनिक अराजकता की स्थिति निर्मित हो चुकी है। हालात इतने संगीन हैं कि मोस्साद के अनेक पूर्व प्रमुखों ने नेतान्याहू के खिलाफ मोर्चा खोल लिया है। इनमें दैनी यातोम सबसे नया नाम हैं।

पिछले हफ्ते उन्होंने इजरायली मीडिया से बात करते हुए कहा कि अगर नेतान्याहू इसी तरह से चलते रहे और कोर्ट की स्वायत्तता का अंत करने की कोशिशों में लगे रहे तो फायटर पायलट्स और स्पेशल फोर्सेस सरकार के आदेशों का उल्लंघन करने के लिए कानूनी रूप से सक्षम हो जाएंगे।

यातोम का कहना है कि उन्होंने एक लोकतांत्रिक देश के साथ अनुबंध किया है, लेकिन अगर इजरायल तानाशाहीपूर्ण देश बन जाता है और सैन्य बलों को एक अवैधानिक सरकार से आदेश मिलते हैं तो उन्हें उनको मानने से इनकार करने का पूरा अधिकार होगा।

बीते दिनों में सेना के विशेष खुफिया अभियानों के 250 अधिकारियों ने एक सार्वजनिक पत्र पर दस्तखत किए, जिसमें कहा गया है कि अगर सरकार तानाशाहीपूर्ण तौर-तरीकों से बाज नहीं आई तो वे काम पर जाने से इनकार कर देंगे।

इजरायल ने इससे पहले कभी ऐसी स्थिति का सामना नहीं किया था, जिसमें उसे फलस्तीनियों के इंतेफाद, यहूदियों के विद्रोह और इजरायली नागरिकों के विरोध-प्रदर्शनों का एक साथ सामना करना पड़ा हो। लेकिन नेतान्याहू की धुर दक्षिणपंथी सरकार के सत्तासीन होते ही ये हालात निर्मित होने लगे हैं।

बीते रविवार को एक फलस्तीनी गनमैन ने नैबलुस में दो इजरायली यहूदियों की हत्या कर दी। उसने वैसा उन 11 फलस्तीनियों की मौत का बदला लेने के लिए किया, जो कुछ दिन पूर्व इजरायली सैन्य बलों के हाथों मारे गए थे। इसके बाद यहूदियों ने चार फलस्तीनी गांवों के कम से कम 200 घरों में आग लगा दी।

इससे पहले शनिवार की रात तेल अवीव में कोई डेढ़ लाख इजरायली सड़कों पर उतर आए थे और नेतान्याहू के द्वारा न्यायिक प्रक्रिया पर काबिज होने की कोशिशों का विरोध कर रहे थे। नेतान्याहू ने अपने कैबिनेट मंत्रियों से कह दिया था कि अब वे प्रदर्शनकारियों पर प्रहार करने के लिए स्वतंत्र हो गए हैं।

यहूदी सेटलर्स और फलस्तीनियों के बीच होने वाली झड़पें नई नहीं हैं। लेकिन आज इजरायल में जैसे हालात हैं और जिस तरह के लोग सत्ता में मौजूद हैं, वैसे में हालात बहुत संगीन हो जाते हैं। आज सत्ता में ऐसे दक्षिणपंथी बैठे हैं, जो समूचे वेस्ट बैंक को इजरायल में मिला लेने का मंसूबा पाले हुए हैं और पुलिस और फौज उनके हाथ में है।

विवेकशीलता का प्रदर्शन देने वाले मंत्रियों को हटा दिया गया है। अब नेतान्याहू न्यायिक सुधार के नाम पर इजरायली सुप्रीम कोर्ट की स्वायत्तता को समाप्त कर रहे हैं, जो कि उनके देश में लोकतंत्र के ताबूत में आखिरी कील साबित होगा। अमेरिकी राष्ट्रपति की हिदायतों को भी नेतान्याहू ने अनसुना कर दिया है।

उलटे वे विदेशी नेताओं और पत्रकारों से कह रहे हैं कि वे महज कुछ तकनीकी सुधार करना चाह रहे हैं, ताकि इजरायल की सुप्रीम कोर्ट अमेरिका, कनाडा या फ्रांस जैसी हो जाए। लेकिन क्या यह सच है? क्योंकि नेतान्याहू ऐसा करके एक गृहयुद्ध का खतरा मोल ले रहे हैं। वे पूरी दुनिया के यहूदी डेमोक्रैट्स को भी अपने से दूर किए दे रहे हैं। इससे अमेरिका से इजरायल के रिश्तों पर भी बुरा असर पड़ेगा और उसकी हाई-टेक क्रांति को इसका खामियाजा भुगतना होगा।

नेतान्याहू इतना बड़ा जोखिम किसी मामूली चीज के लिए नहीं उठाएंगे। उनके मन में कोई बड़ी योजना होगी। कहीं ऐसा तो नहीं कि इन कथित न्यायिक सुधारों में मूल में उन पर लगे धोखाधड़ी और घूसखोरी के आरोपों से बच निकलने की चाह हो? क्योंकि अगर आरोप सिद्ध हुए तो वे जेल भी जा सकते हैं। इन कथित न्यायिक सुधारों के बाद यहूदी सेटलर्स किसी भी फलस्तीनी जमीन पर काबिज होकर उस पर नई बसाहट बसा सकते हैं। यह सब बेंजामिन नेतान्याहू के पॉवर-गेम के सिवा कुछ नहीं है।

इजरायल ने इससे पहले कभी ऐसी स्थिति का सामना नहीं किया था, जिसमें उसे फलस्तीनियों के इंतेफाद, यहूदियों के विद्रोह और इजरायली नागरिकों के विरोध-प्रदर्शनों का एक साथ सामना करना पड़ा हो।
(द न्यूयॉर्क टाइम्स से)

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