विधायक जी संभलकर पूछिए,आपके एक सवाल की कीमत हम औसतन ‌50 हजार चुका रहे हैं

विधानसभा का बजट सत्र:विधायक जी संभलकर पूछिए,आपके एक सवाल की कीमत हम औसतन ‌50 हजार चुका रहे हैं …
तस्वीर में दिख रही बोरी में विधानसभा में पूछे गए सवाल क्रमांक 1277 का जवाब भरा है, जिसे जुटाने में 10 हजार रुपए तक खर्च हुए हैं। ये सवाल कांग्रेस विधायक महेश परमार का है, जिसमें उन्होंने प्रदेश की सड़कों के बारे में पूछा है। लोक निर्माण विभाग ने इसका जवाब 5 हजार पेज में तैयार किया है

इन दिनों मप्र विधानसभा का बजट सत्र चल रहा है और इसके दो दिन सिर्फ विधायकों के हंगामे के कारण खराब हो चुके हैं। इस हंगामे के चलते 220 से 310 तक सवालों के जवाब बनने के बावजूद सार्वजनिक नहीं हो पाते। क्या आपको पता है कि सदन में पूछे गए एक सवाल का जवाब तैयार करने में कितना खर्च आता है? हम बताते हैं- औसत 50 हजार रु. तक। कुछ सवालों के जवाब जुटाने में गांवों से भी जानकारी मंगाई जाती है।

इनका खर्च 75 हजार से एक लाख रु. तक चला जाता है। एक दिन के प्रश्नकाल पर औसतन 50 लाख रु. तक आता है। ये राशि विधानसभा की एक दिन की बाकी कार्यवाही के कुल खर्च से भी ज्यादा है, क्योंकि सदन की हर घंटे की कार्यवाही 2.50 लाख रु. की पड़ती है। यदि 5 घंटे सदन चला तो कुल खर्च 12.50 लाख तक आता है। बजट सत्र के दौरान 2500 से ज्यादा सवाल पूछे जाना है। 2019 से अब तक ऐसे 500 सवाल पूछे जा चुके हैं, जिनमें एक ही जवाब मिला- जानकारी एकत्रित की जा रही है। यदि इसी बजट सत्र की बात करें तो 5 दिनी कार्रवाई में 28 फरवरी को 224, 1 मार्च को 227, 2 मार्च को 230, 3 मार्च को 307 सवाल पूछे गए।

  • जनता के टैक्स के पैसों से तैयार होता है जवाब, लेकिन विधायक हंगामे में सवाल ही नहीं पूछने देते
  • 500 सवालों का एक ही जवाब- जानकारी जुटा रहे, मंदसौर गोलीकांड पर 100 सवाल-एक जवाब, कार्यवाही प्रक्रियाधीन

कर्जमाफी से जुड़े 100 सवाल, जवाब एक ही- जानकारी जुटा रहे

किसानों की कर्जमाफी को लेकर तीन साल में 100 से ज्यादा सवाल पूछे गए। लेकिन, सभी में सिर्फ एक ही जवाब दिया गया- जानकारी जुटा रहे हैं। व्यापमं घोटाले की जांच 2013 में चल रही थी जो 2015 में बंद कर दी गई। इस बारे में अब तक 80 सवाल पूछे गए, जिसमें हमेशा कोर्ट का हवाला देकर जवाब खत्म कर दिया गया। 2017 में हुए मंदसौर गोलीकांड के बाद 2018 में न्यायिक आयोग गठित हुआ था, तब से अब तक 100 से ज्यादा सवाल पूछे जा चुके हैं। दो सरकारें बदल चुकीं, लेकिन अब तक इसमें एक ही जवाब मिला- कार्यवाही प्रक्रियाधीन है।

ऐसे निकला सवाल का हिसाब-किताब

विधायकों द्वारा पूछे गए किसी एक सवाल का जवाब तैयार करने में विधायक, उसके स्टाफ का वेतन, विस का स्टाफ, संभाग और जिला स्तर पर होने वाला खर्च शामिल रहता है। इसमें कर्मचारी का वेतन, विशेष भत्ता, फोटोकॉपी, डाक या व्यक्ति द्वारा दस्तावेज भोपाल ले जाने का खर्च भी शामिल रहता है।

1. एक प्रश्न में विधायक का आधा दिन खर्च होता है और उनके स्टाफ निजी सचिव के दो दिन का मासिक वेतन। कुल खर्च 5 हजार रुपए। 2. प्रश्न की प्रिटिंग, फोटोकॉपी,दस्तावेज इकट्ठा कर प्रश्नशाखा में प्रश्न लगाने का खर्च 1000 रुपए। 3. इस शाखा में प्रश्न का इनवर्ड होगा और इसे कंप्यूटर पर टाइप किया जाएगा। यहां से अंडर सेक्रेटरी से लेकर 15 से 20 लोगों के स्टाफ का वेतन। कुल खर्च 4 से 5 हजार रुपए। 4. हफ्तेभर बाद प्रश्न संबंधित विभाग में जाता है। यहां जांच होती है। मंत्री की सहमति से सचिवालय को भेजते हैं। कुल खर्च 10 हजार रुपए। 5. 80% प्रश्नों की जानकारी संभाग,जिलों से आती है। इस पर कुल 15 हजार रु. खर्च।

गांवों से जानकारी बुलवाना ज्यादा महंगा

विधानसभा में प्रश्नकाल अहम अंग है। इसीलिए इसे संसदीय प्रक्रिया में सबसे पहले स्थान दिया गया है। प्रश्नों के खर्च का आकलन प्रश्न के स्वभाव के अनुसार होता है। इसमें प्रश्नों का उत्तर तहसील से बुलवाना, जिला, संभाग स्तर पर बैठकें आयोजित करना शामिल होता है। जवाब में जब भिन्नता होती है तो अफसरों को बुलाकर मीटिंग करना टीए, डीए का भुगतान हजारों रुपए में होता है।

-भगवान देव ईसरानी, रिटायर्ड प्रमुख सचिव, मप्र विधानसभा

सवालों के जवाब जुटाने में पूरा अमला लगता है

प्रश्नकाल संसदीय व्यवस्था की महत्वपूर्ण प्रक्रिया है, जिसमें गंभीरता से जनहित के विषय उठाकर शासन को कटघरे में खड़ा किया जाता है। प्रश्नों के उत्तर ग्राम स्तर से लेकर प्रदेश स्तर तक के होते हैं। इससे जानकारी एकत्रित करने में प्रशासन का पूरा अमला लगता है, जिसमें शासन का काफी व्यय होता है।
– एपी सिंह, प्रमुख सचिव, मध्यप्रदेश विधानसभा

 

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