संकट से बचने के लिए जल स्रोतों को बचाएं !
सामयिक: हालत यह है कि वैज्ञानिक दूसरे ग्रहों पर भी पानी की संभावनाओं की तलाश कर रहे हैं .,.
दुनिया की कई महत्त्वपूर्ण नदियां वर्ष 2050 तक अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष करने पर विवश हो जाएंगी। इसमें गंगा, सिंधु और ब्रह्मपुत्र जैसी नदियां भी हैं ..
गत 22 मार्च से 24 मार्च तक न्यूयार्क में ताजा पानी की मौजूदा स्थिति और उसके संरक्षण के महत्त्व पर चर्चा करने के लिए दुनिया भर के प्रतिनिधि मिले। मौका था संयुक्त राष्ट्र के बैनर तले ताजा पानी की स्थिति पर चर्चा करने के लिए एक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन का। इसके पहले जारी रिपोर्टों में कुछ ऐसे तथ्य रेखांकित किए गए जो रहीम के एक प्रसिद्ध दोहे -‘रहिमन पानी राखिए, बिन पानी सब सून’ की याद दिलाते हुए स्पष्ट चेतावनी देते हैं कि दुनिया यदि पानी की शुचिता और उसके संरक्षण के प्रति अब भी जागरूक नहीं हुई, तो संपूर्ण मानवता एक भीषण जल-संकट की देहरी पर खड़ी होने पर विवश हो जाएगी। एक रिपोर्ट में कहा गया कि दुनिया की कई महत्त्वपूर्ण नदियां वर्ष 2050 तक अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष करने पर विवश हो जाएंगी। इस सूची में गंगा, सिंधु और ब्रह्मपुत्र जैसी नदियों के नाम भी शामिल हैं। गंगा का भारतीय सांस्कृतिक जीवन में बहुत महत्त्व है और हिमालय के ग्लेशियर इसके जल का प्रमुख स्रोत हैं। लेकिन, पिछले कुछ सालों में ग्लेशियरों के पिघलने की दर जिस तेजी से बड़ी है, उसे देखकर जल के प्रति जागरूक लोगों के मन में चिंता जागना स्वाभाविक है। जब स्रोत ही सूख जाएंगे तो जल प्रवाह कैसे बचेगा?
पर्वतीय हिमखंडों के तेजी से पिघलने का कारण वैश्विक स्तर पर तापमान में हो रही वृद्धि है। इस वृद्धि के मूल में पर्यावरण प्रदूषण है। हाल के वर्षों में तापमान वृद्धि ने सारी दुनिया को चौंकाया है। ऑस्ट्रेलिया की डार्लिंग बक नामक नदी में तो तापमान बढ़ने से लाखों मछलियां पहले मर गईं। जब एक ठंडी जलवायु वाले देश में तापमान की यह स्थिति है, तो दुनिया के उन इलाकों की स्थिति का अनुमान आसानी से लगाया जा सकता है, जो मरुस्थलीय हैं। इस गर्मी के कारण पृथ्वी की सतह का जल भी तेजी से वाष्पित हो रहा है। पिछले दिनों एक अध्ययन में पाया गया कि हर साल झीलों और तालाबों से बड़ी मात्रा में पानी गर्मी के कारण वाष्पित हो जाता है। चिंताजनक बात यह भी है कि वाष्पीकरण की यह दर पहले लगाए गए अनुमानों की तुलना में बहुत तेजी से बढ़ रही है। गर्मी के कारण झीलों, तालाबों या अन्य जलाशयों से वाष्पित होने वाला इतना पानी दुनिया की बीस प्रतिशत से अधिक आबादी की जल संबंधी जरूरतें पूरी कर सकता है। एक अनुमान के अनुसार पृथ्वी की सतह पर जितना ताजा पानी मौजूद है, उसका करीब 87 प्रतिशत हिस्सा इन्हीं झीलों, तालाबों या जलाशयों में है। सारी दुनिया में इनका प्रसार 50 लाख वर्ग मीटर क्षेत्र में है। अनदेखी और प्रदूषण के कारण इनमें से बहुत से जलस्रोत दुर्दशा के शिकार हो रहे हैं। इन्हें बचा लिया जाए, तो दुनिया को एक गंभीर संकट से बचाने में ये जलाशय महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। ताजा जल के सभी स्रोतों को बचाना, इसलिए जरूरी है क्योंकि सारी दुनिया मे करीब चार अरब लोग साल में कम से कम एक बार गंभीर जल संकट का सामना करते हैं। उधर सारी दुनिया में भूजल अत्यधिक दोहन के कारण अपनी गुणवत्ता खो रहा है, जबकि आंकड़े बताते हैं कि दुनिया की आधी से अधिक शहरी आबादी अपनी दैनिक जरूरतों के लिए भूजल पर ही निर्भर है।
पृथ्वी पर पानी के संकट की आशंका कितनी गहरी है, इसका अनुमान इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि वैज्ञानिक दूसरे ग्रहों पर भी पानी की संभावनाओं की तलाश कर रहे हैं। अफ्रीका के कैमरून नामक देश में तो 63 प्रतिशत से अधिक आबादी को गंभीर जल संकट का सामना करना पड़ रहा है। ताजे पानी की उपलब्धता के अभाव में लोग गंभीर बीमारियों के शिकार हो रहे हैं। जब तक हर संवेदनशील नागरिक ताजा जल को भावी पीढ़ियों के लिए बचाने का संकल्प नहीं करेगा, तब तक स्वच्छ जल का दुरुपयोग होता रहेगा।