माफिया विजय मिश्रा. .!
.जिसे तब सीएम राजनीति में लेकर आए:पुलिस गिरफ्तार करने गई तो मुलायम के साथ उड़ गए; 1500 मोबाइल नंबर याद …
आज आपको विजय मिश्रा की पूरी कहानी बताएंगे। सोने की चेन, मुलायम के साथ हेलीकॉप्टर से भागना जैसे किस्से भी। आइए कहानी शुरू से शुरू करते हैं…
तब सीएम कमलापति ने कहा था- विजय राजनीति में आ जाओ
वाराणसी से करीब 50 किलोमीटर दूर एक गांव है धानापुर। 20 किलोमीटर पहले ही किसी भी रास्ते पर किसी से गांव का पता पूछेंगे तो वह आपको पूरा रास्ता बता देगा। कारण सिर्फ इतना है कि यह गांव विजय मिश्रा का है। 1980 तक विजय राजनीति से दूर थे। ट्रक और पेट्रोल पंप चलाते थे। उस वक्त यूपी के सीएम रहे कमलापति त्रिपाठी विजय मिश्रा से मिले और कहा- “विजय धंधा तो चलता रहेगा। अब राजनीति में आ जाओ।” विजय को बात पसंद आई और तय किया कि अब राजनीति में उतरना है।
भदोही के डीघ ब्लॉक में ब्लॉक प्रमुख का चुनाव हो रहा था। बाहुबली उदयभान सिंह के खास अभयराज सिंह प्रत्याशी थे। उन्हें एक चौबे जी टक्कर दे रहे थे। 2 वोट से चुनाव अभयराज जीत गए। इसके बाद जो जश्न हुआ उसमें नारे तो लगे ही लेकिन उससे ज्यादा ब्राह्मणों को टारगेट किया गया।
यह बात ब्राह्मण नेताओं को बुरी लगी। लेकिन उदयभान उर्फ डॉक्टर सिंह का कद इतना बड़ा था कि कोई कुछ बोल नहीं सका। तय हुआ कि मुकाबला करने के लिए किसी दबंग ब्राह्मण की तलाश करनी होगी। ये तलाश विजय मिश्रा के साथ पूरी हुई।
मुलायम की शरण में पहुंचे और विधायक बन गए
90 के दशक में विजय मिश्रा पहली बार ब्लॉक प्रमुख के चुनाव में उतरे। जमकर पैसा लुटाया। जिसने वोट नहीं दिया उसे उठवा लेने के आरोप लगे। नतीजा आया तो विजय ने एकतरफा जीत दर्ज की। विजय ने इसके बाद जिला पंचायत में हाथ अजमाने की तैयारी शुरू की और मुलायम की शरण में गए।
उस वक्त भदोही के जिला पंचायत अध्यक्ष शिवकरण यादव उर्फ काके हुआ करते थे। काके ने मुलायम सिंह के बारे में कई बार अपशब्द बोला था। इसलिए मुलायम ने विजय मिश्रा को आगे बढ़ाया और जिला पंचायत के 3 टिकट दिए। विजय के तीनों प्रत्याशी जीत गए। इसके बाद मुलायम के लिए विजय मिश्रा किसी मोहरा से कम नहीं थे।
2002 में विधानसभा चुनाव होना था। विजय मिश्रा ने विधायकी का टिकट मांगा। मुलायम सिंह ने शर्त रखी कि अपने साथ भदोही की दोनों सीटों व मिर्जापुर के भी सभी सपा उम्मीदवारों को जिताओगे। विजय ने शर्त स्वीकार की। चुनाव हुआ तो न सिर्फ विजय जीते बल्कि मिर्जापुर से कैलाश चौरसिया और हंडिया से महेश नारायण सिंह को चुनाव जितवा दिया। विजय ने ज्ञानपुर सीट पर बीजेपी के गोरखनाथ पांडेय को 7,652 वोटों से हराया।
वोटिंग के दिन हत्या हुई, नाम विजय का आया
इस चुनाव के लिए जिस दिन वोटिंग थी उसी दिन एक बूथ पर गोरखनाथ पांडेय के भाई की हत्या कर दी गई। गोरखनाथ कहते हैं, “विजय मिश्रा मेरी हत्या करना चाहते थे लेकिन मैं दूसरी गाड़ी में था और मेरा भाई मेरी गाड़ी में था। मेरा भाग्य कहिए या फिर दुर्भाग्य मैं बच गया लेकिन मेरा भाई मारा गया। दूसरे भाई ने दिनदहाड़े हुए मर्डर में गवाही भी दी लेकिन विजय मिश्रा को बरी कर दिया गया।” जांच के बाद इस मामले को बंद कर दिया गया था लेकिन मानवाधिकार आयोग की पहल के बाद दोबारा खोला गया है, जांच जारी है।
विजय विधायक बने तो हनक बढ़ती चली गई। धमकीबाजी का स्तर हाई होता गया। केस पर केस लगते चले गए। 2005 तक यह संख्या 20 पहुंच गई। उसी साल पत्नी रामलली को भदोही से जिला पंचायत अध्यक्ष बनवा दिया।
नेताओं को माला नहीं सोने की चेन पहनाते
विजय मिश्रा नवरात्रि में व्रत रखते। 11 पंडित पूरे 9 दिन जप करते थे। आखिरी दिन हवन करवाते और 40 हजार लोगों को भोजन करवाते थे। ब्राह्मणों को दक्षिणा में पैसे-अनाज के साथ एक गाय देते थे। यह क्रम लगातार चलता रहा, आगे चलकर तो जीत के लिए यज्ञ करवाने लगे। यज्ञ में आहुति देने के लिए विधानसभा के हर हिस्से के लोगों को बुलाया जाता था। विजय की आस्था कहिए या फिर रवैया एकदम अलग था। उनसे जड़े लोग बताते हैं कि कई बार काफिले के साथ निकलते तो बीच रास्ते में रास्ता बदल देते थे, “कहते थे कि देवी ने कहा है कि इधर जाने पर दुर्घटना हो सकती है।”
विजय को नेताओं को लुभाना आता था। पार्टी के बड़े नेता जब भदोही के सीतामढ़ी में दर्शन करने पहुंचते तो विजय उन्हें अपने यहां खाने पर बुला लेते थे। स्वागत के लिए उन्हें फूलों की माला नहीं बल्कि सामने वाले की हैसियत के बराबर वजन की सोने की चेन पहनाते थे। और चेन का डिब्बा उनके ही जेब में डाल देते थे ताकि सामने वाले को चेन का वजन पता करने के लिए सोनार की दुकान पर न जाना पड़े।
पुलिस पकड़ने पहुंची तो मुलायम के साथ उड़ गए
2007 में जब प्रदेश में बसपा की सरकार बनी तब भी ज्ञानपुर की सीट पर सपा से विजय मिश्रा ही जीते। 2009 में बगल वाली भदोही सीट पर उपचुनाव हुआ। बसपा के 30 मंत्री रोज कहीं न कहीं प्रचार करते। अफसरों ने बताया कि इलाके में विजय मिश्रा की पकड़ अच्छी है, उन्हें पाले में करेंगी तो पूरा जिला अपने पास होगा। बताते हैं कि मायावती ने विजय के पास ऑफर भेजा। मुलायम के प्रति विजय का समर्पण ऐसा था कि उन्होंने बसपा में शामिल होने का ऑफर ठुकरा दिया। उधर, विजय मिश्रा की क्रिमिनल फाइल खुल गई।
मुलायम सिंह सपा प्रत्याशी के समर्थन में प्रचार करने पहुंचे थे। दूसरी तरफ विजय मिश्रा को गिरफ्तार करने बसपा सरकार ने पुलिस भेज दी। विजय सीधे मुलायम की रैली में पहुंचे और हाथ जोड़कर कहा, आपको मेरी पत्नी रामलली के सिंदूर का वास्ता, मुझे बचा लीजिए। मुलायम सिंह ने दहाड़कर कहा, किसी माई के लाल में दम नहीं जो हमारे रहते विजय मिश्रा को गिरफ्तार कर सके। इसके बाद मुलायम ने विजय को अपने साथ हेलिकॉप्टर में बैठाया और उड़ गए। पुलिस देखती रही।
मंत्री के ऊपर हमला और साधु के रूप में पकड़े गए
12 जुलाई 2010, उस वक्त बसपा सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे नंद गोपाल गुप्ता ‘नंदी’ सुबह पूजा करके रोज की तरह घर के बाहर आए। वहां स्कूटी में रखे बम को रिमोट से उड़ा दिया गया। धुएं का गुबार उठा। धुआं छटा तो इंडियन एक्सप्रेस के पत्रकार विजय प्रताप सिंह, राकेश मालवीय और मंत्री के गनर की लाश पड़ी थी।
नंदी का पेट फट गया। आंतें बाहर आ गई। हथेली के चीथड़े उड़ गए। नंदी किसी तरह से भागकर एक घर में घुसे। दूसरा ड्राइवर आया और सीधे रास्ते के बजाय गाड़ी को शहर का चक्कर लगाते हुए स्वरूपरानी हॉस्पिटल ले गया। 8 दिन तक नंदी को होश नहीं रहा।
नंदी की पत्नी अभिलाषा गुप्ता ने विजय मिश्रा, ब्लॉक प्रमुख दिलीप मिश्रा सहित दो अन्य लोगों पर मामला दर्ज करवाया। पुलिस ने गिरफ्तारी शुरू की। दिलीप को पकड़ लिया। विजय मिश्रा फरार हो गए। 7 महीने तक पुलिस की टीमें खोजती रहीं लेकिन विजय का कुछ पता नहीं चला।
वह गेरुआ वस्त्र पहनकर कर्नाटक, कोलकाता और मुंबई घूमते रहे। पुलिस ने इनामी राशि 20 हजार से 50 हजार और फिर सीधे ढाई लाख रुपए घोषित कर दी। 8 फरवरी 2011 को एसटीएफ ने विजय को दिल्ली के हौजखास से गिरफ्तार कर लिया।
उस वक्त के एडीजी बृजलाल ने प्रेस कॉन्फ्रेंस की। बताया कि विजय मिश्रा के ही कहने पर राजेश पायलट नाम के शख्स ने प्रयागराज में बम का इंतजाम किया था। उस वक्त तक विजय पर 62 आपराधिक मामले दर्ज हो चुके थे।
जेल से चुनाव लड़ा और 37 हजार वोट से जीत गए
2012 में विधानसभा चुनाव था। विजय जेल में थे। मुलायम सिंह ने तय किया कि उन्हें ही प्रत्याशी बनाया जाएगा। टिकट दे दिया। विजय का प्रचार पत्नी रामलली व उनकी बेटियों ने किया। नतीजा आया तो विजय ने 37,674 वोट के अंतर से बसपा के दिनेश कुमार सिंह को हरा दिया। सपा की सरकार बनी और विजय मिश्रा बाहर आए। सरकार भले उनकी थी लेकिन सीएम अखिलेश से उनकी उतनी नहीं जमती थी। इसलिए अपनी छवि सुधारने पर जोर दिया।
पत्रकारों के लिए 50 हजार रुपए किलो वाली सब्जी बनवाते
विजय मिश्रा अपनी छवि को लेकर बहुत संजीदा थे। इसलिए पत्रकारों को साधकर रखते थे। जब कभी पत्रकारों को बुलाते तो उनके लिए 50 हजार रुपए किलो वाली गुच्छी की सब्जी मंगवाते और उसे खुद ही बनाते थे। जो पत्रकार उनके इस निमंत्रण में शामिल नहीं हो पाता था उसे फोन करके कहते, नहीं आओगे तो जुर्माना लगेगा। यही कारण था कि विजय मिश्रा के अपराधों की खबर स्थानीय अखबारों से गायब रहती थी।
1500 लोगों के नंबर याद
विजय मिश्रा ने प्रयागराज में एक आलीशान कोठी बनवाई। यहीं दरबार लगाने लगे। लोग अपनी समस्या बताते, विजय मिश्रा उधर अधिकारियों को फोन करके तुरंत मामला देखने का आदेश दे देते। जमीन से जुड़े तमाम मामलों को विजय ने ऐसे ही रफा-दफा करवा दिया। विजय को जानने वाले लोग बताते हैं कि उन्हें 1500 लोगों का फोन नंबर ऐसे ही याद था। किसी नंबर से फोन आए तो उठाते ही वह सामने वाले का नाम लेकर कहते थे, हां बोलिए।
अखिलेश ने टिकट काट दिया
2017 आते-आते सपा अखिलेश यादव के फैसलों पर चलने लगी। पार्टी ने विजय मिश्रा का टिकट काट दिया। उस वक्त विजय मिश्रा ने कहा, नेताजी को जब तक विजय मिश्रा से काम था तब तक हम बाहुबली नहीं थे। लेकिन जब काम खत्म हो गया तो हम अचानक बाहुबली हो गए। अगर हम बाहुबली ही होते तो इन्होंने 2012 में टिकट क्यों दिया? 2014 में मेरी बेटी को लोकसभा का टिकट क्यों दिया? 2016 में मेरी पत्नी को एमएलसी का टिकट क्यों दिया?
सपा ने टिकट काटा तो निषाद पार्टी से खड़े हो गए। बीजेपी के महेंद्र कुमार बिंद को 20,230 वोटों से हरा दिया। हालांकि, जिस पार्टी से जीते उसी पार्टी के पदाधिकारियों के खिलाफ हो गए। नतीजा ये हुआ कि पार्टी ने उन्हें निकाल दिया। यहां से विजय मिश्रा के बुरे दिन शुरू हो गए।
‘महाराज जी काम तो ठीक कर रहे हैं, लेकिन उनके अफसर सही नहीं है’
2017 में योगी आदित्यनाथ सीएम बने तो विजय मिश्रा कहते थे, “महाराज जी काम तो ठीक कर रहे हैं, लेकिन उनके अफसर सही नहीं है।” 2019 के बाद विजय भाजपा के पूरी तरह खिलाफ हो गए। कारण ये था कि विजय के ही एक धनापुर कौलापुर के रिश्तेदार कृष्ण मोहन तिवारी ने मामला दर्ज करवाते हुए कहा, “विधायक विजय मिश्रा और उनके करीबी डरा-धमकाकर 13 ट्रक-डंपर उठा ले गए। विजय की बेटी रीमा और सीमा के कहने पर उन्हें अलग-अलग जगहों पर छिपा दिया गया। दो के फर्जी कागज भी इन लोगों ने बनवा लिए थे।”
गाड़ी नहीं पलटनी चाहिए
शिकायत की जांच के बाद सरकार ने विधायक के प्रयागराज के अल्लापुर में स्थित घर पर बुलडोजर चलवा दिया। भतीजे प्रकाश चंद्र मिश्र और विकास चंद्र मिश्र के घर भी कुर्क करवा दिए। विजय फरार हुए तो पुलिस दूसरे राज्यों में तालाश करने पहुंच गई। 14 अगस्त 2020 को एमपी के आगर में पकड़ लिया गया। पुलिस ले आने लगी तो बेटियों ने कहा, बाकी सब तो कानून तय करेगा, लेकिन गाड़ी नहीं पलटनी चाहिए। बेटियों ने यह बात विकास दुबे के मामले को देखते हुए कही थी।
20 साल की बादशाहत 2022 में खत्म
2002 से शुरू हुआ जीत का क्रम 2022 में थम गया। ज्ञानपुर में इस बार किसी पार्टी ने टिकट नहीं दिया तो प्रगतिशील मानव समाज पार्टी से टिकट लेकर विजय उतरे। मंच पर पत्नी व बेटी रो-रोकर प्रचार करती लेकिन चुनाव नहीं जिता पाई। विजय को 34,985 वोट मिले और वह तीसरे नंबर पर रहे। इस तरह से 20 साल से ज्ञानपुर में चला आ रहा उनका वर्चस्व खत्म हो गया।
इस वक्त विजय मिश्रा, उनका बेटा विष्णु मिश्रा, भतीजा मनीष मिश्रा जेल में बंद हैं। इन सबकी करोड़ों रुपए की संपत्ति जब्त हो चुकी है। पत्नी रामलली, बेटी रीमा, बहु रूपा मिश्रा आय से अधिक संपत्ति के मामले में कोर्ट का चक्कर लगा रही हैं। इन सबकी करोड़ों रुपए की संपत्ति जब्त हो चुकी है। राजनीतिक पार्टियों ने विजय से हाथ छुड़ा लिया है। एक तरह से विजय मिश्रा का दौर अब खत्म नजर आता है। सियासी पारी ढलान पर है।