यूपी STF ने आज पूरे किए 25 साल ..?
यूपी STF ने आज पूरे किए 25 साल:श्रीप्रकाश शुक्ला से लेकर असद एनकाउंटर तक, न्यूयॉर्क पुलिस से लिया था आइडिया
यूपी STF का आज 25 साल पूरा हो गया। 4 मई 1998 को लखनऊ में तत्कालीन सीएम कल्याण सिंह के आदेश पर यूपी में STF का गठन किया था। 4 मई को सबसे पहले संस्थापक टीम में 3 अधिकारियों की तैनाती की गई। इन अधिकारियों में तत्कालीन सीओ हजरतगंज राजेश पांडेय, एसपी सिटी लखनऊ सत्येंद्रवीर सिंह और एसएसपी लखनऊ अरुण कुमार को एसटीएफ यूनिट में पोस्ट कर दिया गया। एसटीएफ यूनिट का सुपरविजन तत्कालीन एडीजी लॉ एंड ऑर्डर अजय राज शर्मा को दिया गया।
आज एसटीएफ की प्रदेश में 8 यूनिट काम कर रही हैं, जहां तेज तर्रार और सर्विलांस के एक्सपर्ट समेत 550 अधिकारी और जवान तैनात हैं। तत्कालीन सीएम कल्याण सिंह की हत्या की 5 करोड़ रुपए में सुपारी लेने वाले श्रीप्रकाश शुक्ला को पकड़ने के लिए ही एसटीएफ का गठन किया गया।
- राजेश कुमार पांडेय एसटीएफ के संस्थापक सदस्य और रिटायर्ड IPS अधिकारी हैं, दैनिक भास्कर पर पढ़िए एसटीएफ के गठन की कहानी…
पहला टारगेट श्रीप्रकाश शुक्ला जिंदा या मुर्दा
एसटीएफ के संस्थापक सदस्य और रिटायर्ड आईजी राजेश कुमार पांडेय बताते हैं कि 1998 में यूपी में संगठित अपराध उस समय चरम पर था। 26 साल का श्रीप्रकाश शुक्ला उत्तर प्रदेश और बिहार का डॉन बन चुका था, कई ऐसी हत्याएं उसने की की सरकार के मंत्री भी घबराने लगे। लखनऊ में एक के बाद एक हत्याएं की गईं, वह भी एके– 47 से। तत्कालीन चीफ मिनिस्टर कल्याण सिंह की 5 करोड़ रुपये में श्रीप्रकाश शुक्ला ने हत्या की सुपारी ले ली, यह बात सीएम और प्रदेश के आला अफसरों को पता चल गई।
सीएम की सुरक्षा चारों तरफ से बढ़ा दी गई, लेकिन शाम होते ही डीजीपी, प्रमुख सचिव गृह और सीएम की बैठक, चिंता साफ थी… और लक्ष्य किसी भी तरह श्रीप्रकाश शुक्ला को जिंदा या मुर्दा पकड़ने का। लखनऊ में हजरत गंज के पास मोबाइल कंपनी का पहला टॉवर लगा था, पुलिस में सर्विलांस सिस्टम को समझने के लिए काम शुरू ही किया गया था।
राजेश पांडेय आगे बताते हैं कि 25 साल पहले एसटीएफ का जो पौधा रोपा गया था, आज वह वट वृक्ष का रूप ले चुका है, कुख्यातों का सफाया हो या फिर संगठित अपराध की रीढ़ तोड़ने का काम। मुझे गर्व है कि मैं सबसे पहले सर्विलांस पर काम शुरू करने के साथ यूपी एसटीएफ और एटीएस का संस्थापक सदस्य रहा हूं..
पहले जानिए कौन था श्रीप्रकाश शुक्ला
साल 1993 की बात है। गोरखपुर में एक छात्रा कॉलेज से घर जा रही थी। उसे देखकर राकेश तिवारी नाम के एक युवक ने सीटी बजाई। कई दिन तक यह चलता रहा। छात्रा के भाई को इसका पता चला तो उसने गुस्से में राकेश को गोली मार दी। छात्रा के भाई का नाम था श्रीप्रकाश शुक्ला। 1993 में करीब 18 साल की उम्र में पहला मर्डर करने के बाद श्रीप्रकाश शुक्ला बैंकाक भाग गया।
बाद में भारत लौटा तो बिहार का रुख किया। यहां उसे बाहुबली नेता सूरजभान सिंह ने पनाह दी। जरायम की दुनिया में श्रीप्रकाश शुक्ला बड़ा नाम बनने लगा था और पुलिस के चुनौती। श्रीप्रकाश शुक्ला उस समय अकेला ऐसा डॉन था जिसने मॉडर्न एके -47 का इस्तेमाल करके सनसनी मचा दी थी…।
लखनऊ में श्रीप्रकाश ने दिनदहाड़े हत्याएं की
बिहार और लखनऊ में श्रीप्रकाश शुक्ला दिनदहाड़े हत्या करने लगा। अपहरण कर फिरौती वसूलने लगा। जनवरी 1997 में लखनऊ में लाटरी व्यवसायी विवेक श्रीवास्तव की गोलियों से भूनकर हत्या कर दी। इसी हत्या के 11 वें दिन लखनऊ में आलमबाग में ट्रिपल मर्डर को अंजाम दिया। 31 मार्च को दिन निकलते ही नेता वीरेंद्र शाही को भी गोलियों से छलनी कर दिया। मर्डर भी इतना खौफनाक तरह से कि स्कूल के गेट पर इस हत्या को अंजाम देने के बाद भी वह भाग निकला।
श्रीप्रकाश का खौफ यहां भी नहीं थमा। मई 1997 में लखनऊ के बिल्डर मूलराज अरोड़ा को हजरतगंज में उनके ऑफिस से किडनैप कर 2 करोड़ रुपये की फिरोती वसूल की। अगस्त 1997 में श्रीप्रकाश शुक्ला ने गुर्गो के साथ विधानसभा के पास होटल में 3 लोगों की गोलियों से भूनकर हत्या कर दी। बताया जाता है कि AK– 47 से 100 से ज्यादा राउंड फायरिंग की। दोपहर के एक बजे का वक्त था और विधानसभा चल रही थी। गोलियों की तड़तड़ाहट से विधानसभा में भगदड़ जैसी स्थिति मच गई।
न्यूयार्क से लौटे थे प्रमृख सचिव राजीव रतन शाह
यूपी के तत्कालीन प्रमुख सचिव (गृह) राजीव रतन शाह सरकारी काम से न्यूयार्क गए थे। इधर यूपी में संगठित अपराध और श्रीप्रकाश शुक्ला का आतंक था। वह न्यूयार्क में एनवाईपीडी ऑफिस भी गए और पुलिस हेडक्वार्टर में अधिकारियों से बातचीत की और संगठित गिरोह को तोड़ने के लिए वहां जो काम और यूनिट थी उनसे भी बात की गई।
प्रदेश की राजधानी में इन ताबड़तोड़ घटनाओं से खौफ का माहौल था। इसके बाद उसने उस वक्त यूपी के सीएम कल्याण सिंह की हत्या के लिए 5 करोड़ की सुपारी ले ली। राजीव रतन शाम को लखनऊ में लौटकर सीएम कल्याण सिंह से मिलना था, सीएम अपनी सुरक्षा को लेकर लगातार बात कर रहे थे, क्योंकि श्रीप्रकाश सीएम की हत्या के लिए 5 करोड़ की सुपारी ले चुका था।
तभी आईपीएस अजय राज शर्मा को बुलाकर सीएम कल्याण सिंह ने कहा कि श्रीप्रकाश शुक्ला का क्या होगा, एक दिन यह किसी को भी मार सकता है। अब यह मेरी भी सुपारी ले चुका है, यह गैंग हाई सिक्योरिटी तोड़कर कुछ भी कर सकता है। अजयराज शर्मा को एडीजी कानून व्यवस्था की जिम्मेदारी सौंपी गई, श्रीप्रकाश के खात्मे के लिए नई यूनिट बनाई गई जिसे नाम दिया गया STF।
श्रीप्रकाश शुक्ला का नंबर लिसनिंग पर लिया
4 मई 1998 को गठित की गई एसटीएफ को पांच महीने होने को थे, श्रीप्रकाश हत्थे नहीं चढ़ा। एसटीएफ की टीम सर्विलांस पर काम कर रही थी, लेकिन कॉल रिकार्ड और सुनने के मामले में तकनीक नई होने के चलते बाहर से भी मदद ली गई। श्रीप्रकाश शुक्ला ने लखनऊ में होटल मॉलिक को कॉल की और गालियां देते हुए एक करोड़ मांगे।
श्रीप्रकाश के मोबाइल की कॉल टेप करने के लिए एसटीएफ ने कानपुर आईआईटी की मदद ली। पता चला की यह श्रीप्रकाश का पर्सनल नंबर है, जिसकी लोकेशन दिल्ली में वसंतकुंज की थी। 23 सितंबर 1998 को STF के प्रभारी अरुण कुमार को सूचना मिली कि श्रीप्रकाश दिल्ली से गाजियाबाद की तरफ आ रहा है। एसटीएफ को पहली रात ही लखनऊ से दिल्ली बार्डर भेज दिया था।
एसटीएफ की टीम पीछा कर रही थी, श्रीप्रकाश अपनी प्रेमिका से कॉल पर बात कर रहा था, जिसकी लोकेशन को एसटीएफ ट्रेस करने लगी। गाजियाबाद के इंदिरापुरम में एसटीएफ ने एनकाउंटर में श्रीप्रकाश को ढेर कर दिया। 25 मिनट तक दोनों तरफ से करीब 100 से ज्यादा राउंड फायर किए गए।
असद और गुलाम का अखिरी एनकाउंटर
संगठित अपराध के नेटवर्क को तोड़ने के साथ यूपी एसटीएफ ने पिछले 25 सालों में कुख्यातों को भी ढेर किया। इस समय एसटीएफ की कमान एडीजी अमिताभ यश के हाथों में है। 13 अप्रैल 2023 को यूपी एसटीएफ ने उत्तर प्रदेश के झांसी में अतीक के बेटे असद और शूटर गुलाम को मार गिराया।
इस दोनों पर ही पांच पांच पांच लाख रुपये का इनाम था। प्रयागराज में उमेशपाल हत्याकांड को अंजाम देने वाले इन दोनों ने एसटीएफ पर देखते ही फायरिंग कर दी, जहां एसटीएफ की जवाबी फायरिंग में दोनो मारे गए। कानपुर में बिकरु कांड का मुख्य आरोपी विकास दूबे भी एसटीएफ के हाथों मारा गया। एसटीएफ के प्रमुख अमिताभ याश कुख्यात डकैत गौरी को भी मार चुके हैं। ददुआ और ठोकिया भी एसटीएफ के हाथों मारे गए।
एडीजी एसटीएफ अमिताभ यश ने बताया कि आज एसटीएफ की 8 यूनिट हैं, अयोध्या यूनिट पर काम चल रहा है। प्रदेश में एसटीएफ में 550 जवान/ अधिकारी शामिल हैं। चाहे प्रतियोगी परीक्षाओं में नकल पकड़ने का मामला हो या फिर संगठित गिरोह की कमर तोड़ने का काम एसटीएफ कर रही है।