FIR के 10 दिन बाद भी बृजभूषण सिंह गिरफ्तार नहीं ..?

POCSO में फौरन गिरफ्तारी के नियम, फिर क्यों मिल रही छूट …

कुश्ती संघ के अध्यक्ष बृजभूषण सिंह पर FIR दर्ज हुए भी 10 दिन बीत चुके हैं। नाबालिग समेत 7 महिला रेसलर्स ने उनके खिलाफ यौन शोषण का केस दर्ज कराया है। इनमें POCSO जैसी गंभीर धाराएं हैं, जिनमें आरोपी को फौरन गिरफ्तार करने के नियम हैं। इसके बावजूद अब तक गिरफ्तारी नहीं हुई है।

 बृजभूषण सिंह को क्यों नहीं गिरफ्तार कर रही दिल्ली पुलिस और कितनी सही हैं ये वजहें? पूरे मामले को हमने 7 सवालों के जवाब में समेटा है…

सवाल 1: बृजभूषण सिंह के खिलाफ जो केस दर्ज हुए हैं, उसमें गिरफ्तारी के क्या नियम हैं?
जवाब: बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ पॉक्सो एक्ट और सेक्शुअल हैरेसमेंट के केस दर्ज हुए हैं। नाबालिग से होने वाले सेक्शुअल हैरेसमेंट को रोकने के लिए पॉक्सो एक्ट कानून बना है। ये कानून काफी सख्त है। इस केस में आरोपी को पुलिस बेल नहीं दे सकती है। पुलिस सबसे पहले आरोपी को गिरफ्तार करती है और उसके बाद जांच आगे बढ़ाती है।

यूपी के पूर्व DGP विक्रम सिंह के मुताबिक पुलिस गिरफ्तारी से पहले आरोप की सत्यता की जांच कर सकती है। प्राइमरी जांच में पुलिस को आरोप सही लगता है तो आरोपी को गिरफ्तार होने से कोई नहीं रोक सकता है।

सुप्रीम कोर्ट के वकील विराग गुप्ता के मुताबिक पॉक्सो कानून में केस दर्ज होने के बाद अपराधों की जांच और उनके ट्रायल के लिए विशेष व्यवस्था बनी है। ऐसे मामलों में गिरफ्तारी के बाद जमानत मिलने में भी मुश्किल होती है। FIR और गिरफ्तारी के लिए CrPC में कानूनी व्यवस्था बनाई गई है।

केस दर्ज करने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने 2014 में अरनेश कुमार और बिहार सरकार के मामले में गाइडलाइन बनाई थीं, लेकिन बृजभूषण शरण सिंह के मामले में उनका पालन नहीं हुआ। सुप्रीम कोर्ट में मामला जाने के बाद दिल्ली पुलिस ने FIR दर्ज की है। CrPC की धारा-41 और 42 के तहत पुलिस आरोपी को गिरफ्तार कर सकती है।

सवाल 2: जब तुरंत गिरफ्तारी के नियम हैं फिर बृजभूषण सिंह को 10 दिन बाद भी गिरफ्तार क्यों नहीं किया गया?
जवाब: सुप्रीम कोर्ट ने सतेंद्र कुमार अंतिल बनाम केंद्रीय जांच ब्यूरो के मामले में कहा है कि संज्ञेय अपराध में भी गिरफ्तारी अनिवार्य नहीं है। जब तक ऐसा केस के जांच अधिकारी को न लगता हो। यानी यहां दिल्ली पुलिस के जांच अधिकारी को बृजभूषण सिंह की गिरफ्तारी जरूरी नहीं लगती। इसलिए उन्हें गिरफ्तार करने की कोशिश नहीं की जा रही।

हालांकि ऐसे ही दूसरे मामलों में आरोपियों को गिरफ्तार किया जा चुका है। कानून के एक्सपर्ट रमेश गुप्ता का मानना है कि पुलिस गिरफ्तारी न करके अपने अधिकारों का दुरुपयोग कर रही है।

सवाल 3: बृजभूषण सिंह को गिरफ्तार न करके पुलिस अपने अधिकारों का दुरुपयोग किस तरह कर रही है?
जवाब
: विराग गुप्ता का कहना है कि रेप, मर्डर, किडनैपिंग और डकैती जैसे मामलों में शामिल लोगों की गिरफ्तारी जरूर होती है, जिससे समाज को और अपराधों से बचाया जा सके। इस तरह 4 सिनेरियो में आरोपी की गिरफ्तारी जरूरी हो जाती है…

1. अगर संगीन अपराध हुआ है

2. अगर आरोपी से समाज को खतरा है

3. अगर आरोपी से सबूतों और गवाहों को खतरा है

4. अगर आरोपी के भागने का खतरा है

बृजभूषण सिंह के केस में 4 में से 3 सिनेरियो गिरफ्तार किए जाने की तरफ इशारा करते हैं।

1. बृजभूषण के खिलाफ पॉक्सो एक्ट में केस दर्ज हुआ है, जो संगीन अपराध है। इस आधार पर देखें तो गिरफ्तारी होनी चाहिए।

2. बृजभूषण के खिलाफ 30 से ज्यादा केस दर्ज हुए हैं। इनमें मर्डर, आर्म्स एक्ट जैसे अपराध शामिल हैं। इस आधार पर देखें तो गिरफ्तारी होनी चाहिए।

3. बृजभूषण सिंह 6 बार से सांसद हैं। वह कुश्ती संघ के अध्यक्ष हैं। इस पद रहते हुए उन पर ये गंभीर आरोप लगे हैं। इसके बावजूद वह अपने पद पर बने हुए हैं। ऐसे में पद और रसूख का इस्तेमाल करके वह सबूत से छेड़छाड़ कर सकते हैं। इस आधार पर भी उनकी गिरफ्तारी होनी चाहिए।

4. वह बड़े नेता हैं। एक बार फिर चुनाव लड़ने की तैयारी में हैं। ऐसे में उनके भागने की संभावना कम है। ऐसे में इस आधार पर उनकी गिरफ्तारी की जरूरत नहीं लगती है।

सवाल 4: क्या किसी पद पर होने की वजह से बृजभूषण अभी गिरफ्तार नहीं होंगे?
जवाब: विराग गुप्ता कहते हैं कि आपराधिक कानून के मामले में संविधान के अनुसार राष्ट्रपति और राज्यपाल को विशेष सुरक्षा मिली है और अन्य सभी लोग कानून के सामने बराबर हैं।

संसद सत्र के दौरान यदि किसी सांसद की गिरफ्तारी होती है तो स्पीकर को सूचित करने का नियम और प्रोटोकॉल है, लेकिन भारतीय कुश्ती संघ के अध्यक्ष और सांसद होने के नाते बृजभूषण शरण को विशेष कानूनी कवच नहीं मिला है।

सवाल 4: जिन दो मामलों में बृजभूषण के खिलाफ केस दर्ज हुए हैं, उनमें कितनी सजा मिल सकती है?
जवाब: बृजभूषण के खिलाफ महिला की लज्जा भंग करने के आरोप में IPC की धारा 354, 354(A), 354(D) के तहत केस दर्ज किया गया है। इस मामले में अगर वो दोषी पाए जाते हैं तो उन्हें अधिकतम 3 साल तक की सजा हो सकती है। वहीं, एक केस पॉक्सो एक्ट में भी दर्ज किया गया है। पॉक्सो एक गैर-जमानती अपराध है। इसमें दोषी पाए जाने पर कम से कम 7 साल की जेल और अधिकतम उम्रकैद तक की सजा हो सकती है।

सवाल 5: क्या इस तरह के मामले में पद या सांसदी पर भी कोई असर पड़ सकता है?
जवाब: देश में एक तिहाई विधायक और सांसदों के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज हैं। बृजभूषण शरण के खिलाफ पहले भी कई आपराधिक मामले दर्ज हो चुके हैं। सरकारी अधिकारियों के खिलाफ FIR हो जाए तो उन्हें नौकरी से निलंबित कर दिया जाता है, लेकिन ऐसे मामलों में सांसदों की सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़ता है।

इस मामले की जांच के बाद चार्जशीट फाइल होगी या फिर पुलिस क्लोजर रिपोर्ट भी फाइल कर सकती है। लोकसभा की अवधि एक साल के भीतर समाप्त हो रही है, इसलिए उनकी वर्तमान सांसदी पर कोई संकट नहीं दिखता है। अदालत में लंबे ट्रायल के बाद यदि उन्हें दो साल से ज्यादा की सजा हुई तो अयोग्य होने के कारण भविष्य में वह 6 साल तक चुनाव नहीं लड़ पाएंगे।

सवाल 6: क्या सेक्शुअल हैरेसमेंट और पॉक्सो एक्ट में दर्ज केस की कार्रवाई के नियम बाकी धाराओं में दर्ज केस से अलग होते हैं?
जवाब: 2012 में निर्भया कांड की वजह से यौन अपराधों के मामले में जांच के लिए वर्मा कमीशन बना। 2013 में इस कमीशन की रिपोर्ट आने के बाद कई कानूनों में बदलाव हुए। यौन अपराध को लेकर कानून पहले से ज्यादा मजबूत हुए हैं। यूपी के पूर्व DGP विक्रम सिंह के मुताबिक बाकी धाराओं में दर्ज केस से पॉक्सो एक्ट में दर्ज केस दो वजहों से अलग होते हैं…

यौन अपराध के मामले में सही से कार्रवाई नहीं करने पर IPC की धारा 166A के तहत पुलिस अधिकारी के खिलाफ कार्रवाई हो सकती है। उचित कार्रवाई नहीं करने वाले अधिकारियों को अपराधी माना जाएगा और उन्हें 6 महीने की जेल हो सकती है।

सेक्शुअल हैरेसमेंट के केस में CrPC के तहत 90 दिनों के अंदर जांच पूरी होनी चाहिए। गिरफ्तारी के लिए कोई तय समय नहीं होती है। हालांकि पॉक्सो में अरेस्ट का ही नियम है और बेल का कोई प्रावधान नहीं है।

सवाल 7: बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ विदेश में यौन शोषण के आरोप हैं, ऐसे में क्या जांच पर कोई असर पड़ सकता है?
जवाब: विराग का कहना है कि बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ विदेश में यौन उत्पीड़न करने के आरोप लगे हैं। ऐसे मामलों की जांच में क्षेत्राधिकार का सवाल खड़ा हो सकता है। मामले बहुत पुराने होने की वजह से सबूतों को जुटाना भी मुश्किल होगा।

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