हिंसा के बजाय बातचीत से खोजें सर्वसम्मत हल …?
हो सकता है मैं आपके विचारों से सहमत न हो पाऊं फिर भी विचार प्रकट करने के आपके अधिकारों की रक्षा करूंगा। —वाल्तेयर….
मणिपुर की कुल आबादी में 65 फीसदी हिस्सेदारी मैतेई समुदाय की है। राज्य के 60 में से 40 विधायक मैतेई समुदाय के हैं। बाकी 35 फीसदी आदिवासी समुदायों के 20 प्रतिनिधि विधानसभा पहुंचते हैं। मैतेई समुदाय इस आधार पर एसटी का दर्जा चाहता है कि उसके पास राज्य का सिर्फ 10 फीसदी भूभाग है, जबकि दूसरे आदिवासी समुदाय 90 फीसदी भूभाग में फैले हुए हैं। भूभाग के लिहाज से मणिपुर में समस्या का तीसरा कोण म्यांमार के शरणार्थी हैं। दो साल पहले म्यांमार में तख्तापलट के बाद वहां से भारी तादाद में शरणार्थी मणिपुर आ चुके हैं। यह सिलसिला अब भी जारी है। ऐसे कई शरणार्थियों ने न सिर्फ राज्य की जमीन पर अवैध कब्जा जमा रखा है, बल्कि उन्होंने अफीम की खेती भी शुरू कर दी है। राज्य सरकार ने ड्रग्स के खिलाफ अभियान के तहत जब अफीम की खेती को नष्ट करना शुरू किया तो अवैध प्रवासी उसके खिलाफ लामबंद होने लगे। इस साल फरवरी में सरकार ने अवैध प्रवासियों को मणिपुर से निकालना शुरू किया था, तब भी हिंसा भड़की थी। कुकी समुदाय ने आरोप लगाया था कि उसके लोगों को अवैध प्रवासी बताकर निकाला जा रहा है।
मौजूदा विवाद सुलझाते समय अवैध प्रवासियों की समस्या का स्थायी समाधान जरूरी है। सरकार को म्यांमार की फौजी हुकूमत पर कूटनीतिक दबाव बनाना चाहिए, ताकि वह मणिपुर से अपने लोगों को वापस बुलाए। मैतेई समुदाय को एसटी दर्जे के मुद्दे पर सर्वसम्मत हल खोजने की पहल होनी चाहिए। राज्य के सभी समुदायों को समझना चाहिए कि हिंसा राज्य के विकास को पीछे धकेलती है। बातचीत से हर समस्या का हल संभव है। विरोध जताने के लिए सभी को आगजनी व मार-काट की आदिम सोच से मुक्त होने की जरूरत है।