कम्प्यूटर से निकल दुनिया में उत्पात मचाने की ताकत नहीं चैटजीपीटी

चैटजीपीटी एक अचेत सॉफ्टवेयर, यह कुछ भी नहीं समझता
मेंचैट के बारे में अजीबोगरीब बात यह है कि कुछ बुद्धिमान लोग इससे भयभीत हैं। कुछ लोग विश्व में एआइ अनुसंधान पर रोक लगाना चाहते हैं। एआइ प्रौद्योगिकी 1950 के दशक से विद्यमान है, तब भी चैट इतना स्मार्ट नहीं हो पाया है कि कोई नुकसान पहुंचा पाए।

चैटजीपीटी एक आर्टिफिशल इंटेलिजेंस पर आधारित सॉफ्टवेयर है, जिसका निर्माण ओपनएआइ नामक कंपनी ने किया है। चैट की विशेषज्ञता है भाषा को पढ़ना और लिखना, जो कि आसान काम नहीं है। कोई भी विषय दे दीजिए और चैट आपको आपके पसंदीदा स्वरूप में छोटा निबंध लिख कर दे देगा, इनमें तुकांत कविता भी शामिल है। यदि इसके लिए अनुसंधान की जरूरत हो तो चैट सीधे इंटरनेट का रुख कर लेता है, जो सूचनाओं का भंडार है और इनमें से कुछ सही भी होती हैं।

हाल ही कुछ बेहतरीन सॉफ्टवेयर निर्माताओं ने मुझे बताया है कि चैट कितने अच्छे तरह से काम करता है और कितनी कुशलता से नए सॉफ्टवेयर की रचना करता है। चैट लिखित एक नया एप न केवल वीडियो गेम और ब्राउजर बना सकता है बल्कि नए सॉफ्टवेयर के टास्क में शामिल हर काम को अंजाम दे सकता है। चैटजीपीटी का अधिकतर लोग दिल खोल कर स्वागत इसलिए कर रहे हैं क्योंकि यह अच्छी व स्पष्ट भाषा में रूपान्तरण करने व लिखने में सक्षम है। एक कठिन व महत्त्वाकांक्षी कार्य, पर इसे चैट कितनी अच्छी तरह अंजाम देता है? जबकि चैटजीपीटी से पहले इंसान ही थे जो इस टास्क को बेहतरीन तरीके से अंजाम दे पाते थे। दरअसल, चैटजीपीटी बहुत बेहतरीन तरीके से इस कार्य को अंजाम नहीं दे पाता। ऐसा क्यों नहीं है, इसके बहुत से कारण हैं।

यह सॉफ्टवेयर भी अन्य सॉफ्टवेयर की तरह अचेत है। निस्संदेह, इस प्रोजेक्ट का उद्देश्य सचेत सॉफ्टवेयर बनाना नहीं था। यह अच्छी बात है क्योंकि ऐसा किया भी नहीं जा सकता। ‘सचेत कम्प्यूटर’ के बारे में बात करना वैसे ही निरर्थक है जैसे कि ‘सचेत टोस्टर’ की बात करना। दोनों ही इंसानों द्वारा बनाई गई मशीनें हैं, जिन्हें संकलित और विघटित किया जा सकता है। पर इन्हें जीवन या मृत्यु नहीं दी जा सकती। कई लंबे और रोचक दार्शनिक तर्क इन बिंदुओं पर दिए गए हैं, पर कोई भी सामान्य ज्ञान वाले निष्कर्ष को नहीं बदल सकता। जो लोग अचेत लेखकों, सहायकों व सहकर्मियों पर भरोसा करते हैं, उन्हें सावधान रहना चाहिए।

अचेत होने के कारण चैट को कोई अनुभूति नहीं होती। यह महसूस नहीं कर सकता। इसलिए यह कुछ भी नहीं समझ सकता चाहे भाषा हो, इंसान हो या फिर कुछ और। ऐसे में यह इन शब्दों को कैसे समझ सकता है — ‘मुझे प्रसन्नता की अनुभूति हो रही है’, जबकि इसने कभी कुछ अनुभव किया ही नहीं है और न कभी करेगा? ‘समझो’ ऐसा शब्द है जो मशीनों पर लागू होता ही नहीं।

चेतना को भौतिक शरीर से अलग नहीं माना जाता। और चूंकि हम सचेत हैं, हम महसूस कर सकते हैं और हमारी भावनाएं भी हो सकती हैं। शारीरिक भावनाएं व अनुभूतियां दुनिया को देखने का हमारा नजरिया व मानसिक भाव बदल सकती हैं। वास्तविक मनोभाव का स्थान कोई डेटा प्रोसेसिंग तंत्र नहीं ले सकता। हमें मनोभाव सीधे अनुभव करने चाहिए न कि हमें उनकी जानकारी ऐसे मिले, जैसे घड़ी देखने पर समय का पता चलता है। हम अपनी अनुभूतियों को महसूस करते हैं, भले ही हम चाहें या न चाहें।

चैटजीपीटी के कई प्रभावशाली संवाद ऑनलाइन पोस्ट किए गए हैं, जो स्वयं अपनी कहानी बयां करते हैं। कभी-कभी चैट वास्तव में बात कर सकता है। परन्तु अगर आप इसके कथनों को चुनौती देते हैं तो इसे ऐसा कोई अंत:अनुभव नहीं होता कि आप गलत बोल रहे हैं या फिर झांसा दे रहे हैं। यह केवल विषय बिंदु को मानने के लिए उत्सुक रहता है। अगर एक बार में समझ न आने पर आप इसे कोई बात दोबारा समझाने के लिए कहेंगे तो इसे ऐसा कुछ महसूस नहीं होगा कि आपको किस मुद्दे पर असमंजस है। यह शब्दों में फेरबदल व थोड़ा-सा बदलाव कर वही बात दोहराता रहता है, जो यह पहले कह चुका है। चैट उस व्यक्ति की तरह है जो मुश्किल से ही ध्यान दे पाता है। अचेत होने के चलते चैट निश्चित रूप से ध्यान से नहीं सुन रहा होता है। चेतना के अभाव और उसके चलते इसमें अनुभव करने की क्षमता न होने के कारण चैट अपने ही कार्य का मूल्यांकन नहीं कर सकता। एक चैट उदाहरण देखें जो इस बारे में है कि जॉब में कैसे सफलता प्राप्त की जा सकती है — ‘विश्वास और सौहार्द स्थापित करके आप एक सहायक नेटवर्क बना लेंगे…।’ यहां कुछ शब्द चलन से बाहर हो चुके हैं, जैसे ‘विश्वास व सौहार्द’ और ‘सहायक नेटवर्क’। अगर चैट इन्हें पकड़ता है, जो कि वह कर रहा है तो ऐसे शब्दों की भरमार हो सकती है। इसी प्रकार चैट जनित भाषाई अभिव्यक्ति के और भी उदाहरण हैं जो आम बोलचाल से अलग हैं। दरअसल, चैट गढ़ी हुई कहावतों पर निर्भर है और अधिकारियों की तरह लिखता है। यह औपचारिक है। स्वाभाविक है कोई अचेत मशीन किसी भाषा को कैसे सुन सकती है।

चैट के बारे में अजीबोगरीब बात यह है कि कुछ बुद्धिमान लोग इससे भयभीत हैं। कुछ लोग विश्व में एआइ अनुसंधान पर रोक लगाना चाहते हैं, भले ही वे इसके बारे में कुछ भी न जानते हों। यह हास्यास्पद है। कहीं न कहीं वे मानते हैं कि चैटजीपीटी कम्प्यूटर से निकल कर दुनिया भर में उत्पात मचाएगा। एक अनुभवी पेशेवर के तौर पर, मेरा यकीन है कि ऐसा कुछ भी नहीं होने वाला है। मेरे विचार से चैटजीपीटी शांति से अपने कम्प्यूटर में नेटवर्क से जुड़ा रहेगा और अपने काम से काम रखेगा।

संक्षेप में, कम से कम कुछ समय के लिए तो मैं चैन से बैठ सकता हूं। एआइ प्रौद्योगिकी 1950 के दशक से विद्यमान है, तब भी चैट इतना स्मार्ट नहीं हो पाया है कि कोई नुकसान पहुंचा दे। फिर भी आप यदि बहुत डरे हुए हैं तो अपने कम्प्यूटर के छोटे-छोटे टुकड़े कर उन्हें कूड़ेदान में फेंक सकते हैं!

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